आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

आयुर्वेद क्या है

            आयुर्वेद का अर्थ है आयु की रक्षा करने का ज्ञान, प्राकृतिक आपदाओं जैसे आंधी तूफ़ान ,भूचाल,अकाल, लू, बर्फ, पानी आदि में भी शरीर को चैतन्य बनाये रखने का ज्ञान।वर्ष में 6 ऋतुएँ होती है, प्रत्येक ऋतु में उचित खान पान और जड़ी बुटियों की सहायता से शरीर की जीवनी शक्ति को यथावत रखने का ज्ञान ही आयुर्वेद है।
बड़े भाग मानुष तन पावा।
यह पंक्ति मानुष तन की वास्तविक शक्ति को परिभाषित करती है।इसी तन की सहायता से तन में निवास करने वाली आत्मा तपस्या की पराकाष्ठा को पा सकती है।अन्य किसी जीव जंतु वनस्पति ,कीट, पक्षी आदि के शरीर में रह कर तपस्या संभव नहीं क्योंकि मस्तिष्क सिर्फ मनुष्य को ही मिला है।तपस्या ही वह ज्ञान है जिसकी तलाश सदियों से मनुष्य करता आया है।इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए शरीर में ताकत तो जरुरी है क्योंकि 
भूखे भजन न होय गोपाला
शरीर कही तकलीफ में होगा तो आप भजन तो नहीं कर पाएंगे।कही दर्द हो रहा होगा तो फ़िल्म देखना ,घूमना टहलना भी अच्छा नहीं लगेगा।तप तो दूर की बात है।
आज हम जानते है  कि सदियों पहले युद्ध होते थे, घोड़े हाथी, तलवार, फरसे, धनुष, कटार प्रयोग होते थे। दिन ढलते ही युद्ध रुक जाते थे।फिर घायल सैनिकों और जानवरों को रात ही रात में उपचार करके अगले दिन के युद्ध के लिए स्वस्थ कर दिया जाता था।सोचिये कैसी जड़ी बुटियों की ताकत थी कि गहरे घाव सुबह तक भर जाते थे,टूटी हड्डियाँ ठीक हो जाती थीं।उन्ही जड़ी बुटियों की धरा पर आज हम पूरा जीवन टैबलेट और कैप्सूलों के सहारे काट रहे हैं।दर्द में जी रहे हैं।100 लोगों से पूछ लीजिये, एक भी ऐसा नहीं मिलेगा जिसको एक माह के अंदर कोई दवा न खानी पड़ी हो।
हम आयुर्वेद को भुला बैठे हैं, जीवन का उद्देश्य भुला बैठे हैं ।इसीलिए दुखी हैं।रोज रामचरित मानस के पाठ होते हैं, हजारों लोग प्रवचन की दूकान खोले बैठे हैं लेकिन किसी की निगाह इस पंक्ति पर नहीं जाती कि आखिर मानुष तन को दुर्लभ श्रेणी क्यों दी गयी है, पुराणों में ?
हजार वर्ष पूर्व तक भी आयुर्वेद जिंदगी में शामिल था।राजा महाराजा आकर्षक व्यक्तित्व और बलिष्ठ शरीर के स्वामी होते थे और लंबी आयु जीते थे।आम मनुष्य भी स्वस्थ और बलिष्ठ होते थे।निरोगी होते थे।वे समयानुसार ऋतुओ के अनुसार जड़ी बुटियों का सेवन करते थे।रोगी और निर्बल कोई होता ही नहीं था। आज हम रोगी होने का इन्तजार करते हैं फिर एलोपैथ ,होमियोपैथ, नेचुरोपैथ ,झाड़ फूक, आदि सब ट्राई करके भी स्वस्थ नहीं होते हैं तो मरता क्या न करता वाली मानसिकता में आकर आयुर्वेद के विषय में सोचते हैं कि लाओ इसको भी ट्राई कर लें।

शनिवार, 14 जनवरी 2017

टिप्स जो व्हाट्सऐप पर मैंने भेजी

पूरे देश में वायरल फैला है ,पहले जुकाम होता है फिर बुखार हो जाता है जो दवाओं से कुछ ही देर के लिए उतरता है फिर वैसे ही हो जाता है ।
इसका सबसे बढ़िया उपाय है कि आप दालचीनी का काढ़ा सुबह दोपहर शाम पीजिये। कम से कम 4 ग्राम दालचीनी चूर्ण को 150 ग्राम पानी में 10 मिनट तक उबालिये।फिर बिना छाने पी लीजिये।एक बार में। फिर दोपहर को भी और शाम को भी।
किडनी भिन्न भिन्न कारणों से डैमेज होती है और कई जानलेवा बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इस मौसम में मूली और शलजम प्रचुर मात्रा में बाजार में है।आप सुबह नाश्ते से पहले 50 ग्राम मूली का रस और 50 ग्राम शलजम का रस मिला कर पी लें तो किडनी का डैमेज रिपेयर हो सकता है।मूली पत्ते सहित पीस कर रस निकालें।कम से कम 21 दिनों तक जरूर पीयें।
भूख बढ़ाने के लिए
दालचीनी, इलायची, जीरा, जवाखार, सोंठ 50-50 ग्राम  लीजिये मिला कर पीस लीजिये।रोज 3 ग्राम चूर्ण सुबह पानी से निगल लीजिये।
पाचनशक्ति भी बढ़ेगी
भूख भी।
आमाशय शुद्ध और पावरफुल हो जाएगा।
अर्जुन विलम्ब पातक होगा ।
शैथिल्य प्राणघातक होगा ।।
             यह पक्तियां रोग के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक हैं , क्योंकि रोग भले ही कैंसर, एड्स, वायरल जैसे जानलेवा हों, अगर शुरू होते ही इनका इलाज हो तो ख़त्म हो जाते हैं।किन्तु हम भारतीयों को रोग पालने की आदत है, इसी कारण बहुत छोटी छोटी बीमारियां जीवन भर के लिए अभिशाप बन जाती हैं।
            खैर दीपावली के इस मौसम में शरीर की भलाई के लिए जिमीकन्द/ओल/सूरन का प्रयोग सब्जी, भर्ता या अचार के रूप में जरूर करें।
यह बवासीर, कोलायटिस, भगंदर की बहुत अच्छी दवा है।लगातार एक माह प्रयोग कीजिए।
बाल की समस्या हो तो आधा किलो सरसो का तेल लीजिये उसमे 150 ग्राम सूखे आवले के टुकड़े डाल दीजिये, 3 या4 सूखे गुलाब के फूल डाल दीजिये। 7 दिन तक बोतल बंद करके धुप में रख दीजिये।रोज एक बार तेजी से बोतल हिला दीजिये जिससे सारी सामग्रियां ऊपर नीचे हो जाएँ।आठवें दिन से आप यह तेल सिर में लगा सकते हैं।आंवला आदि नीचे बैठ जाएगा ऊपर से तेल लगाते रहिये।आंवला बाद में खाने के काम आ जाएगा।
आँखों की किसी भी बिमारी के लिए ---
एक सेब आग पर भूनिये, बैंगन की तरह।
फिर उसको निचोड़ के रस पी जाइए और गूदे को दोनों आँखों पर लेप करके आधा घण्टा छोड़ दीजिये।
5 दिन लगातार यह काम कीजिए।आँखों की 90 %बीमारियां खत्म हो जाएंगी।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

पेट के रोग और सरसो का तेल

इसको ध्यान से देखिये
एक छोटा सा वीडियो शूट हुआ है देखियेगा जरूर।
https://youtu.be/yeMW6qbXv7E

सोमवार, 28 नवंबर 2016

भिलावा और भिलावा रसायन

भिलावा कोसंस्कृत में भल्लातक कहते हैं और वैज्ञानिक भाषा में Semicarpus anacardium ।इसका पेड़ 30 फुट तक ऊँचा देखा गया है  ।इस पेड़ में हरे और पीले दो तरह के फूल खिलते हैं जिसमे से एक नर फूल होता है और दूसरा मादा।
भिलावा के फल में दो तरह का तेल पाया जाता है।इसकी गिरी के अंदर मीठा तेल और फल के रस में काले रंग का विषैला तेल।यह तेल शरीर में कहीं भी लग जाए तो छाले पड़ जाते है।
भिलावा एक ऐसा फल है जिसमें कैंसर को जड़ से खतम कर देने की ताकत है ।
यह फल कफनाशक, पित्त नाशक और वातनाशक भी है। यह हृदय रोग, आमाशय रोग, दन्त रोग और पुराने बुखार को भी ठीक करता है।यह सांप के जहर को मारता है। यह चर्म रोग को भी सही करता है।कोई घाव सड़ गया हो तो इसी भिलावे के तेल से वह सही हो जाता है और अंग काटने की नौबत नहीं आती।तिल्ली या लीवर बढ़ गया हो तो भिलावा रामबाण औषध है।यदि कफ के साथ रक्त आ रहा है तो फौरन भिलावे की शरण में जाएँ।
इसके इतने सारे फायदे हैं किंतु जैसे मैंने अन्य लेखों म यह बताया है कि इसकी दवाएं किस तरह से बनाएं ,उस तरह भिलावे की किसी दवा की निर्माण विधि मैं नहीं लिख सकती क्योंकि यह बहुत खतरनाक चीज है ।इसका तेल ज़रा सा भी शरीर मे कहीं पर लग जाए तो छाले और जलन महीनो तक परेशान करती है।
भिलावा रसायन के फायदे जो अगस्त्य मुनि ने बताये हैं और भैषज्य रत्नावली में उद्धृत हैं-------
इस रसायन के प्रताप से रोगी हाथी के समान बलवान, घोड़े के समान वेगवान और बृहस्पति से भी अधिक बुद्धिमान हो जाता है।बड़े बड़े ग्रन्थ को समझ लेता है और याद कर लेता है।500 वर्ष तक जीता है।इससे सभी कुष्ठ रोग अवश्य दूर हो जाते हैं।मनुष्य सुवर्ण के समान कांतिमान हो जाता है।टूटे दांत निकल आते हैं और सफ़ेद बाल भी काले हो जाते हैं, मोर के समान उत्तम स्वर हो जाता है।प्रसन्न इन्द्रियों वाला और विशेष प्रतिभाशाली हो जाता है।नवयौवन चिरस्थायी हो जाता है।
मेरा अनुभव यह कहता है कि प्रत्यइठंड के मौसम मे 3 माह यदि भिलावा रसायन खा लिया जाए तो आप अपने शरीर के साथ वास्तविक न्याय करेंगे।शरीर हमेशा खिला खिला सा रहेगा।अनेक छोटी छोटी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी।इम्युनिटी तो बढ़ेगी ही।
मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाको में इसका बहुत सेवन होता है। आदिवासी लोग इसको भून कर इसके अंदर की गिरी खाते है।पर इसकी एक गिरी एक दिन मे पचना भी मुशकील होता है। इसे खाने का आसान तरीका भिलावा रसायन ही है जो सुरक्षित है और स्वादिष्ट भी।
म्र को बहुत तेजी से थामता है भिलावा रसायन।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

कोलायटिस, पाइल्स

अर्जुन विलम्ब पातक होगा ।
शैथिल्य प्राणघातक होगा ।।
             यह पक्तियां रोग के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक हैं , क्योंकि रोग भले ही कैंसर, एड्स, वायरल जैसे जानलेवा हों, अगर शुरू होते ही इनका इलाज हो तो ख़त्म हो जाते हैं।किन्तु हम भारतीयों को रोग पालने की आदत है, इसी कारण बहुत छोटी छोटी बीमारियां जीवन भर के लिए अभिशाप बन जाती हैं। जैसे साधारण सी सर्दी खांसी बाद में दमबन जाती है
            खैर दीपावली के इस मौसम में शरीर की भलाई के लिए जिमीकन्द/ओल/सूरन का प्रयोग सब्जी, भर्ता या अचार के रूप में जरूर करें।
यह बवासीर, कोलायटिस, भगंदर की बहुत अच्छी दवा है।लगातार एक माह प्रयोग कीजिए।

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016

बालों एवं मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए

बाल की समस्या हो तो आधा किलो सरसो का तेल लीजिये उसमे 150 ग्राम सूखे आवले के टुकड़े डाल दीजिये, 3 या4 सूखे गुलाब के फूल डाल दीजिये। 7 दिन तक बोतल बंद करके धुप में रख दीजिये।रोज एक बार तेजी से बोतल हिला दीजिये जिससे सारी सामग्रियां ऊपर नीचे हो जाएँ।आठवें दिन से आप यह तेल सिर में लगा सकते हैं।आंवला आदि नीचे बैठ जाएगा ऊपर से तेल लगाते रहिये।आंवला बाद में खाने के काम आ जाएगा।

बुधवार, 21 सितंबर 2016

डेंगू, चिकनगुनिया

डेंगू और चिकनगुनिया से बचने के लिए चार चीजे जरूर घर में रखिये
कलौंजी गुड़ अजवाइन दालचीनी
साथ में आलू भी।
किसी को भी बुखार पैरासिटामॉल खाने से केवल 4 घंटे के लिए उतर रहा हो तो फ़ौरन मुझे फोन कीजिये। 9889478084, 8604992545
या निम्नलिखित तरीका अप्लाई कीजिये।
250 ग्राम कलौंजी को पीस लीजिये उसमें 250 या 300 ग्राम गुड़ मिला दीजिये।अगर लसलसा पन आ गया है तो सामान्य आकार का लड्डू बना लीजिये।मरीज को एक एक लड्डू सुबह दोपहर शाम खाना है कम से कम 4 दिन लगातार। 4 दिन बाद दिन में बस एक लड्डू खाना है।
यही एक लड्डू दिन में एक बार मरीज के बाक़ी घर के लोग खा लें तो उनको बुखार नहीं होगा।
एक चम्मच अजवाइन और एक चम्मच दालचीनी को 300 ग्राम पानी में 15 मिनट उबालना है इसमें भी गुड़ डालना है।अगर मिल जाएँ तो तुलसी के 20 या 25 पत्ते और 10 दाने काली मिर्च भी। यह काढ़ा छान कर आधा आधा दिन में 2 बार पीना है चाय की तरह।
मरीज के घर के लोग दिन में बस 1 बार पिएंगे।
बुखार उतरने के बाद मरीज को आलू कम से कम 250 ग्राम उबाल कर काट कर उसमें नमक निम्बू भुना जीरा काली मिर्च चाट मसाला आदि मिला कर खिलाएं।इस चाट में कोई तेल या लाल मिर्च नहीं डालनी।
अगर मिल जाए तो गिलोय का काढ़ा भी सुबह शाम पीयें।
ये सारे काम सिर्फ एक हफ्ते ही करने हैं।लीवर भी सही होगा।ताकत भी आएगी और बुखार का वायरस जड़ से ख़त्म हो जाएगा।चिकनगुनिया के बाद शरीर की हड्डियों में दर्द भी नहीं होगा न ही हड्डियाँ टेढ़ी होंगी।

रविवार, 28 अगस्त 2016

पानी पीने का तरीका


जब मैं किसी से कहती हूँ कि पानी ज्यादा पिया करो तो मुझे सुनने को मिलता है कि हम तो सारे दिन पानी पीते हैं और खूब पानी पीते हैं।
मगर सत्यता बिलकुल विपरीत होती है।
आप एक एक घूंट पानी सारे दिन पीते रहें तो बेकार है ऐसे पानी पीना।एक बार में कम से कम 200 ग्राम पानी पीजिये तो किडनी पर प्रेशर पड़ेगा और वो काम करेगी, तब मूत्राशय पर प्रेशर आएगा और बढ़िया यूरीन डिस्चार्ज होगा।फ़ोर्स से होगा और पथरी नहीं बनने पाएगी।अगर होगी तो यूरीन के फ़ोर्स के साथ बाहर निकल जायेगी।
एक एक घूंट पानी पीने से न किडनी की सफाई हो पाती है न मूत्राशय की।
नतीजा आपकी किडनी डैमेज होने लगती है।यह रोग बहुत फैला है इस समय।
सावधान हो जाएँ।

शनिवार, 27 अगस्त 2016

पीने का औषधीय पानी


हर घर में पेट की बिमारी है, एक सरल काम आप कर सकते हैं, जिससे लीवर, किडनी दोनों ही सही रहेंगे ---
एक घड़े में या किसी भी उस बर्तन में जिसमें आप पीने का पानी रखते हैं, उसमें एक चम्मच अजवाइन एक कपडे की पोटली में बाँध कर डाल दीजिये।1 बार की पोटली 3 दिन रहने दीजिये रोज उसी बर्तन में और पानी भर लीजिये, 3 दिन बाद पोटली बदलनी है।फिर नयी पोटली में  एक चम्मच जीरा रख कर पीने के पानी में डाल दीजिये।3 दिन बाद नई पोटली में मेथी  फिर ३ दिन बाद सौंफ।एक चम्मच में १० ग्राम सामान आना  चाहिए।
इस क्रिया से पानी शुद्ध भी होगा और दवा के गुण भी आ जाएंगे। यह पानी पेट की सारी परेशानियो से आपको मुक्त कर देगा।

शनिवार, 18 जून 2016

रेप केसेस और अपराध के पीछे का सच


मैं बहुत दिनों  अपने पाठकों से इस विषय पर बात करने के लिए सोच रही थी कि आज एक बहाना भी मिल गया। आज हिन्दुस्तान के  सम्पादकीय पेज पर राजेन्द्र धोड़पकर जी का लेख निकला है कि -"यह क्रूरता कहाँ से आती है " . इस विषय पर जब भी समाज के लोगों के बीच बहस होती है और जो निदान निकाला जाता है उनको सुनकर ऐसा ही  लगता है जैसे किसी पेड़ की हरियाली लौटाने के लिए उसकी ऊपरी पत्तियों और टहनियों पर पानी डाला जा रहा है ,जड़ों की तरफ कोई देख ही नहीं रहा। आइये देखते हैं कि इसकी जड़ें कहाँ हैं ---

वैसे आपको यह जान कर  आश्चर्य  होगा  कि इसके लिए हम ही  जिम्मेदार हैं।
पहला  कारण  -- जब भी कोई  नारी गर्भवती होती  है तो आयुर्वेद में उससे शारीरिक सम्बन्ध  बनाने की स्पष्ट मनाही की जाती है।
उसको अत्यधिक  आदर और सुख देने की बात कही जाती है। मगर ऐसा  होता नहीं। इसका बिलकुल विपरीत होता है।पुराणों में अनेक कथाओं में आपने पढ़ा होगा कि गर्भवती नारी को देवता खुद  प्रणाम करते हैं।और समाज में ??  गर्भवती नारी का मन शिशु से पूरी तरह जुड़ चुका होता है ,उसके द्वारा महसूस किया गया  सुख  दुःख और प्रत्येक स्वाद, एहसास और ज्ञान गर्भस्थ शिशु को मिलता है। अभिमन्यु की कथा तो आपको याद ही होगी। आप  जब अपनी गर्भवती पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं तो वस्तुतः यह नैतिकता  के विरुद्ध होता है क्योंकि आप पत्नी के साथ  नहीं वरन गर्भस्थ शिशु के साथ सम्बन्ध बना रहे  होते हैं. पत्नी का मन और तन दोनों ही  न ऐसे सम्बन्ध की चाह रखता है ,न ही अनुकूल होता है। इस सम्बन्ध का  बैड इफेक्ट शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। संयम और नैतिकता  कंट्रोल करने वाला हारमोन यहीं डिसबैलेंस हो  जाता  है। शिशु को पहली शिक्षा  ही शारीरिक आकर्षण और सम्बन्ध की मिलती है। 

दूसरा कारण --- जब भी नारी गर्भवती होती है तो उसको छोटी -बड़ी अनेक दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। फिर हर दिक्कत के लिए हम इंजेक्शन ,टैबलेट आदि अंग्रेजी  दवाओं का सहारा लेते हैं। जिनके  साइड इफेक्ट जरूर होते हैं। जबकि ये सारी दिक्कतें रसोई में मौजूद चीजों से ही दूर हो सकती हैं जिनका कोई साइड  इफेक्ट नहीं होता। ये अंग्रेजी दवाएं गर्भस्थ शिशु  शारीरिक ,मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए  जिन महिलाओं ने गर्भवस्था में  पेट दर्द और सर दर्द के लिए दवाएं ज्यादा  ली होती हैं  उनके बच्चों के बाल कम उम्र में ही सफ़ेद होने लगते हैं और आई साइट कमजोर हो जाती  है। किसी किसी बालक को दोनों ही समस्याएं आती हैं। इम्युनिटी तो सभी बच्चों की  जरूर कम हो  जाती है ,नतीजा ये होता है कि पैदाइश के दो दिन बाद से ही डॉक्टर्स और हॉस्पिटल के चक्कर लगने शुरू हो जाते हैं। फिर इंजेक्शन, सीरप और टैबलेट का सिलसिला शुरू हो जाता है। नवजात शिशु को 6 माह तक माता के दूध के सिवा सारी चीजें देने की मनाही होती है और  उस नाजुक कोमल शरीर में भारी भारी केमिकल एंटी बायोटिक रूप में पहुँचने लगते हैं। जो शिशु में  हार्मोनल डिसबैलेंस पैदा करते हैं और बच्चे समय  से पहले ही जवान होने लगते हैं। हम लोग सारा दोष इंटरनेट ,मूवीज,और टी वी के सिर मढ़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। जबकि छोटे बच्चों के ज्यादातर  रोग तो मालिश ,सिकाई ,काढ़े  ही दूर हो जाते हैं। अनावश्यक रूप  से शरीर में पहुंची  ये दवाएं बच्चों की एकाग्रता छीन लेती हैं ,धैर्य धारण करने की क्षमता खत्म कर देती हैं। उत्तेजना और क्रोध बढ़ा भी देती हैं। सोचिये हम किस तरह के नागरिक  तैयार कर रहे  हैं। 

तीसरा कारण -- गर्भस्थ शिशु माता की संवेदनाओं को ग्रहण करता है ,इसीलिये गर्भवती को खुश रखने को कहा गया है ,उसके अच्छे  खाने पीने ,घूमने,अच्छे  साहित्य पढ़ने और सत्संग पर जोर दिया जाता है ,जिससे शिशु शांत,प्रसन्नचित्त और नैतिकता से भरपूर हो। हमारे समाज में होता है जस्ट उलटा।  सास, नन्द  झगड़े ,तकरार गर्भवती को या तो विद्रोह से भर देते हैं या अंजाना डर पैदा करते हैं। फलतः शिशु आक्रामक या दब्बू या कॉन्फिडेंस -लेस पैदा होता है।  रही सही कसर टीवी सीरियल के परिवार  तोड़ूं  दांव -पेंच पूरी  कर देते हैं।(याद कीजिये मूवी -"तीस मार खाँ ") जब नींव ही दुर्गुणों और दुष्प्रभावों से रक्त - रंजित हो तो उस पर शान्ति और सद्भावना की फसल उगेगी कैसे ?

ये दुष्प्रभाव उच्च कोटि की शिक्षा,पारिवारिक संस्कार और समाज के दबाव में दब सकते हैं ,और अनुकूल वातावरण शैतानियत को हावी होने से रोक सकता है। लेकिन ये बहुत मुश्किल है। आज कल की शिक्षा ज्ञान नहीं देती। मिड डे  मील और नंबरों की होड़ तक सीमित रह गयी है ,डिग्री खरीद ली जाती है ,ज्ञान मिलता नहीं। परिवार एकल रह गए हैं और बचा समाज ;इंटरनेट ,वीडिओ गेम ,मोबाइल में १२ से 15  घंटे बिताने वाले किशोर वहां तो उच्च कोटि की मार धाड़ , नशे आदि आनंद का ककहरा सीखते हैं। इंसानियत की शिक्षा के स्रोत ही दुर्लभ हो गए हैं। तो नैतिकता पनपेगी कैसे। लेकिन फिर भी कहा जा सकता  है कि बीज अच्छा होगा तो प्रतिकूल  वातावरण में भी मीठी फसल देगा। इसलिए बीजों की क्वालिटी निर्धारित करना ही हमारे हाथ में है। 

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

आपके गंजे सर पर कैथ बाल उगा सकता है.


                                  


इसे पहचाना आपने ?यह कैथ का फल है। जो अक्सर स्कूलों के बाहर बिकता हुआ दिखाई देता है। लड़कियां बड़े चाव से खाती हैं। कुछ खट्टा मीठा सा होता है।  अक्सर इसे लोग हिकारत से देखते हैं। लेकिन ये है बड़े काम की चीज। आज के बाद कहीं बिकता दिखाई दे तो जरूर घर ले आइएगा। 
इसका पेड़ सारे देश में पाया जाता है। छोटे और चिकने पत्तों वाला ये पेड़ कम से कम 15 फुट ऊँचा तो होता ही    है। आप इसके फल के बीज कभी  फेकिएगा। हार्ट  पेशेंट के लिए तो अमृत हैं  इसके बीज। इसके २ बीजों का चूर्ण  बनाकर  कम से कम २१ दिन तक निगल लीजिए ,सादे पानी से। हार्ट प्रॉब्लम ख़त्म। उसके बाद साल भर तक हफ्ते में एक ही बार बीजों का चूर्ण लीजिएगा। 
कच्चे कैथ के गूदे के चूर्ण को खाने से आमातिसार अर्थात  दस्त और आंव  बहुत फायदा मिलता है। 5  ग्राम चूर्ण सादे पानी  से 5  दिनों तक निगलिए। 
कच्चे कैथ के रस में कसीस और करंज  को पीस कर ३ माह तक लगाने से सिर पर बाल  उग जाते हैं। 
इसका तेल दाद, खाज, खुजली पर लगाने से आराम मिलता है। 
बच्चों के पेट में दर्द  हो रहा हो तो बेलगिरी और कैथ  गूदे का शरबत मिला कर १-१ कप पिलाइए। एक बार पीने में ही आराम आ जाएगा।  
कच्चे कैथ  रस निकाल कर उसमे बराबर मात्रा में शहद मिलाइये और शहद की आधी मात्रा में छोटी पीपल का चूर्ण मिला लीजिये। यह दवा तैयार हो गई। किसी को उलटी आ रही हो तो आधा चम्मच यह दवा चटा दीजिये ,आराम मिल जाएगा। गर्भवती हों तो यह दवा जरूर बना कर रखिये। यह दवा बार बार आने वाली हिचकी में  भी काम करती है। 
दमा या अस्थमा की शिकायत हो तो कच्चे कैथ का रस १५ ग्राम रोज पीजिए। ४१ दिन में बीमारी जड़ से खत्म हो जायेगी। 
कैथ के पत्ते भी बहुत काम के हैं। दांत,मसूढ़े,या गले में कोई गांठ या दर्द हो तो पत्तों के काढ़े से गरारा और कुल्ला दोनों कीजिये। तुरंत आराम मिलेगा। सफ़ेद पानी गिरने की शिकायत में इसके पत्तों के साथ बांस के पत्ते पीस कर शहद से २ महीने तक चाटिये। 
कैथ अकेला  ऐसा खट्टा फल है जो वीर्यवर्धक है। वर्ना सभी खट्टे फल वीर्य का नाश करते हैं। 


कैथ को हिंदी में बिलिन या कटबेल भी कहते हैं। मराठी,गुजराती और फ़ारसी  में इसे कबीट कहते हैं। इसे तेलगू  में ऐलागाकाय और संस्कृत  में कपित्थ ,कुचफल ,गन्धफल ,चिरपाकी ,बैशाख नक्षत्री,दधिफल कहते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे Feronia elephantum के नाम से जाना जाता है। 



इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

कितना भी पुराना कुष्ठ रोग हो काली जीरी और काले तिल को सम भाग में मिलाकर  ५ ग्राम सूर्योदय से पहले खाने से ख़त्म हो जायेगा। एक साल तक लगातार खाएं।  

सोमवार, 28 मार्च 2016

आँखों की रोशनी



आँखों की रोशनी तेज करने के लिए इस दवा की  एक -एक बूँद आँखों में डालना काफी है ,लगातार एक महीने तक 


शुगर /मधुमेह/डायबिटीज की दवा



शुगर /मधुमेह/डायबिटीज की दवा बनने की प्रक्रिया में देखिये कितनी तरह की जड़ी बूटियां सूख रही हैं-








दवा बनने के कई फार्मूले मैंने पुराणी पोस्टों में लिख रखे हैं। अब किताबी सिद्धांतों को वास्तविक रूप में देखिये। 
यह दवा ब्लड सुगर को भी कंट्रोल कर देती है। सुगर जड़ से एक साल में ख़त्म हो जाती है। आपकी गयी हुई ताकत लौट आती है। 


सोमवार, 7 मार्च 2016

बुखार और शिव जी का धतूरा



आज आप सभी ने शिव जी को धतुरा अर्पित किया होगा। प्रसाद में एक धतूरा उनसे वापस लेकर उसके बीज निकाल लीजिये और सुखा  कर किसी  कांच की शीशी में सुरक्षित रखिये। जब बुखार किसी दवा से न जा रहा हो तो सिर्फ २ बीज पानी  निगल लीजिये। बुखार आपको ही नहीं बल्कि आपका मोहल्ला छोड़ के फरार हो जाएगा।  


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 4 मार्च 2016

नपुंसकता के लिए ...


पुष्ट देह बलवान भुजाएं रूखा चेहरा ,लाल मगर 
लोगे या लोगे पिचके गाल ,संवारी मांग सुघर ?

यह प्रश्न आपसे किया जाए तो निश्चित ही आप पुष्ट देह और बलवान भुजाएं ही लेना चाहेंगे। लेकिन यह तभी संभव होगा जब आपके शरीर में वीर्य का निरंतर निर्माण होता रहे। आज के इस दौर में हमें ऐसा तरोताजा भोजन मिलता ही नहीं जिससे शरीर में पर्याप्त मात्रा  में वीर्य निर्माण हो सके।आज के इस प्रगतिशीलता  के दौर में तनाव और रेडिएशन भी वीर्य निर्माण की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। दिन भर  बस,ऑटोरिक्शा ,ट्रेन आदि की यात्रा और समय  पर गंतव्य तक न पहुँचने का तनाव मनुष्य की आधी शक्ति निचोड़ लेता है। हर शहर में जाम लगता ही है। जाम में फंसे लोगो का अगर ब्लड प्रेशर और हार्ट बीट  नाप ली जाए तो डाक्टर सबको तुरंत I C U में भर्ती कर देंगे। यह अवस्था भी वीर्य का नाश करती है। 
इससे भी बड़ा एक और दुश्मन है जो हर कदम पर मौजूद है --मोबाइल और मोबाइल टावर , घरों में फ्रीज ,ओवन, ए सी आदि से निकलने वाला रेडिएशन , ये सब भी महिलाओं और पुरुषों की जीवनी शक्ति क्षीण करते हैं। रेडिएशन की वजह से गर्भस्थ शिशुओं में भी विकृति आ जाती है।  
                          यही नहीं जब किशोरावस्था में शरीर में वीर्य निर्माण शुरू होता है तो उसे संचित करने की बजाय युवा उसका दुरूपयोग शुरू कर देते हैं। हस्त-मैथुन तथा अन्य क्रियाओं द्वारा उसे नष्ट करने पर तुल जाते हैं। लड़कों में २१ वर्ष की उम्र लग जाती है वीर्य को पकने और पुष्ट होने में। लेकिन उसे कच्ची हालत में ही युवा दुरूपयोग करने लगते  हैं  वह पक नहीं पाता। इसका नतीजा निम्न बीमारियों के रूप में सामने आता  है --- 

***शरीर में भोजन नहीं  लगता, भले ही आप कोई अमृत खा लीजिये। 
***इम्युनिटी कमजोर हो  जाती है। 
***बुढ़ापा जल्दी घेर लेता  है। 
***कमर में दर्द बना रहता है। 
***कामेच्छा ख़त्म हो जाती  है। (पुरुषों और नारियों दोनों में )
***पेट के रोग हो जाते हैं और बाल सफ़ेद हो कर झड़ने लगते हैं। 
***चेहरे और बदन की रौनक ख़त्म हो जाती है। 
***मौसम चेंज  होते ही आप बीमार पड़ जाते हैं। 
***लिंग छोटा या टेढ़ा हो जाता है। 
***युवावस्था में यौवन का भरपूर आनंद आप नहीं उठा पाते। 
****लड़कियों में अनियमित मासिक स्राव तथा फेलोपियन ट्यूब में इन्फेक्शन की प्राब्लम  जाती है। 
***संतानोत्पत्ति में परेशानी आती है क्योंकि शुक्राणुओं की संख्या और गति दोनों ही कम होती है। 
****अगर किसी तरह संतान हो भी गयी तो वह किसी  न किसी बीमारी से दुखी रहती है। 

सोचिये किशोरावस्था का थोड़ा सा सुख आपको कितना महँगा पड़ता है। क्योंकि बस यही आपके हाथ में होता है। तनाव और इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक रेडिएशन पर आप कंट्रोल नहीं कर सकते क्योंकि वह ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। 
आयुर्वेद में ही इसका सटीक उपचार है।
स्त्री और पुरुषों के लिए निर्गुण्डी रसायन तो हमने बनाने की विधि पिछली पोस्टों में लिखी ही है। इसके अतिरिक्त कुछ और दिव्य औषधियां हैं जिसकी पूर्ण जानकारी आप हमसे ले सकते हैं। यह दवाएं ऎसी नहीं होती कि सभी जगह आसानी से मिल जाएँ। किन्तु फिर भी मुझ जैसे कुछ अन्वेषी खोज ही लेते हैं। 
पुरुषों के लिए एक ख़ास घी, तेल तथा  महिलाओं के लिए एक अवलेह निरंतर वीर्य निर्माण की क्रिया को गति प्रदान कर देता है। 

पत्थर सी हों मांसपेशियां, लोहे से भुजदंड अभय 
नस -नस में हो लहर आग की तभी जवानी पाती जय। 

आइये अपने शरीर में पुनः वीर्य  निर्माण करें।


आप किसी  जिज्ञासा के लिए मुझे फोन कर सकते हैं- ९८८९४७८०८४, 8604992545         




मंगलवार, 12 जनवरी 2016

हड़जोड़ सिर्फ हड्डी ही नहीं जोड़ता

हर जोर का बैग्यानिक नाम है रिलीस कटरा पाटन गुजरातचेहरा चेंजइसकी बेटी हर जाति की होती है इसका उपयोग टूटी हुई हड्डी को जोड़ने में किए जाने के कारण इसका नाम हर जोर है  इसको हिंदी में अच्छी संघार के नाम से जाना जाता है संस्कृत में कोशिश टू घंटी किया बंदर बिल्ली इसको कहा जाता है और गुजराती में बेदारी मराठी में कंध वेद बंगाली में हार बंद मराठी में जहाज जो भी कहा जाता है तेलुगु में भववा डबल जी के नाम से उसको जानते हैं यह पौधा पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है इस दिल में 46 अंगूर पर घाटे होती है जैसे तू घर का पौधा होता है ठीक उसी तरह यह होता है लेकिन तू हर की चौड़ाई कुछ ज्यादा होती है वह मोटा होता है यह बिल्कुल उंगली के बराबर पतला होता है इसका डंठल करवादी होता है लेकिन इसका सबसे प्रमुख यूज़ जो है यह आंखों के सारे लोगों को खत्म करता है टूटी हड्डी को जोड़ने के लिए इसका उपयोग किस तरह से आप कर सकते हैं सबसे पहले हाथ जोड़ की नर्म लकड़ी का टिकट ले करके उसे बारीक पीसना उसने बराबर मात्रा में उड़द की दाल वन मिला दे उड़द की दाल ही बारीक पीसना और दोनों को मिलाकर किसी भी टूटी हड्डी के ऊपर सिंघाड़ा लेट कपड़ा लपेटकर के कपड़े से बांध देंगे तो हड्डी जोड़ जाती है यह लेप हर तीसरे दिन बदलते तीसरे दिन फिर से ले कर के फिर उसको पांडे की तरह से करने से एक महीने के अंदर ही हड्डी जोड़ जाती है और हड्डी टूटने का जो दर्द होता है वह तो एक हफ्ते में ही समाप्त हो जाता है लेकिन सिर्फ हड्डी जोड़ने के लिए ही इसका उपयोग नहीं होता यह पेट की गैस के दर्द को भी यह खत्म करता है अक्सर अक्सर एक उम्र के बाद पेट में दर्द होने लगता है साक्षअक्सर लोग प्लीपीठ के दर्द के कारण ठीक से सो नहीं पाते ।इस तरह की हालत में हाड़जोड़ की लकडी पीस कर के  उसको पोस्टपीठ पर लेप कर दीजिए या पीठ पर उसकी मालिश कर दीजिए पीठ का दर्द खत्म हो जाता है यह इसका सबसे उपयोगी गुण है ।
इसे और भी बहुत सारी बीमारियों से सही होती है कुछ बीमारियों के बारे में बता रही हूं -------
अगर अनियमित मासिक धर्म है तो इसके तने का रस दीजिए इसके तने का रस आप दो चम्मच लीजिए पांच सात दिन तक पीने से काफी लाभ आपको मिलेगा ।

इसके अलावा अगर गठिया है तो हर जोड़ की लकड़ी का टुकड़ा और उड़द की दाल पीस कर के पकौड़ी तिल के तेल में पकौड़ी बनाइए और उसको खा लीजिएगा और तुलगातार एक महीने खाने से गठिया जड़ से खत्म हो जाता है ।
अगर किसी के दर्द हो रहा है तो हड़ जोड़ के पत्ते और इसकी कोपल का पाउडर हर जोड़ के पतिऔर उसके तने के ऊपर वाली भाई ऊपर वाले का पाउडर पीस कर केसे पानी के साथ साथ दीजिए को वस्त्र बंद हो जाती है ।
अगर कान में दर्द हो रहा है बिस्कुट का रस निकालकर के दो बूंद कान में डाल दीजिए तुरंत आराम मिलता है ।

अगर मसूड़ों में सूजन आ गई है तू इसमें भी हर जोर बहुत काम करता है ए 10 ग्राम के रस को एक चम्मच शक्कर में मिलाकर पर चढ़ा दीजिए मसूड़ों की सूजन खत्म हो जाएगी ।यह  काम आप को कम से कम एक 11 दिन करना चाहिए चरणों की सूजन अब अपने आप खत्म हो जाएगी।
अगर पेट में दर्द हो रहा है तो हड़जोड़ की 4 या 5 शाखा को चुने के पानी में उबाल लीजिये ।फिर उस पानी को छान कर पिला दीजिये।
यह औषधि ताकत भी प्रदान करती है ।5 ग्राम की मात्र में इसके चूर्ण को पानी के साथ लेने से अनोखे बल की प्राप्ति होती है।
बी भूख बढ़ानी हो तो हड़जोड़ सेंक कर उसकी चटनी बनाकर खाएं।
किसी को दमे वाली खांसी हो तो प्रतिदिन इसके ताने का 2 चम्मच रास पिलायें ।2 माह में टी बी या दमा जड़ से ख़त्म हो जायेगा।
खाना देर से हजम हो रहा हो तो हड़जोड़ का 2 ग्राम चूर्ण और सोंठ का 2 ग्राम चूर्ण मिलाकर पानी से निगलिये लगभग 12 दिनों तक ।
पूरे बदन में दर्द हो रहा हो तो बिस्तर पर हड़जोड़ की मुलायम टहनियों को बिछा कर उन पर सोने की सलाह आयुर्वेद देता है।
इसका वैज्ञानिक नाम है Vitis Quadrangularis.





इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 11 जनवरी 2016

आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए



आजकल किडनी में इन्फेक्शन और  रीनल फेल्योर की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसा कुछ भी आपके जीवन में न हो , इसके लिए आवश्यक है कि हम ऐसा काम करें जिससे हमारी किडनी पर  किसी भी इंफेक्शन  का असर ना हो उसका कार्य जिंदगी भर सुचारु रुप से चलता रहे.

 सबसे पहले यह आवश्यक है कि जब भी आप भोजन करें तो उसके बाद यूरिन डिस्चार्ज जरूर करें भोजन के बाद यूरिन डिस्चार्ज से  किडनी सही तरीके से काम करती रहती है और एक दूसरा उपाय और है उसको भी आप अवश्य करें हर सप्ताह में एक दिन कोई भी एक दिन निर्धारित करने उस दिन ककड़ी के बीजों का चूर्ण तीन ग्राम की मात्रा में तीन ग्राम चीनी मिलाकर के पानी के साथ निगल लीजिए।   सप्ताह में एक बार ऐसा करने से आप अपनी किडनी को सारी जिंदगी सुरक्षित रख सकेंगे।  किडनी पर इंफेक्शन का असर नहीं होगा और वह सही तरीके से काम करती रहेगी।  जिससे ना किडनी ट्रांसप्लांट की समस्या होगी न ही पथरी या प्रोस्टेट की। स्वास्थ्य की अक्सर समस्याएं सिर्फ इस वजह से पैदा होती है कि हम सुचारु रुप से मूत्र विसर्जन नहीं करते हैं क्योंकि यूरिन  डिस्चार्ज वह प्रमुख जरिया है जिसके माध्यम से हमारे शरीर का ज्यादातर विष  बाहर निकल जाता है।  यह विष , जो हम विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से अपने शरीर में पहुंचाते  हैं।  इस विष  को  शरीर में संग्रहित करने से अच्छा है उसे यूरिन डिस्चार्ज के माध्यम से बाहर निकाला जाये।
























गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

कामयाबी



एक छोटी सी कामयाबी मिली है। लोग कहते हैं कि एक बार डायलिसिस शुरू हो जाय तो ये सारी ज़िंदगी होती रहती है। पता नहीं क्यों। 
मगर अगर ये सच है तो आज दो लोगों को और उनके बीसों परिवारजनों को इस आफत से छुटकारा मिल गया। एक ७० वर्षीय बुजुर्ग हैं और दूसरे सज्जन तो अभी ४५ वर्ष के हैं। बुजुर्गवार की  डायलिसिस बंद हुए तो 8 माह हो गए। वे  प्रसन्न हैं। उनके नाती -पोते  भी  खुश। दूसरे सज्जन की तो अभी कच्ची गृहस्थी है और पूरा परिवार बहुत खुश है। 
और मेरी ख़ुशी आप निम्न पंक्तियों से समझिए ------
दीनों का संतोष, भाग्यहीनों की गदगद वाणी,
नयन-कोर में भरा लबालब कृतग्यता का पानी,
हो जाना फिर हरा,युगों से मुरझाये अधरों का ,
पाना आशीर्वचन,प्रेम,विश्वास अनेक नरों  का। 
       इससे बढ़ कर और प्राप्ति क्या जिस पर गर्व करें हम ?
        पर को जीवन मिले अगर तो हंस कर क्यों न मरें हम ? 
                                                          ……… रश्मिरथी 

भगवान से एक  ही प्रार्थना है कि मुझे आयुर्वेद का और गहरा ज्ञान दीजिये जिससे  मैं खुशियों के ढेर सारे फूल बिखेर सकूँ। 

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

सभी तरह के कीड़ो की दुश्मन काली जीरी


     सबसे पहले आप काली जीरी और काला जीरा के चित्र को ध्यानपूर्वक देखिये -----




                                                                   यह काला जीरा है
Jeera di Kala (cumino nero) Immagini Stock




                                                                       यह काली जीरी है

चरक कहते  हैं कि  ----
विषघ्नी च सोमराजी विपाचिता।
 काली जीरी को देश के विभिन्न भागों में भिन्न -भिन्न नामों से पुकारा जाता है। ये नाम हैं-
सोमराजी, वनजीरक, अरण्यजीरक, मलौबक्शी, काकशम, बृहत्पाली, तिक्तजीरक, रणचजिरी, कलुजौरी, हकुच , बकौकी  आदि। इसको वैज्ञानिक भाषा में Vernonia anthelmintika कहते हैं।
काली जीरी के पौधे की एक खासियत है की ये पड़ती जमीनो पर उगा हुआ मिलता है।
## चरक संहिता में स्पष्ट है कि शरीर में कैसा भी जहर हो काली जीरी उसको नष्ट करने की क्षमता रखती है। यह शरीर में मौजूद हर प्रकार के कीड़ों को मारने में सक्षम है। ५ ग्राम काली जीरी लेकर उसको २०० ग्राम पानी में धीमी हीट पर उबालिये। जब १०० ग्राम पानी बच जाए तो उसको थोड़ा ठंडा करके पी जाएँ। याद  रखिये बहुत कड़वा होता है।५-६ दिन तक पीना पर्याप्त होगा। 
## किसी को फालिज मार गया हो तो आप इसको पीस कर पानी के साथ पतली चटनी बनाइये और प्रतिदिन प्रभावित अंगो पर लेप कीजिये।एक महीने में आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलेगा। 
## चर्म रोग, सफ़ेद दाग,सोरायसिस ,असमय बाल सफ़ेद होना या बाल गिरना,इन सभी रोगों में काली जीरी और काले तिल को सूर्योदय से पहले लिया जाए तो  एक साल में ही रोग जड़ से समाप्त हो जाता है। कैसा भी भयंकर चर्म रोग हो उसके कीटाणुओं का वंश ही समाप्त हो जाता है। 
## इसके सेवन से श्वास नली की तकलीफ तथा हिचकी ख़त्म हो जाती है। 
## यह शरीर से सारे बलगम को निकाल बाहर करती है। सर्दी की तकलीफ में बहुत आराम देती है।
##  इसके काढ़े से बवासीर में भी आराम मिलता है। ५० ग्राम काली जीरी कच्ची ही पीसिये और ५० ग्राम भून कर पीसिये।  दोनों चूर्ण मिलाइये। ४ ग्राम की मात्र में रोज खाइये। २१ दिनों में खूनी बादी हर तरह की बवासीर जड़ से ख़त्म हो जायेगी।  







इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

मुंह का कैंसर कभी नहीं होगा




 हम बहुत अत्याचारी हैं। अपने मुँह  साथ हम कितने कुकर्म करते हैं। कितना गर्म खा लेते हैं की मुंह जल जाता है। कितना ठंडा खा लेते हैं की मसूड़े काँप जाते हैं। कितना खट्टा, तीता, नमकीन, मीठा। नतीजतन बेचारे दांतों और जीभ की दुर्गति हो जाती है। फिर आज कल के पानमसालों  का तो कहना ही क्या।कैंसर को खुला आमंत्रण !!!!! यही नहीं इसी मुंह से कुछ भी बोल देते हैं। भली बातों का प्रतिशत शायद कम ही होता होगा। बुरी बातें ज्यादा ही बोलते हैं। जबकि शब्द को ब्रह्म कहा गया है। जिसका सीधा सम्बन्ध मुंह और आत्मा से होता है। अगर अब भी आपको अपनी गलती का एहसास हो गया हो तो आइये इस मुंह के लिए कुछ अच्छा काम किया जाए --------
कम से कम ५ चम्मच सरसों का तेल मुंह में लीजिये और उसे दांतों से खूब चबाइए। यूं जैसे कि कोई बहुत कठोर चीज चबा रहे हों। ५ मिनट तक चबाने के बाद थूक दीजिये और साफ़ पानी से कुल्ला कर लीजिये।  इस तेल को निगलना नहीं है। चबाने की प्रक्रिया के दौरान ये आपके शरीर के जहरीले तत्वों को खींच लेता है। और शरीर को निम्नलिखित फायदे पहुंचाता है ----
                            पान मसाला खा कर आपने जितने मसूड़े खराब किये हैं वो सही हो जाएंगे। 
                   पायरिया ख़त्म हो जाएंगे। 
       दांत मजबूत होंगे और बुढ़ापे में गिरने की संभावना ८०% ख़त्म। 
    लीवर सही रहेगा। 
जीभ में छाले नहीं पड़ेंगे। 
    टांसिल की शिकायत ख़त्म। 
    चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ेंगी। 
   छः रसों का स्वाद जीभ को महसूस होता रहेगा। अर्थात भोजन का असली आनंद महसूस होगा। 
         कम सुनने की शिकायत दूर होगी। 
आँखों की रोशनी बेहतर रहेगी। 

इतने सारे फायदे सिर्फ एक काम से -कि प्रतिदिन सवेरे सरसों का तेल  मुंह में भरकर ५ मिनट तक खूब चबाएं। 




मंगलवार, 25 अगस्त 2015

आश्चर्यजनक रूप से दिमाग तेज करती है मालकांगनी




ज्योतिष्मति अर्थात मालकांगनी एक पराश्रयी लता है जो पूर्वी हिमालय में 6000  फीट की ऊंचाई तक मिलती है। गुजरात ,महाराष्ट्र और मध्य भारत में भी यह पाई जाती है। यह आयुर्वेद की मुख्य औषधियों में से एक है। इसका तेल बेरी-बेरी जैसे महाभयंकर रोग की भी बहुत कारगर दवा सिद्ध हुआ है। 

ज्योतिष्मति का वैज्ञानिक नाम है- Celastrus paniculatus , इसे बंगाल में लताफ्टकी, मध्यप्रदेश में ककुन्दन रंगुल , पंजाब में संखू , केरल में बर्बज और इस्कट ,तमिल में कलिगम शेष भारत की भाषाओं में मालकांगनी कहते हैं।   
Image result for malkangni tree

ज्योतिष्मति के बीज में तेज गंध-युक्त तेल होता है। साथ ही  कुछ पेनीकुलेटिन ,सिलासट्रीन, टैनिन और कड़वा राल भी मिलता है।

आइये इसके औषधीय गुणों पर निगाह डालते हैं -------

****** अफीम के विष  को उतारने के लिए इसके 10 पत्तों का रस पिला दीजिये। 

 ***** बेरी-बेरी रोग के रोगी को इसके तेल की 10 से 15 बूंदे बताशे में डाल कर खिलाइये ,कम से कम 2 माह तक। 
***** चित्रा सर्प जब किसी पशु या मनुष्य को काट लेता है तो काटे हुए स्थान पर मांस सड़ जाता है फिर धीरे धीरे आस-पास का मांस भी सड़ कर गिरने लगता है। ऎसी दशा में मालकांगनी की जड़ ,अजवाइन और सिरस की छाल बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीस कर घाव में भरना चाहिए औरऔर १० से बीस ग्राम की मात्र में पिला भी देनी चाहिए। पशुओं के लिए मात्रा 100 ग्राम है। 
***** अगर फालिज मार गया हो तो मालकांगनी के बीज खाइये पहले दिन १ दूसरे दिन २ तीसरे दिन ३. इसी तरह १५ दिनों तक बढ़ाते हुए खाइये और इसके तेल की मालिश भी कीजिये। यह क्रम अपनाने से गठिया और जोड़ों के दर्द में भी फायदा होता है। 
****** जो महिलायें गर्भपात से परेशान है और गर्भकाल पूर्ण करके स्वस्थ संतान नहीं पैदा कर  पा रहीं हैं उनको गर्भ धारण के पहले  बाद ही या जब ज्ञात हो जाए कि वह गर्भवती हैं तब मालकांगनी की चार अंगुल लम्बी जड़ को कमर में बाँध लें और गर्भ काल पूर्ण होने से २-३ दिन पहले खोल दें। लेकिन यह जड़ रविवार के दिन ही खोदनी चाहिए।मालकांगनी  की लताओं पर सफ़ेद धब्बे होते हैं। 
***** खुजली ,सफ़ेद दाग ,नासूर, पुराने घाव सिर्फ इसका तेल लगाने से नष्ट हो जाते हैं। 
***** जलोदर में इसके तेल की १० बूंदे रोज सेवन कीजिए। 
***** इसके बीजो को पानी में पीस कर लेप करने से खूनी बवासीर में भी फायदा हो जाता है। 
***** इसका तेल २ ग्राम तक रोज दूध में मिला कर पीने से स्मरण शक्ति बहुत तेजी से बढ़ती है।     
***** आँखों की रोशनी बढ़ानी है तो इसके तेल की पगतलियों पर रोज मालिश कीजिए। 
***** नपुंसकता मिटाने के लिए इसके तेल की १०-१० बूंदे नागरबेल के पान में डाल  कर खाइए। साथ ही दूध-घी का ज्यादा सेवन कीजिए। 
आयुर्वेद में शिरोविरेचन के साथ साथ कई अन्य अंगों के विरेचन हेतु भी मालकांगनी को प्रमुख स्थान दिया जाता है। 
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

रविवार, 31 मई 2015

शरीर को लू और धूप से बचाता है ; अनानास






पूरा पेड़ कांटेदार होता है। लेकिन है बड़े काम का।लेकिन  सावधान इसका  मध्य भाग नुकसानदेह होता है इसलिए उसको निकाल कर ही  इसे खाएं। इस कांटेदार पेड़ और फल में बड़े गुण होते हैं।आइये कुछ गुणों पर निगाह डाल लेते हैं- 
@@@@अगर पेट में कीड़े हो गए हों तो अनानास का फल लगातार ७ दिनों तक खाइये। या इसके पत्तों का जूस पीजिये। 
@@@@पेट दर्द कर रहा  हो तो तीन चम्मच  फल  का रस, 6 चम्मच अदरक का रस ,२ चुटकी सेंधा नमक और एक चुटकी हींग मिलाकर पी  लीजिये। 
@@@@अगर भोजन के साथ आपके पेट में बाल चला गया हो तो भी पेट दर्द होता है  यह पेट दर्द बहुत अजीब सा होता  है। ऎसी  हालत में तो एकलौती दवा है पका हुआ अनानास। बस भरपेट खाइये,बस बीच वाला  हिस्सा निकाल   दीजियेगा क्योंकि उसको खाने से शरीर में कुछ दूसरे उपद्रव हो सकते हैं। 
@@@@लू या धूप लग गयी हो तो ४ दिन लगातार अनानास खाइये। 
@@@@लेकिन खाली पेट अनानास नहीं खाना चाहिए। 
@@@@गर्भवती महिला को भी अनानास नहीं खाना चाहिए। 
@@@@बहुत तेज  भूख लगी हो तब भी अनानास नहीं खाना चाहिए। 
@@@@अगर किसी को बार बार पेशाब जाने की बीमारी हो तो उसको  ११ दिन तक अनानास का फल जरूर खाना चाहिए। 
@@@@पूरे शरीर में  जलन  महसूस हो रही हो तो अनानास का फल खाइये। 
@@@@अनानास पित्त  विकार नष्ट करता  है जिसकी वजह से  फोड़े फुंसी ,घमौरियों से राहत मिल जाती है। 
@@@@अनानास लीवर और आमाशय को  ताकत प्रदान करता है।
@@@@अनानास हृदय को भी मजबूती देता है। 
@@@@यह  दिमाग को भी ताकत देता है। 
@@@@अगर हिचकी आ रही हो तो अनानास के पत्तों के रस में मिश्री मिलाकर पिलाइये। 
@@@@बुखार के बाद लीवर कमजोर हो जाता है इसलिए बुखार उत्तर जाने के बाद  रोगी को अनानास का रस  जरूर पिलाना चाहिए ताकि पेट की गरमी ख़त्म हो और लीवर सही तरीके से काम करना शुरू करे। 
@@@@हार्मोनल डिसबैलेंस की वजह से या पिल्स ज्यादा खाने की वजह से जिन  महिलाओं के गर्भाशय में भिन्न भिन्न तरह के विकार आ जाते हैं उनका भी इलाज अनानास के फल और पत्तो के रस से हो सकता है। किन्तु इसके लिए आपको एक्सपर्ट की राय जरूर लेनी चाहिए।   

  





इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

रविवार, 3 मई 2015

रसायन के लाभ


मैंने अभी तक तीन तरह के रसायन बनाने में सफलता पाई है। ये हैं-
निर्गुण्डी रसायन 
हल्दी रसायन 
पिप्पली रसायन 
अभी तक सैकड़ों मरीज इनका प्रयोग करके स्वास्थ्य और आयु -बल आदि प्राप्त कर चुके हैं। फिर भी जब आज भी मुझसे यह सवाल पूछा जाता है कि  इन रसायनों से क्या क्या फायदे होते हैं तो मैं सारे लाभ तो नहीं ही गिना पाती हूँ। मैंने आज सोचा कि मैं अपने प्रबुद्ध पाठकों को ये बता दूँ कि चरक संहिता के अनुसार रसायन के क्या लाभ हैं ---
रसायन वे औषधियां हैं जो स्वस्थ पुरुष के लिए  ओजस्कर हैं ,बल को बढ़ाती हैं और जीवनीय शक्ति प्रदान करती हैं। मनुष्य रसायन के  सेवन से स्मृति ,मेधा (धारण करने वाली बुद्धि ),आरोग्य, जवानी  भरी उम्र, प्रभा वर्ण और स्वर की उदारता,  देह और इन्द्रियों में परम बल ,वाक् सिद्धि (मनुष्य जो कहे वही हो ,अथवा अच्छी वाणी ),प्रणति अर्थात लोक समाज में आदर योग्य स्थान तथा कान्ति अनायास ही प्राप्त कर लेता है। 
अर्थात जिसके द्वारा शुभ गुण  युक्त रस आदि धातुओं की प्राप्ति हो वही रसायन है। इन्हीं प्रशस्त रस आदि धातुओं के कारण बुढ़ापा शीघ्र नहीं आता और शरीर अन्य रोगो से भी बचा रहता  है।  मेधा ,मन आदि  भी अन्न पर आश्रित हुआ करते हैं इसलिए मन और बुद्धि सदा सात्विक रहती है। इसीलिए प्रकृति भी उस मनुष्य के  अनुकूल व्यवहार करती है। 
इतने सारे लाभ रसायन सेवन से होते हैं। 
रसायनो का सेवन पूर्ण ब्रह्मचारी तो  यथाविधि कर ही लेते हैं किन्तु गृहस्थियों के लिए भी रसायन प्रयोग आवश्यक कहा गया है। क्योंकि गृहस्थ धर्म के समुचित रूप से पालन में अधिक कमजोरी नहीं आती लेकिन जो लोग विषयों की तृप्ति (वासना )में ही लगे रहते हैं,उनमें अधिक कमजोरी देखी गयी है।ब्रम्हचर्य के पालन न करने से राजयक्ष्मा आदि (टी बी ) रोग हो जाते हैं। वात का प्रकोप(मोटापा ) तो विशेषतः होता है। वीर्य  धातुओं का सार है। इसके नष्ट होने से शरीर की सब धातुएं क्षीण हो जाती हैं ,बुद्धि मंद हो जाती है। शरीर में स्फूर्ति और तेज नहीं रहता। अतः इस कमी को पूरा करने के लिए गृहस्थियों को वाजीकरण आहार -विहार या रसायन का सेवन करना अति आवश्यक है। यदि इस कमजोरी या धातुओं की क्षीणता को रसायन औषध द्वारा पूरा न किया जाये तो वह  शरीर शीघ्र ही धराशायी हो जायेगा। 
अतः आत्मवान मनुष्यों को नित्य ही रसायन आदि द्रव्यों की खोज करनी चाहिए। क्योंकि इन पर ही धर्म ,अर्थ, प्रीति  और यश आश्रित हैं।  

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

शिलाजीत ; क्या सच्चाई है और क्या रहस्य



शिलाजीत पर अभी तक जितना मेरा अध्ययन है उससे मैं आप सभी को अवगत करा देना चाहती हूँ। मेरे संसाधन सीमित होने के कारण प्रचुर मात्रा में मुझे शिलाजीत उपलब्ध नहीं हो सकी जिसकी वजह से मैं पर्याप्त प्रयोग नहीं कर सकी। फिर भी यह तो मानना ही होगा कि शिलाजीत का उचित प्रयोग वाकई चमत्कार दिखाता है। 
अनम्लम च कषायं च कटु पाके शिलाजतु। 
नात्युष्णशीतं धातुभ्यश्चतुर्भ्यस्तस्य सम्भवः।।.  
इस परिभाषा के अनुसार किसी भी शिलाजीत में अम्ल नहीं होता, कसैलापन होता है जो विपाक में कटु हो जाता है। यह न ही गरम होती है न ही ठंडी। यह जिन धातुओं से उत्पन्न होती है उनका ही गुण ग्रहण कर लेती है। शिलाजीत मुख्यतः चार धातुओं से उत्पन्न मानी गयी है --सोना ,चांदी ,तांबा और लोहा। महर्षि सुश्रुत  ने शिलाजीत की उत्पत्ति दो और धातुओं से मानी है-वंग  और सीसा। कुल मिला  कर ६ तरह की शिलाजीत अभी तक ज्ञात हैं।  वास्तविक शिलाजीत में अनेक तरह की गन्दगी होती है। रेत -पत्थर- पत्ते आदि अनेक चीजे इसमें मिक्स होती हैं। शिलाजीत की अशुद्धियों को दूर करने के लिए सबसे पहले उसे सादे जल से धो लेना चाहिए। फिर शिलाजीत की मात्रा से दूना गरम जल लेना चाहिए। शिलाजीत गर्म जल में घुल जाती है और अशुद्धियाँ नीचे बैठ जाती है। ऊपर से जल निथार कर उसे धुप में सुखाने पर शुद्ध शिलाजीत प्राप्त होती है। अशुद्धियों को पुनः गरम जल में घोल देना चाहिए ताकि सारी शिलाजीत पानी में आ जाए और अशुद्धियाँ बिलकुल अलग हो जाएँ। अब इसी शिलाजीत को वातघ्न अर्थात वात को नष्ट करने वाली औषधियां ,पित्तघ्न अर्थात कुपित पित्त को नष्ट करने वाली औषधियां तथा कफघ्न अर्थात कफ को संतुलित करने वाली औषधियों  के रस में भावना देकर उसकी रोगनाशक शक्ति  को कई गुना बढाया जा सकता है। इस तरह से तैयार की हुई शिलाजीत खुद ही में रसायन बन जाती है। अत्यधिक बल प्रदान करने का गुण उसमें आ जाता है और रोगनाशक तो हो ही जाती है। 
शिलाजीत का सेवन दूध के साथ करने से यह बुढापे को दूर करती है ,आयु-जनित रोगों को दूर करती है, शरीर को दृढ़ता प्रदान करती है ,शक्ति प्रदान करती है ,बुद्धि को तीव्र और स्मृति को भी दृढ करती है। 
शिलाजीत को चरक संहिता के अनुसार निरंतर सात सप्ताह तक प्रयोग करने से यह उचित फल प्रदान करती है ,हमने अपने प्रयोगों में देखा कि इसे कम से कम सौ दिनों तक लगातार  लेना ही श्रेयस्कर साबित हुआ। लेकिन इसे पांच रत्ती से कम तो कत्तई नहीं लेना चाहिए। 
हर पर्वत की  अपनी धातुएं होती हैं। अर्थात उस पर्वत का निर्माण जिन शिलाओं से हुआ  है वह शिलाएं ही धातु को खुद में समेटे रहती हैं। सोना चांदी ताम्बा लोहा शीशा रांगा यही वे धातुएं हैं जो प्रकृति में बिखरी हुई हैं। यही धातुएं जब पत्थर बन जाती हैं तो उन पत्थरों का समूह पर्वत का आकार  ले लेता  है। ज्वालामुखी का पिघलना  इन्ही धातुओं की वजह से होता है।इन धातुओं की शिलाएं जब सूरज की  गरमी से  तप जाती हैं तो वे पिघलती हैं और लाख जैसा द्रव उनमें से निकलता है। यही द्रव शिलाजीत कहलाता है।अभी तक इन्ही छः धातुओं की शिलाओं को पिघलते हुए देखा गया है। इसलिए छः प्रकार की  शिलाजीत का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है।      
शिलाजीत को अपने रोग के अनुसार निम्न में से किसी एक में घोल कर पीना चाहिए -
दूध, सिरका, मांस-रस, जौ-रस, चावल का धोवन, गोमूत्र, या किसी औषधि का काढा। 
शिलाजीत के सेवन के दौरान कब्ज पैदा करने वाली वस्तुओं ,नशा पैदा करने वाली वस्तुओं और भारी अनाज के सेवन का निषेध है। 
शिलाजीत  में गोमूत्र जैसी  गंध आती है। 
शिलाजीत के  सेवन के दौरान पथरी की दवा के रूप मे प्रयुक्त किसी औषधि ,साग और शरबत का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

विधिपूर्वक प्रयोग होने पर शिलाजीत भयकर रोगों को बलात नष्ट कर देती है ,यह स्वस्थ मनुष्यों को भी विपुल शक्ति प्रदान करती है। 






इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा