आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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रविवार, 31 मई 2015

शरीर को लू और धूप से बचाता है ; अनानास






पूरा पेड़ कांटेदार होता है। लेकिन है बड़े काम का।लेकिन  सावधान इसका  मध्य भाग नुकसानदेह होता है इसलिए उसको निकाल कर ही  इसे खाएं। इस कांटेदार पेड़ और फल में बड़े गुण होते हैं।आइये कुछ गुणों पर निगाह डाल लेते हैं- 
@@@@अगर पेट में कीड़े हो गए हों तो अनानास का फल लगातार ७ दिनों तक खाइये। या इसके पत्तों का जूस पीजिये। 
@@@@पेट दर्द कर रहा  हो तो तीन चम्मच  फल  का रस, 6 चम्मच अदरक का रस ,२ चुटकी सेंधा नमक और एक चुटकी हींग मिलाकर पी  लीजिये। 
@@@@अगर भोजन के साथ आपके पेट में बाल चला गया हो तो भी पेट दर्द होता है  यह पेट दर्द बहुत अजीब सा होता  है। ऎसी  हालत में तो एकलौती दवा है पका हुआ अनानास। बस भरपेट खाइये,बस बीच वाला  हिस्सा निकाल   दीजियेगा क्योंकि उसको खाने से शरीर में कुछ दूसरे उपद्रव हो सकते हैं। 
@@@@लू या धूप लग गयी हो तो ४ दिन लगातार अनानास खाइये। 
@@@@लेकिन खाली पेट अनानास नहीं खाना चाहिए। 
@@@@गर्भवती महिला को भी अनानास नहीं खाना चाहिए। 
@@@@बहुत तेज  भूख लगी हो तब भी अनानास नहीं खाना चाहिए। 
@@@@अगर किसी को बार बार पेशाब जाने की बीमारी हो तो उसको  ११ दिन तक अनानास का फल जरूर खाना चाहिए। 
@@@@पूरे शरीर में  जलन  महसूस हो रही हो तो अनानास का फल खाइये। 
@@@@अनानास पित्त  विकार नष्ट करता  है जिसकी वजह से  फोड़े फुंसी ,घमौरियों से राहत मिल जाती है। 
@@@@अनानास लीवर और आमाशय को  ताकत प्रदान करता है।
@@@@अनानास हृदय को भी मजबूती देता है। 
@@@@यह  दिमाग को भी ताकत देता है। 
@@@@अगर हिचकी आ रही हो तो अनानास के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पिलाइये। 
@@@@बुखार के बाद लीवर कमजोर हो जाता है इसलिए बुखार उत्तर जाने के बाद  रोगी को अनानास का रस  जरूर पिलाना चाहिए ताकि पेट की गरमी ख़त्म हो और लीवर सही तरीके से काम करना शुरू करे। 
@@@@हार्मोनल डिसबैलेंस की वजह से या पिल्स ज्यादा खाने की वजह से जिन  महिलाओं के गर्भाशय में भिन्न भिन्न तरह के विकार आ जाते हैं उनका भी इलाज अनानास के फल और पत्तो के रस से हो सकता है। किन्तु इसके लिए आपको एक्सपर्ट की राय जरूर लेनी चाहिए।   

  





इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

रविवार, 3 मई 2015

रसायन के लाभ


मैंने अभी तक तीन तरह के रसायन बनाने में सफलता पाई है। ये हैं-
निर्गुण्डी रसायन 
हल्दी रसायन 
पिप्पली रसायन 
अभी तक सैकड़ों मरीज इनका प्रयोग करके स्वास्थ्य और आयु -बल आदि प्राप्त कर चुके हैं। फिर भी जब आज भी मुझसे यह सवाल पूछा जाता है कि  इन रसायनों से क्या क्या फायदे होते हैं तो मैं सारे लाभ तो नहीं ही गिना पाती हूँ। मैंने आज सोचा कि मैं अपने प्रबुद्ध पाठकों को ये बता दूँ कि चरक संहिता के अनुसार रसायन के क्या लाभ हैं ---
रसायन वे औषधियां हैं जो स्वस्थ पुरुष के लिए  ओजस्कर हैं ,बल को बढ़ाती हैं और जीवनीय शक्ति प्रदान करती हैं। मनुष्य रसायन के  सेवन से स्मृति ,मेधा (धारण करने वाली बुद्धि ),आरोग्य, जवानी  भरी उम्र, प्रभा वर्ण और स्वर की उदारता,  देह और इन्द्रियों में परम बल ,वाक् सिद्धि (मनुष्य जो कहे वही हो ,अथवा अच्छी वाणी ),प्रणति अर्थात लोक समाज में आदर योग्य स्थान तथा कान्ति अनायास ही प्राप्त कर लेता है। 
अर्थात जिसके द्वारा शुभ गुण  युक्त रस आदि धातुओं की प्राप्ति हो वही रसायन है। इन्हीं प्रशस्त रस आदि धातुओं के कारण बुढ़ापा शीघ्र नहीं आता और शरीर अन्य रोगो से भी बचा रहता  है।  मेधा ,मन आदि  भी अन्न पर आश्रित हुआ करते हैं इसलिए मन और बुद्धि सदा सात्विक रहती है। इसीलिए प्रकृति भी उस मनुष्य के  अनुकूल व्यवहार करती है। 
इतने सारे लाभ रसायन सेवन से होते हैं। 
रसायनो का सेवन पूर्ण ब्रह्मचारी तो  यथाविधि कर ही लेते हैं किन्तु गृहस्थियों के लिए भी रसायन प्रयोग आवश्यक कहा गया है। क्योंकि गृहस्थ धर्म के समुचित रूप से पालन में अधिक कमजोरी नहीं आती लेकिन जो लोग विषयों की तृप्ति (वासना )में ही लगे रहते हैं,उनमें अधिक कमजोरी देखी गयी है।ब्रम्हचर्य के पालन न करने से राजयक्ष्मा आदि (टी बी ) रोग हो जाते हैं। वात का प्रकोप(मोटापा ) तो विशेषतः होता है। वीर्य  धातुओं का सार है। इसके नष्ट होने से शरीर की सब धातुएं क्षीण हो जाती हैं ,बुद्धि मंद हो जाती है। शरीर में स्फूर्ति और तेज नहीं रहता। अतः इस कमी को पूरा करने के लिए गृहस्थियों को वाजीकरण आहार -विहार या रसायन का सेवन करना अति आवश्यक है। यदि इस कमजोरी या धातुओं की क्षीणता को रसायन औषध द्वारा पूरा न किया जाये तो वह  शरीर शीघ्र ही धराशायी हो जायेगा। 
अतः आत्मवान मनुष्यों को नित्य ही रसायन आदि द्रव्यों की खोज करनी चाहिए। क्योंकि इन पर ही धर्म ,अर्थ, प्रीति  और यश आश्रित हैं।  

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

शिलाजीत ; क्या सच्चाई है और क्या रहस्य



शिलाजीत पर अभी तक जितना मेरा अध्ययन है उससे मैं आप सभी को अवगत करा देना चाहती हूँ। मेरे संसाधन सीमित होने के कारण प्रचुर मात्रा में मुझे शिलाजीत उपलब्ध नहीं हो सकी जिसकी वजह से मैं पर्याप्त प्रयोग नहीं कर सकी। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि शिलाजीत का उचित प्रयोग वाकई चमत्कार दिखाता है। 
अनम्लम च कषायं च कटु पाके शिलाजतु। 
नात्युष्णशीतं धातुभ्यश्चतुर्भ्यस्तस्य सम्भवः।।.  
इस परिभाषा के अनुसार किसी भी शिलाजीत में अम्ल नहीं होता, कसैलापन होता है जो विपाक में कटु हो जाता है। यह न ही गरम होती है न ही ठंडी। यह जिन धातुओं से उत्पन्न होती है उनका ही गुण ग्रहण कर लेती है। शिलाजीत मुख्यतः चार धातुओं से उत्पन्न मानी गयी है --सोना ,चांदी ,तांबा और लोहा। महर्षि सुश्रुत  ने शिलाजीत की उत्पत्ति दो और धातुओं से मानी है-वंग  और सीसा। कुल मिला  कर ६ तरह की शिलाजीत अभी तक ज्ञात हैं।  वास्तविक शिलाजीत में अनेक तरह की गन्दगी होती है। रेत -पत्थर- पत्ते आदि अनेक चीजे इसमें मिक्स होती हैं। शिलाजीत की अशुद्धियों को दूर करने के लिए सबसे पहले उसे सादे जल से धो लेना चाहिए। फिर शिलाजीत की मात्रा से दूना गरम जल लेना चाहिए। शिलाजीत गर्म जल में घुल जाती है और अशुद्धियाँ नीचे बैठ जाती है। ऊपर से जल निथार कर उसे धुप में सुखाने पर शुद्ध शिलाजीत प्राप्त होती है। अशुद्धियों को पुनः गरम जल में घोल देना चाहिए ताकि सारी शिलाजीत पानी में आ जाए और अशुद्धियाँ बिलकुल अलग हो जाएँ। अब इसी शिलाजीत को वातघ्न अर्थात वात को नष्ट करने वाली औषधियां ,पित्तघ्न अर्थात कुपित पित्त को नष्ट करने वाली औषधियां तथा कफघ्न अर्थात कफ को संतुलित करने वाली औषधियों  के रस में भावना देकर उसकी रोगनाशक शक्ति  को कई गुना बढाया जा सकता है। इस तरह से तैयार की हुई शिलाजीत खुद ही में रसायन बन जाती है। अत्यधिक बल प्रदान करने का गुण उसमें आ जाता है और रोगनाशक तो हो ही जाती है। 
शिलाजीत का सेवन दूध के साथ करने से यह बुढापे को दूर करती है ,आयु-जनित रोगों को दूर करती है, शरीर को दृढ़ता प्रदान करती है ,शक्ति प्रदान करती है ,बुद्धि को तीव्र और स्मृति को भी दृढ करती है। 
शिलाजीत को चरक संहिता के अनुसार निरंतर सात सप्ताह तक प्रयोग करने से यह उचित फल प्रदान करती है ,हमने अपने प्रयोगों में देखा कि इसे कम से कम सौ दिनों तक लगातार  लेना ही श्रेयस्कर साबित हुआ। लेकिन इसे पांच रत्ती से कम तो कत्तई नहीं लेना चाहिए। 
हर पर्वत की  अपनी धातुएं होती हैं। अर्थात उस पर्वत का निर्माण जिन शिलाओं से हुआ  है वह शिलाएं ही धातु को खुद में समेटे रहती हैं। सोना चांदी ताम्बा लोहा शीशा रांगा यही वे धातुएं हैं जो प्रकृति में बिखरी हुई हैं। यही धातुएं जब पत्थर बन जाती हैं तो उन पत्थरों का समूह पर्वत का आकार  ले लेता  है। ज्वालामुखी का पिघलना  इन्ही धातुओं की वजह से होता है।इन धातुओं की शिलाएं जब सूरज की  गरमी से  तप जाती हैं तो वे पिघलती हैं और लाख जैसा द्रव उनमें से निकलता है। यही द्रव शिलाजीत कहलाता है।अभी तक इन्ही छः धातुओं की शिलाओं को पिघलते हुए देखा गया है। इसलिए छः प्रकार की  शिलाजीत का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है।      
शिलाजीत को अपने रोग के अनुसार निम्न में से किसी एक में घोल कर पीना चाहिए -
दूध, सिरका, मांस-रस, जौ-रस, चावल का धोवन, गोमूत्र, या किसी औषधि का काढा। 
शिलाजीत के सेवन के दौरान कब्ज पैदा करने वाली वस्तुओं ,नशा पैदा करने वाली वस्तुओं और भारी अनाज के सेवन का निषेध है। 
शिलाजीत  में गोमूत्र जैसी  गंध आती है। 
शिलाजीत के  सेवन के दौरान पथरी की दवा के रूप मे प्रयुक्त किसी औषधि ,साग और शरबत का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

विधिपूर्वक प्रयोग होने पर शिलाजीत भयकर रोगों को बलात नष्ट कर देती है ,यह स्वस्थ मनुष्यों को भी विपुल शक्ति प्रदान करती है। 






इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 26 मार्च 2015

trifala





आप  त्रिफला चूर्ण बहुत प्रयोग कर चुके होंगे ,अब जरा  इस  विधि से प्रयोग कीजिये लेकिन मुझे रिजल्ट जरूर बताइयेगा --- एक चम्मच त्रिफला लीजिये, थोड़ा सा पानी मिला कर पेस्ट बना लीजिये ,अब उसे  किसी नयी लोहे की कढ़ाही में अंदर लेप  करके छोड़ दीजिये, २४ घंटे बाद खुरच कर निकाल लें और एक चम्मच शहद मिला कर पानी में एक गिलास शरबत बनाएं और पी जाएँ। जब खुरच कर निकालें तो आधे घंटे बाद उसमें दुबारा लेप करके  रख दें। यह प्रक्रिया एक माह तक लगातार करें फिर देखिये चमत्कार। 

रविवार, 1 मार्च 2015

मेरे मित्र ने whatsapp पर ये दोहे भेजे हैं ,इनमें से कई दवाएं मैं प्रयोग कर भी चुकी हूँ और प्रयोग करवा भी चुकी हूँ , आप भी प्रयोग करें ---

१- दही मथे माखन मिले ,केसर संग मिलाय 
होठों पर लेपित करें ,रंग गुलाबी आय। 

२- बहती यदि जो नाक हो ,बहुत बुरा  हो हाल 
युक्लिप्टस तेल लें ,सूंघे डाल  रुमाल। 

३-अजवाइन को पीस लें ,गाढ़ा लेप लगाय 
चार्म रोग सब दूर हों ,तन कंचन बन जाय। 

४-अजवाइन को  पीस  लें, नीबू संग मिलाय 
फोड़ा- फुंसी दूर हो ,सभी बाला टल जाय। 

५-अजवाइन -गुड खाइये ,तभी बने कुछ  काम 
पित्त रोग में लाभ हो ,पाएंगे आराम। 

६-ठंड लगे  जब आपको , सर्दी से बेहाल 
नीबू -मधु के साथ में ,अदरक पियें  उबाल। 

७- अदरक का रस लीजिये, मधु लेवें सम भाग
नियमित सेवन जब करें सर्दी जाए  भाग। 

८- रोटी मक्के की भली ,खा लें यदि भरपूर 
बेहतर लीवर आपका ,टी बी भी हो दूर। 

९- गाजर रस संग आवला ,बीस औ चालीस ग्राम 
रक्तचाप ह्रदय सही ,पाएं सब आराम। 

१०- शहद, आवला जूस हो, मिश्री सब दस ग्राम 
बीस ग्राम घी साथ में ,यौवन स्थिर काम। 

११- चिंतित  होता क्यों भला ,देख बुढ़ापा रोय 
चौलाई, पालक भली ,योवन स्थिर होय। 

१२- लाल टमाटर लीजिये, खीरा सहित सनेह  
जूस करेला साथ हो ,दूर करे मधुमेह। 

१३- प्रात  संध्या पीजिये ,खाली पेट सनेह 
जामुन गुठली पीसिये नहीं रहे मधुमेह। 

१४-सात पत्र लें नीम के खाली पेट चबाय 
दूर करे मधुमेह को ,सब कुछ मन को भाय। 

१५- सात फूल ले  लीजिये, सुन्दर सदाबहार 
दूर करे मधुमेह को जीवन से हो प्यार। 

१६- छाछ हींग  सेंधा नमक दूर करे सब रोग ,
जीरा  उसमें दाल कर पियें सदा यह भोग। 

१७- अजवाइन लें छाछ संग मात्रा ५ ग्राम 
कीट पेट के नष्ट हों जल्दी  हो आराम। 

१८- तुलसीदल दस लीजिये उठ कर प्रातः काल 
सेहत सुधरे आपकी तन- मन मालामाल। 

१९- अजवाइन और हींग लें  लहसुन  संग पकाय 
मालिश जोड़ों की करें दर्द दूर हो जाय। 

२०- एलोवेरा- आंवला  करे खून में वृद्धि 
उदर- व्याधियां दूर हों जीवन में हो सिद्धि। 

२१- दस्त अगर आने लगे, चिंतित दीखे माथ 
दालचीनी का पावडर लें पानी के साथ।   

२२- कफ से पीड़ित हों अगर,खांसी बहुत सताय 
अजवाइन की भाप लें कफ तब बाहर आय। 

२३-ठंड अगर लग जाय  जो, नहीं बने कुछ काम 
नियमित पी लें गुनगुना पानी दे आराम। 

२४-पीता थोड़ी छाछ जो ,भोजन करके रोज 
नहीं जरुरत वैद्य की, चेहरे पर हो ओज।

२५-मधु का सेवन जो करे ,सुख पावेगा सोय 
कंठ सुरीला साथ में, वाणी मधुरिम होय। 

२६-नीबू बेसन जल शहद मिश्रित लेप लगाय 
 चेहरा सुन्दर तब बने ,बेहतर यही उपाय। 

२७- बीस एम एल रस आंवला, हल्दी हो एक ग्राम 
सर्दी कम तकलीफ में,फ़ौरन हो आराम। 

२८- बीस मिली रस आंवला, ५ ग्राम मधु संग 
सुबह शाम में चाटिये ,बढे ज्योति सब दंग। 

२९- कंचन  काया को कभी ,पित्त अगर दे कष्ट 
घृतकुमारी संग आंवला, करे उसे भी नष्ट। 

३०-मुंह में बदबू हो अगर, दालचीनी मुख डाल 
बने सुगन्धित मुख ,महक दूर होय तत्काल। 

३१-थोड़ा सा गुड लीजिये, दूर रहें सब रोग 
अधिक कभी मत खाइये चाहे मोहनभोग। 

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

एक अनार सौ बीमार

एक अनार सौ बीमार


बड़ी पुरानी कहावत है - एक अनार सौ बीमार। आखिर ऐसा क्यों कहा जाता है यह जानना भी तो जरूरी है। आइये आज यही जानने की कोशिश करते हैं।
अनार का वैज्ञानिक नाम है- Punica garnatum .इसे संस्कृत में दाड़ी ,गुजराती में दाडम, बंगला भाषा में दारिम ,मराठी में डालिव , कर्नाटक  की भाषा में दार्लिव ,तेलगू में दानिव चेट्टू ,तमिल में मालदेई चेहड्डी, अंग्रेजी में Pomegranate ,और अरबी में रूमान हामिज कहते हैं। हमारे वेदों में इसे कई जगह लोहित पुष्पक के नाम से भी सम्बोधित किया गया है।

अनार के फल में मालवाडीन आर्सेलिक एसिड,केरोटीन सीटोस्टीरॉल, ग्रेनाटिंस ए ,बी ,बेटुलिक एसिड, प्यूनिकाटोलिन , एमीनोएसिड, डाईग्लाइकोसाइड्स, पेन्टासग्लाइकोसाइड्स, निकोटिनिक एसिड ,राइबोफ्लेविन, कार्बोदित, थायमाइन ,विटामिन-सी, डेल्फीनिडीन, साइटोस्टीरॉल जैसे महत्वपूर्ण तत्व अभी तक खोजे गए हैं।

अनार तीन प्रकारके होते हैं- १- मीठा अनार -यह तीनो दोषों का नाश करता है अर्थात शरीर में कफ वात और पित्त को बैलेंस करता है। जिसके कारण शरीर में कोई रोग पनप ही नहीं पाता और मनुष्य निरोगी जीवन जीता है। यह हृदय रोग, कण्ठरोग ,मुंह के रोग, बुखार आदि को ख़त्म करता है। शरीर में बल और वीर्य और बुद्धि को बढ़ाता है लेकिन थोड़ा  कब्ज  पैदा करता है।
२- खट्टा - मीठा अनार ----यह अनार पित्त को बढ़ाता है ,भूख भी बढ़ाता है ,स्वादिष्ट  होता है।
३- खट्टा अनार ---- यह  भी पित्त  बढ़ाता है लेकिन वात और कफ  का नाश भी करता है।
किन बीमारियों में अनार का प्रयोग  कैसे करना चाहिए ,आइये देखें ---
***** दस्त में- अगर लूज मोशन रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं तो अनार  के दाने भून कर उनका रस निकालिये और पी लीजिये।
***** खूनी बवासीर में अनार की छाल का ३ ग्राम चूर्ण मठ्ठे के साथ निगलवा  देना चाहिए।


***** पांचवे महीने में गर्भवती महिला को अनार के पत्तों का  चूर्ण शहद मिलाकर जरूर चाट लेना चाहिए ,इससे गर्भ  स्थिर और मजबूत हो जाता है।
***** अगर मुंह के किसी भाग से खून आ रहा हो तो  अनार  के छिलके के चूर्ण में शहद मिला कर चाटिये। 
***** पेट में फीता कृमि हो गए हैं तो अनार के जड़ का काढ़ा बनाएं, एक -एक घंटे पर एक- एक गिलास पीजिये ,चार गिलास में ही सारे फीता कृमि अंडे- बच्चे समेत मर कर पेट से बाहर हो जाएंगे। 
***** किसी भी वजह से भोजन के प्रति अरुचि हो गयी है तो अनार के रस में सेंधा नमक और शहद मिला कर पीजिये ,बहुत  फायदा होगा।  
***** उपदंश जैसे रोगों में अनार की छाल का चूर्ण काम  करता है। 
***** अतिसार अर्थात बहुत  ज्यादा दस्त  में अनार के छिलके  का काढ़ा भी दे सकते हैं।



इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

रविवार, 4 जनवरी 2015

शहद : ज्ञान कम,भ्रम ज्यादा

शहद : ज्ञान कम,भ्रम ज्यादा

मधु वाता ऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः 
                                              ------ऋग्वेद 
पौत्तिकं भ्रामरं क्षौद्रं माक्षिकं छात्रमेव च .आर्घ्य मौद्दालिकम दालमित्यष्टौ मधु जातयः .
                                                                              ------ सुश्रुत संहिता 
आयुर्वेद के दो महान ग्रंथों की ये दो पंक्तियाँ ही शहद को परिभाषित करने और उसके भेद बताने के लिए पर्याप्त हैं .मैं अगर व्यक्तिगत रूप से बात करू तो मुझे आज तक शहद का विकल्प नहीं मिला है और चिकित्सक के रूप में मैं तब बहुत दुविधा में पड़ जाती हूँ जब कोई मरीज यह कहता है कि वह जैन है और शहद का सेवन नहीं कर सकता . (मैं  अपने प्रबुद्ध पाठक बंधुओं से यह अपेक्षा रखती हूँ कि वे मुझको जैन धर्म की किसी   सम्मानित पुस्तक का वह अंश जरूर मेल कर दें जिसमें शहद खाने की मनाही की गयी हो ).
शहद एक उत्तम पौष्टिक है .अगर दुर्भाग्यवश आपको कोई रोग हो गया हो और आप किसी भी पद्धति से इलाज करवा रहे हों तो आप अन्य दवाओं के साथ ही एक -एक चम्मच शहद का सेवन भी शुरू कर दीजिये .आप और आपका डाक्टर खुद देखेगा कि आपने बिमारी पर दुगुनी तेजी से काबू पा लिया है .
शहद अनेक प्रकार की शर्कराओं का मिश्रण है .गन्ने की शर्करा, अंगूर की शर्करा, पुष्पों की शर्करा का ऐसा मिश्रण कृत्रिम रूप से नहीं तैयार हो सकता .इसी लिए शहद को नवजात शिशु को माता के दूध के स्थान पर दिया जाता है. पुंकेसरों से उसका महत्वपूर्ण अंश चूस लेने की क्षमता प्रकृति ने सिर्फ मधुमक्खियों को ही प्रदान की है .इसके बावजूद पुष्प को कोई नुक्सान नहीं पहुंचता वह उसी तरह खिला रहता है .जब मनुष्य पुष्पों से तत्व निकालने की कोशिश करेगा तो ,उसका शर्करा तत्व भले निकले या न निकले, पुष्प जरूर ख़त्म हो जाएगा .
शहद को आठ प्रकार का माना गया है .भावप्रकाश   में भी शहद के आठ भेद माने गए हैं जबकि चरक संहिता  में सिर्फ चार प्रकार के शहद का वर्णन है .पौत्तिक शहद विषैली मक्खियों से सम्बंधित होने के कारण विषैला होता है .यह शरीर में रूखापन, वात ,पित्त को बढ़ाता है ,शरीर में जलन उत्पन्न करता है और नशा पैदा करता है .भ्रामर शहद में लसीलापन और अधिक मिठास होती है इसलिए वह अधिक भारी होता है. क्षौद्र मधु विशेषतः शीतल, लघु और लेखनीय माना गया है .अर्थात ये शरीर का सबसे अच्छा दोस्त है, आराम से पच जाता है और लेखनीय गुण  होने से यह मोटापे को भी कम करता है. माक्षिक शहद  सबसे श्रेष्ठ माना गया है .यह विशेषतः श्वास प्रक्रिया में बहुत उपयोगी होता है ,इसको खाने से स्वर भी मधुर होता है .छात्र शहद हिमाचल प्रदेश के वनों की मधुमक्खियों द्वारा निर्मित किया जाता है .इनके छत्ते छाते के आकार  के होते हैं इसलिए ये छात्र शहद कहलाता है इसमें सफ़ेद दाग, प्रमेह और कृमियों को नष्ट करने की विशेष क्षमता होती है . इसे भी गुणों में श्रेष्ठ माना गया है .आर्घ्य शहद अर्घा नामक मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया जाता है ,यह आँखों के लिए बहुत फायदेमंद है ,कफ और पित्त को नष्ट करता है ,ताकत देता है , तेज होता है.इसमें थोड़ा कड़वापन भी होता है .औद्दालक शहद स्वादिष्ट, स्वर को मधुर करने वाला ,जहर नष्ट करने वाला और कोढ़ को भी नष्ट करने वाला होता है.दाल शहद की ये विशेषता है की वह किसी भी प्रकार के प्रमेह को ख़त्म कर देगा (मधुमेह भी 20 प्रकार के प्रमेहों में से एक है )यह कुछ खटास लिए होता है इसलिए पित्त भी बढ़ाता है ,गरम होता है रूखापन होता है 
अगर शहद ताजा है तो ताकत देता है ,पेट साफ़ करता है इसे अल्पश्लेष्महर भी माना  गया है .एक साल पुराना शहद बाहर निकले हुए पेट को कम करता है और मोटापे को दूर करता है ,शरीर में पूर्णतया अब्जॉर्ब हो जाता है और अनावश्यक मांस को ख़त्म करता है. छत्ते में अधिक समय तक रहने वाला शहद पक्व शहद माना जाता है ,यह शरीर में तीनो दोषों को नष्ट करके शरीर को स्वस्थ और स्वच्छ बना देता है .इन सबके विपरीत कच्चा शहद एसिडिटी पैदा करता है और तीनो दोषों (वात कफ और पित्त )को बढ़ा देता है .
एक सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि शहद को कभी गरम पेय पदार्थों ,गरम प्रकृति की वस्तुओं ,गरमी से पीड़ित व्यक्तियों, गरम देशों और गरमी के मौसम में प्रयोग नहीं करना चाहिए .ऎसी स्थिति में इसका प्रयोग जहर की तरह घातक हो जाता है .शहद की प्रकृति ठंडी और कोमल मानी गयी है .अनेक प्रकार की औषधियों के पुष्पों के रस से उत्पन्न होने के कारण शहद उष्णता के विरुद्ध होता है .आयुर्वेद वमन कराने के लिए (vomating) शहद का प्रयोग गरम जल के साथ करने की सलाह देता है क्योंकि तब शरीर में यह अब्जॉर्ब नहीं होता न  ही शरीर में टिकता है .सावधानीवश इसे गरम जल के साथ न ही लिया जाए तो बेहतर है क्योंकि अगर वोमेट नहीं हुई और यह शरीर के अंदर ही रह गया तो यह विष के समान प्राणनाशक सिद्ध होगा और अधिक कष्ट देगा .सभी प्राणियों पर ये नियम लागू होगा .
शहद के लिए योगवाहि शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह अनेक प्रकार के द्रव्यों से मिल कर बनता है और भिन्न भिन्न प्रकार की औषधियों के साथ मिल कर भिन्न भिन्न प्रकार की बीमारियों का नाश करता है.
अब शहद के सामान्य गुणों पर भी निगाह डाली जाए ---

इसके अंदर संधान unity का गुण होता है अर्थात ये हमारी कोशिकाओं को इतनी सख्ती के साथ बांधे रखता है की उनमें किसी प्रकार के विष के प्रवेश की संभावना ही ख़त्म हो जाती है .कैंसर के मरीजों को शहद दिया जाए तो कैंसरस सेल फैलने की प्रक्रिया 90%तक कंट्रोल हो जायेगी .त्वचा भी दृढ़ बनी रहने से झुर्रियों की सम्भावना ख़त्म ,हड्डियों में दृढ़ता रहते से सर्वाइकल, स्लीपडिस्क, गठिया की संभावना ख़त्म .इसका यह संधान वाला गुण सबसे करामाती गुण है .
यह हृदय  के लिए लाभकारी है.
 यह सौंदर्य वर्धक  है .
यह शरीर के बहुत सूक्ष्म कोषों तक भी बहुत तेजी से पहुँच जाता है 
यह वीर्य वर्धक है 
यह आँखों के लिए बहुत लाभदायक है .
यह शरीर में निर्माण की प्रक्रिया तेज करता है 
यह शरीर का शोधन करता है.

वास्तव में शहद अमृत है .


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

happy 2015



नयी कला, नूतन रचनाएं, नयी सूझ, नूतन साधन 
नए भाव,  नूतन उमंग से,       वीर बने रहते नूतन। 
                               २०१५ 

इन्हीं भावनाओं के साथ मंगलकामनाएं 

शनिवार, 27 दिसंबर 2014

ये ठंड भला क्यों हमारी दुश्मन बने ?

ये ठंड भला क्यों हमारी दुश्मन बने ?

बहुत मामूली सी गलती होती है और ठंड लग जाती है। अगर हम ज़रा सावधान रहें तो ऐसा नहीं होगा। सबसे पहले ठंड लगने के सामान्य लक्षण जान लीजिये -
१- लूज मोशन आना 
२- सिर में मीठा मीठा दर्द 
३- भोजन में नमक या कोई स्वाद कम महसूस होना 
४- सुस्ती 
५- समूह में बैठने की इच्छा होना। 

इनमे से कोई लक्षण प्रकट हो तो दो काम तुरंत कीजिए -
१- पानी को खूब तेज गरम कीजिए ,उसमें २ चम्मच नमक मिलाएं फिर उस पानी में पहले एड़ी फिर धीरे धीरे पूरा पंजा डूबा कर २० मिनट बैठे रहें ,यह क्रिया दिन में दो बार कीजिए। 
२- एक बड़ा चम्मच अजवाइन से भरिये ,फिर वह अजवाइन मुंह में रख कर पानी पी जाइए ,चबाना नहीं है अजवाइन को ,केवल निगलना है। 

दो से तीन दिन में ही सर्दी से उत्पन्न सभी परेशानियां ख़त्म हो जाएंगी। 

सर्दी या गरमी तभी परेशान करते हैं जब आपके शरीर की इम्यूनिटी कमजोर हो गयी हो। उसको बनाये रखने के लिए आप २-४ चीजों का सहारा लीजिए। एक महीने ६ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण रोज पानी से निगलिये ,दूसरे महीने ५ ग्राम हल्दी चूर्ण ,तीसरे महीने ५ छोटी हर्रे का चूर्ण। सुबह सवेरे नाश्ते से ५ मिनट पहले निगलना है। चौथे महीने फिर अश्वगंधा से क्रम शुरू कीजिए। विश्वास  कीजिए साल भर में एक बार भी डाक्टर के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।  यही नहीं आप सारे मौसमों का भरपूर आनंद उठाएंगे। 



गुरुवार, 13 नवंबर 2014

माजूफल एक चमत्कारी फल है


वैसे तो कुदरत का करिश्मा मामूली सी घास में भी छिपा हुआ है ,ये हमारी ही कमी है कि हम पहचान नहीं पाते एक अनोखा सा फल है माजूफल--इसको अंग्रेजी में Gallnut कहते हैं और वैज्ञानिक भाषा में Quercus infecttoria .


इसको gallnut कहते हैं। 
यह दाँतो का बहुत माहिर डाक्टर है। दाँतो में कैसी भी परेशानी हो ,पानी लगता हो ,पायरिया हो, मसूढ़ों से खून आता हो या दर्द होता हो ,दांत कमजोर हैं या दाँतो से भी खून आता है तो आप घर पर ही ये मंजन बना सकते हैं--इसके लिए चाहिए बस माजूफल और छोटी छोटी घरेलू चीजें। एक माजूफल को बारीक पीसकर सरसो  के तेल में मिलाकर बस मसूढ़ों पर मालिश कीजिए इससे मसूढ़ों का दर्द और खून आना तो बंद होगा ही दांत भी मजबूत हो जाएंगे। दाँतो में बहुत तेज दर्द हो रहा है तो माजूफल का चूर्ण उस दांत के नीचे दबाएं १० मिनट में ही दर्द गायब हो जाएगा। एक भुनी हुई  सुपारी और एक भुना हुआ माजूफल और एक कच्चा माजूफल इन तीनो को महीन पीसकर मंजन बनाकर तो हमेशा घर  में रखना चाहिए और हो सके तो रोज या फिर सन्डे सन्डे इससे जरूर मंजन करना चाहिए ताकि दाँतो में कोई रोग लगे ही  न। दांत बहुत तेज दर्द कर रहा हो तो भुनी हुई फिटकरी ,हल्दी और माजूफल २५-२५ ग्राम ले लीजिये और पीस कर चूर्ण बना लीजिये ,इससे दो बार मंजन करने से ही दर्द गायब हो जाएगा।  


एक अजीब सी बीमारी है मलद्वार का बाहर निकलना। यह कई कारणों से होता है। कब्ज हो तो मल त्यागते समय व्यक्ति जोर लगाता है। लगातार पेट साफ़ करने वाली  दवाएं खाने से भी मलद्वार बाहर निकल जाता है। बवासीर और भगन्दर हो तो भी ऐसा हो जाता है। खैर किसी भी कारण से मलद्वार बाहर निकला हो तो आप माजूफल की शरण में जाइए। १ गिलास पानी में एक माजूफल पीस कर डालिये फिर इसे पकाइये। १० मिनट उबलने के बाद उतार कर ठंडा कीजिए और इसी पानी से मलद्वार की धुलाई कीजिए। बवासीर के मस्सों का दर्द ,भगन्दर का दर्द और मलद्वार का बाहर निकलना तीनो में आराम मिलेगा। यह क्रिया ५-६ दिनों तक लगातार   कीजिए।
मलद्वार से ही सम्बंधित एक बीमारी है गुदाभ्रंश। यह बच्चों में ज्यादा होती है। इसके लिए आप आधा चम्मच फिटकरी लीजिये उसको भून  कर चूर्ण बनाये फिर दो माजूफल पीस कर चूर्ण बनाएं। अब दोनों के चूर्ण को १०० ग्राम पानी में मिलाएं। दवा तैयार है। अब इस दवा में रूई का मोटा टुकड़ा भिगाए और गुदा पर बाँध लीजिये। एक क्रिया आपको १०-१५ दिन करनी पड़ सकती है।जितना पुराना रोग होगा उतना ही अधिक समय लेगा ठीक होने में ,किन्तु ठीक अवश्य हो जाएगा।


यदि अंडकोष में पानी भर गया है या फिर चोट आदि लगने से सूजन आ गयी है तो फिर माजूफल आपका सच्चा साथी साबित होगा। पानी भरने की दशा में १० ग्राम माजूफल और ५ ग्राम फिटकरी पानी में महीन पीस कर पेस्ट बना लीजिये फिर अंडकोष पर लेप करके १ घंटे तक छोड़ दीजिये तत्पश्चात सादे पानी से धो लीजिये। कम से कम २१ दिन यह काम करने से पानी सूख जाएगा। अगर सूजन हो गयी है तो १०-१० ग्राम माजूफल और अश्वगंधा लीजिये ,पानी में पीस कर पेस्ट बनाइये, फिर थोड़ा गरम कीजिए और सुहाता सा लेप करके कोई कपडा बाँध लीजिये ३-४ दिन में भी सूजन उत्तर सकती है और १० दिन भी लग सकते हैं। 

माजूफल का चूर्ण १०-१० ग्राम सुबह शाम गाय के दूध से निगलने से गर्भ धारण में सहायता मिलती है। यह प्रक्रिया चार  से पांच माह लगातार करनी होगी। उसके पहले गर्भाशय को कलौंजी के काढ़े से शुद्ध कर लेना चाहिए।  

माजूफल ल्यूकोरिया की भी दवा है। एक-एक ग्राम चूर्ण सुबह शाम पानी से खाया जाता है। २१ दिन तक। 

अगर आपको पतले होंठ पसंद हैं तो माजूफल  को दूध में पीसकर पेस्ट बनाइये और होठों पर लगाकर सो जाएँ। ११ दिन में ही होठ पतले हो जाएंगे।

माजूफल का लेप लगाकर बांधने से टूटी हुई हड्डी भी जुड़ जाती है।  

माजूफल का छोटा सा टुकड़ा चूसते रहने से मुंह के छाले  भी नष्ट हो जाते हैं। 

   

रविवार, 2 नवंबर 2014

अमरता और देवत्व हासिल होते है जडी- बूटियो से ही


आज मेरे लिए एक ख़ास दिन है इस दिन को मैं और ख़ास बनाना चाहती हूँ आप सभी को एक ख़ास जानकारी देकर। मुझे यह जानकारी कुछ दिनों पूर्व धनतेरस के शुभ दिन भगवान धन्वंतरि की महान कृपा से मिली। 
हम अभी तक देवताओं और अमरत्व के बारे में सुनते आये ,किसी कहानी की तरह।  अपनी धार्मिक किताबों में पढ़ते भी आये। लेकिन हमारा ये साईंटिफिक युग का दिमाग साथ ही साथ यह  भी यही सोचता रहा कि  हाँ "दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है".  
लेकिन अब मुझे तो विश्वास हो गया कि सचमुच यह सम्भव है। महान शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने ऎसी जड़ी-बूटियों के बारे में बहुत कुछ लिखा है। 
कुल अट्ठारह जड़ीबूटियों के बारे में बताया है कि  इन्हें खाने से (एक ख़ास विधिपुरक इनका सेवन करने से ) मनुष्य दो हजार साल तक जीवित रह सकता है ,पलक झपकते ही कहीं भी आ-जा सकता है।अबाध गमन और श्रुतनिगदि अर्थात एक बार सुने को हमेशा याद रखने वाला (पावरफुल मेमोरी) बलवान और निरोग तो हो ही जायेगा ,बुढ़ापे का कोई लक्षण नहीं आएगा। इनके नाम हैं- अजगरी, श्वेत कापोती, कृष्ण कापोती, गोंसी, वाराही, कन्या, छत्रा, अतिच्छत्रा, करेणु, अजा, चक्रका, आदित्यपर्णिनी, ब्रह्मसुवर्चला, श्रावणी,महाश्रावणी, गोलोमी, अज्लोमी, महावेगवती।

२४ तरह की ऎसी सोमलताओं का वर्णन है जिनसे सोमरस निकलता है जिनका एक ही बार ख़ास विधि से सेवन करना होता है और दो माह तक नज़रबंद रहना होता है अर्थात एक ख़ास तरह से जीवन बिताना होता है। इस दो माह की कठिन तपस्या के बाद देवत्व आपके अंदर आ जाएगा। सशरीर वायु में बेरोकटोक गमन कीजिए। १००० हाथियों का बल आपके अंदर आ जाएगा। भूख, प्यास, नींद, बुढ़ापा आपकी मर्जी के गुलाम होंगे। १० हजार साल तक आपकी उम्र बढ़ जायेगी। इतने खूबसूरत हो जाएंगे की देखते ही लोग देवता समझ लेंगे। इनके नाम इस तरह हैं---अंशुमान, मुंजवान, चन्द्रमा, राजत्प्रभ, दूरवासोम, कांईयां, श्वेताभ, कनकप्रभ, प्रातांवां, तालवृन्त, करवीर, अनश्वान्, स्वयंप्रभ, महासोम, गरुणाहृत, गायत्र, त्रैष्टुभ, पांक्त, जागत, शाकवर, अग्निष्टोम, रैवत, त्रिपदागायत्री, उडुपति। 
लेकिन महर्षि सुश्रुत ने सुश्रुत संहिता में यह भी बताया है की यह दिव्य औषधियां  उन्ही लोगों को दिखती हैं जो धार्मिक, अकृतघ्न, औषधि पर विश्वास रखने वाले और बुजुर्गों का सम्मान करने वाले होते हैं। 
सात तरह के व्यक्तियों को इन रसायन के सेवन के अयोग्य माना गया है-
अनात्मवान् 
आलसी
 दरिद्र
प्रमादी 
व्यसनी 
पापी 
और औषधि पर विश्वास न रखने वाला।  

और अब मैंने यह संकल्प कर लिया है की मैं इन्हे खोज कर ही रहूंगी ताकि इनका लाभ पूरी मानवता को मिल सके। 

शुक्रवार, 12 सितंबर 2014

हकलाते हैं ,तो तेजपत्ते का सेवन कीजिए




अक्सर हमें पुलाव बिरयानी की प्लेट में तेजपात नज़र आता है जिसे हम बड़े करीने से किनारे कर देते हैं। आपको पता है कि ये बहुत चमत्कारी औषधि है !
इसका पेड़ पचीस फुट तक ऊँचा होता है और इस पर पीले रंग के फूल लगते हैं। इसमें रासायनिक खोज करने पर तीन तरह के तेल पाए गए हैं। उतपत्त तेल ,यूजीनाल और आइसो यूजीनाल। इसे हिन्दी में तेजपात और संस्कृत में तमालपत्र कहते हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में Cinnamomum tamala कहते हैं। 

       आइये इसके औषधीय गुणों पर दृष्टिपात करें -

दमा में ---तेजपात ,पीपल,अदरक, मिश्री सभी को बराबर मात्र में लेकर चटनी पीस  लीजिए।१-१ चम्मच चटनी रोज खाएं ४० दिनों तक। फायदा सुनिश्चित है। 

दांतों के लिए ---सप्ताह में तीन दिन तेजपात के बारीक चूर्ण से मंजन कीजिए। दांत मजबूत होंगे, दांतों में कीड़ा नहीं लगेगा ,ठंडा गरम पानी नहीं लगेगा , दांत मोतियों की तरह चमकेंगे। 

कीड़े से बचाने के लिए ----कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिए ,ऊनी,सूती,रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे। अनाजों के बीच में ४-५ पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे। उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी। 

शारीरिक दुर्गन्ध ----- अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है ,वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न। वैसे भी अंदरूनी कपडे और मोज़े तो रोज धुलने चाहिए। मुंह से दुर्गन्ध आती है तो तेजपात का टुकड़ा चबाया करें। बगल के पसीने से दुर्गन्ध आती है तो तेजपात का चूर्ण पावडर की तरह बगलों में लगाया करें। 

आँखों की रोशनी ----- अगर अचानक आँखों कि रोशनी कुछ कम होने लगी है तो तेजपात के बारीक चूर्ण को सुरमे की तरह आँखों में लगाएं। इससे आँखों की सफाई हो जायेगी और नसों में ताजगी आ जायेगी जिससे आपकी दृष्टि तेज हो जायेगी। इस प्रयोग को लगातार करने से चश्मा भी उतर सकता है। 

गैस -----पेट में गैस की वजह से तकलीफ महसूस हो रही हो तो ३-४ चुटकी या ४ मिली ग्राम तेजपात का चूर्ण पानी से निगल लीजिए। एसीडिटी की तकलीफ में इसका लगातार सेवन बहुत फायदा करता है और पेट को आराम मिलता है। 

हार्ट प्राब्लम ----- तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए ,आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा ,कभी हृदय रोग नहीं होंगे। 

पागलपन -----एक एक ग्राम तेजपात का चूर्ण सुबह शाम रोगी को पानी या शहद से खिलाएं।या तेजपात के चूर्ण का हलुआ बनाकर खिलाएं। सूजी के हलवे में एक चम्मच तेजपात का चूर्ण डाल दीजिए। बन गया हलवा।  

हकलाना ---- तेजपात के टुकड़ों को जीभ के नीचे रखा रहने दें ,चूसते रहे। एक माह में हकलाना खत्म हो जाएगा। 

जुकाम ---- दिन में चार बार चाय में तेजपत्ता उबाल कर पीजिए ,जुकाम-जनित सभी कष्टों में आराम मिलेगा।
या चाय में चायपत्ती की जगह तेजपत्ता डालिए। खूब उबालिए ,फिर दूध और चीनी डालिए।  

पेट दर्द ---- पेट की किसी भी बीमारी में तेजपत्ते का काढा बनाकर पीजिए। दस्त, आँतों के घाव, भूख न लगना सभी में आराम मिलेगा।  
      
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

हम २०० साल से कम नहीं जीयेंगे



मृत्यु को जीतने की बात चल रही है। आदमी के क्लोन बनाये जा रहे हैं। वही मसल हुई कि चिराग तले अँधेरा। अरे अमरत्व्  का वरदान तो हमारे इसी शरीर में है। बस थोड़ा सा प्राकृतिक होने की जरूरत है। न न चिंता मत कीजिये ,मैं आपको अध्यात्म का पाठ नहीं पढ़ाने जा रही बस इतना बताना चाहती हूँ कि जड़ी बूटियों में वह ताकत है जो हमें लंबा जीवन प्रदान कर सकती हैं। आयुर्वेद में कई कल्प रसायन का वर्णन है ,आवश्यकता है बस  उन मन्त्रों में छुपी पहेलियों को सुलझा लेने की। 
पुराने समय में लगातार राजवैद्य लोग इसी विधा पर काम करते रहते थे ,तब मनुष्य जड़ी बूटियों का सेवन इसलिए करते थे ताकि वो लम्बे समय तक स्वस्थ जीवन जी सकें। आज मनुष्य ४० वर्ष का होते होते ताकत खोने लगता है। तन - मन दोनों थकान का अनुभव करते हैं। ५०-५५ होते होते तो बुढ़ापे का लेबल लग जाता है। जबकि १०० वर्ष तो आम मनुष्यों की आयु कही गयी है। राजा लोग तो १५०-२०० साल तक युद्ध करते हुए भी आराम से जी लेते थे। क्योंकि उनके लिए वैद्य रसायनो और कल्पों का निर्माण करते रहते थे। जो उनकी जीवनी शक्ति को यथावत रखने में मददगार होते थे। 
मैंने फिलहाल दो रसायन बना लिए हैं जो आपके शरीर को निरोग रखते हुए उसकी जीवनी शक्ति बढ़ाएंगे -

१- हल्दी रसायन 
२- निर्गुण्डी रसायन 


इनको तैयार करने की विधि मैं यहाँ नहीं लिख सकती क्योंकि इसमें मेहनत के साथ एकाग्रता और मन्त्रों का भी योगदान है। 

लेकिन आपको यह जरुर बता देना चाहती हूँ कि आप बुढ़ापे की सारी परेशानियों पर विजय पाकर स्वस्थ और लंबा जीवन जी सकते हैं। 
आजकल बाज़ार में मिलने वाले सौ रुपये किलो के च्यवनप्राश से तो इतनी शक्ति भी नहीं बढ़ पाती कि सर्दी जुकाम से ही आपकी रक्षा हो सके। जीवनी शक्ति तो बहुत दूर की बात है।   
हमारे देश में एक मिथक चला आ रहा है कि देवता सोमरस का पान करते हैं और अप्सराओं के साथ राग रंग में स्वर्ग का आनंद उठाते हैं .वह सोम रस क्या है ? सोम का अर्थ है चन्द्रमा और चंद्रदेव को ही जड़ी बूटियों का अधिपति माना गया है .इन जड़ी बूटियों में चन्द्रमा अपनी किरणों से उज्ज्वलता और शान्ति भरते हैं .इसीलिए इन जड़ी बूटियों से जो रसायन तैयार होकर शरीर में नव जीवन और नव शक्ति का संचार करते हैं उन्हें सोमरस कहा जाता है .

ऐसा ही एक सोमरस रसायन मुझे तैयार करने में सफलता मिली है जिसमे मेहनत और तपस्या का महत्वपूर्ण योगदान है .वह है- निर्गुंडी रसायन 
                                                         और
                                                    हल्दी रसायन 
ये रसायन शरीर में कोशिका निर्माण( cell reproduction ) की क्षमता में ४ गुनी वृद्धि करते हैं .
ये रसायन प्रजनन क्षमता को ६ गुना तक बढ़ा देते हैं .
ये रसायन शरीर में एड्स प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर देते हैं 
ये रसायन झुर्रियों ,झाइयों और गंजेपन को खत्म कर देते हैं 
ये रसायन हड्डियों को वज्र की तरह कठोर कर देते हैं.
ये रसायन प्रोस्टेट कैंसर ,लंग्स कैंसर और यूट्रस कैंसर को रोकने में सक्षम है.

अगर कोई इन कैंसर की चपेट में आ गया है तो ये उसके लिए रामबाण औषधि हैं.
                                            अर्थात 
नपुंसकता,एड्स ,कैंसर और बुढापा उन्हें छू नहीं सकता जो इन रसायन का प्रयोग करेंगे .
मतलब देवताओं का सोमरस हैं ये रसायन.


बुधवार, 13 अगस्त 2014

घर में बच्चे हैं तो अतीस जरूर होना चाहिए




अतीस एक ऎसी जड़ी बूटी  है जो हर उस घर में होनी चाहिए जहां १० साल तक के बच्चे हों।इसके पौधे ३ फिट तक ऊँचे होते हैं,सुन्दर फूल लगते हैं। इसे संस्कृत में अतिविषा या भंगुरा ,बंगाली में आतीच, तेलगू में अतिवस ,मराठी में अतिविस , मारवाड़ी में अतीस,पंजाबी में भी अतीस पर गुजराती में अतवस कहते हैं।
इसका वैज्ञानिक नाम है- Aconitum heterophyllum

इसके कांड में जिन रासायनिक तत्वों की पहचान हुई है उनके नाम हैं-  एकोनाइटिक एसिड ,टैनिक एसिड, पामितिक एसिड, स्टीयरिक ग्लीसराइड्स, ग्लूकोज, गोंद  और फैट।


यह बहुत सारे रोगों को ठीक करती है।जिनमे यह रोग प्रमुख हैं- पेट में कीड़े ,दस्त, बुखार, अरुचि, मंदाग्नि ,श्वास रोग, खांसी, यकृत  रोग,बवासीर, वमन, जहर का प्रभाव, न उतरने वाला बुखार, पाचन क्रिया, शरीर में दर्द, सूजन, आंव।

बुखार में- 
२ ग्राम अतीस का चूर्ण हर चार घंटे पर पानी से निगलवा दीजिये या शहद से चटा  दीजिये। 
या 
दो ग्राम अतीस का चूर्ण एक ग्राम छोटी इलायची का चूर्ण और एक ही ग्राम वंश लोचन के चूर्ण के साथ मिला कर दिन  में दो बार लीजिये। 


पेट में कीड़े -
अतीस और वायविडंग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाएं और शहद मिला कर चाटें। 

बच्चों को-
बच्चों को कोई भी रोग हो खांसी ,बुखार,उलटी,दस्त, पेट में कीड़े , सांस चलना, भूख न लगना आदि सभी में आप केवल अतीस का चूर्ण शहद में मिलाकर दे सकते हैं। ५ साल तक के बच्चो को दो ग्राम उसके ऊपर दस साल तक के बच्चों को ३ या चार ग्राम चूर्ण काफी होगा। 
बच्चों की सच्ची दोस्त है ये जड़ी। बाज़ार में बच्चों के लिए जो भी आयुर्वेदिक टॉनिक उपलब्ध हैं ,सबमे अतीस जरूर होती है ,चाहे दांत निकलने के समय दी जाने वाली दवा हो या कोई जन्मघूंटी। 

शरीर में कफ वात और पित्त का अनुपात सही रखने के लिए सप्ताह में दो दिन ४-४ ग्राम अतीस का चूर्ण अवश्य पानी से निगल लिया कीजिए. 

बहुत कड़वी होती है ये जड़ी ,ये शरीर में किसी भी प्रकार का विष  हो तो उसको ख़त्म कर देती है। इसलीये संस्कृत में इसको अतिविषा के नाम से जानते हैं। 







इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 8 जुलाई 2014

गर्भस्थ शिशुओं की रक्षक है लौकी


                                        

लौकी इकलौती ऎसी सब्जी है जिसमें दूध के सारे गुण पाए जाते हैं। मराठी और गुजराती में तो इसे दुधी और दुध्या कह कर ही पुकारा जाता है। जैसे दूध ज्यादा पी लेने पर कफ की अधिकता हो जाने से शरीर भारी हो जाता है ठीक वैसे ही ज्यादा लौकी खाने से भी कफ बढ़ जाता है और शरीर भारी हो जाता है। हिन्दी में लौकी ,लौका, लौया, कद्दू, मीठा कद्दू, घीया, मीठी तुम्बी, राम तोरई आदि नामो से इसको पुकारते हैं। संस्कृत में-तुम्बी ,अलाबू या मिष्ट कहते हैं। बंगाली में कोदू,लौऊ कहते हैं। मराठी में भोप्ला भी कहते हैं। अंग्रेजी में व्हाईट पम्पकिन या स्वीट गार्ड और वैज्ञानिक भाषा में-कुकुरबीटा लेजेनेरिया कहा जाता है। 

लेकिन इस सबसे सस्ती सब्जी से आप कई सारी मुश्किल बीमारियों का सफलता पूर्वक इलाज कर सकते हैं। देखिये कैसे -------------
** बहुत छोटे बच्चे कभी कभी बुखार की अधिकता में झटका लेने लगते हैं। जिसका ९०% परिणाम यह होता है कि बुखार की गरमी सिर में चढ़ जाने से दिमाग कमजोर हो जाता है और भी कई मुश्किलें आ सकती हैं जैसे बच्चा बेहोश हो सकता है या कोमा में जा सकता है। ऎसी दशा में पहले से सावधान रहिये ,यदि बच्चे को बुखार इतना तेज हो गया है कि कुछ भी खिलने -पिलाने पर उलटी हो जा रही है तो तुरंत लौकी को कद्दूकस  करके बच्चे के माथे पर मोटा लेप रखिये ,१०- १० मिनट पर ३ बार बदल दीजिए ,इससे बुखार कि गर्मी मस्तक में नहीं चढेगी। किसी को भी अगर बुखार तेज हो तो जरूर माथे  पर लौकी कद्दूकस करके लेप कर दीजिए ,यह बुखार में काफी राहत देती है।  
** टी बी या राज यक्ष्मा या क्षय रोग कितनी खतनाक बीमारी है मगर लौकी से ये हार मान जाती है। ताजा लौकी पर जौ के आटे का लेप कीजिए फिर उसे कंडे की आग में भूनिये इतना भूनिये कि पानी रिसने लगे ,अब इसे किसी मुलायम कपडे में रख के निचोड़ लीजिए,  यह अमृत रस रोगी को आधा आधा सुबह शाम पिला दीजिए ,अगले दिन फिर नई लौकी के साथ यही काम कीजिए ,एक माह में ही बीमारी खत्म होने के रास्ते पर होगी ,२ माह पिला देंगे तो बिमारी जड़  से खत्म।  
** लौकी के ताजा पत्ते पीस कर बवासीर के मस्सों पर लेप करने से मस्से जड़ से खत्म हो जाते हैं और घाव भी भर जाता है। 
**गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान है लौकी। जिन महिलाओं को अक्सर गर्भ पात हो जाता है वे तो लौकी को कद्दूकस करके उसमे मिश्री मिला कर रोज खाया करें। जिन महिलाओं को सिर्फ लडकियां ही पैदा हो रही  हैं वे दूसरे और तीसरे महीने में लौकी कद्दूकस करके मिश्री मिला कर खाएं यदि लौकी में बीज हो तो उसे भी चबा चबा कर कहा लें ,फेंके नहीं। शुरू के तीन -चार महीनो तक लौकी मिश्री खाने से शिशु गोरे रंग का पैदा होगा। इससे महिलाओं को कब्ज भी नहीं होगा , गर्भ का तो पोषण होगा ही। लौकी की सब्जी गर्भस्थ शिशुओ को बहुत फायदा करती है। 
**हार्ट पेशेंट को लौकी का हलवा बहुत फायदा करता है या फिर उन्हें लौकी उबाल कर बस जीरा ,हल्दी,धनिया पावडर मिला कर पिलायें। 

इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 23 जून 2014

आप बैंगन क्यों खाते हैं ?

कफ वात हरं तिक्तं रोचनं कटुकं लघु 
                      वार्ताकं दीपनं प्रोक्तम् जीर्ण सक्षार पित्तलम्।
 . 
यह सुश्रुत संहिता में लिखा है। इसका अर्थ है कि  बैंगन कफनाशक, वातनाशक, तिक्त, रुचिकर, कटु, हल्का और भूख  बढ़ाने वाला होता है।
जबकि मैं अक्सर लोगों को बैंगन खाने से मना करती हूँ क्योंकि इससे खुजली ,स्किन डीजीज और कब्ज की बीमारी हो जाती है बैंगन के बीज पित्तकारक होते हैं। बैंगन जितने कोमल होते हैं उतने ही गुणकारी और शक्तिदायक होते हैं। बैंगन का भुर्ता पाचन शक्ति बढ़ाता है।

बैंगन की सब्जी बनाते समय यदि तीन बातों का ध्यान रखिये तो सब्जी आपको फायदा ही करेगी- प्रथम -बैंगन की ढेंप (ताज) भी सब्जी में डाला जाये। द्वितीय - सब्जी में तेल भरपूर मात्रा में हो। तृतीय- सब्जी में हींग जरूर डाली जाए। साथ ही बैंगन की सब्जी केवल ठंड में खाई जाए अर्थात बैगन खाने का उपयुक्त समय दीपावली से होली तक है। 

**बुखार से पीड़ित व्यक्ति को बैंगन नहीं खाना चाहिए। 
**अनिद्रा के रोगी को भी बैंगन नहीं खाना चाहिए। 
**किसी भी दिमागी बिमारी के रोगी को भी  बैंगन नहीं खाना चाहिए। (मानसिक तनाव, उन्माद आदि रोग में )  
**बवासीर के रोगी को तो कतई बैगन नहीं खाना चाहिए। 
** त्वचा रोग ,एलर्जी आदि में भी बैगन नहीं खाना चाहिए। 
**एसिडिटी हो तो बैगन की तरफ देखिये भी नहीं। 
** गर्भवती महिलायें भी बैगन से परहेज करें। 

बैगन की तो कई किस्में पाई जाती हैं  लेकिन काले और गोल बैगन जो बीज रहित हों ,सबसे ज्यादा गुणकारी होते हैं। बीज वाले बैगन कभी नहीं खाने चाहिए। ये पित्त बढ़ाते हैं।  छोटे छोटे कोमल बैगन पित्त और कफ को दूर करते हैं। 
बैगन में विटामिन ए ,बी ,सी ,आयरन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन भरपूर पाये जाते हैं। 
---यदि लीवर और तिल्ली बढ़ गयी हो तो कोमल बैगन आग में भून कर पुराना  गुड मिला कर खाएं, सुबह खाली पेट। एक माह लगातार खाए ,लाभ दिखाई देगा। 
---शरीर में हवा का गोला घूमता हुआ सा महसूस होता हो तो बैगन का सूप हींग और लहसुन मिला कर बनाएं और रोजाना पीयें। 
---बैगन मूत्रल है। इसकी सब्जी रोजाना खाने से ज्यादा मूत्र होगा और किडनी और मूत्राशय में बनने वाली पथरी गल कर बाहर निकल जाएगी। 
---अगर आपको खुल कर भूख नहीं लगती है तो बैंगन और टमाटर का सूप बनाकर लगातार २१ दिन जरूर पीयें ,भूख खुल कर लगने लगेगी। 
---आपको नींद नहीं आती है टोबैगन आग में भूनिये ,छिलका उतारिये। बचे हुए गूदे में शहद मिलाकर शाम के समय खा लीजिये। लगातार २१ दिन खाएं।  नींद अच्छी और गहरी आयेगी। रक्तचाप सामान्य रहेगा। 

                                              

 ---खांसी बहुत ज्यादा परेशान कर रही है तो बैगन को पानी में उबाल कर सूप बनाये फिर इस सूप में हल्दी और मिश्री मिला कर पी जाएँ ,जल्दी आराम मिलेगा। 
---बैगन की सब्जी हार्ट को भी मजबूती  प्रदान करती है। 
---कब्जियत दूर करने के लिए बैगन और पालक का सूप पीजिये ,सेंधा नमक मिला कर। 
---आपकी हथेलियाँ और पैर के तलुए पसीने से भीगे रहते हों तो उनपर बैगन का रस मल लीजिये। 
---बैगन के बीज पेट के कीड़ों को खत्म करते हैं। बीजो को शहद मिलकर खा लीजिये। 
---बवासीर के मस्सो पर बैगन का ढेप पीस कर लगा दीजिये ,अद्भुत आराम मिलेगा। 




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 20 मई 2014

नया शोध



सर में चोट लगने की वजह से ८०% लोगो की सूंघने की क्षमता  कम हो जाती है या ख़त्म हो जाती है ,४० % लोगो की स्वाद कलिकाएँ प्रभावित होती हैं ,५०% लोग याददाश्त कम हो जाने के शिकार होते हैं ,३५% लोगों की सुनने की क्षमता काम हो जाती है ,२% लोगों की बोलने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है. 
इन समस्याओं से लोगो को मुक्ति दिलाने के लिए एक जड़ी पर शोध कर रही हूँ ,६०% कामयाबी मिल चुकी है किन्तु मुझे १००% सकारात्मक परिणाम चाहिए. देखिये अभी कितना समय और धन खर्च होता है। 
लेकिन बुजुर्गों से आशीर्वाद की अपेक्षा है और सभी से निवेदन है क़ि  मेरी सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना कीजिए।  


शनिवार, 19 अप्रैल 2014

लंबा जीवन चाहते हैं तो आलू खाएं



जो पाठक गण मुझे निजी तौर पर जानते हैं वे मुझको माफ करें क्योंकि मैं आज आलू खिलाने जा रही हूँ आप लोगों को। 
आलू मुझे बेहद पसंद है ,मेरा काम रोटी चावल के बिना चल सकता है मगर आलू के बिना नहीं. बहुतेरी नसीहतें मिली मुझको कि इतना आलू मत खाओ मोटी हो जाओगी .मोटा होना कौन कहे, आज भी वैसी ही दुबली हूँ जैसी २० साल पहले थी.इसलिए अब आप भी मेरी बात मानिए और आज ही से आलू ज्यादा खाना शुरू कर दीजिए.यकीन मानिए बहुत ताकत देता है और आपकी रक्त नलिकाओ को हमेशा लचीला बनाए रखता है जिससे ब्लड  प्रेशर नार्मल बना रहेगा और हार्ट अटैक का कोई ख़तरा नहीं होगा . 



अगर आप एसिडिटी से त्रस्त हैं तो खूब आलू खाइए ये क्षारीय होता है और गले की जलन में बहुत फायदा पहुंचाता है .डकारें भी कम कर देता है। 
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अगर यूरीन में किरीटनीन बढ़ गया है तो आलू का रस निकाल कर पीजिए.आलू का रस नकसीर में और शरीर में कहीं भी रक्तस्राव हो रहा हो तो भी फायदा करता है.कच्चे आलू का रस  २-२ चम्मच दिन में चार बार पीजिए.मासपेशियां भी मजबूत होंगी, नाडियाँ भी मजबूत होंगी स्नायूतंत्र की विकृतियाँ दूर होंगी.घमौरी, फुंसी, खुजली जैसे त्वचा रोग भी दूर हो जायेंगे.हृदय की जलन भी कम होती है ,जिनके शरीर में विटामिन बी-१२ नहीं बनता ,उनके लिए तो यह अमृत है. आलू कद्दूकस  करके १० मिनट बाद निचोड़ लीजिए, जो पानी निकले वही आलू का रस है ,जो लुगदी बचे उसकी नमकीन भी तल सकते हैं या पराठे में भर सकते हैं.  

आलू गुर्दे की पथरी को तोड़ कर गुर्दे की रिपेयरिंग भी करता है। आलू में पोटेशियम  होता है,जो पथरी को तोड़ देता है और फिर पथरी बनने नहीं देता ,अतिरिक्त सोडियम की मात्रा को शरीर से बाहर निकाल देता है। आलू ताकत भी देता है और जल्दी पच भी जाता है। आलू में प्रोटीन की बहुत मात्रा  पायी जाती है.जो मासपेशियों को भरती है। आलू में पाया जाने वाला ग्लूकोज शरीर को अद्भुत गति प्रदान करता है। और कार्बोहाइड्रेट तो शरीर की टूटी फूटी कोशिकाओं का निर्माण करता ही है। 

आलू सौन्दर्यवर्धक भी है। आखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं तो रात में आलू का पेस्ट आखों के चारो ओर लगा कर सोयें। आलू आखों के लिए बहुत अच्छा काजल का काम करता है अतः १-२ बूँद रस आँखों में चला जाए तो भी कोई हर्ज नहीं ,आँखों की  सफाई होगी, रोशनी बढ़ेगी, मोतियाबिंद का जाला कट जाएगा ,फूला होगा तो वह भी कट जाएगा. एक माह तक पेस्ट लगाने से कितने ही ज्यादा काले घेरे होंगे तो खत्म हो जायेंगे.इस पेस्ट को झाइयों ,झुर्रियों ,दाग ,धब्बे पर भी लगा सकते हैं। पूरे चेहरे पर ही लगाए तो साँवला चेहरा भी गोरा हो जाएगा। धूप से अगर झुलस गया होगा तो वह भी ठीक हो जाएगा। 

गठिया या हड्डी के किसी भी तरह के दर्द में भुना हुआ आलू फायदा करता है ,हड्डी बढ़ गयी हो तो आलू भून कर फिर छिलिये और सेंधा नमक तथा काली मिर्च छिड़क के खाते रहिये। ३-४ माह में रोग जड़ से खत्म हो जाएगा ,६ माह भी लग सकते हैं। 

हाई ब्लड प्रेशर  के रोगियों को आलू उबालकर खाना चाहिए जिससे उनकी रक्त नलिकाए पर्याप्त लचीली  हो जाए तथा बी पी सामान्य बना रहे.
मोटा होने के लिए आलू के रस में शहद मिला कर पीजिए.बच्चों को पिलाइए.
महिलायें आलू खाती रहें तो कमर दर्द से बची रहेंगी। 
कुल मिला कर - आलू जिंदाबाद  




न आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा