आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

फ़ॉलोअर

बुधवार, 28 सितंबर 2022

लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर

बड़ी मुसीबत है, कुछ बताना भी गुनाह है।लोग ऐसे ऐसे ताने दे रहे हैं, एक सज्जन ने तो व्हाट्सअप पर ग्रुप में करेले वाली टिप्स के नीचे लिख दिया कि सितंबर में भिंडी न खाएं बेसन तो बिल्कुल नही।
मुझे क्रोध आना लाजिमी था।शायद यही कारण है कि आज अस्पतालों के धन्धे खूब चमक रहे हैं।
मैं ही पागल हूँ।खाओ भइया, कुंवार में करेला भी खाओ, भादो में दही भी खाओ।मेरे पेट मे दर्द थोड़ी होगा।न मेरे पल्ले से पैसे खर्च होंगे।
एक सज्जन मस्तिष्क के बारे में शोध परक पोस्ट लिखते हैं, विद्वान लगते हैं, उनका कहना था कि लीवर तो हमेशा एक ही जैसा पाचक रस देता है।
अब ये नार्मल सी बात है कि ऐसा कैसे संभव होगा। यही शरीर है न ।आज जैसे कपड़े पहन कर आप घूम आते हैं क्या आज से 4 महीने बाद यही कपड़े पहन कर घर से बाहर निकलने की हिम्मत होगी ??
तो ये सामान्य सा सामान्यज्ञान क्यो नही समझ मे आ रहा कि शरीर के प्रत्येक अंग का व्यवहार मौसम के अनुसार बदलता है।

2 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

बहुत नाराज़ हैं आज तो अलका जी ☹🙏

बेनामी ने कहा…

जी क्या करें
लोग व्हाट्सअप यूनिवर्सिटी के स्कालर है ।हम बिचारे लोग किताबों में पढ़ कर आँखे फोड़े हैँ