आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

नियाज़ बो (बबुई तुलसी) हकीमों का अचूक हथियार

आदरणीय पद्म पुराण में उल्लिखित कार्तिक महातम्य की कथा के अनुसार वृंदा राक्षसी को मारने के बाद विष्णु भगवान् के भीतर क्षोभ उत्पन्न हो गया और वे सारे जगत का संहार करने लगे । हाहाकार मच गया । सारे देवता भागे हुए देवियों के पास गये और विष्णु को शांत करने का उपाय पूछा। देवियों ने बहुत सोच-विचार के बाद उन्हें तीन बीज प्रदान किए और कहा की जब भगवान् सोते हुए से दिखायी पड़े ,इन बीजों को उनके चारों तरफ बो दो ,वे शांत हो जायेंगे । पार्वती के दिए बीज से तुलसी उत्पन्न हुई ,लक्ष्मी जी के बीज से बबुई तुलसी उत्पन्न हुई और सरस्वती जी के बीज से कपूर तुलसी उत्पन्न हुई । इनके औषधीय गंध से विष्णु जी का क्षोभ शांत हो गया और संसार नष्ट होने से बच गया । ये पौधे तभी से देवों द्वारा ही नहीं ,मनुष्यों द्वारा भी पूजे जाने लगे ।आज भी हिन्दुओं के यहाँ कोई पूजा ,कोई अनुष्ठान बिना कपूर और तुलसी के संपन्न नहीं होता और मुस्लिमों के यहाँ कोई भी कार्य जन्म,शादी , मृत्यु तक बिना बबुई तुलसी के संपन्न नहीं होता । जो श्रद्घा और आदर हिंदू समाज में तुलसी को प्राप्त है वही मान -सम्मान मुस्लिमों के समाज में नियाज बो यानी बबुई तुलसी को प्राप्त है । वे घरों और मजारों तक में इसे जरूर लगाते हैं ,जो नहीं लगा पाते वे बबुई तुलसी की एक टहनी घर में हमेशा रखते हैं। जो पौधे विष्णु जैसे बलशाली ,ग्यानी ,ध्यानी परमात्मा को स्वस्थ कर सकते हैं वे तो हम जैसे साधारण मनुष्यों के लिए तो अमृत का ही काम करेंगे न । इसीलिए आयुर्वेद में इन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया गया । पूरी हिकमत (मुस्लिमों का आयुर्वेद शास्त्र) कुल चार तुख्म (बीज) पर आधारित है ,जिसमें एक है बबुई तुलसी के बीज ,जिन्हें तुख्म - ऐ - रेहाँ कहते हैं।
आइये अब हम इन पौधों की गुन्वत्ताओं पर निगाह डालें ----------
बबुई तुलसी ----

ये हमारे देश और विदेशों में जिन-जिन नामों से जानी जाती है वो इस तरह हैं---
हिन्दी--बबरी ,सब्जा ,बबुई तुलसी । संस्कृत-- बर्बरी। अरबी--शाह्सफ्रम । फारसी-- फिरंजमुश्क । उड़िया--धाल तुलसी । कश्मीरी--हज्बू । तेलगू--भू-तुलसी । पंजाबी-- बबरी । बंगाली-- बबुई तुलसी । मराठी-- सब्जा । मलयालम -- राम तुलसी । म्यांमार --काला पिन्गेन। संथाली--भरबारी । सिन्धी-- सब्झी । अन्ग्रेज़ी-- स्वीट बेसिल । जर्मन --बेसिलिन क्रओंत । फ्रेंच-- बेसिलिन कल्तिव । पीकन-- रुकू पागंग । मलाया-- डाउन रुकू । करक--मयाली । तेलों आंसन -- केमांगी ।
यह पर्शिया ,सिंध, पंजाब के कम ऊंचे पहाडों, गंगा के ऊपरी प्रदेशों ,हिमालय की तलहटी, अफ्रिका आदि जगहों पर स्वतः उगता है । इसकी पैदाइश गर्म प्रदेशों में मानी जा सकती है । यह सीधा, मृदु, बहुशाखीय, स्निग्ध, निर्लोम, सुगन्धित झाडीदार एवं वार्षिक पौधा है। जिसकी ऊंचाई ६० से १०० से० मी० तक देखी गयी है। शाखाशिखर हरे से जामनी रंग में परिवर्तित हो जाता है। पत्ते ८ से० मी० तक लंबे होते हैं । ये व्यस्त लात्वाकार, तीक्ष्ण , अखंडित , दानेदार व सुगन्धित होते हैं । बीज तैलीय ,काले रंग के ,स्वाद में चटपटे होते हैं । फूल बेहद सुगन्धित होते हैं । हरी फूलदार फुनगियों को आसुत करके तेल निकाला जाता है। पत्तों की चटनी खायी जाती है। सूखे पत्ते मसाले में लोग के स्थान पर प्रयुक्त होते हैं। पूरे पौधे में लौंग जैसी तीव्र गंध होती है। स्वाद चरपरा ,नमकीन और लुआब्दार होता है।

औषधीय प्रयोग --बंगाल में तुख्म- ऐ- रेहाँ को तोक्मारी भी कहते हैं। इसके बीज अतिसार , पुराने कब्ज ,आंतों के क्षोभ , बवासीर , मुंह की दुर्गन्ध आदि की अचूक दवा हैं .बीज को थोड़े पानी में भीगा दीजिये तो ये कुछ ही समय में फूलकर पानी के साथ लुआबदार जेली बना लेते हैं। इसमें गुड मिलाकर खा लीजिये ।
अजीर्ण ,पेट के दर्द और पेट के कीडों के लिए, सूखी खांसी और साँस फूलने में हरे पत्तों का रस दिया जाता है। पुराने बुखार तथा वात नादियों के दर्द में पत्तो का काढा पिलायें । मोच ,दाद फोडे-फुंसी पर पत्तो का ताजा रस मलिए । नाक -कान -आँख में कोई तकलीफ होतो पत्तो का रस दो -दो बूंद दोनों नाक में डालिए।
दांत निकलते समय बच्चों को जो दस्त आते हैं ,उनमें २५० मिलीग्राम बीज का चूर्ण शरबत के साथ प्रयोग करें । प्रजनन और मूत्र संस्थान के रोगों में सुजाक ,पूय्मेह और गुर्दे के विकारों में बीजों का लुआबदार पेय मिश्री मिलाकर पीजिये। बीज वीर्य को भी गाढ़ा करते हैं , ये उत्तेजक, कफ निस्सारक , दीपक और स्वेदक की क्षमता रखते हैं । साँप ,बिच्छु के काटने पर बीज मुंह में रखकर चबाएं । लसदार हो जाए तो आधा निगल जाएँ और आधा काटे हुए स्थान पर लेप दें। जहर ख़त्म ।
मेरा सुझाव है कि इतने काम के पौधे को आप अपने घर में जरुर लगाएं ।
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तुलसी --
इसका वैज्ञानिक नाम है-ओसीमम सेकतम । ये दो प्रकार की होती है-- १- श्री तुलसी २- कृष्णा तुलसी
इसके तेल का उपयोग सुगंध बनाने , औषधि निर्माण , कन्फेक्शनरी में और दंत मंजन निर्माण में होता है । यह मानसिक तनाव दूर करता है और सूजन कम करता है। पत्तियों का सार [रस/काढा ]खून में शक्कर कम करता है ,रेडियोधर्मिता से बचाता है, कफ, वात विकार को ख़त्म करता है, घाव ,दर्द , मोच , पीडा , जोडों के दर्द में लेपने से आराम होगा । यह मलेरिया विरोधी है .ये अग्निमंदता ,उदरशूल एवं आँत के कीडों को ख़त्म करता है। हर्दय उत्तेजक है ,खांसी ,दमा , मांसपेशियों तथा रीढ़ की हड्डी में जकदन,और बुखार दूर करता है,सबसे बड़ी बात जीवनी शक्ति बढाता है।
is paudhe में टेनिन ,सपोनिन्न , ग्लैकोसाईद , अल्केलैद , सीतोस्तेराल , फैतिक असिड , पामिटिक , स्तिय्रिक, ओलिक , लिनोलिक , लिनोलेनिक, श्लेशामक , पेन्टोज , हेक्सा यूरेनिक अम्ल और राख पायी जाती है ।
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कपूर तुलसी
इसे अन्ग्रेज़ी में कैम्फर बेसिल और संस्कृत में कर्पूर तुलसी ,भूत वेश्या ,लता कहते हैं ।
यह रोमिल शाखाओं वाली झाडी है जिसके पत्ते अंडाकार ,नोकदार , गहरे दांतेदार, आधार पर संकरे होते हैं । यह पौधा ६ माह में कटायी के लिए तैयार होजाता है । मैदानी भागों में इसकी तीन फसलें अगस्त .नवम्बर और मार्च में काटते हैं । इससे कपूर निकालने की घरेलू विधि आप जान लीजिये --
पौधा जैसे ही ६० से० मी० ऊंचा हो जाए तो जमीन से ५ से० मी० छोड़ के पूरा पौधा काट लें और ढेर लगा दें । जब पत्ते मुरझा कर सूख जाएँ तो उन्हें पीट पीट कर अलग कर लें । अब दो चौडे मुंह वाले घडे लीजिये .एक घडे में पानी के साथ सूखे पत्ते भर दें और आंच पर चढ़ा दें । दूसरे घडे को इसी के मुंह पर उलटा करके रख दें और दोनों घडे के मुंह पर गूँथे हुए आते से लिपायी कर दें ताकि वाष्प बाहर न जाने पाये । पानी उबलना शुरू हो जाए तो आंच धीमी कर दें और ऊपर वाले घडे के पेंदे को लगातार गीले और मोटे कपड़े से ढक दें । कपडे को लगातार पानी से तर करते रहें ऊपर वाले घडे की भीतरी दीवारों पर आपको कपूर जमा हुआ मिलेगा ,उसे खुरच कर निकाल लें ।
अगर सूखे पत्ते आप एक साल तक भी रखे रहें तो उसका कपूर ख़राब नहीं होगा ।
इसके बीजों से तेल भी निकलता है जो रंग -रोगन के काम आता है ।
मैंने तीनो तुलसी के बारे में जानकारियाँ आपको दे दीं । अब आप ख़ुद सोचें कि ये तीनो पौधे आपके घर में एक एक एक गमले में लगे रहने चाहिए कि नहीं ।

20 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत पहले आपसे इसी पौधे के बारे में पूछा था :)हमारे यहाँ इसको पबरी भी कहा जाता है ..बहुत ही महत्वपूर्ण पौधा है यह और आपने इसकी बहुत अच्छे से जानकारी दी है ..घर में ऊपर वाले आपके बताये तो दो पौधे तो लगे हैं पर कपूर तुलसी अभी भी समझ में नहीं आया साथ में चित्र भी होते तो अच्छे से और जान जाते ..बहुत बहुत शुक्रिया इसी तरह से और भी जानकारी देती रहे ..

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

अत्‍यन्‍त रोचक आलेख.. पढ़ कर जानकारी बढ़ी।

बेनामी ने कहा…

रोचक लाभप्रद उपयोगी जानकारी प्रस्तुत करने के लिए आभार.

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

अच्छी और उपयोगी जानकारी है. हम लोग बेवजह एलोपैथ के पीछे भाग रहे हैं, हमें अपना ही वांग्मय खंगालना चाहिए.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आज रविवार की छुट्टी की वजह से फुरसत से आपका ब्लॉग पढा , बहुत अच्छी जानकारियाँ दी है आपने ! कृपया इस अच्चे कार को जारी रखे, धन्यवाद !

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर और उपयोगी जानकारी के लिये धन्यवाद्

कंचनलता चतुर्वेदी ने कहा…

रोचक आलेख....धन्यवाद..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी jankaari का शुक्रिया ............ लाजवाब और adhbudh है tulsi का poudha .........

kabeeraa ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकरी , धन्यवाद

उन्मुक्त ने कहा…

यहां तो बहुत काम की सूचना है।

गर्दूं-गाफिल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
गर्दूं-गाफिल ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
गर्दूं-गाफिल ने कहा…

सम्माननीया
आपतो अद्भुत कार्य कर ही रही है
ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद
सर्वत साहब को गीत पसंद नहीं आया क्या ?
मेरे ब्लॉग पर उनके दर्शन के लिए उनका चित्र भी आज मोजूद नहीं मिला
उनके और उनकी टिप्पणी के दर्शन का अभिलाषी हूँ .
टिप्पणी तल्ख भी होगी tb bhee चलेगी

Naveen Tyagi ने कहा…

alka ji aapki di gayi jaankari vastav me bhut hi achchi hai.lekin aapse shikayat hai ki aap ne mere blog ko padhe bina hi uspar galat aaxep laga diya.satyarthved.blogspot.com mera hi blog hai.aap use padhe jaroor,aapki galatfahmi door ho jayegi.

Naveen Tyagi ने कहा…

alka ji aapki di gayi jaankari vastav me bhut hi achchi hai.lekin aapse shikayat hai ki aap ne mere blog ko padhe bina hi uspar galat aaxep laga diya.satyarthved.blogspot.com mera hi blog hai.aap use padhe jaroor,aapki galatfahmi door ho jayegi.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण और प्यारी रचना लिखा है आपने!ahut Barhia...aapka swagat hai...


http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Satish Saxena ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी !

Vinay ने कहा…

अल्का जी नमस्कार,
आपकी कलम से लिखा पढ़कर बहुत अच्छा लगा!

Alpana Verma अल्पना वर्मा ने कहा…

jaankari bahut achchhee hai..agar inke chitr bhi hote to behtar tha.
shukriya.

Alpana Verma अल्पना वर्मा ने कहा…

jaankari bahut achchhee hai..agar inke chitr bhi hote to behtar tha.
shukriya.