आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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शनिवार, 25 अप्रैल 2009

गिलोय [अमृता]

आज मैं आपको एक ऐसी औषधि के बारे में बताने जा रही हूँ जो आपके लिए बिल्कुल अनजानी नहीं है। अपने चारों तरफ निगाह दौडाएं कहीं न कहीं आपको दिखायी दे जायेगी । उसका नाम है गिलोय । इसे गुर्च भी कहते हैं । संस्कृत में इसे गुडूची या अमृता कहते हैं । कई जगह इसे छिन्नरूहा भी कहा जाता है क्योंकि यह आत्मा तक को कंपकंपा देने वाले मलेरिया बुखार को छिन्न -भिन्न कर देती है।

यह एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। बेल को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये नीचे आपको हरा,मांसल भाग दिखाई देगा । इसका काढा बनाकर पीजिये । यह शरीर के त्रिदोषों को नष्ट कर देगा । आज के प्रदूषणयुक्त वातावरण में जीने वाले हम लोग हमेशा त्रिदोषों से ग्रसित रहते हैं। त्रिदोषों को अगर मैं सामान्य भाषा में बताने की कोशिश करूं तो यह कहना उचित होगा कि हमारा शरीर कफ ,वात और पित्त द्वारा संचालित होता है । पित्त का संतुलन गडबडाने पर। पीलिया, पेट के रोग जैसी कई परेशानियां सामने आती हैं । कफ का संतुलन बिगडे तो सीने में जकड़न, बुखार आदि दिक्कते पेश आती हैं । वात [वायु] अगर असंतुलित हो गई तो गैस ,जोडों में दर्द ,शरीर का टूटना ,असमय बुढापा जैसी चीजें झेलनी पड़ती हैं । अगर आप वातज विकारों से ग्रसित हैं तो गिलोय का पाँच ग्राम चूर्ण घी के साथ लीजिये । पित्त की बिमारियों में गिलोय का चार ग्राग चूर्ण चीनी या गुड के साथ खालें तथा अगर आप कफ से संचालित किसी बीमारी से परेशान हो गए है तो इसे छः ग्राम कि मात्र में शहद के साथ खाएं । गिलोय एक रसायन एवं शोधक के र्रूप में जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने देती है । यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है। किसी ही प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह काम करती है । मलेरिया बुखार से तो इसे जातीय दुश्मनी है। पुराने टायफाइड ,क्षय रोग, कालाजार ,पुराणी खांसी , मधुमेह [शुगर ] ,कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ पहुंचता है । बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। इसे सोंठ के साथ खाने से आमवात-जनित बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं ।गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धड़कन को काबू में लाया जा सकता है।
गिलोय का वैज्ञानिक नाम है--तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली , गुजराती में गालो , मराठी में गुलबेल , तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन ,गिलो इन , गिलोइनिन , गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं । नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो ।
मैं आपको इस ब्लॉग पर जिन जडी-बूटियों के बारे में बता रही हूँ , उनकी खेती या किचन गार्डेन या गमलों में उन्हें उगाने के तरीके भी बता सकती हूँ अगर आप लोग पसंद करें तो मुझे अपनी राय से फोन,मेल या कमेन्ट से अवगत कराएँ ।

8 टिप्‍पणियां:

संध्या आर्य ने कहा…

आप गिलोय से सम्बन्धित जो भी जानकारी आपने दी सही मे गिलोय की कई लाभ है......मै भी कई तरह के रोगो के लिये उपयोग मे लाती हुँ!

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

bahut hi kaam ki jaankari di aapne..dhanyavaad

रंजू भाटिया ने कहा…

मेरे घर में काफी अच्छी बेल लगी है इसकी ,पर इसका चूर्ण कैसे बनाया जा सकता है ..सूखने पर यह अजीब सी हो जाती है इस लिए इसको हम अधिकतर हरे रूप में ही इस्तेमाल करते हैं ..

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी ।

Arvind Mishra ने कहा…

गिलोय के बारे में अच्छी जानकारी -अबब रामदेव तो इसे स्वायिन फ्लू में भी कारगर बता रहे हैं -क्या सही है ?

gulrai ने कहा…

aapnay giloy kay baare may jo jaankari di hai woh bahoot hi gyan vardhak hai. janna chahta hoon ki bahoot say pattay isi tarah kay hotey hai pehchan kaise ki jaaye.

Unknown ने कहा…

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Unknown ने कहा…

Kya aap giloye satva banane ka tareka Bata sakte hai