आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

एक सामाजिक मुद्दा

सभी पूज्यनीय महात्मा, साधक, मंत्र विशेषज्ञ, तंत्र विशेषज्ञ, पुजारी, पण्डित एवं ज्ञानी जन से हाथ जोड़कर एक जिज्ञासा का समाधान चाहती हूं------मान लीजिये हम कोई पूजा, किसी देवी देवता की आराधना कर रहे हैं और वह पूजा हमें नुकसान पहुंचा रही है तो उसकी काट क्या होगी।                 जैसे मैं आयुर्वेद का थोड़ा बहुत ज्ञान रखती हूं । मैंने आपको कोई जड़ी बूटी या दवा लीवर सही करने के लिए दी।उस दवा ने लीवर तो सही किया नही, बल्कि अच्छी खासी किडनी खराब कर दी। लक्षण पता चलते ही उस दवा की काट दे दी गयी तो नुकसान की भरपाई हो गयी। जो जड़ी बूटियां जीवन बचाती हैं वही कभी कभी जीवन खत्म भी कर देती हैं ।ठीक इसी तरह पूजा साधना मंत्रो की भी स्थिति है।आप ऐं मन्त्र का जप कर रहे हैं माँ सरस्वती के लिए ।कहीं ऐसा हो कि ज्ञान तो मिल नहीं चलने की शक्ति और खत्म हो गयी।तो इसकी काट का पता होना चाहिए।जैसे भांग खाने वाले नीबू या अमरूद रखे रहते हैं कि अगर ज्यादा चढ़ गई चक्कर वगैरा आने लगे तो उसकी काट नीबू या अमरूद तुरंत खा लेंगे।।                             तो प्लीज पूजा साधना न सहने पर उसकी काट की जानकारी जिन्हें हो, कृपया मुझे बताएं।
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जी शायद आप मेरी तकलीफ के सबसे ज्यादा निकट पहुंच गए हैं।जब खुद को तकलीफ होती है तो दूसरे की पीड़ा समझ मे आती है।मुझे सैकड़ो लोग मिले होंगे जो बताते है बहुत अनुष्ठान करा लिए, अनेक पंडितो से मिल आये ,कोई रिजल्ट नही मिला।और अनेको का विश्वास ही पूजा पाठ से हट जाता है ।जितनी दलीलें यहां  है न ,मैं भी ऐसे ही बताती रही हूं कि मंत्रो में बड़ी शक्ति है बशर्ते सही ढंग से पढ़ा जाए। मन्त्र है ॐ नमः शिवाय ।लोग पढ़ते है ॐ नमः सिवाय।शिवाय का अर्थ है कल्याण के लिये।सिवाय का अर्थ हुआ अतिरिक्त या अलावा।तो फल भी तो गलत ही मिलेगा।
यह समझाने की चीज तो है और सत्य भी किन्तु अब सुंदरकांड का पाठ करना नुकसान दे रहा है तो क्या करें।हनुमान जी को फल फूल चढ़ाना नुकसान दे रहा है तो क्या करें।

सोचिये और मनन करके ठोस मार्ग खोजिये। वरना हम अपने धर्म और मंत्रो को इज्जत नही दिल पाएंगे।पंडितो की तो वैसे ही समाज हंसी उड़ा रहा है।

1 टिप्पणी:

रवि ने कहा…

इसका उत्तर भला कहाँ मिलेगा दूसरों से । खुद ही तलाशना होगा ।