आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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शनिवार, 5 दिसंबर 2009

स्वस्थ भारत की ओर

इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा साप्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यता प्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

हमारा देश कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था ,दूध ,दही की नदियां बहती थी यहाँ ,हमारे पुरखे सोने चांदी के बर्तनों में भोजन करते थे ,सौ साल की उम्र तक स्वस्थ व ज़िंदा रहते थे . अब आज का समय देखिये --दूध -दही के दर्शन दुर्लभ हैं . सोना चांदी तो बस दुकानों में या फिर दहेज़ के तौर पर दुल्हन के शरीर पर दिख जाता है .अब प्लास्टिक के बर्तन और सजावटी ज्वेलरी का ज़माना है और स्वास्थ्य! वो तो बस किताबों और स्लोगन / नारों में ही दिखाई देता है ,इंसानों में तो बमुश्किल ही . १७ वर्ष का किशोर और बाल झड़ रहे हैं .१० वर्ष का बच्चा और आँखों पर चश्मा चढ़ा है .१३ वर्ष की कन्या तो १३ वर्ष की कहीं से लगती ही नहीं .या तो अति विकास या फिर विकास ही नहीं .ये सब क्या है ? हम स्वस्थ किसे कहें ? हर घर में दो बीमार मौजूद है . आह /ओह रोज मुंह से निकलता है ,आखिर क्यों ?
बहुत गहन अध्ययन एवं विश्लेषण के पश्चात यह दिखाई दिया कि हम प्रकृति प्रदत्त औषधीय उपहारों को भूल चुके हैं. अब जड़ी-बूटियों के नाम या तो किताबों में मिलते हैं या फिर सड़क किनारे तम्बू गाड़े हुए आदिवासी अथवा नीम -हकीमों के पास ..हकीम शब्द जो कभी बेहद सम्मान का पर्याय होता था,जिनके सामने हर किसी का सिर झुकता था ,आज एक गाली जैसा बन कर रह गया है आखिर क्यों? भारत एक कृषि प्रधान देश है . हर तरफ हरियाली है . हर खर-पतवार यहाँ तक कि दूब में भी औषधीय गुणों की प्रचुरता है ,फिर भी हम बीमार हैं .क्योंकि हमने अपनी इस संपदा को सिरे से ही भुला दिया .
आज आवश्यकता है- इन वनस्पतियों को पहचानने, इनके गुणों के बारे में जानने और उनका प्रयोग करने की ,जिससे हम एक - दो वर्षों में नहीं तो कम से कम १० वर्षों में ही स्वस्थ भारत का निर्माण कर सकें .
इसके लिए प्रत्येक विद्यालय में एक साप्ताहिक क्लास होनी चाहिए जैसे पी० टी० या खेल की होती हैं . विद्यालय में ही एक गार्जियन क्लास होनी चाहिए जिसमें महीने में एक या दो बार उन्हें जड़ी - बूटियों की जानकारियाँ दी जाएँ और बच्चों को स्वस्थ रखने के नुस्खे बताये जाएँ . यही एक कदम ऐसा है जिससे हम १० वर्षों में स्वस्थ भारत की कल्पना कर पायेंगे


महंगी चिकित्सा और रासायनिक दवाओं के " साइड इफेक्ट्स " को ध्यान में रखते हुए ,अपनी प्राकृतिक संपदा का उपयोग और उनका संरक्षण हमारा धर्म और कर्तव्य है .देश की बहुत बड़ी जनसंख्या ,जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन -यापन कर रही है,उसके लिए ये औषधियां वरदान होंगी क्योंकि इनमें पैसा कम खर्च होगा ,ये सुलभ हैं और स्वास्थ्य की रक्षा करने में पूर्ण सक्षम हैं .
मैं उदाहरण के तौर पर कुछ मिश्रण के बारे में बता रही हूँ जो अचूक दवा के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं----
१- सफ़ेद मूसली +अश्वगंधा +गिलोय ------------------ थकान दूर करने और ताकत के लिए
२- अश्वगंधा +तुलसी ------------------ शरीर में नयी कोशिकाओं के निरंतर निर्माण के लिए
३- जटामांसी +सतावर +ब्राह्मी ------------------ तनाव से दूर रखेगा, बाल झड़ने और पकने से रोकेगा
४- जटामांसी +शंखपुष्पी +अश्वगंधा ----------------- दिमाग तेज होगा ,कंसंट्रेशन बढेगा
५- अश्वगंधा +गिलोय ----------------- बल -वीर्य को पुष्ट करेगा ,नपुंसकता और बांझपन रोकेगा
शेष अगले अंक में