इस पौधे को तो आप सभी ने पहचान लिया होगा । कभी न कभी गमलों में भी लगाया होगा । ग्वारपाठा ,एलोवीरा, घ्रित्कुमारी , ग्रिहकन्या आदि नामों से पुकारा जाने वाला यह पौधा कन्याओं का सौन्दर्य बढ़ाने के काम में ही लिया जाता है। इस पौधे को सदियों पहले महारानी क्लियोपेट्रा का प्रिय माना जाता था ,उनके सौन्दर्य प्रसाधनों का यह महत्वपूर्ण अंग था । यह मूलतः दक्षिणी अफ्रीका का पौधा है जो सोलहवीं शताब्दी में भारत में आया। अब तो हमारे देश के छः राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। यह दो फुट ऊंचा पौधा होता है । इसकी मांसल पत्तियाँ १२से १५ इंच लम्बी होती हैं तथा पौन इंच मोटी होती हैं जिनके किनारों पर कांटे होते हैं । यही पत्तियाँ दवा के रूप में प्रयोग की जाती हैं । इन्हें काटने पर पीले रंग का रस निकलता है जो ठंडा होने पर जम जाता है जिसे मुसब्बर ,कुमारीसार,एलोज एलुआ, सिब्र आदि नामों से जानते हैं ।
औषधीय उपयोग --- इस मुसब्बर [गूदे] में घी ,चीनी तथा दूध मिलकर हलुआ बनाया जाता है जिससे कमजोरी तो दूर होती ही है साथ ही यौन्शक्ति भी बढ़ती है। पेट में अल्सर होने पर इस गूदे को खाली पेट खाने से लाभ होता है। अगर खूनी दस्त हो रहा है तो गुदे में चीनी तथा जीरा मिलकर खा लें। पेट की बीमारियों या अपच के लिए इसे अजवाईन मिलकर खाएं। जोडों के दर्द में गूदे को गर्म करके प्रभावित स्थान पर लगाएं । ज़ख्म या घाव पर गुदे को क्रीम की तरह लगा लें। आँखें लाल हो गई ही तो गूदे की पट्टी बना कर आंखों पर बाँध लें। बाल झाड़ रहे हो तो गूदे को सोते समय सर पर मालिश कर लें। यह करने से अनिद्रा के रोगी को भी लाभ होता है। अगर सर्दी या खांसी हो गयी हो तो ग्वारपाठा के पत्ते को भून कर उसका जूस निकाल लें और आधा चम्मच जूस एक कप गर्म पानी में मिला कर पी जाएँ ,तुंरत लाभ मिलेगा । पेशाब संबन्धी रोगों को दूर करने के लिए एक सप्ताह तक रोज सुबह गूदे को खाएं।शरीर में कहीं सूजन हो गयी हो तो गूदे को पानी में उबाल कर इसकी पुल्टिस बाँध लें । गावों में तो माताएं बच्चों का दूध छुडाने के लिए गूदे को स्तनों पर मल लेती हैं । इसके उपयोग से लीवर, स्प्लीन, महिला प्रजनान्गों तथा तंत्रिका-तंत्र में अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस पौधे में सुगर [मधुमेह] का भी खात्मा करने के गुड मौजूद हैं ।
प्रजातियाँ -------विश्व में इसकी २७५ प्रजातियाँ पायी जाती हैं। किंतु एलो बार्बेदेंसिस मिल ,एलो बेर तोर्न एक्स लिन्न ,एलो फोरेक्स मिलर ,एलो पैरी बेकर,eलो वेरीगाता लीं ,चाइनीज़ बेकर ,लित्रोसिस कोईंग बेकर ही व्यावसायिक तथा औषधीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। ग्वारपाठा के गूदे में एलोईंन नामक ग्लुकोसाइड्स का समूह पाया जाता है इसके अलावा इसमे एलो ईमोदीन एलोयातिक एसिड ,होमोनेतोलियंन ,एलोइजिन ,एमाईलेस, एलीनेस, कौनिफिरल अल्कोहल ,ग्लैकोसेमिनस हैग्जूरोनिक एसिड , म्यूकोपालीसैक्राइड्स ७ हईद्राक्सी क्रोमोंन कॉलिन ,सैपोनिंस ,यूरोनिक एसिड्स ,शर्करा ,एपोयास ,क्रय्सोफेनिक एसिड ,कैल्शियम आक्जेलेट ,कॉलिन सेलिसाईलेट के अलावा सोडियम ,पोटेशियम, क्लोराइड व maigneej भी पाये जाते हैं
नामकरण ------देश के विभिन्न भागों में ग्वारपाठा अलग -अलग नामों से जाना जाता है। हिन्दी में कुमारी ,ढेकवार , ग्वारपाठा .....संस्कृत में -ग्रिह्कन्या , घ्रित्कुमारिका .....अन्ग्रेज़ी में इंडियन एलो ....फारसी में-दरख्ते सिब्र ....अरबी में- ससब्बारत ....बंगाली में -घ्रीत्कुमारी ....मराठी में -कोरफड ....गुजराती में - कुंवार पाठ ...तेलगू में - चिन्नाकत बांदा ....मलयालम में -कुमारी ....तमिल में -करियापोलाम, मुसब्ब्रम ....कन्नड़ में -लोलिसार ....चीन में -लू हुई तथा वैज्ञानिक नाम है-एलोवीरा
अगर आप इसकी खेती करना चाहते हैं तो एक एकड़ खेत में २६००० /-की लागत लगाकर चार साल तक ३००००/-सालाना कमा सकते हैं ।