आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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गुरुवार, 2 सितंबर 2010

अडूसा (वासा), एक चमत्कारी पौधा

Yellow Barleria Prionitis, Bombay, India
This travel blog photo's source is TravelPod page: Yellow Barleria Prionitis, Bombay, India
मैंने दो दिन पहले फेसबुक पर लिख दिया था कि अगर टी.बी. हो तो वासा के बीस पत्तों का रस सुबह-शाम सेवन करें, अब इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए इतने सारे फोन और मेल आए कि मुझे इसका ज्ञात विवरण आपको बताना पड़ रहा है, चलिए इसी बहाने मेरा ज्ञान भी नवीन हो गया, मैं आप सभी जिज्ञासुओं की आभारी हूँ. चूंकि मेरे लैपटाप का कैमरा आजकल रेनीडे मना रहा है इसलिए ये चित्र मैंने गूगल की सहायता से ही आपके लिए खोजे हैं.

                        अब थोड़ा काम की बातें करें ----  अडूसा अर्थात वासा दो तरह का होता है, इनमें हम फूलों से भेद करते हैं- एक पीले फूल वाले और एक सफ़ेद फूलों वाले.
          सफ़ेद फूलों वाले अडूसा को मालाबार नट भी कहते हैं. ये पांच  से लेकर आठ फिट की ऊंचाई वाले अनेक शाखाओं वाले झाडीदार पेड़ होते हैं. जिसके पत्ते दोनों तरफ से नोंकदार होते हैं. ये हमेशा हरे रहने वाले पेड़ हैं. इनके पत्ते, फूल ,जड़, तना सभी औषधीय दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं . ये नीचे अडूसा या वासा के चित्र हैं.  
                     इसके पत्ते कफ विकारों में बहुत काम आते हैं. टी.बी. का तो ये बेहद असरकारी इलाज है. हमारे देश में चालीस प्रतिशत रोगी टी.बी.से ग्रसित होते हैं, और इसी रोग के साथ जिन्दगी बिता देते हैं. हालांकि सरकार की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. लेकिन छः महीने का एलोपैथ का कोर्स सचमुच हमारे देश की जनता के लिए कठिन है. उसमें भी अगर गैप हो जाए तो फिर से शुरू कीजिये. जबकि किसी आयुर्वेदिक औषधि के साथ ऐसा नहीं है. आयुर्वेदिक औषधियों को लेने का एक ही नियम है कि वे खाली पेट सुबह ही ले ली जाएं. १० दिन लेने के बाद दो चार दिन का गैप भी हो जाए तो कोई परेशानी नहीं है. लेकिन आयुर्वेदिक दवा कम से कम २१ या ज्यादा दिनों का रोग हो तो ४१ दिन लेने का नियम शास्त्र सम्मत है.

 ***अडूसा या वासा के पत्तो को आप सुखा कर रख भी सकते हैं किन्तु फिर उसकी मियाद तीन महीने तक ही होती है.  इन पत्तो का चूर्ण मलेरिया में बहुत तेज काम करता है. १० ग्राम सुबह और १० ग्राम शाम को दीजिये.
***अगर खून में पित्त की मात्रा ज्यादा हो गयी है अर्थात पीलापन शरीर में बढ़ गया है या आपको पित्त की अधिकता का एहसास हो रहा है तो पत्तो का एक कप(६० ग्राम) रस निकालिए और उसमें तीन चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाइए. हर बार एक कप रस ताजा निकालिए,ज्यादा फ़ायदा करेगा. ये प्रक्रिया पांच दिन तक कीजिये.
*** अगर श्वांस से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो वासा के पत्तों के रस में अदरक का रस तथा शहद मिला कर कम से कम ५ दिन तक पिलाइए. जितना पत्तों का रस हो उसका आधा अदरक का रस और अदरक के रस का आधा शहद. दिन में एक बार खाली पेट.
*** शरीर में कही खाज-खुजली की शिकायत हो तो पत्तों के रस में हल्दी मिलाकर लेप कर लीजिये. तीन- चार दिन में कीड़े ही ख़त्म हो जायेंगे.
*** पेट में कीड़े पड़ गये हो तो पत्तो के रस में शहद मिलाकर दिन में एक बार लीजिये
***मूत्रत्याग में कोई परेशानी हो या मूत्राशय से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो गन्ने के रस में २५ ग्राम वासा के पत्तो का रस मिलाकर पी कर देखिये.
*** हैजा हो गया हो तो इसके फूलों का रस शहद मिलाकर दीजिये.
*** जुकाम में २५ ग्राम पत्तो के रस में १३ ग्राम तुलसी के पत्तो का रस और १० ग्राम शहद मिला कर दिन में दो बार पीजिये. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लेंगे तो जादू जैसा असर दिखाई देगा.
***वीर्यपतन में इसके पत्तो के रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर १० दिन तक पीयें
वासा के पत्तों में वेसिनिन, आधाटोदिक अम्ल, वसा, राल, शर्करा, गोंद, उड़नशील तेल, पीत्रन्जक तत्व, एल्केलायड, एनाएसोलिन, वेसिसीनोन आदि तत्वों की भरमार होती है.

