आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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सोमवार, 21 सितंबर 2009

मंत्र का अर्थ

आदरणीय रंजू भाटिया जी ने इसके पूर्व की पोस्ट में दिए गये मन्त्र का अर्थ जानना चाहा है । मैं उसका भावार्थ प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हूँ -----
ये मंत्र मैंने आठ वर्ष पूर्व किसी वैज्ञानिक द्वारा जडी -बूटियों पर लिखी गयी एक किताब की भूमिका में पढा था । उनका आशय ये था कि हम निरुद्देश्य इन्हें नष्ट न करें तथा सम्मान पूर्वक उन्हें अपना रोग दूर करने के लिए आमंत्रित करें। मुझे याद है कि जब चाय में डालने के लिए या भोग लगाने के लिए मम्मी तुलसी की पत्ती तोड़ कर लाने के लिए कहती थीं तो याद दिलाती थीं कि पहले गोड़ धर लेना अर्थात प्रणाम कर लेना । वैज्ञानिक महाशय का भी यही आशय रहा होगा ये मंत्र बताने के पीछे । मैंने इसे नोट कर लिया था और आपको बता दिया । ये यजुर्वेद का मंत्र है । जैसे हम किसी को अपने घर दावत पर बुलाते हैं तो बेहद सम्मान और नम्रता का प्रदर्शन करते हैं और यह कहना नहीं भूलते हैं कि आपने हमारी कुटिया में ये रुखा सूखा भोजन ग्रहण करके हमें कृतार्थ किया अर्थात हम आपके एहसानमंद हुए । जबकि वहीं किसी भिखारी को खाना देते हैं तो हमारे मन में ये भाव रहता है कि हमने इसके ऊपर एहसान किया भले ही वो भिखारी हमसे न मांग रहा हो।
अब देखिये प्रक्रिया एक ही है -दूसरे को खाना खिलाने की ,मगर भावना एकदम विपरीत ।
इस मंत्र में इसी भावना को कंट्रोल करने की शिक्षा दी गयी है----
भावार्थ है कि -----
आप उस पौधे से निवेदन करें कि मैं ............. पुत्र .............आपकी शरण में आया हूँ .मैं ...........रोग से ग्रसित हूँ । आपको देवताओं के राजा इन्द्र ,वायु और पृथ्वी ने इस ..........रोग को ख़त्म करने के गुण प्रदान किए हैं । मैं नतमस्तक होकर उन सभी गुणों सहित आपका आह्वान करता हूँ । मुझे पता है कि आपकी शक्तियां [गुण] कभी व्यर्थ नहीं जाते । इसलिए यहाँ पर स्थित हे वनस्पति मैं आपको यहाँ से खोदने की अनुमति चाहता हूँ । मैं बिना कारण के आपको परेशान नहीं कर रहा हूँ । कृपया हे कल्याणी मेरा कार्य सिद्ध कीजिये [अर्थात मुझे रोग मुक्त कीजिये ]मुझे सुखी करके आपको भी सुख का अनुभव होगा। [आप स्वर्गगामी होगीं ]
चूँकि प्रत्येक जीव को स्वर्ग की चाहत होती है ,इसलिए स्वर्गगामी होने को स्थूल अर्थ में लीजिये । जिस तरह किसी का दुःख दूर करके आप ख़ुद भी सुख का अनुभव करते हैं उसी तरह ये वनस्पतियाँ भी आपको निरोग करके अपना जन्म सार्थक मानती हैं और सृष्टि के रचयिता को आत्म संतुष्टि होती है कि उसके हवा ,पानी और मिट्टी की शक्तियों का सदुपयोग हुआ ।