मेहंदी सावन भादो में बहुत हरी भरी रहती है।ये बहुत काम आ सकती है, उन लोगों के, जिनके मुंह में अक्सर कटे फ़टे का घाव या छाले बने रहते हैं।या जीभ में घाव रहता हो या जिनके दांत और मसूड़े अक्सर दर्द करते हैं।
थोड़े से मेहंदी के पत्ते एक गिलास पानी में 10 मिनट तक ढक के उबालिये ।फिर ठंडा करके इस काढ़े को 2 मिनट तक मुंह मे रखिये फिर थूक दीजिये।
3 या 4 बार कीजिये।
पहले दिन 50 प्रतिशत आराम नजर आएगा।
3 दिन कर लीजिए।
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गुरुवार, 7 सितंबर 2017
यूँ अच्छे होंगे मुंह के छाले, घाव
शुक्रवार, 11 अगस्त 2017
जो गत माह व्हाट्सएप्प पर लिखा
पथरी
पत्थरचट्टा, जिसे पाषाणभेद भी कहते हैं, यह पथरी नही दूर करता सिर्फ पथरी का दर्द दूर करता है।
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जठराग्नि को तेज करने के लिए
भोजन के बाद सौंफ मिश्री अब बंद कर देनी चाहिए ।पूरे देश के पेट के मरीजों की तकलीफ का विश्लेषण करके मैंने यह नतीजा निकाला है कि अपने पेट की उपापचय की क्रिया अर्थात जठराग्नि को सही रखने के लिए जरूरी है कि भोजन के बाद 10 तुलसी के पत्ते 4 दाने काली मिर्च और सिर्फ एक पीपल का पत्ता चबाया जाना चाहिए।
लीवर की लाइन एवं लेंथ बिल्कुल दुरुस्त हो जाएगी।एक माह लगातार ले लीजियेगा उसके बाद गैप भी हो जाये तो चिंता की बात नही।
इसे चूर्ण बनाकर भी रखा जा सकता है।
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गैस का इलाज
अगर आप एसिडिटी, गैस, पेट की समस्या से पूर्णतया छुटकारा चाहते हैं तो अपनी रसोई में एक छोटा सा बदलाव करें।
दाल, सब्जी आदि जिन भी भोज्य पदार्थ को छौंक लगाई जाती है उस छौंक में सौंफ जरूर डाली जाए।चाहे जिस चीज से छौंके लेकिन सौंफ जरूर जरूर और जरूर जलनी चाहिए।एक सप्ताह बाद ही घर के सभी मेम्बर को राहत मिलनी शुरू हो जाएगी।
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हड्डियों में फ्रैक्चर
जिनकी हड्डियों में किसी वजह से फ्रैक्चर हुआ हो या माइनर फ्रैक्चर हुआ हो वे पुराने चावल बना कर खाएं।पुराने चावलों में हड्डी जोड़ने की अद्भुत क्षमता होती है।ऐसा महान वैद्य सुश्रुत का कहना है।अतः अकाट्य है।
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डेंगू,चिकनगुनिया से बचाव
सावन अपनी रिमझिम फुहारों के साथ बहार पर है,किन्तु सावधान मच्छरों से होने वाले रोग भी अपनी पराकाष्ठा पर हैं। इसलिए डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू, इंसेफेलाइटिस आदि इत्यादि रोगों से बचने के लिए रोज कलौंजी अर्थात मंगरैला से दाल, सब्जी आदि में छौक जरूर लगाएं बल्कि 20 दाने कलौंजी के यूं ही चबा के खा लें ।बच्चे बूढ़े सभी।
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हमारा शरीर
शरीर मे 7 धातुएं होती हैं---
वात
पित्त
कफ
मल (पुरीष )
मूत्र
रक्त
वीर्य
ये सभी प्राण वायु को ताकत प्रदान करती हैं।अतः सभी की उचित मात्रा शरीर मे बनी रहनी चाहिए।
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गठन में दर्द का इलाज
शरीर में कहीं भी गठान हो जाये और दर्द करती हो तो उस पर काले तिल पानी में पीस कर लेप कीजिये,थोड़ा मोटा लेप।जौ भी पीस कर लेप लगा सकते हैं।यह बहुत फायदा करता है ।अंदर ही अंदर दूषित रक्त को बिखेर देता है।
यह लेप ऐसे घाव में भी फायदा देगा जो जल्दी ठीक न हो रहा हो।
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पेट अंदर करने की सालिड दवा
पेट समतल करना है ?
3 महीने के फुल कोर्स का खर्च 24000 मात्र ।
शुद्ध आयुर्वेदिक।
न लूज मोशन , न परहेज।
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एसिडिटी और नपुंसकता
एसिडिटी की दवा खाने वाले के प्रजनन अंग शिथिल हो जाते हैं, अतः कामेच्छा खत्म या कम हो जाती है।
अतः एसिडिटी की दवा से बचना ही बुद्धिमानी है।
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वैद्यों से
यह लेख मैं उन विद्वान वैद्यों के लिए लिख रही हूँ, जो दर्जनों जड़ी बूटियों को मिला कर किसी रोग की दवा बनाने की विधि व्हाट्सएप्प पर पोस्ट करते रहते हैं।ज्यादा मिश्रण का प्रभाव क्या होता है यह ऊपर पुस्तक के पृष्ठ में स्पष्ट लिखा है। वे प्रबुद्ध पाठक भी ध्यान दें, जो व्हाट्सएप्प पढ़ कर दवा बनाने की कोशिश करते हैं। मैं इससे भी सहमत नहीं हूं कि किसी कम्पनी द्वारा निर्मित दवाओं को कूट पीस कर आपस में मिश्रित करके दवा तैयार की जाय क्योंकि वहां भी अपमिश्रण होकर गुणधर्म चेंज हो सकते हैं।जबकि 2 या 4 जड़ी बूटियों का मिश्रण ज्यादा शक्तिशाली होता है।फिर भी मैं अकेली औषधि ( जड़ी बूटी) से दवा तैयार करने के पक्ष में हूँ, क्योंकि वह पूर्णतया निरापद है और पूर्ण चंद्रमा की तरह शरीर में प्रकाश फैलाती है।
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पाइल्स के लिए