  दूसरा पीले फूलों वाला पौधा या झाडी होती है, इसकी ऊँचाई चार फिट के अन्दर ही देखी गई है. इसका एक नाम कटसरैया भी है. कहीं-कहीं पियावासा भी बोलते हैं. ये झाड़ियाँ कंटीली होती हैं. इसके पत्ते भी ऊपर वाले वासा से मिलते जुलते होते हैं. किन्तु इस पौधे के पत्ते और जड़ ही औषधीय उपयोग में लिए जाते हैं. इसके चित्र सबसे ऊपर दिए गए हैं, आप ठीक से पहचान लीजिये.
इसमें पोटेशियम की अधिकता होती है इसी कारण यह औषधि दाँत के रोगियों के लिए और गर्भवती नारियों के लिए अमृत मानी गयी है.
****गर्भवती नारियों को इसके जड़ के रस में दालचीनी, पिप्पली, लौंग का २-२ ग्राम चूर्ण और एक चौथाई ग्राम केसर मिलाकर खिलाने से अनेक रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है, तन स्वस्थ और मन प्रसन्न  रहता है, पैर सूजना, जी मिचलाना,  मन खराब रहना, लीवर खराब हो जाना, खून की कमी, ब्लड प्रेशर, आदि तमामतर कष्ट दूर ही रहते हैं. बस सप्ताह में दो बार पी लिया करें.

****कुष्ठ रोग में इसके पत्तो का चटनी जैसा लेप बनाकर लगा लीजिये. 
****मुंह में छले पड़े हों या दाँत में दर्द होता हो या दाँत में से खून आ रहा हो या मसूढ़े में सूजन /दर्द हो तो बस इसके पत्ते चबा लीजिये,उसका रस कुछ देर तक मुंह में रहने दीजिये फिर चाहें तो निगल लें, चाहें तो बाहर उगल दें. कटसरैया की दातुन भी कर सकते हैं.
****मुंहासों में इसके पत्तों के रस को नारियल के तेल में खूब अच्छे तरीके से मिला लिजिये, दोनों की मात्रा बराबर हो, बस रात में चेहरे पर रगड़ कर लगा कर सो जाएं, चार दिनों में ही असर दिखाई देगा. मुंहासे वाली फुंसियां भी इससे नष्ट होती हैं.
**** शरीर में कहीं सूजन हो तो पूरे पौधे को मसल कर रस निकाल लीजिये और उसी रस का प्रयोग सूजन वाले स्थान पर बार-बार कीजिये.
****पत्तो का रस पीने से बुखार नष्ट होता है, पेट का दर्द भी ठीक हो जाता है. रस २५ ग्राम  लीजियेगा .
**** घाव पर पत्ते पीस कर लेप कीजिये. पत्तो की राख को देशी घी में मिलाकर जख्मों में भर देने से जख्म जल्दी भर जाते हैं,कीड़े भी नहीं पड़ते और दर्द भी नही होता.

