३६ करोड़ देवताओं की सरजमीं पर
हम देवियाँ हैं!
यहाँ कोई कोशल्यानंदन नहीं होता
यहाँ कोई राधेय नहीं है अब,
अब कोन्तेय भी नहीं होते
अब हमारे नाम से नहीं पहचाने जाते हमारे पुत्र
फिर भी हम देवियाँ हैं।
सड़क पर निकलते ही तौला जाने लगता है हमारा बदन ,
निगाहों ही निगाहों में;
ट्रेन और बस में
हमसे चिपक जाते हैं सब
भीड़ के बहाने
क्योंकि हम देवियाँ हैं।
तथाकथित भाई , पिता
पति और पुत्रों के सहारे
हम ढ ti रहती हैं अपने सपने
और अपनी लाशें , जिन्दगी भर ;
क्योंकि
हम देवियाँ हैं।
5 टिप्पणियां:
सही कहा आपने हम देवियाँ हैं । हमें इन्सान समझने की भूल ये समाज़ कैसे कर सकता है ।
देवियाँ.....बहुत सही शब्द चुना है आपने ....
हम महिलाओं को यही कह कर बहला दिया जाता
है हमेशा ....आशा जी ने भी सही कहा हमे इंसान समझने की भूल
ये समाज कैसे कर सकता है....देवी तो एक मूर्ति ही होती है....
उसमे दिल नही होता ...उसके कोई जज़्बात नही होते ....
बस अपनी इच्छा पूर्ति के लिए पूजा की जाती है .....
आयुर्वेदिक चिकित्सा का ज्ञान बाँटने की आपकी भावना अभिनन्दनीय है
आपकी यह कविता भारतीय महिलाओं को अपने स्वर्णिम अतीत से प्रेरणा लेकर पुझ स्वर्णमयी होने को प्रेरित करती है ।
आपके चिकित्सकीय परामर्श का शुल्क क्या है । कृपया अवगत कराएँ । धन्यवाद
देवीजी, आयुर्वेद के प्रचार के लिये धन्यवाद , यदि आप अपना प्रचार नहीं कररहीं तो।
---जब देवियां होतीं थीं, तभी तो राधेय, कौन्तेय होते थे। अब देवियां कहां रहीं, वे तो हीरोइनॆं, नंगी तस्वीर खिचाने वालीं-सेलीव्रिटी,झूठे तेल-पाउडर बेचने वाली-बाज़ारू औरत हो गई है---राधेय-कौन्तेय कहां से आयें ?
स्त्री देवी कहलाएगी या इस समय में बाजारू औरत . इंसान जाने कब ?
एक टिप्पणी भेजें