आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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रविवार, 2 फ़रवरी 2014

मटर पुरुषों को बाँझ बनाती है


                                                        

ये मटर है ,आजकल इसका मौसम भी है। वैसे तो फ्रोजन मटर और सूखी मटर साल भर मिलती है लेकिन अगर आप किसी खाद्यान्न के समस्त गुणों का उपयोग करना चाहें तो उस खाद्यान्न को उसके मौसम में भरपूर खाइये। बेमौसम की चीजें बीमारियां पैदा कर देती हैं क्योंकि हमारे शरीर में बेमौसम की चीजों को पचाने के लिए उचित रस का स्राव नहीं होता। 

                                                

आजकल तो पूर्वोत्तर भारत में कोई दिन बिना मटर खाये नहीं जाता होगा ,किसी भी परिवार का। अमीर हो या गरीब।  मटर तो पुलाव का बहुत महत्वपूर्ण  अंग है। फिर मटर पनीर के क्या कहने। चाट की कल्पना बिना मटर के तो हो ही नहीं सकती ,आजकल तो समोसे में भी मटर पाई जाती है। मटर की दाल सस्ती होने के कारण पूर्वी उत्तर प्रदेश के ९०% घरों में मटर की  ही दाल खायी जाती है। 
इस मटर का वैज्ञानिक नाम है Pisum sativum. मटर की लताएँ होती हैं। मटर में ५४%कार्बो हाइड्रेट और २४%प्रोटीन पाया जाता है। इसमें आयरन, फास्पोरस, फ़ैट, फाइबर, भस्म, ट्राइगोनेल्लीन आदि तत्व पाये जाते हैं।
  
मटर खाने से दो बहुत बड़े नुक्सान होते हैं। आप अगर इन नुकसानों से खुद को बचा सकें तो भरपूर मटर खाइये अन्यथा संभल जाइये। पहला नुक्सान है- पौरुष हारमोन का निष्क्रिय होना। इसके तेल में लैंगिक हारमोन विरोधी गुण पाया जाता है जो पुरुष को बाँझ बना देता है। जो नारियां मटर ज्यादा खाएंगी वो लड़की ज्यादा पैदा करेंगी ,उन्हें लड़का मुश्किल से ही पैदा होगा। कारण कि मटर भ्रूण बनते समय पौरुष हारमोन को निष्क्रिय कर देती है। दूसरा नुक्सान है -गैस बनना अर्थात शरीर में वायु दोष उत्पन्न हो जाना, अनावश्यक डकार आना ,कब्जियत रहना ,पेट फूलना आदि। 
अगर आपका शरीर इन दो नुक्सान को बर्दाश्त कर सकता है तो बिंदास मटर खाइये। 
लेकिन इस मटर में गुण भी होते हैं -यह कफ और पित्त के दोषों को शांत भी करती है। कच्ची मटर खाने से कब्ज नहीं होती। 

मटर का प्रयोग सौंदर्य निखारने के लिए कीजिये। मटर उबाल कर पीस कर शरीर पर उबटन लगाएं ,रंग निखार जाएगा ,उसमे एक चुटकी हल्दी पाउडर मिला लीजिये तो स्किन हेल्दी भी हो जायेगी। 

मटर खाने से मोटापा बढ़ता है ,यह खून और मज्जा दोनों बढ़ाती है ,इसलिए मोटे व्यक्ति मटर से परहेज करें। 

मटर स्त्रियो के लिए कभी कभी अमृत बन जाती है। अगर नवजात के लिए दूध न उतर रहा हो तो खूब हरी मटर खाएं ,बच्चा छक कर दूध पियेगा। अगर नारी को पीरियड में रुकावट आ रही है तो मटर खाएं रुकावट दूर हो जायेगी। 

पैर के तलुओं में या पेट में या माथे में अर्थात शरीर में कहीं भी जलन हो रही हो तो हरी मटर पीस कर लेप कर दीजिये। 

मैंने अक्सर ठंड के मौसम में कुछ लोगो की अंगुलियाँ  सूजते हुए देखी हैं। 
ऎसी दशा में हरी मटर उबाल कर उसके पानी में  एक चम्म्च तिल का तेल मिला दीजिये और सूजे हुए हाथ या पैर की अंगुलियां इसी पानी में डलवाइए। सूजन उतर जायेगी और दर्द भी ख़त्म। 






इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

महिलाओं के लिए


यह अजीब सी बात है कि दिन भर खटने के बाद जब महिलाए रात 

में बिस्तर पर पहुंचती हैं तो आधे घंटे तक दर्द से कराहती रहती हैं

 ,इसके कई कारण हैं --

१- युवावस्था में दो फुल्के खाकर काम चला लेना

२- जंक फ़ूड ज्यादा खाना 

३- पानी कम पीना 

४- अपनी छोटी छोटी बीमारियों को नज़रअंदाज करना.

५- अनुचित मात्रा में कास्मेटिक्स प्रयोग करना.



चलिए दर्द खत्म करने का एक सामान्य तरीका बताती हूँ-

एक किलो मेथी दाने घी में भून लीजिए फिर पीस लीजिए ,अब 

इसमें २५० ग्राम बबूल का गोंद घी में भून कर और पीस कर मिला 

दीजिए .अब सुबह शाम १-१ चम्मच यानी ५-५ ग्राम पानी से निगल 

लीजिए जब तक यह पूरी दवा खत्म होगी आप अपने आपको 

अधिक सुन्दर ,ताकतवर महसूस करेंगी.और दर्द का कहीं 

नामोनिशान नहीं रहेगा.




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

गोबर की महत्ता भी जान लीजिए.

गोबर के नाम से हमेशा नफ़रत मत कीजिये। वीरान से ग्रामीण क्षेत्रों में जब प्राथमिक उपचार का कोई साधन नहीं होता ,यही गोबर आपको तुरंत मिल जाता है और कई बीमारियों में आपके प्राण भी बचा सकता है। 


जब प्रसव वेदना अपने चरम पर होती है मगर किन्हीं कारणो से बच्चा बाहर नहीं आ पा रहा है और महिला बुरी तरह छटपटा रही है तो २५ ग्राम गोबर का रस २५० ग्राम दूध में मिलाकर महिला को पिला दीजिये तो तुरंत बच्चा बाहर आ जाएगा। जब बच्चा गर्भ में ही मर गया हो तो उसको बाहर निकालने के लिए भी यह अचूक दवा है। इन दोनों ही परिस्थितियों में अगर उच्च कोटि के अस्पताल का सहारा न मिला तो गर्भवती की जान चली जाती है। तब ये गोबर भगवान  का रूप बन जाता है। 

अगर आपको किसी भी तरह की स्किन डिजीज है तो गाय के ताजे गोबर को पूरे शरीर पर साबुन की तरह लगाइये फिर आधा घंटा छोड़ दीजिये फिर साफ़ पानी से नहाकर पूरे शरीर में नारियल का तेल लगा लीजिये। एक महीने में ही क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाई देगा ,इससे पित्ती उछलना जैसे रोगों में भी आराम मिलता है। 

बच्चे को सूखा रोग हो जाए तो ताजा गोबर उसकी रीढ़ की हड्डी पर लगाकर छोड़ दीजिये, १०- १५ मिनट बाद गरम पानी की  धार रीढ़ की हड्डी पर गिराएं।काले धागे जैसे कीड़े निकलते दिखाई देंगे। फिर गोबर लगा कर छोड़ दीजिये और फिर १० मिनट बाद गरम पानी से धो  डालिये। एक दिन बाद फिर ऐसे ही कीजिये जब कीड़े निकलना बंद हो जाएँ तो बच्चा स्वस्थ हो जाएगा।वर्ना यही सूखा रोग कितने बच्चों की मौत का कारण बनता है। 

गरम तेल से जल गये हों या आग से जल गये हो तो तुरंत गोबर लगा लीजिये घाव भी जल्दी भर जाएगा और जलन भी महसूस नहीं होगी। 

छोटे बच्चो की गुदा में कीड़े हो गये हैं या लगातार बच्चा  खुजला रहा है तो गोबर का रस निकाल कर उसको गरम कीजिये और उससे बच्चे की गुदा धो दीजिये। ८-१० दिन में सारे कीड़े ख़त्म हो जायेंगे। 

गोबर का ताजा  रस पीने से हृदय शक्तिशाली बनता है ,केवल २५ ग्राम रोज पीना है। 
अब आप गोबर का रस कैसे निकलता है वह विधि भी जान लीजिये-
ताजे गोबर को किसी सूती कपडे में बाँध कर लटका दीजिये जो पानी कपडे से छान कर नीचे बर्तन में एकत्र होगा वही गोबर का रस है ,आप निचोड़ भी सकते हैं।   





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सोमवार, 2 दिसंबर 2013

नयी दवा


कुछ जड़ी बूटियों को घड़े में हल्दी के साथ बंद करके मैंने एक दवा तैयार की  है जो बुढ़ापे के असर को अस्सी प्रतिशत तक कम कर देगी ,नये बाल उग जायेंगे ,टूटे दांत भी निकल सकते हैं हड्डियों और जोड़ों के सारे दर्द गायब हो जायेंगे। अगर आपको चाहिए तो फोन कीजिये मुझको। 






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मंगलवार, 26 नवंबर 2013

इमली के फायदे भी हैं किन्तु अति सर्वत्र वर्जयेत




मैं लगभग ९९% रोगियों को इमली खाने से रोक देती हूँ क्योंकि इमली की खटाई शरीर को खोखला करती है जिससे रोग बढता रहता है। लेकिन इमली इतनी नुकसानदेह भी नहीं हैं अनेक रोगों का तो इलाज ही इमली से होता है। वैसे इमली का नाम लेते ही मुंह में पानी भर आता है नारियों की जीभ तो तुरंत चटखारे लेने लगती है। यही नहीं हमारे देश में अधिकाँश लोगो की पसंदीदा डिश पानी -बताशे /पानी पूरी/गोलगप्पा ही होती है। जिसका पानी इमली से ही बनता है। मेले में सबसे ज्यादा भीड़ गोलगप्पे के ही ठेले पर होती है। 
चलिए आज इस बिचारी के लाभ भी जान लेते हैं। लेकिन उससे पहले मैं एक कहानी जरुर आपको बताउंगी जो प्रत्येक आयुर्वेद के छात्र को सबसे पहले बतायी जाती है। हमारे देश में एक बहुत प्रसिद्द वैद्य जी रहते थे ,उनकी दोस्ती अरब में रहने वाले हकीम लुकमान से थी। एक बार वैद्य जी ने अपने एक शिष्य को एक पत्र देकर हकीम लुकमान के पास भेजा और निर्देश दिया कि रात में इमली के ही पेड़ के नीचे सोना और उसी की  टहनियों से चूल्हा जलाकर भोजन पकाना। शिष्य घोड़े पर सवार होकर चला कई महीने का सफर था। इमली के पेड़ के नीचे सोते -सोते वह जब हकीम साहब के पास पहुंचा तो उसको पुरे शरीर में सफ़ेद दाग से भी खराब कोढ़ हो गया था। हट्टा -कट्टा शिष्य जैसे वर्षों का बीमार और कमजोर हो गया था। हकीम लुकमान ने उसको देखा ,उसका हाल चाल पूछा तो उसने बताया कि वैद्य जी के निर्देश के अनुसार वह इमली की दातुन करते हुए ,इमली के नीचे ही रात बिताते हुए यहाँ तक आया है। हकीम जी वैद्य जी की मंशा जान गये। उन्होंने उसे दो-चार दिन रोक कर खूब आवभगत की लेकिन कोई दवा नहीं दी। फिर उसको उपहार आदि देकर पत्र के साथ विदा किया और ताकीद की कि तुम केवल नीम के पेड़ के नीचे रात बिताओगे ,उसी की लकड़ी से खाना पकाना और उसी की लकड़ी से दातुन करना। शिष्य बेचारा मन ही मन हकीम जी को कोसते हुए चला कि बड़े हकीम बनते हैं दवा तक नहीं दी। खैर वो जब तक वैद्य जी के पास पहुंचा तो फिर से उसकी देह सुन्दर कांतिमान और निरोग हो गयी थी ,फिर उसको इमली के नुक्सान और नीम के फायदे की  शिक्षा मिल गयी। आपको मिली कि नहीं ?

खैर मैंने तो इमली के अत्यधिक सेवन से कई पुरुषों और महिलाओं को बाँझ होते देखा है। इसलिए हम इसे खाने को मना करते हैं।
 इमली को Tamarindus indica, संस्कृत में आम्लिका ,यमदूतिका ,गुरुपत्रा ,चरित्रा ;फ़ारसी में तमरेहिन्दी ;गुजराती में आम्बली ;तेलगू में चिंटचेतु ;तमिल में पुली ;मराठी में चिच कहते हैं। 
  

कच्ची इमली कफ और पित्त को पैदा करती है और खून को खराब करती है जबकि पकी इमली गरमी ,कफ और वात को ख़त्म करती है। 
इमली की छाल की चटनी बनाकर उसका लेप अगर फालिज मार गये अंगों पर किया जाए तो वे अंग सही हो जाते हैं लेकिन यह लेप ६ महीने से कम नहीं होना चाहिए। 
इमली के बीजों के अंदर की गिरी का गुड के साथ सेवन करने से वीर्य की  वृद्धि होती है। 

इमली में साइट्रिक एसिड ,टार्टरिक एसिड, पोटैशियम बाई टारटरेट ,फास्फोटिडिक एसिड, इथाइनोलामीन , सेरिन, इनोसिटोल, अल्केलायड, टेमेरिन , केटेचिन, बाल सेमिन, पालीसैकेराइड्स, नॉस्टार्शियम आदि तत्व पाये जाते हैं.यही कारण है कि इमली अधिक खा लेने से तेज़ाब का काम करती है और हमारी त्वचा  और गुणसूत्रों को सीधे प्रभावित करती है। 

पकी इमली को हाथ पैर के तलवों पर मसलने से लू का असर ख़त्म किया जा सकता है। 
ह्रदय की सूजन ख़त्म करनी हो तो पकी हुई इमली के रस में मिश्री मिला कर पीजिये। रस की मात्र १० ग्राम और मिश्री भी १० ग्राम।
कहा गया है कि २० वर्ष पुरानी इमली का शरबत पीने से पेट के रोग ख़त्म होते हैं और पुरुषार्थ में वृद्धि होती है लेकिन यह शरबत बनाना ही मुश्किल है - ३० ग्राम पकी इमली को आधा किलो पानी में मसल दीजिये फिर पानी छान लीजिये।  इसमें ५० ग्राम मिश्री ,३ ग्राम दालचीनी,३ ग्राम लौंग और ३ ही ग्राम इलायची का चूर्ण मिला लीजिये। यह शरबत कमजोरी भी मिटाता है ,भूख भी बढ़ाता है, वात -विकार ख़त्म करता है।
अगर किसी को चेचक हो गयी हो तो इमली के पत्ते और हल्दी को पानी में पीस कर शरबत बनाएं और रोगी को चीनी या नमक मिला कर पिला देने से बहुत आराम मिलता है। 
किसी हड्डी में मोच आ गयी हो तो पकी इमली का गूदा सूजन और मोच वाली जगह पर लेप कर दीजिये। चार- चार घंटे के अंतर पर चार बार लेप करने से मोच ठीक हो जायेगी। 
कान दर्द कर रहा हो तो इमली के गूदे का दो चम्म्च रस ४ चम्म्च तिल के तेल में मिला कर पका कर रख लीजिये। अब इस तेल को कान में डालिये।  
बदन में कहीं खुजली हो रही हो तो इमली केपत्तों का रस लगा सकते हैं। 
सांप या किसी जहरीले जीव ने काट लिटा है तो १६० ग्राम इमली के पत्तों का रस २५ ग्राम सेंधा नमक मिलकर पी लेने से जहर निष्प्रभावी हो जाएगा। 
हड्डी टूट गयी हो तो इमली के गुदे को तिल के तेल के साथ मिला कर पेस्ट बताएं और लेप कर दें ,हर चार घंटे पर लेप बदल दीजिये। ५ दिन यह लेप लगा रहेगा तो हड्डी जुड़ जायेगी।  
                                                  


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शनिवार, 9 नवंबर 2013

कुछ आवश्यक बातें



पाठक बंधुओं! हजारों मरीजों को देख कर और न जाने कितने हजार मरीजों से बात करके मुझे एक बात बड़ी शिद्दत से परेशान करती रही कि ज्यादातर बीमारियों का मुख्य कारण गलत खान पान है। अगर हमें इस बात की सही जानकारी हो कि किस चीज के साथ क्या नहीं खाना चाहिए तो हो सकता है कि हम खुद को अनावश्यक रोगों से सुरक्षित रख सकें। इसलिए आप सभी से निवेदन है कि इस लेख को बहुत ध्यान से पढियेगा जिससे इसका लाभ आपको मिल सके। अगर ऎसी ही कुछ जानकारियां आपको हों तो मुझे जरूर बता दीजियेगा। 

सर्व प्रथम यह जान लीजिये कि कोई भी आयुर्वेदिक दवा खाली पेट खाई जाती है और दवा खाने से आधे घंटे के अंदर कुछ खाना अति आवश्यक होता है, नहीं तो दवा की गरमी आपको बेचैन कर देगी। 

चाय के साथ कोई भी नमकीन चीज नहीं खानी चाहिए।दूध और नमक का संयोग सफ़ेद दाग या किसी भी स्किन डीजीज को जन्म दे सकता है, बाल असमय सफ़ेद होना या बाल झड़ना भी स्किन डीजीज ही है। 

दूध या दूध की  बनी किसी भी चीज के साथ दही ,नमक, इमली, खरबूजा,बेल, नारियल, मूली, तोरई,तिल ,तेल, कुल्थी, सत्तू, खटाई, नहीं खानी चाहिए।  

दही के साथ खरबूजा, पनीर, दूध और खीर नहीं खानी चाहिए। 

गर्म जल के साथ शहद कभी नही लेना चाहिए। 

ठंडे जल के साथ घी, तेल, खरबूज, अमरूद, ककड़ी, खीरा, जामुन ,मूंगफली कभी नहीं। 

शहद के साथ मूली , अंगूर, गरम खाद्य या गर्म जल कभी नहीं। 

खीर के साथ सत्तू, शराब, खटाई, खिचड़ी ,कटहल कभी नहीं। 

घी के साथ बराबर मात्र1  में शहद भूल कर भी नहीं खाना चाहिए ये तुरंत जहर का काम करेगा। 

तरबूज के साथ पुदीना या ठंडा पानी कभी नहीं। 

चावल के साथ सिरका कभी नहीं। 

चाय के साथ ककड़ी खीरा भी कभी मत खाएं। 

खरबूज के साथ दूध, दही, लहसून और मूली कभी नहीं। 
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कुछ चीजों को एक साथ खाना अमृत का काम करता है जैसे-

खरबूजे के साथ चीनी 
इमली के साथ गुड 
गाजर और मेथी का साग
बथुआ और दही का रायता 
मकई के साथ मट्ठा 
अमरुद के साथ सौंफ 
तरबूज के साथ गुड 
मूली और मूली के पत्ते 
अनाज या  दाल के साथ दूध या दही 
आम के साथ गाय का दूध
 चावल के साथ दही
 खजूर के साथ दूध 
चावल के साथ नारियल की गिरी 
केले के साथ इलायची 
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कभी कभी कुछ चीजें बहुत पसंद होने के कारण हम ज्यादा बहुत ज्यादा खा लेते हैं। और माले मुफ्त दिले बेरहम वाली कहावत तो मशहूर है ही। शादियों में इसका प्रत्यक्ष प्रमाण मैंने अनेक बार देखा है। कुछ लोगो तो बस फ्री में जहर भी मिल जाए तो थाली भर के खायेंगे  ………… खैर चलिए लेकिन माल भले ही दूसरे का हो पेट आप का ही होता है। और बाद में तकलीफ भी आप को ही होती है। आइये हम कुछ ऎसी चीजो के बारे में बताते हैं जो अगर आपने ज्यादा खा ली हैं तो कैसे पचाई जाएँ ----

केले की अधिकता में दो छोटी इलायची 
आम  पचाने के लिए आधा चम्म्च सोंठ का चूर्ण और  गुड 
जामुन ज्यादा खा लिया तो ३-४ चुटकी नमक 
सेब ज्यादा हो जाए तो दालचीनी का चूर्ण एक ग्राम 
खरबूज के लिए आधा कप चीनी का शरबत 
तरबूज के लिए सिर्फ एक लौंग 
अमरूद के लिए सौंफ 
नींबू के लिए नमक
 बेर के लिए सिरका
 गन्ना ज्यादा चूस लिया हो तो ३-४ बेर खा लीजिये  
चावल ज्यादा खा लिया है तो आधा चम्म्च अजवाइन पानी से निगल लीजिये 
बैगन के लिए सरसो का तेल एक चम्म्च 
मूली ज्यादा खा ली हो तो एक चम्म्च काला तिल चबा लीजिये 
बेसन ज्यादा खाया हो तो मूली के पत्ते चबाएं 
खाना ज्यादा खा लिया है तो थोड़ी दही खाइये 
मटर ज्यादा खाई हो तो अदरक चबाएं 
इमली या उड़द की दाल या मूंगफली या शकरकंद या जिमीकंद  ज्यादा खा लीजिये तो फिर गुड खाइये 
मुंग या चने की दाल ज्यादा खाये हों तो एक चम्म्च सिरका पी लीजिये 
मकई ज्यादा खा गये हो तो मट्ठा पीजिये 
घी या खीर ज्यादा खा गये हों तो काली मिर्च चबाएं  
खुरमानी ज्यादा हो जाए तोठंडा पानी पीयें 
पूरी कचौड़ी ज्यादा हो जाए तो गर्म पानी पीजिये 

अगर सम्भव हो तो भोजन के साथ दो नींबू का रस आपको जरूर ले लेना चाहिए या पानी में मिला कर पीजिये या भोजन में निचोड़ लीजिये ,८०% बीमारियों से बचे रहेंगे। 
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अब ये देखिये कि किस महीने में क्या नही खाना चाहिए और क्या जरूर खाना चाहिए ---

चैत में गुड बिलकुल नहीं खाना ,नीम की पत्ती /फल, फूल खूब चबाना।  
बैसाख में नया तेल नहीं खाना ,चावल खूब खाएं।  
जेठ में दोपहर में चलना मना है, दोपहर में सोना जरुरी है।   
आषाढ़ में पका बेल खाना मना है, घर की मरम्मत जरूरी है।  
सावन में साग खाना मना है, हर्रे खाना जरूरी है। 
 भादो मे दही मत खाना, चना खाना जरुरी है।   
कुवार में करेला मना है, गुड खाना जरुरी है।  
कार्तिक में जमीन पर सोना मना है, मूली खाना जरूरी है।  
अगहन में जीरा नहीं खाना , तेल खाना जरुरी है। 
पूस में धनिया नहीं खाना, दूध पीना जरूरी है।  
माघ में मिश्री मत खाना ,खिचड़ी खाना जरुरी है। 
फागुन में चना मत खाना, प्रातः स्नान और नाश्ता जरुरी है।  



मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

ये कहावते भी खूब हैं -

ये कहावते भी खूब हैं -

बहुत प्राचीन काल में जब लिखने और उसे सुरक्षित रखने की विधियों का अभाव था तो सारा ज्ञान मुंह जबानी एक पीढी से दूसरी पीढी में स्थानांतरित होता था या गुरु जन किसी योग्य शिष्य को ही सारा ज्ञान देते थे। इस चक्कर में आज हम बहुत सारे ज्ञान से वंचित हैं। खैर वह ज्ञान जल्दी आत्मसात या कंठस्थ हो जाए इसलिए गेय शैली में होता था या गीतों के रूप में होता था। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण लीलावती, गीता, महाभारत,राम चरित मानस जैसे ग्रन्थों के रूप में आप देख सकते हैं। ऐसे ही कई ज्ञान कोशों में से निकल कर कुछ पद्य कहावतों के रूप में प्रचलित हो गये जो आज भी यहाँ वहां सुनने को मिल जाते हैं। मैने डॉ ॐ प्रकाश सक्सेना की किताब में भी कुछ ऎसी ही कहावतें पढी थीं। इन कहावतों में हमें जीने के तरीके बताये जाते हैं। जैसे घाघ की कहावतों पर अमल करके हम बहुत सारी परेशानियों से बच सकते हैं। उसी तरह आप इन कहावतों पर अमल  करके देखिये बहुत सारी बीमारियों से बच जायेंगे,  

दूध दही और साग फल ,दरिया खिचडी खीर 
गाजर, हलुआ, शहद, घृत ,राखे शांत शरीर। 
दिवस अन्न निशि खाय फल,शयन समय पय पान 
कबहूँ रोग न होय ,शक्ति होय खूब बलवान। 

जो ताजा भोजन करे ,पीवे पानी छान 
स्वच्छ वायु सेवन करे, हो जाए शरीर बलवान। 
सोवत नियमित समय जो, निश्चित समय आहार 
प्रातः काल स्नान से शक्ति बढे अपार।

जो अधिक बातें न करे, अधिक अन्न नहीं खाए 
बिन निद्रा सोवे नहीं ,अवश्य आयु बढ़ी जाए। 

जो भोजन के ग्रास को चाबे चालीस बार 
मध्यपिमध्य जल न पिए, बढे शक्ति अपार। 

भोजन ,यात्रा, शयन के मैथुन और व्यायाम 
घंटा बाद नहाइये ,पहुँचावेगा आराम। 

गरमी शीतल वारि सों ,वर्षा ताजा  होय
सदा नहावे शीत में गर्म गर्म जल होय। 

स्वच्छ वस्त्र या तौलिया लीजे धोय निचोर 
ऐसे भीगे वस्त्र सों तन रगड़े चहुँ ओर 
एही प्रकार नित रगड़ के जो नर सदा नहाए 
कान्ति  बढे खुजली मिटे त्वचा रोग मिट जाए। 
साबुन ,शोरा , गर्म जल सर में कबहूँ न डाल 
वृद्धावस्था  से प्रथम ही श्वेत होय सब बाल। 

मल आलस्य विनाश कर ,करे पसीना बंद 
निश्चित समय नहाइये ,सदा रहे आनंद। 
बरस भर कबहूँ न कीजिए साबुन को व्यवहार 
सभी चिकनाई बदन की क्षण में देत  निकार। 

सूर्योदय के प्रथम ही जो नर सदा नहाय 
रक्त शुद्ध ,दीर्घायु हो, ओज शक्ति बढ़ जाए। 

कफ नजला अतिसार शिशु वृद्ध जुकाम बुखार 
शीत प्रकृति नर को करे ,शीत व वायु विकार। 
अधिक सर्द और गर्म जल ,कबहु न भूल के नहाय 
जोड़ों को ढीला करे ,देवे वात बढ़ाय। 

लघु शंका और शौच में ,कबहूँ न मुख सो बोल
शौच समय सर बांधिए ,भोजन में सर खोल। 
(आजकल तो लोग मोबाइल कान में लगाए लगाए पेशाब, मल सब कर लेते हैं)

भोजन के प्रति ग्रास में, मिश्रित होवे लार 
चुन चुन कर कीटाणु सब करते रस तैयार 
पुनः उसी रस से बने ,रक्त ,धातु और कान्ति 
सदा निरोगी तन रहे, होय कब्जियत शांत। 

भोजनांत लघु शंका जावे,मूत्र रोग सो मुक्ति पावे 
दो घंटे में तक्र  जो पाय,अन्न पचे कब्जियत न आय।       

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

काली मिर्च की जय हो



आपके घर में आम का पेड़ है ? यदि है तो उसके नीचे काली मिर्च के ४-५ पौधे बो दीजिए, इसकी बेल होती है जो आम की छाया में बहुत अच्छी पनपती है. काली मिर्च की बेल एक बार लग गयी तो बीसों साल तक आपको फल देती रहेगी .मैंने असम ,नागालैंड की सीमा पर कर्बी आंगलांग में चाय के बागानों के बीच काली मिर्च की बड़ी खूबसूरत बेलें देखीं हैं. वाकई ये बेले सौंदर्य भी बढाती हैं.घर का ही नहीं आपके शरीर का भी .

इसके फल हरे हरे होते हैं जो पक कर लाल हो जाते हैं और सूख कर काले हो जाते हैं.
                    

इसके फल में स्टीरायड, एल्केलायड ,फ्लेवोनाइड, टैनिन्स, पालीसैकेराइड, ग्लाइकोसाइड, सैपोनिन्स, पैपरीन आदि तत्व पाए जाते हैं.इसके अतिरिक्त इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्पोरस, कैरोटीन, थायमीन रिबोफ्लोवीन, ४९ %कार्बोहाइड्रेट , ११ %प्रोटीन, ६%फैट, ४%मिनरल्स, फाइबर १५%और नमी भी १५% पाई जाती है .


शायद अपने इन्हीं तत्वों की वजह से काली मिर्च प्रोस्टेट कैंसर और पैन्क्रियाज कैंसर को रोकने मे कामयाब होती है ,यह सीधे कैंसर कोशिकाओं की द्विगुरण  की क्षमता पर वार करती है और उन्हें बढ़ने नहीं देती.


यह अनेक रोगों में बहुत काम आती है। यहाँ तक कि ऐसे रोग जो जानलेवा समझे जाते हैं, काली मिर्च को देखते ही भूत की तरह भाग जाते हैं। जैसे मलेरिया


आप मलेरिया हो जाने पर प्रत्येक एक घंटे पर एक ग्राम काली मिर्च का चूर्ण खाना शुरू कर दीजिए ,चाहे चीनी मिला कर खाएं चाहे शहद मिला कर या किसी फल पर डाल कर. देखिये २४ घंटे में ही बुखार कैसे पीछा छोडता है।


बहुत ही पुराना जुकाम हो तो गुड़ और ५० ग्राम दही में ५ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिला कर खाइए। सुबह शाम दोनों समय ,अधिकतम ११ दिनों तक।


दांत में बेपनाह दर्द हो रहा हो तो काली मिर्च के चूर्ण  से काढा बनाइये और ज़रा गुनगुना रहे तभी मुंह में उस हिस्से में ३-४ मिनट रोकिये जिधर का दांत दर्द करता हो।


हिस्टीरिया की बीमारी में रोगी को खट्टे दही में १ ग्राम काली मिर्च और १ ही ग्राम बच का चूर्ण मिला कर खिलाएं, यह खाली पेट खिलाना है . दूसरे दिन २ ग्राम काली मिर्च और २ ग्राम बच ,तीसरे दिन ३-३ ग्राम. दही की मात्रा उतनी ही रहेगी .हर महीने में तीन दिन खिलाने से रोग जड़ से खत्म हो जाएगा .


रतौंधी हो तो दही में काली मिर्च के कुछ दाने महीन पीस कर काजल बना लीजिए और आँखों में लगा कर सो जाए, एक महीने तक काफी रहेगा .


