आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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शनिवार, 18 जुलाई 2009

" शक्ति - अमृत "



''आयुर्वेद का अर्थ औषधि-विज्ञानं नहीं वरन आयु अर्थात जीवन-विज्ञान है ''



अथर्ववेद के तीसरे अध्याय का श्लोक है ----
" शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर "
'' कृतस्य
कार्यस्य चेह स्फातीं समावह ''
इसका अर्थ है --------
'' सौ
हाथों से संग्रह करो ,हजार हाथों से दान करो .अपने कार्यक्षेत्र तथा कर्तव्य क्षेत्र की अभिवृद्धि करो ।
''
व्यवहारिक भवार्थ यह है की सैकड़ों सूत्रों से अर्थात लोगों [[ यही आप का कार्य क्षेत्र है ]] से प्राप्त ज्ञान को हजारों के मध्य इस भावना के साथ बाँट दो कि उनमें से प्रत्येक इसी नियम का पालन करेगा [[ यही आप का कर्तव्य क्षेत्र है ]]
ज्ञान बड़े से कठिन परिश्रम से अर्जित होता है अतः इसे तपस्याओं से प्राप्त हुआ भी हा जाता है परन्तु आज उपरोक्तश्लोक में दिए गये इसी आदेश का पालन करते हुए बड़ी तपस्याओं से प्राप्त हुआ ज्ञान , आपको बांटने जा रही हूँ| पुरानीपीढी के बारे में यह आक्षेप बार-बार लगाया जाता रहा है कि पुरानी पीढी ज्ञान बांटने में संकोच करती रही थी , फलतः हम निरे अज्ञानी रह गए हैं , जब कि वास्तविकता इसके विपरीत है । वेद - ज्ञान का लुप्त हो जाना उचित ही था क्यों कि उन वेद ज्ञान में ही सृष्टि रचना का रहस्य छिपा थाअर्थात जो उस वैदिक ज्ञान को पा जाता उसे प्राकृति एवं सृष्टि सञ्चालन का सूत्र एवं शक्ति प्राप्त हो जाती और यहीकारण है कि वैदिक एवं पुराण कथाओं में दैत्यों ,दानवों एवं असुरों तथा राक्षसों द्वारा वेदों के चुराए जाने एवं ईश्वर केविभिन्न ' अवतारों ' द्वारा उन्हें पुनः - पुनः प्राप्त कर सुरक्षित कराने कि कथा आती हैं | हाँ भौतिक जीवन से जुड़े बहुत से , पारंपरिक ज्ञान भी लुप्त हो गए | प्रारम्भ में तो इन्हे विदेशी आक्रान्ताओं से सुरक्षित रखने हेतु छिपाया गया यह वहीअवशेष भाग था जो आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट कराने से पूर्व ही विद्वानों द्वारा अपने शिष्यों के मध्यम से छुपाया जा चुका था , उदहारण तक्षशिला विश्वविद्यालय ही है जो महीनो विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा लगायी आग में जलता रहा | बाद में विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का इतना अवमूल्यन कर दिया गया कि हम आज बस क्लर्क बुद्धि मात्र रह गये , अतः हम ही इस योग्य नही रह गए कि उनका महत्त्व समझ उसकी आकर्षित होते | काश अब से हमारे ज्ञानी -विज्ञानी चेत जाते। खैर हमही पहल कर रहे हैं , शायद हमारी आने वाली पीढियों का कुछ तो भला होगा :----------
असली बात ----
आप अपने आस -पास किसी पंसारी की दूकान से निम्न तीन चीजें हासिल करें --
१-- अश्वगंधा की जड़
२-- तुलसी की सूखी पत्तियाँ
३ -- गिलोय [तना भाग]
इन्हें महीन पीस कर चूर्ण बना लीजिये। चूर्ण की मात्रा क्रमशः ५० ग्राम ,२० ग्राम और १५ ग्राम होनी चाहिए इस चूर्ण को मिला कर ''अमृत पावडर ''बना लीजिये इस चूर्ण को सवेरे खाली पेट एक चम्मच [[चार ग्राम ]] पानी से निगल जाइये नियम पूर्वक इसका सेवन करने से आप अद्भुत शक्ति प्राप्त कर लेंगे थकान गायब ,सर दर्द ,बदन दर्द से मुक्ति , आदि-आदि !


[[मूल आलेख '' Alka Sarwat '' ]]
[[ सज्जा सहयोग ''अन्योनास्ति '' ]]

रविवार, 12 जुलाई 2009



आयुर्वेद का अर्थ औषधि-विज्ञानं नहीं वरन आयु अर्थात जीवन-विज्ञान है



गुरुवार, 11 जून 2009

स्टीविया अर्थात आयुर्वेदिक चीनी

स्टीविया से आप सब अनजान तो होंगे नहीं। स्टीविया रिबाऊदियाना मूळ रूप से पेरूग्वे का पौधा है । वहाँ ये बेहया की तरह अपने-आप उग जाता है। यह पौधा सामान्यतः शक्कर से तीस गुना मीठा होता है । यही नहीं इसका एक्सट्रेक्ट चीनी से तीन सौ गुना मीठा होता है । इसके गुणों को जानना तो जैसे आम मानव के लिए वरदान बन गया । आज के समय में जब मधुमेह की बीमारी एक महामारी का रूप लेती जा रही है और शुगर फ्री , ईकुअल ,टोटल जैसी दवाएं हर दसवें घर में प्रयोग की जा रही हैं तो सावधानियां नितांत आवश्यक हो गयी हैं। विश्व की मधुमेह आबादी में हर पांचवा व्यक्ति भारतीय देखा गया है। अब आप सभी चीनी छोड़ कर स्टीविया का प्रयोग शुरू कर दीजिये।
स्टीविया की व्यवसायिक खेती जापान, पेरूग्वे , कोरिया, ताईवान , अमेरिका तथा एशिया में हो रही है। भारतवर्ष में पंजाब ,मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र , कर्णाटक, आंध्रप्रदेश, और थोड़ी मात्रा में उत्तर प्रदेश में भी हो रही है। आप भी चाहें तो अपनी गृहवाटिका में इसके दस -पाँच पौधे लगा सकते हैं क्योंकि बुजुर्गों ने कहा है की सावधानी हमेशा अच्छी होती है।
स्टीविया का पौधा ७० से०मी० ऊंचा पौधा है । यह बहुवर्षीय झाडीनुमा पौधा है जिसे पनपने के लिए १२ से ४५ डिग्री तापमान चाहिए ।
स्टीविया के पत्ते का स्वाद मीठा होता है । इसके पत्तों में स्टीवियोसाइड , रीबाऊदिस , रीबाऊदिसाइद्सी , डुल्कोसाइड , जैसे योगिक पाये जाते हैं ,जिनके कारण पत्तों में इंसुलिन बैलेंस करने की शक्ति आ जाती है। स्टीवियोसाइड इसके पत्तों में ५ से २० % तक पायी जाती है । १०% स्टीवियोसाइड वाले पत्ते अच्छे माने जाते हैं।
इन पत्तों का उपयोग आसान सा है। इसके पत्तों को छाये में तीन दिन सुखा लीजिये । फ़िर उन्हें मिक्सर में महीन पीस लीजिये । एक कप काफी या चाय में इस चूर्ण की आधे से एक ग्राम मात्रा काफी होगी। इस चूर्ण को आवश्यकता के अनुसार आप हर मीठी चीज को मीठा करने के लिए डाल सकते हैं । तैयार सामान पूरी तरह कैलोरी शून्य होगा । अब शुगर के रोगी जितनी चाहें मिठाई खाएं वो भी धड़ल्ले से । यह पूरी तरह से हर्बल है जबकि आज तक जो भी कैलोरी फ्री शुगर फ्री दवाएं प्रयोग हो रही थी सबमें कोई न कोई साइड इफेक्ट का ख़तरा था और स्टीविया हर तरह के साइड इफेक्ट से मुक्त है । इसके अलावा यह हाई ब्लड प्रेशर एवं ब्लड शुगर का भी नियमितीकरण करता है । यह चर्म रोगों में भी फायदेमंद है। यह एंटी वायरल तथा एंटी बैक्टीरियल का भी काम करता है ।
भारतीय भोजन का जरूरी हिस्सा मिठाई होती है । खीर ,हलुआ, शरबत तो प्रतिदिन की एक डिश है .पर हम अब शारीरिक श्रम कम करते हैं तो अनावश्यक कैलोरी के साथ मोटापा बढ़ने के डर से मीठा खा नहीं पाते । अब मन मसोसने की जरूरत नहीं । जी भर कर मीठा खाएं पर गन्ने की चीनी नहीं स्टीविया की चीनी ।

गुरुवार, 28 मई 2009

ग्वारपाठा




इस पौधे को तो आप सभी ने पहचान लिया होगा । कभी न कभी गमलों में भी लगाया होगा । ग्वारपाठा ,एलोवीरा, घ्रित्कुमारी , ग्रिहकन्या आदि नामों से पुकारा जाने वाला यह पौधा कन्याओं का सौन्दर्य बढ़ाने के काम में ही लिया जाता है। इस पौधे को सदियों पहले महारानी क्लियोपेट्रा का प्रिय माना जाता था ,उनके सौन्दर्य प्रसाधनों का यह महत्वपूर्ण अंग था । यह मूलतः दक्षिणी अफ्रीका का पौधा है जो सोलहवीं शताब्दी में भारत में आया। अब तो हमारे देश के छः राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। यह दो फुट ऊंचा पौधा होता है । इसकी मांसल पत्तियाँ १२से १५ इंच लम्बी होती हैं तथा पौन इंच मोटी होती हैं जिनके किनारों पर कांटे होते हैं । यही पत्तियाँ दवा के रूप में प्रयोग की जाती हैं । इन्हें काटने पर पीले रंग का रस निकलता है जो ठंडा होने पर जम जाता है जिसे मुसब्बर ,कुमारीसार,एलोज एलुआ, सिब्र आदि नामों से जानते हैं ।

औषधीय उपयोग --- इस मुसब्बर [गूदे] में घी ,चीनी तथा दूध मिलकर हलुआ बनाया जाता है जिससे कमजोरी तो दूर होती ही है साथ ही यौन्शक्ति भी बढ़ती है। पेट में अल्सर होने पर इस गूदे को खाली पेट खाने से लाभ होता है। अगर खूनी दस्त हो रहा है तो गुदे में चीनी तथा जीरा मिलकर खा लें। पेट की बीमारियों या अपच के लिए इसे अजवाईन मिलकर खाएं। जोडों के दर्द में गूदे को गर्म करके प्रभावित स्थान पर लगाएं । ज़ख्म या घाव पर गुदे को क्रीम की तरह लगा लें। आँखें लाल हो गई ही तो गूदे की पट्टी बना कर आंखों पर बाँध लें। बाल झाड़ रहे हो तो गूदे को सोते समय सर पर मालिश कर लें। यह करने से अनिद्रा के रोगी को भी लाभ होता है। अगर सर्दी या खांसी हो गयी हो तो ग्वारपाठा के पत्ते को भून कर उसका जूस निकाल लें और आधा चम्मच जूस एक कप गर्म पानी में मिला कर पी जाएँ ,तुंरत लाभ मिलेगा । पेशाब संबन्धी रोगों को दूर करने के लिए एक सप्ताह तक रोज सुबह गूदे को खाएं।शरीर में कहीं सूजन हो गयी हो तो गूदे को पानी में उबाल कर इसकी पुल्टिस बाँध लें । गावों में तो माताएं बच्चों का दूध छुडाने के लिए गूदे को स्तनों पर मल लेती हैं । इसके उपयोग से लीवर, स्प्लीन, महिला प्रजनान्गों तथा तंत्रिका-तंत्र में अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस पौधे में सुगर [मधुमेह] का भी खात्मा करने के गुड मौजूद हैं ।

प्रजातियाँ -------विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। किंतु एलो बार्बेदेंसिस मिल ,एलो बेर तोर्न एक्स लिन्न ,एलो फोरेक्स मिलर ,एलो पैरी बेकर,eलो वेरीगाता लीं ,चाइनीज़ बेकर ,लित्रोसिस कोईंग बेकर ही व्यावसायिक तथा औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ग्वारपाठा के गूदे में एलोईंन नामक ग्लुकोसाइड्स का समूह पाया जाता है इसके अलावा इसमे एलो ईमोदीन एलोयातिक एसिड ,होमोनेतोलियंन ,एलोइजिन ,एमाईलेस, एलीनेस, कौनिफिरल अल्कोहल ,ग्लैकोसेमिनस हैग्जूरोनिक एसिड , म्यूकोपालीसैक्राइड्स ७ हईद्राक्सी क्रोमोंन कॉलिन ,सैपोनिंस ,यूरोनिक एसिड्स ,शर्करा ,एपोयास ,क्रय्सोफेनिक एसिड ,कैल्शियम आक्जेलेट ,कॉलिन सेलिसाईलेट के अलावा सोडियम ,पोटेशियम, क्लोराइड व maigneej भी पाये जाते हैं

नामकरण ------देश के विभिन्न भागों में ग्वारपाठा अलग -अलग नामों से जाना जाता है। हिन्दी में कुमारी ,ढेकवार , ग्वारपाठा .....संस्कृत में -ग्रिह्कन्या , घ्रित्कुमारिका .....अन्ग्रेज़ी में इंडियन एलो ....फारसी में-दरख्ते सिब्र ....अरबी में- ससब्बारत ....बंगाली में -घ्रीत्कुमारी ....मराठी में -कोरफड ....गुजराती में - कुंवार पाठ ...तेलगू में - चिन्नाकत बांदा ....मलयालम में -कुमारी ....तमिल में -करियापोलाम, मुसब्ब्रम ....कन्नड़ में -लोलिसार ....चीन में -लू हुई तथा वैज्ञानिक नाम है-एलोवीरा

अगर आप इसकी खेती करना चाहते हैं तो एक एकड़ खेत में २६००० /-की लागत लगाकर चार साल तक ३००००/-सालाना कमा सकते हैं ।

मंगलवार, 5 मई 2009

बुधवार, 29 अप्रैल 2009

सतावर ;एक प्राकृतिक अमृत

सतावर भारतीय जीवन पद्धति में शामिल एक ऐसा पौधा है जिसके गुणों को भारतीय मातायेअपने दूध के माध्यम से अपने शिशुओं में प्रविष्ट करा देती हैं । प्रसव के पश्चात दूध और खून बढ़ाने के लिए बनाए जाने वाले मेवे के लड्डुओं का सबसे प्रमुख घटक सतावर ही होती है । ये तो था सतावर का प्राथमिक परिचय । यह एक बहुवर्षीय आरोही लता है जो घरों या बगीचों में सुन्दरता हेतु भी लगाई जाती है । इसकी पूर्ण विकसित लता तीस फुट तक ऊंची हो सकती है । इसके पत्ते काफी पतले तथा सुईयों जैसे नुकीले होते हैं। इनमें छोटे -छोटे कांटे होते हैं। गर्मी में इस पौधे का उपरी भाग सूख जाता है तथा वर्षा ऋतू में नई शाखाएँ निकल आती हैं। सितम्बर- अक्टूबर में सतावर में फूलों के गुच्छे लगते हैं जो बाद में मटर के दाने जैसे हरे फलों में परिवर्तित होजाते हैं यही फल पक कर लाल रंग के हो जाते हैं जिनमे से बीज निकलते हैं।
सतावर की जड़ें औषधीय उपयोग में आती हैं । चर्म रोगों की यह प्रमुख दवा हैं। शारीरिक चोटों /दर्दों के निवारण में भी इनका उपयोग अति लाभकारी है । गठिया, पेट-दर्द ,पक्षाघात/अर्ध-पक्षाघात सर-दर्द,घुटने का दर्द ,पैर के तलवों में जलन ,गर्दन अकड़ना[स्टीफंस],साइटिका , हाथों में दर्द ,पेशाब संबन्धी रोग , आंतरिक चोट के अलावा शुक्र-वर्धन ,यौन -शक्ति बढ़ाने , महिलाओं के बाँझपन के इलाज में, महिलाओं के विभिन्न प्रकार के यौनिदोषों के इलाज में ही नहीं बल्कि माताओं का दूध बढ़ाने के साथ साथ गाय -भैसों का दूध बढ़ाने में भी सतावर का उपयोग होता है। यह एक चमत्कारी औषधि है।
सतावर केवल चमत्कारी औषधि ही नहीं है यह एक चमत्कारी फसल भी है। अगर कोई व्यक्ति एक एकड़ में पचास हजार रूपये लगाकर सतावर की खेती करे तो वह डेढ़ से दो साल में कम से कम दो लाख रूपये तो कमा ही लेगा । पूरे भारतवर्ष की जलवायु और जमीन इसके लिए उपयुक्त है।
सतावर का वैज्ञानिक नाम है --एस्पेरेगस रेसीमोसस । अन्यकिस्में हैं-- एस्पेरेगस सार्मेंतोसस ,एस्पेरेगस कुरिलास ,एस्पेरेगस गोनोक्लैदो एस्पेरेगस आफिसीनेलिस ,एस्पेरेगस फिनिसिलास , एस्पेरेगस स्प्रेंगेरी ,एस्पेरेगस एड्सेंदेस । संस्कृत भाषा में इसे शतावरी ,शतवीर्या ,बहुसुता ,अतिरासा एवं शतमूली भी कहा जाता है। फारसी में शकाकुल , अंगरेजी में एस्पेरेगुस , तमिल में किलावारी , बंगाली में शतमूली , मराठी और गुजराती में शतावरी , आसाम में हतामूली , सिन्धी में तिलोरा कन्नड़ में मज्जिगे गड्डे , तेलगू में चल्ला गड्डा आदि नामों से पुकारा जाता है।

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

खेती से गरीबी नहीं, अमीरी उगायें- रोएँ नहीं हंसें और मुस्कुराएँ




जब से होश संभाला, यही सुनते आए हैं की देश की ७०% आबादी कृषि पर आधारित है। अर्थात इतना बड़ा उधोग या व्यवसाय, देश में दूसरा नहीं है। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि इस उधोग के लिए न तो कोई प्रशिक्षण है न ही ट्रेनिंग। फसलों का बीमा भी नहीं हो सकता। सरकार किसानों को सिर्फ़ कर्ज़ की सुविधा देती और वसूली, फसल उगे या न उगे, छाती पर चढ़ कर होती है। पिछले कुछ वर्षों में किसानों द्वारा आत्महत्या के अनगिनत मामले अख़बार की सुर्खियों में रहे हैं।




अजब विडम्बना है, किसान को खाद चाहिए तो वो गायब, सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता हो तो नहरें सूखी, डीजल, बीज, कीटनाशकों के साथ भी ऐसा ही खेल होता है। किसान लाइन लगाये और पुलिस की लाठियां खाए या ब्लैक में अपनी जरूरत खरीदे, सरकार, प्रशासन, अफसरान पर कोई असर नहीं। पिछले वर्ष किसानों को आलू ने जितना रुलाया, उन आंसुओं को पोंछने या भविष्य में ऐसा न होने देंगे सम्बन्धी कोई योजना किसी के संज्ञान में आई? बाकी बातें छोड़ भी दें तो एक सबसे अहम सवाल यह उठता है किसान की फसलों का मूल्य निर्धारण करने का अधिकारी कौन है ---- ख़ुद किसान या सरकार ? किसान ८-९ रूपये की दर से गेहूं बेचे और नामी कम्पनियां २० रूपये की दर से आटा। आलू १० रूपये में ६ किलो बिके लेकिन चिप्स के पैकट उन्हीं या बढ़ती हुई कीमतों पर बेचे जायें।




कथा का सार यह है किसानी का मतलब गरीबी। फसलें बोने का अर्थ- गरीबी उगाना ।




बस... बहुत हो चुका। किसानों के लिए किसानी में ही एक ऐसी योजना है जो पारम्परिक फसलों के साथ या उनसे इतर भी का जा सकती है। ये है औषधीय एवं सुगन्धित फसलों की खेती। इन की खेती में प्रति एकड़ ३०००० से लेकर २ लाख रूपये तक की आमदनी प्राप्त की जा सकती है। यदि थोड़ी प्लानिंग के साथ काम किया जाए तो प्रति माह आमदनी एवं सतत रोज़गार की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है।




इन फसलों की खेती में उपजाऊ, ऊसर, बंजर, सिंचित,असिंचित यहाँ तक कि जल जमाव वाली भूमि में भी अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इन में से अधिकांश फसलें बहुवर्षीय है, अतः बार बार बुवाई से भी छुटकारा मिल जाता है। इन फसलों में पारम्परिक फसलों के मुकाबले लाभ ज़्यादा है और इन्हें मवेशी भी नहीं चरते।




उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हम इन फसलों का प्रशिक्षण, पौध/बीज व्यवस्था, जैविक कीटनाशक तथा खाद के साथ फसलों के विपणन का भी प्रबंध करते हैं।




आइये देखते हैं कुछ फसलें और प्रति एकड़ में लागत तथा शुद्ध लाभ:













शनिवार, 25 अप्रैल 2009

गिलोय [अमृता]

आज मैं आपको एक ऐसी औषधि के बारे में बताने जा रही हूँ जो आपके लिए बिल्कुल अनजानी नहीं है। अपने चारों तरफ निगाह दौडाएं कहीं न कहीं आपको दिखायी दे जायेगी । उसका नाम है गिलोय । इसे गुर्च भी कहते हैं । संस्कृत में इसे गुडूची या अमृता कहते हैं । कई जगह इसे छिन्नरूहा भी कहा जाता है क्योंकि यह आत्मा तक को कंपकंपा देने वाले मलेरिया बुखार को छिन्न -भिन्न कर देती है।

यह एक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। बेल को हलके नाखूनों से छीलकर देखिये नीचे आपको हरा,मांसल भाग दिखाई देगा । इसका काढा बनाकर पीजिये । यह शरीर के त्रिदोषों को नष्ट कर देगा । आज के प्रदूषणयुक्त वातावरण में जीने वाले हम लोग हमेशा त्रिदोषों से ग्रसित रहते हैं। त्रिदोषों को अगर मैं सामान्य भाषा में बताने की कोशिश करूं तो यह कहना उचित होगा कि हमारा शरीर कफ ,वात और पित्त द्वारा संचालित होता है । पित्त का संतुलन गडबडाने पर। पीलिया, पेट के रोग जैसी कई परेशानियां सामने आती हैं । कफ का संतुलन बिगडे तो सीने में जकड़न, बुखार आदि दिक्कते पेश आती हैं । वात [वायु] अगर असंतुलित हो गई तो गैस ,जोडों में दर्द ,शरीर का टूटना ,असमय बुढापा जैसी चीजें झेलनी पड़ती हैं । अगर आप वातज विकारों से ग्रसित हैं तो गिलोय का पाँच ग्राम चूर्ण घी के साथ लीजिये । पित्त की बिमारियों में गिलोय का चार ग्राग चूर्ण चीनी या गुड के साथ खालें तथा अगर आप कफ से संचालित किसी बीमारी से परेशान हो गए है तो इसे छः ग्राम कि मात्र में शहद के साथ खाएं । गिलोय एक रसायन एवं शोधक के र्रूप में जानी जाती है जो बुढापे को कभी आपके नजदीक नहीं आने देती है । यह शरीर का कायाकल्प कर देने की क्षमता रखती है। किसी ही प्रकार के रोगाणुओं ,जीवाणुओं आदि से पैदा होने वाली बिमारियों, खून के प्रदूषित होने बहुत पुराने बुखार एवं यकृत की कमजोरी जैसी बिमारियों के लिए यह रामबाण की तरह काम करती है । मलेरिया बुखार से तो इसे जातीय दुश्मनी है। पुराने टायफाइड ,क्षय रोग, कालाजार ,पुराणी खांसी , मधुमेह [शुगर ] ,कुष्ठ रोग तथा पीलिया में इसके प्रयोग से तुंरत लाभ पहुंचता है । बाँझ नर या नारी को गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर खिलाने से वे बाँझपन से मुक्ति पा जाते हैं। इसे सोंठ के साथ खाने से आमवात-जनित बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं ।गिलोय तथा ब्राह्मी का मिश्रण सेवन करने से दिल की धड़कन को काबू में लाया जा सकता है।
गिलोय का वैज्ञानिक नाम है--तिनोस्पोरा कार्डीफोलिया । इसे अंग्रेजी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली , गुजराती में गालो , मराठी में गुलबेल , तेलगू में गोधुची ,तिप्प्तिगा , फारसी में गिलाई,तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन ,गिलो इन , गिलोइनिन , गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये जाते हैं। अगर आपके घर के आस-पास नीम का पेड़ हो तो आप वहां गिलोय बो सकते हैं । नीम पर चढी हुई गिलोय उसी का गुड अवशोषित कर लेती है ,इस कारण आयुर्वेद में वही गिलोय श्रेष्ठ मानी गई है जिसकी बेल नीम पर चढी हुई हो ।
मैं आपको इस ब्लॉग पर जिन जडी-बूटियों के बारे में बता रही हूँ , उनकी खेती या किचन गार्डेन या गमलों में उन्हें उगाने के तरीके भी बता सकती हूँ अगर आप लोग पसंद करें तो मुझे अपनी राय से फोन,मेल या कमेन्ट से अवगत कराएँ ।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

बुधवार, 22 अप्रैल 2009




सर्पगंधा के चार चित्र हम यहाँ दे रहे हैं। एक चित्र में सर्पगंधा की फूलदार लहलहाती फसल है । दूसरे चित्र में सर्पगंधा का एक पौधा है । अन्य चित्र में सर्पगंधा के बीज हैं ,इनमे जो काले वाले बीज हैं उनको ही बोने के उपयोग में लाया जाता है । चौथे चित्र में सर्पगंधा की जड़ें हैं जो दवा के रूप में प्रयोग की जाती हैं।

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

सर्पगंधा ;एक दिव्य औषधि

यह नाम ही आपको चौंका रहा होगा । सर्पगंधा अर्थात वह वस्तु जो सर्पों को दूर भगाए। इसकी गंध से सांप दूर भागते हैं। हमारे भारत में लगभग चार सौ सालों से इसका प्रयोग दवा के रूप में किया जा रहा है । इसकी जड़ों में ''रिसर्पिन '' नामक एल्केलाईड पाया जाता है जो उच्च रक्तचाप की अचूक दवा है। इसके अलावा २६ एल्केलाइड्स और पाये जाते हैं जो भिन्न-भिन्न रोगों के उपचार में काम आते हैं। ये हैं--सरपेनटाईन ,सरपेंटाअनाईन , अज्मेलाईन ,अजमेलिसाईन , रवोल्फिनाईन ,योहिम्बाइन ,रेसिनेमाइन ,डोज़र्पिदाइन वगैरा। इसकी जडों में स्टार्च तथा रेजिन पाया जाता है । इसकी जड़ों से बनाई जाने वाली भस्म में पोटेशियम कार्बोनेट ,फास्फेट ,सिलिकेट ,लोहा तथा मैगनीज मौजूद होते हैं ।
पूरे विश्व में इसकी सूखी जड़ों की सलाना मांग २०,००० टन की है .हालांकि श्रीलंका ,थाईलैंड ,बर्मा ,पाकिस्तान आदि देशों में भी यह पैदा होता है किंतु भारतीय सर्पगंधा को सबसे अच्छा माना जाता है। इसका उपयोग पूरे विश्व में केवल परंपरांगत ही नहीं बल्कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में भी धड़ल्ले से किया जाता है ।
उपयोग-------1-हांई ब्लड प्रेशर के उपचार हेतु सर्पगंधा सम्पूर्ण विश्व में सर्वोत्तम औषधि मानी जाती है । इसके उपयोग से उच्च रक्तचाप में जादुई कमी आती है,नींद भी अच्छी आती है तथा भ्रम आदि मानसिक विकारों में भी आराम मिलता है । यदि आपको उपरोक्त तकलीफें हैं तो सर्पगंधा की जड़ के चूर्ण का आधा छोटा चम्मच दिन में दो या तीन बार सेवन कीजिये ,परिणाम मनोनुकूल मिलेगा ।
२--------अगर आप अनिद्रा के रोगी हैं तो रात को सोने के समय १/४ छोटा चम्मच सर्पगंधा की जड़ का पावडर घी के साथ मिला कर खा लें ,नींद आ जायेगी। खांसी वाले रोगियों की अनिद्रा में भी यह लाभदायक है ।
३-------परंपरांगत चिकित्सा में सर्पगंधा का प्रयोग पागलपन की दवा के रूप में भी किया जाता रहा है । उन्माद और अपस्मार में जब रोगी बहुत अधिक उत्तेजना का शिकार हो जाता है तो एक ग्राम चूर्ण २५० मिलि० बकरी के दूध के साथ खिलाएं ,चूर्ण में गुड मिला लें ,यह दिन में दो बार दीजिये ,आराम दिखायी देगा । किंतु यह दवा लो ब्लड प्रेशर वालों के लिए नहीं है।
नाम-------हिन्दी में धवलबरुआ ,चंद्रभागा ,छोटा चाँद ..........संस्कृत में सर्पगंधा ,धवल विटप , चंद्रमार ,चन्द्रिका ............बिहार में धनमरवा ,चंदमरवा ,इसरगज .................उड़िया में पातालगरुड़ ............बंगाली में चान्दर्ण ..............मराठी में साय्सन ,अद्कई ..............गुजराती में अमेल्पोदी
...........तेलगू में पातालागानी.............. तमिल में चिवनअमलपोडी ,सर्प्गंठी ............मलयालम में चिवन , अवाल्पोदी ..............कर्णाटक में सुत्रनावी आदि नामों से पुकारा जाता है जबकि इसका वैज्ञानिक नाम है ----रावोल्फिया सर्पेतिना ।

रविवार, 12 अप्रैल 2009

संकट मोचन ;अश्वगंधा

आज मैं एक ऐसी औषधि के बारे में आपको बताने जा रही हूँ जिसका नाम ही अजीब सा है --अश्वगंधा । जिसका अर्थ उसके नाम में ही छुपा है -जिसकी घोडे जैसी महक हो । इसमें एक खास महक तो होती है पर वह घोडे जैसी होती है कि हाथी जैसी यह आप ख़ुद सूँघ कर देख लीजियेगा पर मैं यह ज़रूर आपको बताना चाहूंगी कि इसको खाने से घोडे जैसी ताकत जरूर आ जाती है ।
चूँकि हमारे ऋषियों ने इसे अश्वगंधा नाम दिया है तो सही ही दिया होगा।
वैसे तो अश्वगंधा का प्रत्येक भाग-जड़ ,पत्तियां ,बीज और फल भी दवाई के रूप में प्रयोग होते हैं। परन्तु इसकी जड़ों का प्रयोग आम जन-मानस के लिए सरल है । इसकी जड़ें नर,नारी ,बालक ,बुजुर्ग सबके लिए एक टानिक का काम कर देती है।
जड़ों के चूर्ण का सेवन अगर तीन महीने तक बच्चों को करवाया जाए तो कमजोर बच्चों के शरीर का सही विकास होने लगता है । सामान्य आदमी अगर इसका प्रयोग करे तो उसके शरीर में स्फूर्ति ,शक्ति ,चैतन्यता तथा कान्ति[चमक]आ जाती है। यह जडी सभी प्रकार के वीर्य विकारों को मिटा करके बल-वीर्य बढाता है। साथ ही धातुओं को भी पुष्ट करती है। इसका सेवन करने से शरीर का दुबलापन भी ख़त्म हो जाता है और शरीर कि हड्डियों पर माँस भी चढ़ता है। साथ ही नसें भी सुगठित हो जाती हैं। लेकिन डरिये मत इससे मोटापा नहीं आता । गठिया, धातु, मूत्र तथा पेट के रोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है। इससे आप खांसी, साँस फूलना तथा खुजली की भी दवा बना सकते हैं । इसका आप अगर नियमित सेवन शुरू कर दें तो आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ जायेगी जिसका दूर गामी परिरणाम यह होगा कि आप लंबे समय तक युवा बने रहेंगे बुढापे के रोग आपसे काफ़ी समय तक दूर रहेंगे। महिलाओं कि बीमारी में यह जड़ काफी लाभकारी है। इसके नियमित उपयोग से नारी की गर्भ-धारण की क्षमता बढती है ,प्रसव हो जाने के उपरांत उनमें दूध कि मात्रा भी बढती हैतथा उनकी श्वेत प्रदर, कमर दर्द एवं शारीरिक कमजोरी से जुड़ी सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इसके नियमित सेवन से हिमोग्लोविन तथा लाल रक्त कणों की सख्या में वृद्धि होती है । व्यक्ति की सामान्य बुद्धि का विकास होता है। कैंसर से लड़ने की क्षमता विकसित होती है। गैस की बीमारी,एसिडिटी ,अल्सर ,जोडों का दर्द, ल्यूकोरिया तथा उच्च रक्तचाप में इसे आजमाकर देखिये । आप ख़ुद कहेंगे कि इसका नाम तो संजीवनी बूटी होना चाहिए।
अब मुख्य बात है कि इसका प्रयोग कैसे करें?
आप सामान्य तौर पर अश्वगंधा कि जड़ें पीसकर उसका चूर्ण बनालें । और आधा चम्मच [२ ग्राम] सुबह खाली पेट पानी से निगल जाएँ फिर एक कप गर्म दूध या चाय पी लें .इस प्रक्रिया के दस मिनट बाद बाकी नाश्ता करें। कोई भी जडी -बूटी सवेरे खाली पेट खाने से ज्यादा फायदा पहुंचाती है। यह २००/- से ५००/- रु० किलो तक बाज़ार में उपलब्ध है। अगर किसी बीमारी में इसका प्रयोग करना चाहते हैं तो किसी वैद्य से थोड़ा राय-मशविरा कर लें या फिर हमारे न० पर फोन कर लें । क्योकि हर बीमारी में इसकी मात्रा तथा इसे खाने का तरीका बदल जाता है। मेरी राय है कि आपको कोई बीमारी न हो तो भी प्रतिदिन इसका सेवन करें .चेहरे पर चमक तो बढेगी ही और कितना ही काम कर लें थकान से bukhaar नहीं होगा । हरारत कि गोली खाने से छुटकारा मिल जायेगा । iskaa waigyanik naam hai--- Withania somnifera.