अगर आपको बवासीर ( पाइल्स ) की समस्या है तो जिमीकंद/सूरन/ओल का अचार रोज खाइये।लेकिन अचार में ज्यादा मसाले मिर्च न डलवाएं।तेल ज्यादा ही रखें।बवासीर और कब्ज जड़ से खत्म होगी।
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भादो में दही नहीं
भादो का महीना शुरू हो चुका है, इस माह में दही खाना वर्जित है।इस माह में दही खाने से पेट की पाचक क्षमता पर बहुत खराब असर पड़ता है ,जिसका दुष्परिणाम बदहजमी से लेकर पेट निकलने के रूप में सामने आता है।
बुधवार, 31 मई 2017
नई खोज
हर बच्चे की पैदाइश का समय उसके शरीर पर गुदवा देना चाहिए,ताकि भविष्य की किसी इमरजेंसी में काम आ जाये।अगर आपको किसी मुसीबत से निकलने का रास्ता नही मिल रहा है तो पैदाइश वाले वक्त अपने दिमाग को एकाग्र कीजिये,हर हाल में रास्ता मिल जाएगा।
हम शिवमंदिर के निर्माण के वक्त यह बात भूल जाते हैं।विशाल शिवलिंग स्थापित कर देते है किंतु उनके शीश पर विराजमान गंगा जी की उपेक्षा कर देते हैं।निर्माण की प्रक्रिया में मंदिरों में यह व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई जलधारा निरंतर शिवलिंग पर गिरती रहे और वह पानी अंदर पृथ्वी की गहराइयों में समाहित होता रहे।यही वास्तविक शिव मंदिर होगा।वर्ष में एक बार हजारों घड़े जल से अभिषेक करने से शिवलिंग से निरंतर निकलने वाली ऊर्जा को आप कंट्रोल नहीं कर सकते।पर्यावरण संतुलित करने के लिए यह आवश्यक है कि निरंतर जल उस पर गिरता रहे।शिवलिंग ऊर्जा का अथाह भंडार है।यह ऊर्जा लाखो करोड़ो शिवमंदिरों से निकल रही है और पृथ्वी के वातावरण को निरंतर गर्म कर रही है।शिवलिंग पर निरंतर गिरती जलधारा उस ऊर्जा को शांत करेगी और पृथ्वी में समाता हुआ जल पृथ्वी के सामान्य जलस्तर को बनाये रखेगा।जिससे हरियाली बढ़ेगी।मानसून आकर्षित भी होगा।पर्यावरण संतुलन वापस स्थापित होगा।
वक्त है कि हम अपनी गलती सुधार लें और धर्म की सही व्याख्या समझें।अन्यथा वैज्ञानिकों ने तो पृथ्वी की शेष आयु 100 से 500 वर्ष घोषित कर ही दी है।
गुरुवार, 18 मई 2017
आयुर्वेदिक दवाओं की गुणवत्ता
मैं तभी से यह सोच रही हूँ कि अभी तक तो जड़ी बुटियों में पाए जाने वालेजीवन रक्षक तत्वों का तो निर्धारण ही नही हो पाया तो गुणवत्ता किस तत्व की निर्धारित करेगी सरकार।एक सामान्य चीज लीजिये - लौंग।लौंग में डैंड्रफ खत्म करने का भी तत्व है, लौंग में भीषण दर्द निवारक तत्व भी है ।लौंग में खांसी खत्म करने का भी तत्व है, बाल काले करने का भी, गैस नष्ट करने का भी, त्वचा को कांतिमय बनाने वाला भी और भोजन में स्वाद बढ़ाने वाला तत्व भी है।हमारे देश मे ऐसी अनुसन्धानशालायें तो अभी तक बनी ही नहीं जो इन तत्वों को अलग अलग पहचान सकें (क्योंकि सरकार के पास आयुर्वेदिक प्रयोगशालाओं के लिए फालतू धन नही है) तो गुणवत्ता निर्धारण आप किस चीज का करेंगे ? यही लौंग जो मसाले के रूप में इतनी महंगी मिलती है वह भी आप तक शुद्ध नही पहुंचती।इनका तेल पहले ही निकाल कर निर्यात कर चुके होते हैं व्यापारी।यही स्थिति ज्यादातर खुशबूदार मसालों और जड़ी बूटियों की है।
वैसे भी आयुर्वेदिक दवाएं यदि चूर्ण रूप में हैं तो 2 माह बाद उनकी क्षमता 60% तक कम हो जाती है।काढ़ा की लाइफ सिर्फ 24 घण्टे होती है।अवलेह की लाइफ एक ऋतु भर अर्थात 3 महीना।केवल आरिष्ट और आसव ही हैं जो जितने पुराने होंगे उतने ही गुणकारी होते जाएंगे।शहद और घी भी इसी श्रेणी में आते हैं कि जितने पुराने उतने अच्छे। लेकिन उनके गुण भी हर ऋतु के बाद परिवर्तित होते जाते हैं फिर सरकार मानकों का निर्धारण किस आधार पर करेगी।जबकि बड़ी बड़ी नामी कंपनियां कई वर्ष पहले का भी पैक किया हुआ चूर्ण ,अवलेह ,च्यवनप्राश बेचती है उन पर आपत्ति नही की जाती। सरकार गुणवत्ता मानकों के निर्धारण की आड़ में छोटे पंसारियों और वैद्य हकीमो जैसे औषधि निर्माताओं पर कुठाराघात करने की तैयारी में लग रही है।
उ0 प्र0 हिंदी संस्थान द्वारा प्रकाशित पुस्तक "भारतीय औषधियां'' में स्पष्ट लिखा है कि सर्वाधिक जरूरत इस बात की है कि देसी जड़ी बूटियों की पहचान को सार्वजनिक पटल पर आम किया जाए।इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा ज्ञान मध्य और उत्तरी भारत में मुसहर जाति, बंगाल में मौल, बेदिया, बागदी, कैवर्त, पोड, चंडाल, कवरा और करंगा जातियों तथा बम्बई में चन्द्रा, भील और गामत जातियों के पास है।मध्यप्रदेश की आदिवासी और नागा जातियों को भी नही भूलना चाहिए।आज भी इन जातियों के पास जड़ी बूटियों का जितना अधिक और सटीक ज्ञान है वह लिपिबद्ध ज्ञान से कई गुना ज्यादा है।इन जातियों को जब भी धन की जरूरत होती है तो ये जड़ी बूटियों को जंगलों से लाकर किसी पंसारी या परचून की दुकान पर इन जड़ियों का स्थानीय नाम और गुण बताकर बेच देते हैं जिसका लाभ रोगियों को मिल जाता है।ये जातियां डाबर वैद्यनाथ आदि नामी गिरामी कम्पनियों के पास जड़ियाँ बेचने नही जाते।सरकारी फरमान से तो इन जातियों को धन प्राप्ति और आम जनता को स्वास्थ्य लाभ का ये रास्ता भी बंद हो जाएगा।हमारे आयुरशास्त्र तो 1500 साल की गुलामी की भेंट चढ़ ही गये हैं।
जड़ी बूटियों में अपमिश्रण यानी मिलावट करने वालों को भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से कठोर दंड देने का विधान था।विधान यह भी था कि अपने रोगियों के उपचार में गलती करने वाले चिकित्सकों को अर्थदण्ड भोगना होगा।दुर्भाग्य से आयुर्वेदिक चिकित्सा के ह्रास के साथ साथ इस दिशा में भी बड़ा परिवर्तन हुआ।कुछ तो अज्ञानतावश और कुछ जड़ी बूटी के व्यापारियों की मिलावट करने की प्रवृत्ति के कारण भेषजों में अपमिश्रण कई शताब्दियों से होता चला आ रहा है।मिलावट तो अलग है, कुछ व्यापारी ऐसे भी हैं जो निर्धारित मात्रा से कम औषधियों की पैकिंग बेचते हैं।मिलावटी जड़ी बूटियों का व्यापार बड़े व्यापक पैमाने पर बिना किसी भेदभाव के होता है अर्थात आम जनता को ही नहीं वैद्य, हकीम, औषधि निर्माताओं को भी शुद्ध जड़ी बूटियां नही मिल पातीं। चिरैता में कालमेघ के पत्ते मिला देना और जीरा के नाम पर गाजर का बीज दे देना आम बात है। जटामांसी और गुग्गल जैसी संवेदनशील और महंगी जड़ी बूटियां भी अर्क निकाली हुई मिल रही हैं।तो इनसे निर्मित औषधियां कितना कारगर होंगी ,खुद सोचिये।
अगर इस क्षेत्र में सरकार वाकई प्रभावी कदम उठाना चाहती है तो एक बाजार वह आयुष विभाग के अंतर्गत बनाये जहां प्राप्य और अप्राप्य सभी जड़ी बूटियां अपने मूल और विकसित स्वरूप में शुद्धता एवं पूर्ण गुणवत्ता के साथ मिल जाएं।जब कंपनियां वैद्य हकीम आदि चिकित्सक इस बाजार से जड़ी बूटियां लेकर दवा बनाएंगे तो वह ज्यादा कारगर होगी।आयुष विभाग के अधिकारी गण जड़ी बूटियों को उनके मूल स्थान से लेकर उचित तापमान एवं सफाई के साथ वैज्ञानिकों के निर्देशानुसार संग्रह कराएंगे तो एक ही छत के नीचे अद्भुत एवं कीमती खजाना एकत्र होगा।स्थानीय उपरोक्त वर्णित जातियों से भी इनका ज्ञान प्राप्त कर संग्रह होगा।यह सब आयुष विभाग करेगा तो लिपिबद्धता में भी आसानी होगी तथा दुर्लभ एवं लुप्त प्रायः औषधियों को संरक्षित एवं विकसित करने की दिशा में भी उत्कृष्ट कार्य हो सकेगा।अस्तु।
मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017
आयुर्वेद क्या है
बड़े भाग मानुष तन पावा।
यह पंक्ति मानुष तन की वास्तविक शक्ति को परिभाषित करती है।इसी तन की सहायता से तन में निवास करने वाली आत्मा तपस्या की पराकाष्ठा को पा सकती है।अन्य किसी जीव जंतु वनस्पति ,कीट, पक्षी आदि के शरीर में रह कर तपस्या संभव नहीं क्योंकि मस्तिष्क सिर्फ मनुष्य को ही मिला है।तपस्या ही वह ज्ञान है जिसकी तलाश सदियों से मनुष्य करता आया है।इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए शरीर में ताकत तो जरुरी है क्योंकि
शरीर कही तकलीफ में होगा तो आप भजन तो नहीं कर पाएंगे।कही दर्द हो रहा होगा तो फ़िल्म देखना ,घूमना टहलना भी अच्छा नहीं लगेगा।तप तो दूर की बात है।
आज हम जानते है कि सदियों पहले युद्ध होते थे, घोड़े हाथी, तलवार, फरसे, धनुष, कटार प्रयोग होते थे। दिन ढलते ही युद्ध रुक जाते थे।फिर घायल सैनिकों और जानवरों को रात ही रात में उपचार करके अगले दिन के युद्ध के लिए स्वस्थ कर दिया जाता था।सोचिये कैसी जड़ी बुटियों की ताकत थी कि गहरे घाव सुबह तक भर जाते थे,टूटी हड्डियाँ ठीक हो जाती थीं।उन्ही जड़ी बुटियों की धरा पर आज हम पूरा जीवन टैबलेट और कैप्सूलों के सहारे काट रहे हैं।दर्द में जी रहे हैं।100 लोगों से पूछ लीजिये, एक भी ऐसा नहीं मिलेगा जिसको एक माह के अंदर कोई दवा न खानी पड़ी हो।
हम आयुर्वेद को भुला बैठे हैं, जीवन का उद्देश्य भुला बैठे हैं ।इसीलिए दुखी हैं।रोज रामचरित मानस के पाठ होते हैं, हजारों लोग प्रवचन की दूकान खोले बैठे हैं लेकिन किसी की निगाह इस पंक्ति पर नहीं जाती कि आखिर मानुष तन को दुर्लभ श्रेणी क्यों दी गयी है, पुराणों में ?
हजार वर्ष पूर्व तक भी आयुर्वेद जिंदगी में शामिल था।राजा महाराजा आकर्षक व्यक्तित्व और बलिष्ठ शरीर के स्वामी होते थे और लंबी आयु जीते थे।आम मनुष्य भी स्वस्थ और बलिष्ठ होते थे।निरोगी होते थे।वे समयानुसार ऋतुओ के अनुसार जड़ी बुटियों का सेवन करते थे।रोगी और निर्बल कोई होता ही नहीं था। आज हम रोगी होने का इन्तजार करते हैं फिर एलोपैथ ,होमियोपैथ, नेचुरोपैथ ,झाड़ फूक, आदि सब ट्राई करके भी स्वस्थ नहीं होते हैं तो मरता क्या न करता वाली मानसिकता में आकर आयुर्वेद के विषय में सोचते हैं कि लाओ इसको भी ट्राई कर लें।
शनिवार, 14 जनवरी 2017
टिप्स जो व्हाट्सऐप पर मैंने भेजी
इसका सबसे बढ़िया उपाय है कि आप दालचीनी का काढ़ा सुबह दोपहर शाम पीजिये। कम से कम 4 ग्राम दालचीनी चूर्ण को 150 ग्राम पानी में 10 मिनट तक उबालिये।फिर बिना छाने पी लीजिये।एक बार में। फिर दोपहर को भी और शाम को भी।
पाचनशक्ति भी बढ़ेगी
भूख भी।
आमाशय शुद्ध और पावरफुल हो जाएगा।
शैथिल्य प्राणघातक होगा ।।
यह पक्तियां रोग के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक हैं , क्योंकि रोग भले ही कैंसर, एड्स, वायरल जैसे जानलेवा हों, अगर शुरू होते ही इनका इलाज हो तो ख़त्म हो जाते हैं।किन्तु हम भारतीयों को रोग पालने की आदत है, इसी कारण बहुत छोटी छोटी बीमारियां जीवन भर के लिए अभिशाप बन जाती हैं।
खैर दीपावली के इस मौसम में शरीर की भलाई के लिए जिमीकन्द/ओल/सूरन का प्रयोग सब्जी, भर्ता या अचार के रूप में जरूर करें।
यह बवासीर, कोलायटिस, भगंदर की बहुत अच्छी दवा है।लगातार एक माह प्रयोग कीजिए।
एक सेब आग पर भूनिये, बैंगन की तरह।
फिर उसको निचोड़ के रस पी जाइए और गूदे को दोनों आँखों पर लेप करके आधा घण्टा छोड़ दीजिये।
5 दिन लगातार यह काम कीजिए।आँखों की 90 %बीमारियां खत्म हो जाएंगी।
गुरुवार, 29 दिसंबर 2016
पेट के रोग और सरसो का तेल
सोमवार, 28 नवंबर 2016
भिलावा और भिलावा रसायन
भिलावा के फल में दो तरह का तेल पाया जाता है।इसकी गिरी के अंदर मीठा तेल और फल के रस में काले रंग का विषैला तेल।यह तेल शरीर में कहीं भी लग जाए तो छाले पड़ जाते है।
भिलावा एक ऐसा फल है जिसमें कैंसर को जड़ से खतम कर देने की ताकत है ।
यह फल कफनाशक, पित्त नाशक और वातनाशक भी है। यह हृदय रोग, आमाशय रोग, दन्त रोग और पुराने बुखार को भी ठीक करता है।यह सांप के जहर को मारता है। यह चर्म रोग को भी सही करता है।कोई घाव सड़ गया हो तो इसी भिलावे के तेल से वह सही हो जाता है और अंग काटने की नौबत नहीं आती।तिल्ली या लीवर बढ़ गया हो तो भिलावा रामबाण औषध है।यदि कफ के साथ रक्त आ रहा है तो फौरन भिलावे की शरण में जाएँ।
इसके इतने सारे फायदे हैं किंतु जैसे मैंने अन्य लेखों म यह बताया है कि इसकी दवाएं किस तरह से बनाएं ,उस तरह भिलावे की किसी दवा की निर्माण विधि मैं नहीं लिख सकती क्योंकि यह बहुत खतरनाक चीज है ।इसका तेल ज़रा सा भी शरीर मे कहीं पर लग जाए तो छाले और जलन महीनो तक परेशान करती है।
इस रसायन के प्रताप से रोगी हाथी के समान बलवान, घोड़े के समान वेगवान और बृहस्पति से भी अधिक बुद्धिमान हो जाता है।बड़े बड़े ग्रन्थ को समझ लेता है और याद कर लेता है।500 वर्ष तक जीता है।इससे सभी कुष्ठ रोग अवश्य दूर हो जाते हैं।मनुष्य सुवर्ण के समान कांतिमान हो जाता है।टूटे दांत निकल आते हैं और सफ़ेद बाल भी काले हो जाते हैं, मोर के समान उत्तम स्वर हो जाता है।प्रसन्न इन्द्रियों वाला और विशेष प्रतिभाशाली हो जाता है।नवयौवन चिरस्थायी हो जाता है।
उम्र को बहुत तेजी से थामता है भिलावा रसायन।
मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016
कोलायटिस, पाइल्स
शैथिल्य प्राणघातक होगा ।।
यह पक्तियां रोग के सन्दर्भ में बिलकुल सटीक हैं , क्योंकि रोग भले ही कैंसर, एड्स, वायरल जैसे जानलेवा हों, अगर शुरू होते ही इनका इलाज हो तो ख़त्म हो जाते हैं।किन्तु हम भारतीयों को रोग पालने की आदत है, इसी कारण बहुत छोटी छोटी बीमारियां जीवन भर के लिए अभिशाप बन जाती हैं। जैसे साधारण सी सर्दी खांसी बाद में दमा बन जाती है ।
खैर दीपावली के इस मौसम में शरीर की भलाई के लिए जिमीकन्द/ओल/सूरन का प्रयोग सब्जी, भर्ता या अचार के रूप में जरूर करें।
यह बवासीर, कोलायटिस, भगंदर की बहुत अच्छी दवा है।लगातार एक माह प्रयोग कीजिए।
मंगलवार, 18 अक्तूबर 2016
बालों एवं मस्तिष्क की सुरक्षा के लिए
बुधवार, 21 सितंबर 2016
डेंगू, चिकनगुनिया
कलौंजी गुड़ अजवाइन दालचीनी
साथ में आलू भी।
किसी को भी बुखार पैरासिटामॉल खाने से केवल 4 घंटे के लिए उतर रहा हो तो फ़ौरन मुझे फोन कीजिये। 9889478084, 8604992545
या निम्नलिखित तरीका अप्लाई कीजिये।
यही एक लड्डू दिन में एक बार मरीज के बाक़ी घर के लोग खा लें तो उनको बुखार नहीं होगा।
मरीज के घर के लोग दिन में बस 1 बार पिएंगे।
रविवार, 28 अगस्त 2016
पानी पीने का तरीका
मगर सत्यता बिलकुल विपरीत होती है।
आप एक एक घूंट पानी सारे दिन पीते रहें तो बेकार है ऐसे पानी पीना।एक बार में कम से कम 200 ग्राम पानी पीजिये तो किडनी पर प्रेशर पड़ेगा और वो काम करेगी, तब मूत्राशय पर प्रेशर आएगा और बढ़िया यूरीन डिस्चार्ज होगा।फ़ोर्स से होगा और पथरी नहीं बनने पाएगी।अगर होगी तो यूरीन के फ़ोर्स के साथ बाहर निकल जायेगी।
एक एक घूंट पानी पीने से न किडनी की सफाई हो पाती है न मूत्राशय की।
नतीजा आपकी किडनी डैमेज होने लगती है।यह रोग बहुत फैला है इस समय।
सावधान हो जाएँ।
शनिवार, 27 अगस्त 2016
पीने का औषधीय पानी
एक घड़े में या किसी भी उस बर्तन में जिसमें आप पीने का पानी रखते हैं, उसमें एक चम्मच अजवाइन एक कपडे की पोटली में बाँध कर डाल दीजिये।1 बार की पोटली 3 दिन रहने दीजिये रोज उसी बर्तन में और पानी भर लीजिये, 3 दिन बाद पोटली बदलनी है।फिर नयी पोटली में एक चम्मच जीरा रख कर पीने के पानी में डाल दीजिये।3 दिन बाद नई पोटली में मेथी फिर ३ दिन बाद सौंफ।एक चम्मच में १० ग्राम सामान आना चाहिए।
इस क्रिया से पानी शुद्ध भी होगा और दवा के गुण भी आ जाएंगे। यह पानी पेट की सारी परेशानियो से आपको मुक्त कर देगा।
शनिवार, 18 जून 2016
रेप केसेस और अपराध के पीछे का सच
पहला कारण -- जब भी कोई नारी गर्भवती होती है तो आयुर्वेद में उससे शारीरिक सम्बन्ध बनाने की स्पष्ट मनाही की जाती है।
उसको अत्यधिक आदर और सुख देने की बात कही जाती है। मगर ऐसा होता नहीं। इसका बिलकुल विपरीत होता है।पुराणों में अनेक कथाओं में आपने पढ़ा होगा कि गर्भवती नारी को देवता खुद प्रणाम करते हैं।और समाज में ?? गर्भवती नारी का मन शिशु से पूरी तरह जुड़ चुका होता है ,उसके द्वारा महसूस किया गया सुख दुःख और प्रत्येक स्वाद, एहसास और ज्ञान गर्भस्थ शिशु को मिलता है। अभिमन्यु की कथा तो आपको याद ही होगी। आप जब अपनी गर्भवती पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं तो वस्तुतः यह नैतिकता के विरुद्ध होता है क्योंकि आप पत्नी के साथ नहीं वरन गर्भस्थ शिशु के साथ सम्बन्ध बना रहे होते हैं. पत्नी का मन और तन दोनों ही न ऐसे सम्बन्ध की चाह रखता है ,न ही अनुकूल होता है। इस सम्बन्ध का बैड इफेक्ट शिशु के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। संयम और नैतिकता कंट्रोल करने वाला हारमोन यहीं डिसबैलेंस हो जाता है। शिशु को पहली शिक्षा ही शारीरिक आकर्षण और सम्बन्ध की मिलती है।
दूसरा कारण --- जब भी नारी गर्भवती होती है तो उसको छोटी -बड़ी अनेक दिक्कतें शुरू हो जाती हैं। फिर हर दिक्कत के लिए हम इंजेक्शन ,टैबलेट आदि अंग्रेजी दवाओं का सहारा लेते हैं। जिनके साइड इफेक्ट जरूर होते हैं। जबकि ये सारी दिक्कतें रसोई में मौजूद चीजों से ही दूर हो सकती हैं जिनका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। ये अंग्रेजी दवाएं गर्भस्थ शिशु शारीरिक ,मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए जिन महिलाओं ने गर्भवस्था में पेट दर्द और सर दर्द के लिए दवाएं ज्यादा ली होती हैं उनके बच्चों के बाल कम उम्र में ही सफ़ेद होने लगते हैं और आई साइट कमजोर हो जाती है। किसी किसी बालक को दोनों ही समस्याएं आती हैं। इम्युनिटी तो सभी बच्चों की जरूर कम हो जाती है ,नतीजा ये होता है कि पैदाइश के दो दिन बाद से ही डॉक्टर्स और हॉस्पिटल के चक्कर लगने शुरू हो जाते हैं। फिर इंजेक्शन, सीरप और टैबलेट का सिलसिला शुरू हो जाता है। नवजात शिशु को 6 माह तक माता के दूध के सिवा सारी चीजें देने की मनाही होती है और उस नाजुक कोमल शरीर में भारी भारी केमिकल एंटी बायोटिक रूप में पहुँचने लगते हैं। जो शिशु में हार्मोनल डिसबैलेंस पैदा करते हैं और बच्चे समय से पहले ही जवान होने लगते हैं। हम लोग सारा दोष इंटरनेट ,मूवीज,और टी वी के सिर मढ़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। जबकि छोटे बच्चों के ज्यादातर रोग तो मालिश ,सिकाई ,काढ़े ही दूर हो जाते हैं। अनावश्यक रूप से शरीर में पहुंची ये दवाएं बच्चों की एकाग्रता छीन लेती हैं ,धैर्य धारण करने की क्षमता खत्म कर देती हैं। उत्तेजना और क्रोध बढ़ा भी देती हैं। सोचिये हम किस तरह के नागरिक तैयार कर रहे हैं।
तीसरा कारण -- गर्भस्थ शिशु माता की संवेदनाओं को ग्रहण करता है ,इसीलिये गर्भवती को खुश रखने को कहा गया है ,उसके अच्छे खाने पीने ,घूमने,अच्छे साहित्य पढ़ने और सत्संग पर जोर दिया जाता है ,जिससे शिशु शांत,प्रसन्नचित्त और नैतिकता से भरपूर हो। हमारे समाज में होता है जस्ट उलटा। सास, नन्द झगड़े ,तकरार गर्भवती को या तो विद्रोह से भर देते हैं या अंजाना डर पैदा करते हैं। फलतः शिशु आक्रामक या दब्बू या कॉन्फिडेंस -लेस पैदा होता है। रही सही कसर टीवी सीरियल के परिवार तोड़ूं दांव -पेंच पूरी कर देते हैं।(याद कीजिये मूवी -"तीस मार खाँ ") जब नींव ही दुर्गुणों और दुष्प्रभावों से रक्त - रंजित हो तो उस पर शान्ति और सद्भावना की फसल उगेगी कैसे ?
ये दुष्प्रभाव उच्च कोटि की शिक्षा,पारिवारिक संस्कार और समाज के दबाव में दब सकते हैं ,और अनुकूल वातावरण शैतानियत को हावी होने से रोक सकता है। लेकिन ये बहुत मुश्किल है। आज कल की शिक्षा ज्ञान नहीं देती। मिड डे मील और नंबरों की होड़ तक सीमित रह गयी है ,डिग्री खरीद ली जाती है ,ज्ञान मिलता नहीं। परिवार एकल रह गए हैं और बचा समाज ;इंटरनेट ,वीडिओ गेम ,मोबाइल में १२ से 15 घंटे बिताने वाले किशोर वहां तो उच्च कोटि की मार धाड़ , नशे आदि आनंद का ककहरा सीखते हैं। इंसानियत की शिक्षा के स्रोत ही दुर्लभ हो गए हैं। तो नैतिकता पनपेगी कैसे। लेकिन फिर भी कहा जा सकता है कि बीज अच्छा होगा तो प्रतिकूल वातावरण में भी मीठी फसल देगा। इसलिए बीजों की क्वालिटी निर्धारित करना ही हमारे हाथ में है।
गुरुवार, 28 अप्रैल 2016
आपके गंजे सर पर कैथ बाल उगा सकता है.
इसे पहचाना आपने ?यह कैथ का फल है। जो अक्सर स्कूलों के बाहर बिकता हुआ दिखाई देता है। लड़कियां बड़े चाव से खाती हैं। कुछ खट्टा मीठा सा होता है। अक्सर इसे लोग हिकारत से देखते हैं। लेकिन ये है बड़े काम की चीज। आज के बाद कहीं बिकता दिखाई दे तो जरूर घर ले आइएगा।
इसका पेड़ सारे देश में पाया जाता है। छोटे और चिकने पत्तों वाला ये पेड़ कम से कम 15 फुट ऊँचा तो होता ही है। आप इसके फल के बीज कभी फेकिएगा। हार्ट पेशेंट के लिए तो अमृत हैं इसके बीज। इसके २ बीजों का चूर्ण बनाकर कम से कम २१ दिन तक निगल लीजिए ,सादे पानी से। हार्ट प्रॉब्लम ख़त्म। उसके बाद साल भर तक हफ्ते में एक ही बार बीजों का चूर्ण लीजिएगा।
कच्चे कैथ के गूदे के चूर्ण को खाने से आमातिसार अर्थात दस्त और आंव बहुत फायदा मिलता है। 5 ग्राम चूर्ण सादे पानी से 5 दिनों तक निगलिए।
कच्चे कैथ के रस में कसीस और करंज को पीस कर ३ माह तक लगाने से सिर पर बाल उग जाते हैं।
इसका तेल दाद, खाज, खुजली पर लगाने से आराम मिलता है।
बच्चों के पेट में दर्द हो रहा हो तो बेलगिरी और कैथ गूदे का शरबत मिला कर १-१ कप पिलाइए। एक बार पीने में ही आराम आ जाएगा।
कच्चे कैथ रस निकाल कर उसमे बराबर मात्रा में शहद मिलाइये और शहद की आधी मात्रा में छोटी पीपल का चूर्ण मिला लीजिये। यह दवा तैयार हो गई। किसी को उलटी आ रही हो तो आधा चम्मच यह दवा चटा दीजिये ,आराम मिल जाएगा। गर्भवती हों तो यह दवा जरूर बना कर रखिये। यह दवा बार बार आने वाली हिचकी में भी काम करती है।
दमा या अस्थमा की शिकायत हो तो कच्चे कैथ का रस १५ ग्राम रोज पीजिए। ४१ दिन में बीमारी जड़ से खत्म हो जायेगी।
कैथ के पत्ते भी बहुत काम के हैं। दांत,मसूढ़े,या गले में कोई गांठ या दर्द हो तो पत्तों के काढ़े से गरारा और कुल्ला दोनों कीजिये। तुरंत आराम मिलेगा। सफ़ेद पानी गिरने की शिकायत में इसके पत्तों के साथ बांस के पत्ते पीस कर शहद से २ महीने तक चाटिये।
कैथ अकेला ऐसा खट्टा फल है जो वीर्यवर्धक है। वर्ना सभी खट्टे फल वीर्य का नाश करते हैं।
कैथ को हिंदी में बिलिन या कटबेल भी कहते हैं। मराठी,गुजराती और फ़ारसी में इसे कबीट कहते हैं। इसे तेलगू में ऐलागाकाय और संस्कृत में कपित्थ ,कुचफल ,गन्धफल ,चिरपाकी ,बैशाख नक्षत्री,दधिफल कहते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे Feronia elephantum के नाम से जाना जाता है।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
गुरुवार, 21 अप्रैल 2016
सोमवार, 28 मार्च 2016
शुगर /मधुमेह/डायबिटीज की दवा
शुगर /मधुमेह/डायबिटीज की दवा बनने की प्रक्रिया में देखिये कितनी तरह की जड़ी बूटियां सूख रही हैं-
दवा बनने के कई फार्मूले मैंने पुराणी पोस्टों में लिख रखे हैं। अब किताबी सिद्धांतों को वास्तविक रूप में देखिये।
यह दवा ब्लड सुगर को भी कंट्रोल कर देती है। सुगर जड़ से एक साल में ख़त्म हो जाती है। आपकी गयी हुई ताकत लौट आती है।
सोमवार, 7 मार्च 2016
बुखार और शिव जी का धतूरा
आज आप सभी ने शिव जी को धतुरा अर्पित किया होगा। प्रसाद में एक धतूरा उनसे वापस लेकर उसके बीज निकाल लीजिये और सुखा कर किसी कांच की शीशी में सुरक्षित रखिये। जब बुखार किसी दवा से न जा रहा हो तो सिर्फ २ बीज पानी निगल लीजिये। बुखार आपको ही नहीं बल्कि आपका मोहल्ला छोड़ के फरार हो जाएगा।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
शुक्रवार, 4 मार्च 2016
नपुंसकता के लिए ...
पुष्ट देह बलवान भुजाएं रूखा चेहरा ,लाल मगर
लोगे या लोगे पिचके गाल ,संवारी मांग सुघर ?
यह प्रश्न आपसे किया जाए तो निश्चित ही आप पुष्ट देह और बलवान भुजाएं ही लेना चाहेंगे। लेकिन यह तभी संभव होगा जब आपके शरीर में वीर्य का निरंतर निर्माण होता रहे। आज के इस दौर में हमें ऐसा तरोताजा भोजन मिलता ही नहीं जिससे शरीर में पर्याप्त मात्रा में वीर्य निर्माण हो सके।आज के इस प्रगतिशीलता के दौर में तनाव और रेडिएशन भी वीर्य निर्माण की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। दिन भर बस,ऑटोरिक्शा ,ट्रेन आदि की यात्रा और समय पर गंतव्य तक न पहुँचने का तनाव मनुष्य की आधी शक्ति निचोड़ लेता है। हर शहर में जाम लगता ही है। जाम में फंसे लोगो का अगर ब्लड प्रेशर और हार्ट बीट नाप ली जाए तो डाक्टर सबको तुरंत I C U में भर्ती कर देंगे। यह अवस्था भी वीर्य का नाश करती है।
इससे भी बड़ा एक और दुश्मन है जो हर कदम पर मौजूद है --मोबाइल और मोबाइल टावर , घरों में फ्रीज ,ओवन, ए सी आदि से निकलने वाला रेडिएशन , ये सब भी महिलाओं और पुरुषों की जीवनी शक्ति क्षीण करते हैं। रेडिएशन की वजह से गर्भस्थ शिशुओं में भी विकृति आ जाती है।
यही नहीं जब किशोरावस्था में शरीर में वीर्य निर्माण शुरू होता है तो उसे संचित करने की बजाय युवा उसका दुरूपयोग शुरू कर देते हैं। हस्त-मैथुन तथा अन्य क्रियाओं द्वारा उसे नष्ट करने पर तुल जाते हैं। लड़कों में २१ वर्ष की उम्र लग जाती है वीर्य को पकने और पुष्ट होने में। लेकिन उसे कच्ची हालत में ही युवा दुरूपयोग करने लगते हैं वह पक नहीं पाता। इसका नतीजा निम्न बीमारियों के रूप में सामने आता है ---
***शरीर में भोजन नहीं लगता, भले ही आप कोई अमृत खा लीजिये।
***इम्युनिटी कमजोर हो जाती है।
***बुढ़ापा जल्दी घेर लेता है।
***कमर में दर्द बना रहता है।
***कामेच्छा ख़त्म हो जाती है। (पुरुषों और नारियों दोनों में )
***पेट के रोग हो जाते हैं और बाल सफ़ेद हो कर झड़ने लगते हैं।
***चेहरे और बदन की रौनक ख़त्म हो जाती है।
***मौसम चेंज होते ही आप बीमार पड़ जाते हैं।
***लिंग छोटा या टेढ़ा हो जाता है।
***युवावस्था में यौवन का भरपूर आनंद आप नहीं उठा पाते।
****लड़कियों में अनियमित मासिक स्राव तथा फेलोपियन ट्यूब में इन्फेक्शन की प्राब्लम जाती है।
***संतानोत्पत्ति में परेशानी आती है क्योंकि शुक्राणुओं की संख्या और गति दोनों ही कम होती है।
****अगर किसी तरह संतान हो भी गयी तो वह किसी न किसी बीमारी से दुखी रहती है।
सोचिये किशोरावस्था का थोड़ा सा सुख आपको कितना महँगा पड़ता है। क्योंकि बस यही आपके हाथ में होता है। तनाव और इलेक्ट्रिक और मैग्नेटिक रेडिएशन पर आप कंट्रोल नहीं कर सकते क्योंकि वह ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं।
आयुर्वेद में ही इसका सटीक उपचार है।
स्त्री और पुरुषों के लिए निर्गुण्डी रसायन तो हमने बनाने की विधि पिछली पोस्टों में लिखी ही है। इसके अतिरिक्त कुछ और दिव्य औषधियां हैं जिसकी पूर्ण जानकारी आप हमसे ले सकते हैं। यह दवाएं ऎसी नहीं होती कि सभी जगह आसानी से मिल जाएँ। किन्तु फिर भी मुझ जैसे कुछ अन्वेषी खोज ही लेते हैं।
पुरुषों के लिए एक ख़ास घी, तेल तथा महिलाओं के लिए एक अवलेह निरंतर वीर्य निर्माण की क्रिया को गति प्रदान कर देता है।
पत्थर सी हों मांसपेशियां, लोहे से भुजदंड अभय
नस -नस में हो लहर आग की तभी जवानी पाती जय।
आइये अपने शरीर में पुनः वीर्य निर्माण करें।
आप किसी जिज्ञासा के लिए मुझे फोन कर सकते हैं- ९८८९४७८०८४, 8604992545
मंगलवार, 12 जनवरी 2016
हड़जोड़ सिर्फ हड्डी ही नहीं जोड़ता
इसे और भी बहुत सारी बीमारियों से सही होती है कुछ बीमारियों के बारे में बता रही हूं -------
अगर अनियमित मासिक धर्म है तो इसके तने का रस दीजिए इसके तने का रस आप दो चम्मच लीजिए पांच सात दिन तक पीने से काफी लाभ आपको मिलेगा ।
इसके अलावा अगर गठिया है तो हर जोड़ की लकड़ी का टुकड़ा और उड़द की दाल पीस कर के पकौड़ी तिल के तेल में पकौड़ी बनाइए और उसको खा लीजिएगा और तुलगातार एक महीने खाने से गठिया जड़ से खत्म हो जाता है ।
अगर किसी के दर्द हो रहा है तो हड़ जोड़ के पत्ते और इसकी कोपल का पाउडर हर जोड़ के पतिऔर उसके तने के ऊपर वाली भाई ऊपर वाले का पाउडर पीस कर केसे पानी के साथ साथ दीजिए को वस्त्र बंद हो जाती है ।
अगर कान में दर्द हो रहा है बिस्कुट का रस निकालकर के दो बूंद कान में डाल दीजिए तुरंत आराम मिलता है ।
अगर मसूड़ों में सूजन आ गई है तू इसमें भी हर जोर बहुत काम करता है ए 10 ग्राम के रस को एक चम्मच शक्कर में मिलाकर पर चढ़ा दीजिए मसूड़ों की सूजन खत्म हो जाएगी ।यह काम आप को कम से कम एक 11 दिन करना चाहिए चरणों की सूजन अब अपने आप खत्म हो जाएगी।
अगर पेट में दर्द हो रहा है तो हड़जोड़ की 4 या 5 शाखा को चुने के पानी में उबाल लीजिये ।फिर उस पानी को छान कर पिला दीजिये।
यह औषधि ताकत भी प्रदान करती है ।5 ग्राम की मात्र में इसके चूर्ण को पानी के साथ लेने से अनोखे बल की प्राप्ति होती है।
बी भूख बढ़ानी हो तो हड़जोड़ सेंक कर उसकी चटनी बनाकर खाएं।
किसी को दमे वाली खांसी हो तो प्रतिदिन इसके ताने का 2 चम्मच रास पिलायें ।2 माह में टी बी या दमा जड़ से ख़त्म हो जायेगा।
खाना देर से हजम हो रहा हो तो हड़जोड़ का 2 ग्राम चूर्ण और सोंठ का 2 ग्राम चूर्ण मिलाकर पानी से निगलिये लगभग 12 दिनों तक ।
पूरे बदन में दर्द हो रहा हो तो बिस्तर पर हड़जोड़ की मुलायम टहनियों को बिछा कर उन पर सोने की सलाह आयुर्वेद देता है।
इसका वैज्ञानिक नाम है Vitis Quadrangularis.
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
सोमवार, 11 जनवरी 2016
आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिए
आजकल किडनी में इन्फेक्शन और रीनल फेल्योर की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसा कुछ भी आपके जीवन में न हो , इसके लिए आवश्यक है कि हम ऐसा काम करें जिससे हमारी किडनी पर किसी भी इंफेक्शन का असर ना हो उसका कार्य जिंदगी भर सुचारु रुप से चलता रहे.
सबसे पहले यह आवश्यक है कि जब भी आप भोजन करें तो उसके बाद यूरिन डिस्चार्ज जरूर करें भोजन के बाद यूरिन डिस्चार्ज से किडनी सही तरीके से काम करती रहती है और एक दूसरा उपाय और है उसको भी आप अवश्य करें हर सप्ताह में एक दिन कोई भी एक दिन निर्धारित करने उस दिन ककड़ी के बीजों का चूर्ण तीन ग्राम की मात्रा में तीन ग्राम चीनी मिलाकर के पानी के साथ निगल लीजिए। सप्ताह में एक बार ऐसा करने से आप अपनी किडनी को सारी जिंदगी सुरक्षित रख सकेंगे। किडनी पर इंफेक्शन का असर नहीं होगा और वह सही तरीके से काम करती रहेगी। जिससे ना किडनी ट्रांसप्लांट की समस्या होगी न ही पथरी या प्रोस्टेट की। स्वास्थ्य की अक्सर समस्याएं सिर्फ इस वजह से पैदा होती है कि हम सुचारु रुप से मूत्र विसर्जन नहीं करते हैं क्योंकि यूरिन डिस्चार्ज वह प्रमुख जरिया है जिसके माध्यम से हमारे शरीर का ज्यादातर विष बाहर निकल जाता है। यह विष , जो हम विभिन्न वस्तुओं के माध्यम से अपने शरीर में पहुंचाते हैं। इस विष को शरीर में संग्रहित करने से अच्छा है उसे यूरिन डिस्चार्ज के माध्यम से बाहर निकाला जाये।
गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015
कामयाबी
एक छोटी सी कामयाबी मिली है। लोग कहते हैं कि एक बार डायलिसिस शुरू हो जाय तो ये सारी ज़िंदगी होती रहती है। पता नहीं क्यों।
मगर अगर ये सच है तो आज दो लोगों को और उनके बीसों परिवारजनों को इस आफत से छुटकारा मिल गया। एक ७० वर्षीय बुजुर्ग हैं और दूसरे सज्जन तो अभी ४५ वर्ष के हैं। बुजुर्गवार की डायलिसिस बंद हुए तो 8 माह हो गए। वे प्रसन्न हैं। उनके नाती -पोते भी खुश। दूसरे सज्जन की तो अभी कच्ची गृहस्थी है और पूरा परिवार बहुत खुश है।
और मेरी ख़ुशी आप निम्न पंक्तियों से समझिए ------
दीनों का संतोष, भाग्यहीनों की गदगद वाणी,
नयन-कोर में भरा लबालब कृतग्यता का पानी,
हो जाना फिर हरा,युगों से मुरझाये अधरों का ,
पाना आशीर्वचन,प्रेम,विश्वास अनेक नरों का।
इससे बढ़ कर और प्राप्ति क्या जिस पर गर्व करें हम ?
पर को जीवन मिले अगर तो हंस कर क्यों न मरें हम ?
……… रश्मिरथी
भगवान से एक ही प्रार्थना है कि मुझे आयुर्वेद का और गहरा ज्ञान दीजिये जिससे मैं खुशियों के ढेर सारे फूल बिखेर सकूँ।
गुरुवार, 17 सितंबर 2015
सभी तरह के कीड़ो की दुश्मन काली जीरी
सबसे पहले आप काली जीरी और काला जीरा के चित्र को ध्यानपूर्वक देखिये -----
यह काला जीरा है
यह काली जीरी है
चरक कहते हैं कि ----
विषघ्नी च सोमराजी विपाचिता।
काली जीरी को देश के विभिन्न भागों में भिन्न -भिन्न नामों से पुकारा जाता है। ये नाम हैं-
सोमराजी, वनजीरक, अरण्यजीरक, मलौबक्शी, काकशम, बृहत्पाली, तिक्तजीरक, रणचजिरी, कलुजौरी, हकुच , बकौकी आदि। इसको वैज्ञानिक भाषा में Vernonia anthelmintika कहते हैं।
काली जीरी के पौधे की एक खासियत है की ये पड़ती जमीनो पर उगा हुआ मिलता है।
## चरक संहिता में स्पष्ट है कि शरीर में कैसा भी जहर हो काली जीरी उसको नष्ट करने की क्षमता रखती है। यह शरीर में मौजूद हर प्रकार के कीड़ों को मारने में सक्षम है। ५ ग्राम काली जीरी लेकर उसको २०० ग्राम पानी में धीमी हीट पर उबालिये। जब १०० ग्राम पानी बच जाए तो उसको थोड़ा ठंडा करके पी जाएँ। याद रखिये बहुत कड़वा होता है।५-६ दिन तक पीना पर्याप्त होगा।
## किसी को फालिज मार गया हो तो आप इसको पीस कर पानी के साथ पतली चटनी बनाइये और प्रतिदिन प्रभावित अंगो पर लेप कीजिये।एक महीने में आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिलेगा।
## चर्म रोग, सफ़ेद दाग,सोरायसिस ,असमय बाल सफ़ेद होना या बाल गिरना,इन सभी रोगों में काली जीरी और काले तिल को सूर्योदय से पहले लिया जाए तो एक साल में ही रोग जड़ से समाप्त हो जाता है। कैसा भी भयंकर चर्म रोग हो उसके कीटाणुओं का वंश ही समाप्त हो जाता है।
## इसके सेवन से श्वास नली की तकलीफ तथा हिचकी ख़त्म हो जाती है।
## यह शरीर से सारे बलगम को निकाल बाहर करती है। सर्दी की तकलीफ में बहुत आराम देती है।
## इसके काढ़े से बवासीर में भी आराम मिलता है। ५० ग्राम काली जीरी कच्ची ही पीसिये और ५० ग्राम भून कर पीसिये। दोनों चूर्ण मिलाइये। ४ ग्राम की मात्र में रोज खाइये। २१ दिनों में खूनी बादी हर तरह की बवासीर जड़ से ख़त्म हो जायेगी।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
मंगलवार, 1 सितंबर 2015
मुंह का कैंसर कभी नहीं होगा
हम बहुत अत्याचारी हैं। अपने मुँह साथ हम कितने कुकर्म करते हैं। कितना गर्म खा लेते हैं की मुंह जल जाता है। कितना ठंडा खा लेते हैं की मसूड़े काँप जाते हैं। कितना खट्टा, तीता, नमकीन, मीठा। नतीजतन बेचारे दांतों और जीभ की दुर्गति हो जाती है। फिर आज कल के पानमसालों का तो कहना ही क्या।कैंसर को खुला आमंत्रण !!!!! यही नहीं इसी मुंह से कुछ भी बोल देते हैं। भली बातों का प्रतिशत शायद कम ही होता होगा। बुरी बातें ज्यादा ही बोलते हैं। जबकि शब्द को ब्रह्म कहा गया है। जिसका सीधा सम्बन्ध मुंह और आत्मा से होता है। अगर अब भी आपको अपनी गलती का एहसास हो गया हो तो आइये इस मुंह के लिए कुछ अच्छा काम किया जाए --------
कम से कम ५ चम्मच सरसों का तेल मुंह में लीजिये और उसे दांतों से खूब चबाइए। यूं जैसे कि कोई बहुत कठोर चीज चबा रहे हों। ५ मिनट तक चबाने के बाद थूक दीजिये और साफ़ पानी से कुल्ला कर लीजिये। इस तेल को निगलना नहीं है। चबाने की प्रक्रिया के दौरान ये आपके शरीर के जहरीले तत्वों को खींच लेता है। और शरीर को निम्नलिखित फायदे पहुंचाता है ----
पान मसाला खा कर आपने जितने मसूड़े खराब किये हैं वो सही हो जाएंगे।
पायरिया ख़त्म हो जाएंगे।
दांत मजबूत होंगे और बुढ़ापे में गिरने की संभावना ८०% ख़त्म।
लीवर सही रहेगा।
जीभ में छाले नहीं पड़ेंगे।
टांसिल की शिकायत ख़त्म।
चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ेंगी।
छः रसों का स्वाद जीभ को महसूस होता रहेगा। अर्थात भोजन का असली आनंद महसूस होगा।
कम सुनने की शिकायत दूर होगी।
आँखों की रोशनी बेहतर रहेगी।
इतने सारे फायदे सिर्फ एक काम से -कि प्रतिदिन सवेरे सरसों का तेल मुंह में भरकर ५ मिनट तक खूब चबाएं।