अगर खांसी आये तो शहद में काली मिर्च मिला कर चाटना चाहिए ,यह दवा तो सभी लोग जानते हैं.लेकिन उसके साथ थोड़ा सा घी मिला कर चाटना चाहिए.शहद के साथ घी का योग जहर का काम करता है लेकिन तब जब बराबर मात्रा में हो.आप आधा चम्मच शहद ले रहे हैं तो १० बूंद घी ले लीजिए.


बुरी तरह दस्त हो रहे हों तो ३ चुटकी काली मिर्च का चूर्ण पानी से निगल लीजिए.


याददाश्त काम होने की बीमारी आज कल बहुत है. इसके लिए एक गिलास दूध में आधा चम्मच मिश्री और आधा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीजिए .लगातार पीते रहिये दो महीने में फर्क दिखाई देगा.


मुंह में छाले हो गए हों तो किशमिश  और काली मिर्च मिला कर चबाएं , जितने दाने काली मिर्च उतनी ही किशमिश.


पेट में कीड़े हों तो एक कप मठ्ठे में १० दाने काली मिर्च का चूर्ण डाल कर रात में सोते समय पीजिए.


आँखों की रोशनी कम होना भी एक समस्या है.लेकिन इसकी दवा बहुत कड़वी है १०० ग्राम काली मिर्च ,१०० ग्राम देसी घी और १०० ग्राम मिश्री मिला कर रख लीजिए .पीस कर मिलाना है. रोज सुबह शाम एक -एक चम्मच खाना है.कम से कम ३ महीने तक.  


चलिए आपको वीर्यवान बनने  का तरीका भी बता  देते हैं हम. अखबारों में छापने वाले तमाम विज्ञापनों पर भरोसा करने से अच्छा है कि आप एक गिलास दूध में १५ दाने काली मिर्च का चूर्ण डाल कर उबालिए फिर इस दूध को ठंडा करके पी जाए, चीनी मिलाना मना है.  


काली मिर्च को मराठी में मिरें, गुजराती में काली मिरी ,संस्कृत में मरीच, अंग्रेजी में Black pepper,तथा वैज्ञानिक भाषा में  Pipier nigrum कहते हैं 


हाइड्रोसील हो गया हो तो ५ ग्राम काली मिर्च और १० ग्राम जीरे का चूर्ण मिलाकर पेस्ट बनाए और इस पेस्ट को गरम कीजिए इस पेस्ट में इतना गरम पानी मिलाएं कि यह थोड़ा पतला घोल बन जाए.इस घोल को बढे हुए अंडकोषों पर लेप करके सो जाएँ ,तीन चार दिनों तक ऐसा करने से फायदा दिखाई देने लगेगा.


कील मुहांसे ,झुर्रियों का भी इलाज करती है ये काली मिर्च .इसे गुलाब जल में पीस कर पेस्ट बना लीजिए ,रात में चेहरे पर लगा कर सो जाएँ.सुबह गरम पानी से धो लें.


मोटापा दूर करना हो तो रोज १० से १५ दाने काली मिर्च चबा कर खाइए.कम से कम दो महीने तक.


तंत्रिका तंत्र के रोगियों को और हार्ट पेशेंट को अपने भोजन में ऊपर से २-३ चुटकी काली मिर्च डाल कर खाना चाहिए.नर्वस सिस्टम मजबूत होगा.हार्ट मजबूत होगा.


टी बी के मरीजो के लिए काली मिर्च एक सुरक्षा कवच का काम करती है रोज कम से कम २-२ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण दोनों समय खाइए


कुष्ठ रोगी अगर काली मिर्च का सेवन करें तो शरीर गलना अर्थात त्वचा में संक्रमण बढ़ना बिलकुल रुक जाएगा.लंबे समय तक खाते रहें तो कोढ़ जड़ से भी खत्म हो सकता है इन्हें दिन भर में ७-८ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण भोजन ,चाय या शरबत में ऊपर से मिला कर खा लेना चाहिए.


काली मिर्च एलर्जी की तो दुश्मन है अगर आपको किसी चीज से एलर्जी है तो आप प्रतिदिन २० दाने काली मिर्च के जरुर खाइए.इससे मस्तिष्क भी शांत रहेगा.शरीर में रक्त और आक्सीजन का प्रवाह भी निर्बाध गति से होगा.कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ेगा.


हिचकी आ रही हो तो २ चुटकी काली मिर्च का चूर्ण गरम तवे पर भून कर उसको सूंघ लीजिए.


पित्ती उछल रही हो तो १० दाने का चूर्ण आधा चम्मच घी में मिला कर उस स्थान पर मालिश कीजिए.यह मिश्रण खा भी लीजिए.


काली मिर्च ,प्याज और सेंधा नमक की चटनी पीस कर अगर आप गंजे सिर पर लगाइए तो बाल उगने लगेंगे, तीन -चार महीने लगातार लेप करके सोना होगा और शैम्पू का प्रयोग बंद करना होगा.


शरीर में कहीं सूजन हो गयी हो तो काली मिर्च पीस कर लेप कीजिए.

                                                   




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

आइये चाय पीते हैं गेहूँ की

आइये चाय पीते हैं गेहूँ की



यह गेहूँ का चित्र है इसलिए आपको बता रही हूँ कि आप पहचान लीजिये. क्योंकि  आज कल पैकेट वाले आटे  का चलन बढ़ गया है जो इसी गेहूँ में जाने क्या क्या मिला कर बनाया जाता है फिर उस आटे की रोटियाँ आपके घर में बनती हैं।  बचपन में तो हमें गेहूँ पिसवाने चक्की तक जाना पड़ता था और मम्मी की धमकी भी चक्की वाले को बतानी पड़ती थी कि मम्मी ने कहा है की महीन पीसना नहीं तो दोहरा के पीसना पड़ेगा और पैसा भी नहीं देंगे। बदले में चक्की वाला गेहूँ की कमियाँ हमें बताता था. मतलब इधर का सन्देश उधर और उधर का इधर सुनाने में गेहूं का तो भगवान् मालिक लेकिन हम बच्चे जरूर पिस जाते थे. और आज कल तो वो घटनाएं सोच सोच के बड़ा मजा आता है. लेकिन ये तय है कि  कल हमारे नाती पोते पूछेंगे कि ये गेहूँ क्या होता है?
       



चलिए अब मुद्दे पर आते हैंकि हम इस गेहूँ को कितना जानते हैं ?जबकि इसको हम दिन में ३-४ बार खाते हैं

गेहूँ  में ७०% कार्बोहाइड्रेट, २४%तक प्रोटीन, २%तक वसा,और २%तक ही राख होती है. जबकि गेहूँ के चोकर में आयरन, कैल्शियम,पोटेशियम, मैग्नीशियम,फास्पोरस, कापर आदि अनेक तत्व पाए जाते हैं.अब ये आप सोचिये कि आपको चोकर सहित आटे  की रोटी बनानी है या चोकर विहीन आटे  की.
गेहूँ की चाय बनाने के दो तरीके हैं- पहला तो ये कि २० ग्राम दलिया  को २०० ग्राम पानी में धीमी आंच पर चढ़ा दीजिये जब पानी ५० ग्राम बचे तब उसे उतार कर छान लीजिये और उसमे १ चम्मच शहद और १ ही चम्मच दूध मिला कर पीजिये ,बड़ी टेस्टी और पौष्टिक चाय बनती है।  दूसरा ये की गेहूं को तवे पर धीमी आंच पर भूनिए फिर इन्हें दरदरा पीस लीजिये ,अब चायपत्ती  के स्थान पर इसी को प्रयोग करके चाय बना लीजिये. यह चाय पीने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है. सूखी और बलगमी खांसी में तो बहुत तेज आराम मिलता है. दिमाग मजबूत होता है.

ये गेहूँ के ज्वारे हैं इनकी एक कहानी मुझे ३ साल पहले आकाशवाणी देल्ही की डाइरेक्टर श्रीमती अलका पाठक ने बताई थी. -कि एक बेरोजगार बहुत परेशान था, रोजी रोटी का कोई आसरा नहीं था, किसी के सुझाने पर उसने ज्वारे का रस बेचना शुरू किया और २ वर्ष के भीतर ही ३-४ गाड़ियों का मालिक बन गया,उसके ठेले पर १०० किमी दूर तक से लोग रस पीने आते थे,आप भी देखिये कि  इस ज्वारे के रस में क्या कितना पाया जाता  है-----


चलिए आपको ज्वारे  का रस प्राप्त करने का तरीका बताएं--
आप दस गमले खरीद लीजिये उनमे मिटटी खाद आदि भर दीजिये फिर उन पर १ से १० तक की नम्बरिंग  कर दीजिये। अब पहले गमले में पहले दिन एक मुट्ठी गेहूँ बो दीजिये,दूसरे गमले में दुसरे दिन और तीसरे में तीसरे दिन इस तरह १० दिन आप दसों गमलों में बो दीजिये।दसवें दिन जब आप आखिरी गमला बो रहे होंगे तो पहले गमले के पौधे १०-१२ सेमी के हो चुके होङ्गे.उन्हे आप उखाड़ लेंगे, जडें  काट कर फेंक देंगे।शेष बचे हिस्से को आधा गिलास पानी मिला कर ब्लेण्ड कर लीजिये या सिल पर पीस लीजिये, यही है ज्वारे का रस.
इसे अगर आप तीन महीने लगातार घूंट घूँट करके चाय की तरह पी लीजिये तो आपको शरीर में एक नयी ताकत महसूस होंगी ,छोटी मोटी बीमारियाँ तो कोसों दूर भाग जायेंगी और नयी बीमारियों को शरीर पर अटैक करने से पहले पचास बार सोचना पड़ेगा।अरे हाँ जब किसी गमले के पौधे निकाल लीजियेगा तो पुनः उसमे पहले गेहूं बो दीजियेगा तब रस बनाइयेगा. रोजाना आपको नये ज्वारे मिलते जायेंगे रस बनाने के लिये।
ये ज्वारे कैंसर के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद हैं. ये आपकी याददाश्त बढाने में भी मददगार हैं. पुराना बुखार भी उतार देते हैं। गठिया की तो बहुत उत्तम दवा है ये। पर गठिया में ज्वारे का रस दोनों समय पीना पड़ेगा।  
पैरो के तलुओं में जलन हो रही हो तो गेहूं का आटा ज़रा पतला गूँथ कर पैरो में लेप करके सो जाइए, यह लेप शरीर में कहीं भी जलन, दाह, खुजली, टीस,आग से जले या तेल से जले पर काम करता है.

वृक्क,गुर्दे और मूत्राशय में पथरी हो तो १००-१०० ग्राम चना और गेहूँ लीजिये, ५०० ग्राम पानी में आधा घंटा उबालिए,फिर छान कर बचा हुआ पानी पी लीजिये और उबले चने गेहूँ को पीस कर उसी की रोटियाँ खाइए ,एक महीने तक दोनों समय यह काम करने से पथरी गल कर निकल जाएगी। 
नारू को जलाने के लिए गेहूं और सन  के बीजो को पीसकर घी में भून कर गुड मिलाकर लड्डू बनाइये और सुबह शाम एक -एक लड्डू खाएं।

नाक से खून बहने लगता हो अर्थात नकसीर छूटती हो तो गेहूँ का आटा दूध में फेंट कर उसमे चीनी मिलकर पी   जाएँ। 

अगर गला खराब हो गया है तो ३०० ग्राम  पानी में एक मुट्ठी गेहूँ का चोकर मिलाकर उबालिए फिर छान कर दूध और चीनी मिला कर पीजिये चाय की तरह, गला बिलकुल सुरीला हो  जाएगा। 

चित्र के लिए हम गूगल के आभारी हैं।  
   
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 26 अगस्त 2013

बहेड़ा :त्रिफला का एक घटक



बहेड़ा बहुत काम का फल है लेकिन दुर्भाग्य यह है की इसके फल के बीज के अन्दर जो मींगी होती है उसका औषधीय उपयोग होता है ,जो या तो बीज के साथ फेंक दी जाती है या कुछ कंपनियों द्वारा बीज के साथ ही पीस दी जाती है. नतीजा यह निकलता है की इससे बनी दवा काम नहीं करती है. जबकि यह बेहद पौष्टिक फल होता है. 
बहेड़ा के फल में बेलैरीकैनिन ,फैतिक एसिड,फ्रक्टोज, रहामनोज,गैलेक्टोज, मैनीताल,चैबुलेजिक एसिड, ग्लूकोज, गैलायल, एलैजिक एसिड, गेलिक एसिड, बीटासिटोस्तीराल आदि  तत्व मौजूद है.इसके बीज मे प्रोटीन और आक्जेलिक एसिड की प्रचुर मात्रा  है.

अगर इसके बीज की मींगी का तेल मिल जाए तो बाल भी उग सकते है।

पथरी हो तो मींगी का पाउडर शहद में मिला कर चाटिये,रोज सुबह २१ दिनों तक।  

दिल में अगर हवा भर गयी हो तो बहेड़ा का फल तथा असगंध का पाउडर बराबर मात्रा में लेकर गुड के साथ मिलाकर लड्डू बनाइये और रोज गुनगुने पानी के साथ खाइये. बाई पास सर्जरी वालो को भी लाभ मिलेगा. 

आँख के किसी भी रोग में मींगी का चूर्ण शहद में मिला कर काजल की तरह प्रयोग कीजिये।

दस्त हो रहे हो तो बहेड़े को तवे पर सेंकिए, पाउडर बनाइये, बराबर मात्रा में सेंधा नमक मिलाइये और पानी के साथ एक चम्मच खा लीजिये. ६-६ घंटे पर एक चम्मच लीजिये। 

बहुत खांसी आ रही है तो बहेड़े को भून कर मुंह में इसका एक टुकडा रख कर चूसते रहिये. 

शरीर में कहीं भी किसी चोट की सूजन या जलन हो तो मींगी पीस कर लेप कीजिए। 

अगर यूरिक एसिड बढ़ गया है और एडियों में दर्द हो रहा है तो हर्र ,बहेड़ा की मींगी, आंवला, गिलोय और जीरा १०-१० ग्राम लेकर महीन पीस कर रखिये और सुबह -शाम ५-५ ग्राम पानी से निगल लीजिये ,२ महीने तक लगातार। गिलोय की मात्रा २० ग्राम रहेगी।

और ये बहेड़ा त्रिफला का तो आवश्यक घटक है ही। 

आपको पता है बहेड़े के पेड़ १०० फुट तक ऊँचे होते है।     



चित्र गूगल बाबा की सहायता से।.……… 

इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 6 अगस्त 2013

हरड एक अमृत


  

आयुर्वेद कहता है की हरड की उत्पत्ति अमृत से हुई है.इसके गुणों को जान लेंगे तो आप मानने लगेंगे कि  ये बात  जरूर सच होगी। काली छोटी हरड एक जानी-पहचानी चीज है. अक्सर हमारी रसोई में भी पाई जाती है.     
                पेड़ पर हर्र के फल       


जिसने एक हजार हर्रे खा ली हो उसको तो पेट की कोई बीमारी हो ही नहीं सकती ,किडनी लीवर,पंक्रियाज ,आमाशय, आंत सब सारी ज़िन्दगी चाक-चौबंद रहेंगे। यह शरीर के तीनो दोषों का हरण करती है इसीलिए इसको हरड कहा ही जाता है. जब तीनो कफ वात पित्त के दोष ख़त्म हो जाते हैं तो आधी बीमारियाँ अपने आप शरीर छोड़ कर चली जाती है. इसीलिए इसे सर्व रोग प्रशमनी भी कहते है. अभया और हरीतकी के नाम से भी हर्रे को कुछ लोग जानते है.


                                       

                                                     हर्रे  सूखने के बाद काली हो जाती है 

हर्रे में  ४५% टैनिक एसिड, गेलिक एसिड,चबुलिनिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, फास्फोरिक एसिड, एमिनो एसिड,म्यूसीलेज, श्लेष्मा,और ग्लाइकोसाइद पाए जाते हैं.इतने सारे एसिड की उपस्थिति ही इसे रसायन भी बनाती है.इसका वैज्ञानिक नाम है-Terminalia chebula.


**हर्रे से आप अपना कायाकल्प भी कर सकते हैं रोज ३ हर्रे १० मुनक्का के साथ सुबह खाली पेट खा लीजिये. ६ महीने तक लगातार खाने से शरीर के अधिकाँश रोग दूर होकर शरीर कांतिमय और बलशाली हो जाएगा उसके बाद मौसम के अनुसार हर्रे का सेवन कीजिए। जैसे वर्षा के मौसम में ३ हर्रे सेंधा नमक के साथ,जाड़े में चीनी के साथ , दिसंबर जनवरी के जाड़े में सोंठ के साथ, बसंत ऋतू में शहद के साथ, गरमी में गुड के साथ और शिशिर ऋतू में पीपल के चूर्ण के साथ हर्रे का सेवन आपने कर लिया तो शरीर में कोई रोग बचेगा ही नहीं 

अर्थात शरीर का कायाकल्प हो जायेगा. 

**बवासीर से बहुत परेशान हो तो हर्रे निबौली और गुड का लड्डू  बनाकर एक गिलास मट्ठे के साथ २१ दिन तक सुबह सवेरे खा लीजिये। २ ग्राम हर्रे, २ ग्राम निबौली का चूर्ण और एक चम्मच गुड का एक लड्डू बनेगा।


**मुंह में कोई घाव, कोई रोग या छाले हो तो शहद, हर्रे और सेंधा नमक मिला कर पेस्ट बनाइये और दोनों टाइम इसी से ब्रश कीजिये। 


**बाल झड रहे हो तो ५ ग्राम हर्रे का पाउडर सुबह सवेरे शहद मिला कर चाट लीजिये. ३ महीने तक 


**कफ ,खांसी जैसे रोग हों तो सेंधा नमक के साथ ३ हर्रे रोज खाइए। 


**फोड़े फुंसी ,गुस्सा ज्यादा आना या ब्लड प्रेशर हाई रहता हो तो चीनी के साथ हर्रे खाइये। 


**वात की बिमारी है, शरीर फूल गया है तो घी के साथ हर्रे खाइये। 


**गुड के साथ हर्रे खाने से सारे रोग ही नष्ट हो जायेंगे।


**हिचकी बंद न हो रही हो तो दूध में हर्रे पकाकर खाइये।


**ऐसा कोढ़ जिसने शरीर को गला दिया हो तो रोगी को गोमूत्र में भीगी हुई हर्रे रोज खिलाये. रोज रात में ३ हर्रे गोमूत्र में भीगा दें सवेरे खाली पेट रोगी उन तीनो हर्रे को चबा ले तो एक साल में उसका शरीर बिलकुल स्वस्थ हो जायेगा।


**पथरी हो तो हर्रे के काढ़े में रोज शहद मिला कर पीजिए।


**बलवान बनना चाहते हो तो हर्रे को घी में भून कर पीस लें फिर रोज ४ ग्राम पाउडर ४ ग्राम देशी घी मिला कर चाट लें.


**बच्चे को बुखार हो और दस्त भी हो रहा हो तो हर्रे, सोंठ,और जावित्री का काढा बनाकर पिलाइये ,दो बार पिलाने से ही बच्चा बिलकुल ठीक हो जायेगा। 


**हाथीपाँव में हर्रे का ४ ग्राम पाउडर गो मूत्र मिलाकर पी जाये. एक महीने तक लगातार। 

  
**गठिया हो या जोड़ो में दर्द हो रहा हो तो हर्रे को एरंड के तेल में तल कर पाउडर बनाए और ४ ग्राम चूर्ण रोज पानी से निगल लीजिये।
**और एक बात ---
        "हरड, बहेड़ा,आवला घी शक्कर संग खाय 
        हाथी दाबे कांख में चार कोस ले जाय "


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा  

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

स्त्री स्वास्थ्य और आयुर्वेद

स्त्री स्वास्थ्य और आयुर्वेद का बहुत गहरा सम्बन्ध है, रहा है और हो भी सकता है अगर आधुनिक नारियां इसे गंभीरता से लें. आज कल  99% नारियां बीमार नज़र आ रही हैं और इसके कारण भी बहुत रोचक है- पुराने वक्त में बुखार ,हरारत, सर्दी, खांसी जैसी छोटी-छोटी बीमारियों के लिए अजवाईन का काढा दे दिया जाता था. लोग आराम से पी भी लेते थे नातीजा यह था की लोग लम्बे समय तक शारीरिक क्षमता  के अत्यधिक उपयोग के साथ जी भी लेते थे.किन्तु आज …… आज किसी महिला को आप अजवाइन फांकने को या काढा पीने को कहिये तो वह मुंह बना लेती हैं, अधिकाँश को तो उलटी होने लगेगी या उबकाई आ जाएगी। वे कहती हैं कि कोई टैबलेट या गोली दे दीजिये खा लेंगे। इन्हीं गोलियों और टैबलेट ने आज की बीमार नारियों को पैदा किया है. जहाँ पहले की महिलायें संयुक्त परिवार में रहकर ढेर सारे काम घर के भी खेती के भी बिना थके कर लेती थी ,वही आज सिर्फ अपने पति और बच्चे के साथ रहने वाली महिला थोड़ा सा काम करके ही थक जाती हैं और आये दिन बीमार रहती है. 
यह बात तो तमाम शोधो से सामने आ ही चुकी है कि दर्द निवारक गोलियां या अंग्रेजी दवाए साइड इफ़ेक्ट जरूर पैदा करती है,ये इफ़ेक्ट जहाँ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं वहीँ पाचन तंत्र पर भी बुरा प्रभाव डालते हैं फिर अगर पेट ही बीमार हो तो सारे शरीर को बीमार होना ही है. इस बात को नारियों को समझना होगा और उन्हें फिर से अपने घर की रसोई में मौजूद आयुर्वेदिक दवाओं की तरफ लौटना होगा . 
** यदि आपको बुखार हो या थकान या हरारत या हल्का सर दर्द महसूस हो तो ५ ग्राम अजवाइन सादे पानी से फांक लीजिये. अजवाइन  बुखार को शरीर में रहने नहीं देती और दर्द को जड़ से ख़त्म कर देती है जबकि कोई भी दर्द निवारक गोली सिर्फ दर्द को दबाती है जो शरीर के किसी और भाग में उभर कर सामने आता है.  
** गर्भवती नारियां यदि साढ़े आंठ महीने बाद ३ग्राम हल्दी दिन में एक बार पानी से फांक लें तो शर्तीयाँ सामान्य प्रसव होगा कोई आपरेशन नहीं कराना पड़ेगा। और बच्चा पैदा होने के ५-६ दिन बाद मंगरैल का काढा जरूर ३-४ दिनों तक पीलें . इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा की पेट बाहर नहीं निकलेगा वरना ९०% महिलायें यही बताती है कि  बच्चा होने  के ३-४ साल बाद पेट निकलना शुरू हुआ. जबकि हम दिन भर में बस २ ही फुल्के खाते है. 
**बच्चा होने के बाद शरीर की मालिश बेहद जरुरी है और हल्दी के लड्डू खाने जरुरी है जो शरीर को नव जीवन तो देते ही हैं ज्वाइंट के रोग नहीं होने देते और ब्रेस्ट कैंसर और स्किन कैंसर से बचाते है. 
**नारियों को बचपन से ही पानी ज्यादा पिने की आदत डालनी चाहिए। अभी तक हजारों महिलाओं से हुई है मेरी बात-चीत मगर किसी ने २-३ गिलास से ज्यादा पानी पीना नहीं स्वीकार किया। जब उन्हें हम बताते है की दिन भर में कम से कम २० गिलास पानी तो पीना ही चाहिए तो वे सीधे बोल देती है की सम्भव नहीं है या क्या दिन भर हम यूरीन डिस्चार्ज ही करते रहें,और कोई काम न करें।जबकि ऐसा कुछ नहीं है की २० गिलास पानी पीने वाले यूरेनल में ही बैठे रहते हों. लेकिन ये पानी आपके शरीर को तमाम बीमारियों से दूर जरूर रखता है. पथरी, बवासीर, कब्ज, गैस, मोटापा, जोड़ो का दर्द ,इतनी सारी बीमारियाँ ये अकेला पानी ही नहीं होने देता. 
** अगर १३-१४ साल की लडकियों को या किसी भी उम्र की महिला को सफ़ेद पानी गिरने की शिकायत हो रही है तो तुरंत २केला दो चम्मच देशी घी और आधा चम्मच शहद में मसल कर चटनी बना  ले और रोज खाएं एक महीने तक लगातार।ल्यूकोरिया या सफ़ेद पानी की यह बीमारी शरीर को पुरी तरह खोखला कर देती है. किसी काम में मन नहीं लगता ,कमर दर्द, चेहरा निस्तेज हो जाना, हर वक्त बुखार सा रहना ,ये सब ल्यूकोरिया के लगातार रहने की वजह से पैदा हो जाते है. 
** चेहरे पर दाग ,धब्बे, झाइयां हो जाएँ तो २ चम्मच मंगरैल को सिरके में  पीस तक पेस्ट बनाएं और रोज रात में लगाकर सो जाएँ २०-२५ दिन में चेहरा साफ़ हो जायेगा. कास्मेटिक्स के ज्यादा प्रयोग से चेहरे पर झुर्रियां जल्दी आ जाती हैं और चेहरे की ताजगी खत्म हो जाती है. आप ३५ साल की उम्र में ही बूढी दिखने लगेंगी . 
** चेहरे पर कभी खीरे का रस लगाकर सो जाएँ कभी टमाटर का रस तो कभी हल्दी और बेसन का पेस्ट तो कभी फिटकरी के पानी से धो कर सोयें।यही सबसे अच्छे कास्मेटिक्स है. 
** बच्चे न होने के लिए खाई जाने वाली कन्ट्रासेप्टिव पिल्स आपको बाँझ भी बना सकती है, सेक्स के प्रति रूचि भी ख़त्म कर सकती है और गर्भाशय से सम्बंधित कुछ और बीमारियाँ भी पैदा कर सकती है जबकि सबसे अच्छी पिल्स तो रसोई में ही मौजूद है. जिस दिन पीरियड ख़त्म हो उसी दिन एक रेडी का बीज पानी से निगल लीजिये। पुरे महीने बच्चा नहीं रुकेगा या एक लौंग पानी से निगल लीजिये यह भी महीने भर आपको सुरक्षित रखेगी।
** कोलेस्ट्राल बढ़ रहा हो तो रोज एक चम्मच मेथी का पाउडर पानी से निगल लीजिये ( सुबह सवेरे खाली पेट )
** खून साफ़ रखने ,प्रतिरोधक क्षमता बढाने और स्किन को जवान रखने के लिए आप एक चम्मच हल्दी का पाउडर ( लगभग ३-४ ग्राम) पानी से सुबह सवेरे निगल लीजिये ,यह गले की सारी बीमारियाँ दूर कर सकता है- टांसिल्स, छाले, कफ, आदि ख्त्म. आवाज सुरीली हो जायेगी।
** खुद को फिट रखने का सही तरीका ये होगा की एक महीना हल्दी का पाउडर निगलिये, एक महीना मेथी का पाउडर , एक महीने तक सवेरे नीम की १०पत्तियां  चबा लीजिये, एक महीना तुलसी की १० पत्तियाँ १० दाने काली मिर्च के साथ चबाएं फिर एक महीना सुबह सवेरे १०० ग्राम गुड का शरबत पीयें। एक महीना कुछ मत लीजिये फिर अगले महीने से यही रुटीन शुरू कीजिए, आपको आपके बाल सुन्दर, चेहरा सुन्दर, स्किन सुन्दर, मन भी अजीब सी ताजगी  औरक्या क्या चमत्कार दिखाई देगा ,खुद ही जान जायेंगी।    
बस खुद को प्रकृति के नजदीक रखिये और स्वस्थ रहिये कभी आपको डाक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी . 





इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शनिवार, 29 जून 2013

चौलाई का साग खाया कभी? चलिए आज से शुरू .....


चौलाई का साग खाया कभी? चलिए आज से शुरू .....मजाक नहीं ,सच कह रही हूँ।इसका उपयोग  त्यौहार में भी होता है।मुझे याद है - मम्मी कहा करती थी कि  आज चौलाई का साग और चावल खाना है।ये वही चौलाई है।इसे तन्दुलीय भी कहते हैं।संस्कृत में मेघनाथ भी कहते है। मराठी, गुजराती में तान्दल्जा, बंगाली में चप्तनिया, तमिल में कपिकिरी, तेलगू में मोलाकुरा, फारसी में सुपेजमर्ज, अंग्रेजी में Prickly Amaranthus,और वैज्ञानिक  भाषा में  Amaranthus spinosus कहते हैं 

 
कटेली चौलाई तिनछठ के व्रत में खोजी जाती है।भादों की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह व्रत होता है।चौलाई दो तरह की होती है ,एक सामान्य पत्तों वाली दूसरी लाल पत्तों वाली।यह कफ और पित्त का नाश करती है जिससे रक्त विकार दूर होते हैं। आपको किसी भी तरह का चर्म रोग है तो इसके पत्ते पीस कर लेप कर लीजिए।२१ दिनों तक लगातार। शरीर में  अगर कही भी खून बह रहा है और बंद नहीं हो रहा लाल पत्ते वाली चौलाई की जड़ को पानी में पीस कर पी लेने से ही रुक जाता है।एक बार पीने से नहीं रुक रहा तो बारह घंटे बाद दुबारा पी लीजिये।चाहे गर्भाशय से खून बह रहा हो या मल द्वार से या बलगम के साथ। गर्भवती को खून दिखाई दे जाए तो फ़ौरन पी ले ,गिरता हुआ गर्भ रुक जायेगा.जिनको गर्भ गिरने की बीमारी हो वे नारियां पीरियड के समय में रोज जड़ पीस कर चावलों के पानी के साथ पी लिया करें। 

                                               

चौलाई में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन-ए ,मिनिरल्स और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते है।  पेट या आमाशय में कोई रोग हो तो रोज चौलाई का साग खाइये। नारियों को अपने स्तनों का आकार बढ़ाना हो तो अरहर की दाल के साथ चौलाई का साग पका कर चालीस दिनों तक लगातार खाइये,जड़ काटकर फेकना नहीं है वह भी पका देनी है।खूनी बवासीर हो या मूत्र में खून आता हो ,चौलाई के पत्ते पीस कर मिश्री मिलाकर शरबत बनाकर ३ दिन लगातार पीजिये।
शरीर में जलन हो रही हो तो चौलाई का काढा बनाकर पीजिये. 
सांप, बिच्छू या किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया हो तो चौलाई की जड़ ,पंद्रह दाने काली मिर्च एक साथ पीस कर चावलों  के धोवन में घोल कर पिला दीजिये।
आपको पथरी हो तो चौलाई का साग रोज खाइये चालीस दिनों तक ,पथरी गल के ख़त्म हो जायेगी. 
एक मजेदार बात और जान लीजिये कि - चौलाई जलाकर राख बन जाए तो उस राख का पानी के साथ पेस्ट बनाइये ,उस पेस्ट को मुंह में लगाकर सूर्य की किरणों में बैठने से ही सारे कील मुंहासे, झाइयां ख़त्म हो जाती हैं। 
कुल मिलाकर चौलाई एक स्वादिष्ट सब्जी भी है और महत्वपूर्ण दवा भी।   



इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा