आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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बुधवार, 5 मई 2010

श्रीफल अर्थात बेल -- प्रयोग के तरीके

लीजिये ये श्रीफल   है इसे बेल भी कहते  हैं . इसकी जड़  छाल,पत्ते, फूल,कच्चे फल और पके  फल सभी उपयोगी  होते हैं . 

  • आपने  महाशिवरात्रि के   अवसर  पर  इसके पत्तों  का पूजा  में प्रयोग  तो  किया  ही होगा  .अब मधुमेह  [सुगर] के  रोगियों से  मेरा आग्रह  है कि ज़रा  इन्हीं पत्तों  का रस  रोज बीस  ग्राम पीकर  देखें .बस पत्ते  ताजे हों और रस तुरंत  निचोड़ा गया हो. यह  रस हैजा में  भी   लाभकारी    है और  मलत्याग  में आने  वाली अनेक  परेशानियों से  भी छुटकारा  दिलाता है   .  

  • बेल का सबसे अच्छा उपयोग पतले दस्त में है -इसके कच्चे फल के गूदे का चूर्ण बना लीजिये उसी मात्रा में काले तिल का चूर्ण लीजिये ,दोनों को बहुत अच्छी तरह से मिलाइए और दस -दस ग्राम सुबह शाम घी मिला कर खा लीजिये .ये बहुत फायदा करेगा ,इसका वर्णन भैषज्य रत्नावली में भी है. 

  • शरीर में कहीं दर्द हो तो इसके कच्चे फल के गूदे का चूर्ण गुड मिला कर खाएं .

  •  पके बेल के गूदे का काढा बना लीजिये ,उसमें सोठ का आधा चम्मच चूर्ण मिलाएं और पी लीजिये ,अगर खूनी बवासीर है तो वह ख़त्म हो जायेगी ,कम से कम ५ दिन पीना होगा.  [काढा बनाने की सबसे अच्छी विधि ----आप एक मध्यं आकार के बेल के गूदे को १ लीटर पानी में मसल दें फिर उसे थोड़ा धीमी आंच पर चढ़ा दीजिये जब पानी जल कर आधा हो जाये तो उतार कर ठंडा करें और छान कर जल अलग कर लें .यही काढा है] 

  • कच्चे बेल का गूदा २००ग्राम ,सोठ का चूर्ण १०० ग्राम और गुड २००ग्राम अच्छी तरह मिला कर लड्डू  बनाकर रख लीजिये. एक लड्डू ५० ग्राम का हो .एक लड्डू खा कर एक गिलास मठ्ठा पी लीजिये ,पेट की सभी बीमारियाँ ख़त्म हो जायेंगी  

  • बेल  की  चटनी  भी  बनाकर  आप  रख  सकते  हैं .यह चटनी पीलिया , कामला, हैजा, पेट के सभी रोगों और पथरी जैसी बीमारियों में जादू दिखाती है .चटनी बनाने के लिए आप २०० ग्राम साबुत मसूर का काढा बनायें फिर काढ़े को ५००ग्राम बेल के गूदे के साथ २००ग्राम देशी घी में पका लें. फिर इसे कांच के बर्तन में या चांदी के या मिट्टी के बर्तन में स्टोर कर लें .एक चम्मच चटनी ५०० रूपये की दवा का काम करेगी .

  • अगर आप पके बेल के गूदे को बकरी के दूध में पकाकर फिर उसमें १० -१० ग्राम मिश्री ,मोचरस और इन्द्रायण की जड़ मिलाकर पीजिये तो खूनी दस्त से तुरंत मुक्ति मिल जायेगी .

  • अगर उल्टी ,कफ और दस्त तीनों से आप परेशान हैं ,जीने की इच्छा  ख़त्म हो गयी हैऔर  सीरियस हास्पीटल केस बन गये हैं तो ज़रा ये नुस्खा आजमायें--कच्चे बेल का गूदा ,सोंठ , नागरमोथा , चव्य , अतीस , कूड़े की छाल , इन्द्रायण की जड़ और हरड सभी को २०-२० ग्राम लीजिये और एक लीटर जल में उबालिए जब एक तिहाई जल शेष रह जाए तो उतार कर छान लीजिये और ठंडा कर लें ,कांच ,चांदी या मिट्टी के बर्तन में स्टोर करें .रोगी को सुबह शाम ५०-५० ग्राम पिलाइए ,तीन दिनों में ही रोगी बिलकुल स्वस्थ हो जाएगा.

  • गैस ,शरीर में सूजन ,बुखार और दस्त के लिए पके बेल के गूदे को चिरायता,गिलोय, नागरमोथा ,इन्द्रायण की जड़ और सुगंधबाला के साथ २०-२० ग्राम की मात्रा में लीजिये और एक लीटर पानी में पकाकर काढा बना लीजिये .५० ग्राम सुबह शाम पीजिये .

  • अगर आपके पसीने से दुर्गन्ध आ रही है तो बेल के पत्तों का रस निकाल कर पूरे शरीर पर मल कर एक घंटा छोड़ दीजिये .त्वचा कान्तिमान हो उठेगी और दुर्गन्ध ख़त्म 

  • बेल के गूदे में-गोंद ,पैक्टींन, ग्लूकोज ,तेल ,मार्मेलोसींन और प्रहासक ग्लूकोज भी पायी जाती है जबकि पत्तों में आयरन ,कैल्शियम ,मग्नीशियम ,पोटेशियम और टैनिन्स पाए जाते हैं .

  • मेरी राय तो ये है क़ि आप पके बेल और कच्चे बेल दोनों के गूदे का चूर्ण बनाकर स्टोर कर लीजिये .ये बेल का मौसम है .वैसे आपको एक बात और बता दूँ क़ि कच्चे बेल के टुकड़े काट कर उनका हवन करने से घर कीटाणु रहित  हो जाता है हवन में केवल गूदे का नहीं छाल सहित गूदे का प्रयोग होता है और बची हुई राख को अपने गमलों में खाद के तौर पर प्रयोग कर लीजिये .

  • ये बात तो मैं अपने पिछले लेख में बता ही चुकी हूँ क़ि बेल का शरबत हमेशा खाली पेट ही फायदेमंद होता है ,इसलिए दिन भर बेल का शरबत पीने से कोई फ़ायदा नहीं .                                  
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

14 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

उपयोगी जानकारी है लेकिन करना मुश्किल है. यहाँ तो बाजार में बेल का शरबत गर्मी भर मिलता है उसी को पीते हैं.

vishnu-luvingheart ने कहा…

vakai me kam ki baat....dhanyawad.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी जी

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी दी है आपने ..इसका सूखा मुरब्बा भी मिलता है क्या वह भी इतना ही उपयोगी होता है ?

ओम पुरोहित'कागद' ने कहा…

Aaj aap ne bel ke sambamndh jankari di.Dhanywad!
Pale to ye batun ki ye bel nahin vilav hai.Doosra ye ki ye shrifal nahin hai.shrifal to nariyal hota hai.dhan ki adhisthatri ma luxmi hai.kvahi mudra ki paryay hain.kabhi nariyal mudra raha hai is liye nariyal ko shrifal kaha jata hai.12 maheene kam aane or chalan ke karan hi ise mudra banaya gaya tha.bel,beel ya vilav shrifal kaise huva?

राम बंसल/Ram Bansal ने कहा…

बेल का मुरब्बा पाचन तथा स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी होता है जिसे वर्ष भर उपयोग में लिया जा सकता है. इसमें पड़ी शक्कर इसके पोसक तत्वों का संरक्षण करती है जिससे मुरब्बा ताजे फल के समान ही उपयोगी होता है. गूदे को सुखाने से उसके कुच्छ तत्व नष्ट हो सकते हैं.

Satish Saxena ने कहा…

इस ब्लाग पर आकर इस गर्मी के मौसम में भी ठंडक सी महसूस होती है !

अजय कुमार ने कहा…

अच्छी जानकारी , उपयोग करुंगा ।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

sach aapke dwara dee jaa rahi in jaankaariyon se kitne saare log labhaanvit hote honge....un sabka aashirvaad aapko miltaa hogaa...aur ham jaison kaa saadhuvaad bhi.....

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

सच आपके द्वारा दी जा रही इन जानकारियों से कितने सारे लोग लाभान्वित होते होंगे ....उन सबका आशीर्वाद आपको मिलता होगा ...और हम जैसों का साधुवाद भी .....

Vinashaay sharma ने कहा…

कुछ दिन से कम्पुयटर खराब था,आपके कुछ लेख छूट गयें होगें,खैर उपयोगी जानकारी ।

पा.ना. सुब्रमनियन ने कहा…

अत्यधिक उपयोगी जानकारी. बेल के पत्तों के रस के सेवन से मधुमेह दूर होता है, यह मालूम नहीं था.आभार.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये तो बहुत ही काम की बात बताई आपने ... इतना सरल अचपन में बहुत पिया है बेल का जूस ... सच में कमाल की जानकारी ....

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छी और लाभदायक जानकारी!धन्यवाद!