               इस पौधे में बीटा-सिटोस्तीराल, एसीबार्लेरिन,  एरीडोइड्स बार्लेरिन, स्कूतेलारिन रहामनोसिल ग्लूकोसैड्स जैसे तत्वों की उपस्थिति है.  इसका वैज्ञानिक नाम है- बार्लेरिया प्रिओनितिस .


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

23 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

शानदार पोस्ट ,पसंद आई ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

कमाल का पौधा! इसकी खोज करनी पड़ेगी और लगवाना पड़ेगा।

Unknown ने कहा…

अच्छी बात........

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

क्या ये पौधा या इसके पत्ते बैचलर पोहे का स्वाद बढ़ा सकते हैं???
हा हा हा...
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish

अर्चना तिवारी ने कहा…

अलका जी आपके ब्लॉग से अच्छी जानकारी प्राप्त होती है ...हमारा देश जड़ी बूटियों की खान है,सबसे अच्छी बात ये है कि अब लोग पुनः जागृत हुए हैं..अंग्रेजी दवाओं के साइड इफेक्ट से परेशान होकर लोगों ने इनका सेवन करना आरम्भ कर दिया है...इन सबसे अच्छी बात कि आप इस नेक कार्य को बड़ी दिलचस्पी से कर रही हैं...

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

Asha Joglekar ने कहा…

अडुलसा खांसी मे उपयोगी है इतना ही जानती थी पर आपने तो इसके इतने सारे उपयोग बता दिये ।

बेनामी ने कहा…

gyanvardhak post.... shukriya..

A Silent Silence : Mout humse maang rahi zindgi..(मौत हमसे मांग रही जिंदगी..)

Banned Area News : Konkona Sen Sharma And Ranvir Shorey To Wed Today

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut achchhi rachna....aapke samaj sevi prayaso ko naman.

om ने कहा…

thanks. your blog is really a collection of useful knowledge.

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर
एकदम सटीक लिखा है.
बधाई ।

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर
एकदम सटीक लिखा है.
बधाई ।

बेनामी ने कहा…

as a wild lifer i loved your postings

think that some more aware to have medicines from nature

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

ज्ञान वर्द्धक लेख है अलका जी ,बहुत बढ़िया

आप का एक लेख मैं ने कादम्बिनि में भी पढ़ा ,बहुत समझा कर लिखती हैं आप
बधाई हो

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत उपयोगी ब्लॉग है ....
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है ।

zeashan haider zaidi ने कहा…

आपका ब्लॉग तो स्वयें अपने में एक खज़ाना है अलका जी!

Alpana Verma ने कहा…

बहुत अच्छा ब्लॉग है आप का.
यहाँ मिली जानकारी भी बहुत अच्छी लगी.
पोस्ट प्रस्तुति भी रोचक है .बधाई .

Madhuresh ने कहा…

धन्यवाद अलका जी कविता पर टिप्पणी करने के लिए.
आपका आयुर्वेद पर ब्लॉग देखा. बहुत अच्छा लगा पढ़कर. मैं भी विज्ञान में परा-स्नातक शोधकर्ता हूँ और आयुर्वेद तथा अन्य प्राकृतिक उपचारों जैसे Accupressure और योग के प्रसार में रूचि रखता हूँ. आशा है आपके इस प्रयास से अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हों.

शरद कोकास ने कहा…

आपका यह ब्लॉग तो बहुत कामका है ।

Asha Joglekar ने कहा…

मराठी में जिसे कोरांटी बोलते हैं कहीं वही तो नही ये वसा ? पर कोरांटी के फूल तो अडुलसा के फूलों से साइज में काफी बडे होते हैं और अधिकतर पीच रंग के होते हैं ।

basic sikshak ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत अच्छा प्रयास
बहुत ही उपयोगी जानकारी प्राप्त हुई

Unknown ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद
आपके ब्लॉग से बहुत ही अच्छी जानकारी प्राप्त हुई

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.