आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

काली मिर्च की जय हो



आपके घर में आम का पेड़ है ? यदि है तो उसके नीचे काली मिर्च के ४-५ पौधे बो दीजिए, इसकी बेल होती है जो आम की छाया में बहुत अच्छी पनपती है. काली मिर्च की बेल एक बार लग गयी तो बीसों साल तक आपको फल देती रहेगी .मैंने असम ,नागालैंड की सीमा पर कर्बी आंगलांग में चाय के बागानों के बीच काली मिर्च की बड़ी खूबसूरत बेलें देखीं हैं. वाकई ये बेले सौंदर्य भी बढाती हैं.घर का ही नहीं आपके शरीर का भी .

इसके फल हरे हरे होते हैं जो पक कर लाल हो जाते हैं और सूख कर काले हो जाते हैं.
                    

इसके फल में स्टीरायड, एल्केलायड ,फ्लेवोनाइड, टैनिन्स, पालीसैकेराइड, ग्लाइकोसाइड, सैपोनिन्स, पैपरीन आदि तत्व पाए जाते हैं.इसके अतिरिक्त इसमें कैल्शियम, आयरन, फास्पोरस, कैरोटीन, थायमीन रिबोफ्लोवीन, ४९ %कार्बोहाइड्रेट , ११ %प्रोटीन, ६%फैट, ४%मिनरल्स, फाइबर १५%और नमी भी १५% पाई जाती है .


शायद अपने इन्हीं तत्वों की वजह से काली मिर्च प्रोस्टेट कैंसर और पैन्क्रियाज कैंसर को रोकने मे कामयाब होती है ,यह सीधे कैंसर कोशिकाओं की द्विगुरण  की क्षमता पर वार करती है और उन्हें बढ़ने नहीं देती.


यह अनेक रोगों में बहुत काम आती है। यहाँ तक कि ऐसे रोग जो जानलेवा समझे जाते हैं, काली मिर्च को देखते ही भूत की तरह भाग जाते हैं। जैसे मलेरिया


आप मलेरिया हो जाने पर प्रत्येक एक घंटे पर एक ग्राम काली मिर्च का चूर्ण खाना शुरू कर दीजिए ,चाहे चीनी मिला कर खाएं चाहे शहद मिला कर या किसी फल पर डाल कर. देखिये २४ घंटे में ही बुखार कैसे पीछा छोडता है।


बहुत ही पुराना जुकाम हो तो गुड़ और ५० ग्राम दही में ५ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिला कर खाइए। सुबह शाम दोनों समय ,अधिकतम ११ दिनों तक।


दांत में बेपनाह दर्द हो रहा हो तो काली मिर्च के चूर्ण  से काढा बनाइये और ज़रा गुनगुना रहे तभी मुंह में उस हिस्से में ३-४ मिनट रोकिये जिधर का दांत दर्द करता हो।


हिस्टीरिया की बीमारी में रोगी को खट्टे दही में १ ग्राम काली मिर्च और १ ही ग्राम बच का चूर्ण मिला कर खिलाएं, यह खाली पेट खिलाना है . दूसरे दिन २ ग्राम काली मिर्च और २ ग्राम बच ,तीसरे दिन ३-३ ग्राम. दही की मात्रा उतनी ही रहेगी .हर महीने में तीन दिन खिलाने से रोग जड़ से खत्म हो जाएगा .


रतौंधी हो तो दही में काली मिर्च के कुछ दाने महीन पीस कर काजल बना लीजिए और आँखों में लगा कर सो जाए, एक महीने तक काफी रहेगा .


अगर खांसी आये तो शहद में काली मिर्च मिला कर चाटना चाहिए ,यह दवा तो सभी लोग जानते हैं.लेकिन उसके साथ थोड़ा सा घी मिला कर चाटना चाहिए.शहद के साथ घी का योग जहर का काम करता है लेकिन तब जब बराबर मात्रा में हो.आप आधा चम्मच शहद ले रहे हैं तो १० बूंद घी ले लीजिए.


बुरी तरह दस्त हो रहे हों तो ३ चुटकी काली मिर्च का चूर्ण पानी से निगल लीजिए.


याददाश्त काम होने की बीमारी आज कल बहुत है. इसके लिए एक गिलास दूध में आधा चम्मच मिश्री और आधा चम्मच काली मिर्च का चूर्ण मिला कर पीजिए .लगातार पीते रहिये दो महीने में फर्क दिखाई देगा.


मुंह में छाले हो गए हों तो किशमिश  और काली मिर्च मिला कर चबाएं , जितने दाने काली मिर्च उतनी ही किशमिश.


पेट में कीड़े हों तो एक कप मठ्ठे में १० दाने काली मिर्च का चूर्ण डाल कर रात में सोते समय पीजिए.


आँखों की रोशनी कम होना भी एक समस्या है.लेकिन इसकी दवा बहुत कड़वी है १०० ग्राम काली मिर्च ,१०० ग्राम देसी घी और १०० ग्राम मिश्री मिला कर रख लीजिए .पीस कर मिलाना है. रोज सुबह शाम एक -एक चम्मच खाना है.कम से कम ३ महीने तक.  


चलिए आपको वीर्यवान बनने  का तरीका भी बता  देते हैं हम. अखबारों में छापने वाले तमाम विज्ञापनों पर भरोसा करने से अच्छा है कि आप एक गिलास दूध में १५ दाने काली मिर्च का चूर्ण डाल कर उबालिए फिर इस दूध को ठंडा करके पी जाए, चीनी मिलाना मना है.  


काली मिर्च को मराठी में मिरें, गुजराती में काली मिरी ,संस्कृत में मरीच, अंग्रेजी में Black pepper,तथा वैज्ञानिक भाषा में  Pipier nigrum कहते हैं 


हाइड्रोसील हो गया हो तो ५ ग्राम काली मिर्च और १० ग्राम जीरे का चूर्ण मिलाकर पेस्ट बनाए और इस पेस्ट को गरम कीजिए इस पेस्ट में इतना गरम पानी मिलाएं कि यह थोड़ा पतला घोल बन जाए.इस घोल को बढे हुए अंडकोषों पर लेप करके सो जाएँ ,तीन चार दिनों तक ऐसा करने से फायदा दिखाई देने लगेगा.


कील मुहांसे ,झुर्रियों का भी इलाज करती है ये काली मिर्च .इसे गुलाब जल में पीस कर पेस्ट बना लीजिए ,रात में चेहरे पर लगा कर सो जाएँ.सुबह गरम पानी से धो लें.


मोटापा दूर करना हो तो रोज १० से १५ दाने काली मिर्च चबा कर खाइए.कम से कम दो महीने तक.


तंत्रिका तंत्र के रोगियों को और हार्ट पेशेंट को अपने भोजन में ऊपर से २-३ चुटकी काली मिर्च डाल कर खाना चाहिए.नर्वस सिस्टम मजबूत होगा.हार्ट मजबूत होगा.


टी बी के मरीजो के लिए काली मिर्च एक सुरक्षा कवच का काम करती है रोज कम से कम २-२ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण दोनों समय खाइए


कुष्ठ रोगी अगर काली मिर्च का सेवन करें तो शरीर गलना अर्थात त्वचा में संक्रमण बढ़ना बिलकुल रुक जाएगा.लंबे समय तक खाते रहें तो कोढ़ जड़ से भी खत्म हो सकता है इन्हें दिन भर में ७-८ ग्राम काली मिर्च का चूर्ण भोजन ,चाय या शरबत में ऊपर से मिला कर खा लेना चाहिए.


काली मिर्च एलर्जी की तो दुश्मन है अगर आपको किसी चीज से एलर्जी है तो आप प्रतिदिन २० दाने काली मिर्च के जरुर खाइए.इससे मस्तिष्क भी शांत रहेगा.शरीर में रक्त और आक्सीजन का प्रवाह भी निर्बाध गति से होगा.कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ेगा.


हिचकी आ रही हो तो २ चुटकी काली मिर्च का चूर्ण गरम तवे पर भून कर उसको सूंघ लीजिए.


पित्ती उछल रही हो तो १० दाने का चूर्ण आधा चम्मच घी में मिला कर उस स्थान पर मालिश कीजिए.यह मिश्रण खा भी लीजिए.


काली मिर्च ,प्याज और सेंधा नमक की चटनी पीस कर अगर आप गंजे सिर पर लगाइए तो बाल उगने लगेंगे, तीन -चार महीने लगातार लेप करके सोना होगा और शैम्पू का प्रयोग बंद करना होगा.


शरीर में कहीं सूजन हो गयी हो तो काली मिर्च पीस कर लेप कीजिए.

                                                   




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

रविवार, 13 नवंबर 2011

निर्गुन्डी: स्लिप डिस्क और सर्वाइकल बीमारियों की दुश्मन






निर्गुन्डी (Vitex negundo)शेफाली,सम्मालू, सिंदुवार आदि नाम से भी जानी -पहचानी जाती है. इसके पेड़ १० फीट तक ऊंचे पाए जाते हैं. इसे संस्कृत में इन्द्राणी, नीलपुष्पा, श्वेत सुरसा,सुबाहा कहते हैं.बंगाली में निशिन्दा, सेमालू, मराठी में- कटारी, लिगुर, शिवारी पंजाबी में- बनकाहू, मरवा, बिन्ना, मावा, मोरों, खारा, सनक फारसी में- बजानगश्त, सिस्बन, गुजराती में-नगोड़, नागोरम, निर्गारा,तेलगू में- नल्लाहा बिली,मिन्दुवरम तमिल में-निकुंडी, नोची कहा जाता है.


निर्गुंडी में उड़नशील तेल,विटामिन-सी, केरोटीन, फलेवोन, टैनिक एसिड, निर्गुन्दीन, हाइड्रोकोटिलोन, हाइड्रोक्सीबेन्जोईक एसिड, मैलिक एसिड और राल पाए जाते हैं.
  



**निर्गुंडी अनेक बीमारियों में काम आती है. सबसे बड़ी बात क़ि स्लीप डिस्क की ये एकलौती दवा है. सर्वाइकल, मस्कुलर पेन में इसके पत्तो का काढा रामबाण की तरह काम करता है.
** अस्थमा मे इसकी जड़ और अश्वगंधा की  जड़ का काढा ३ माह तक पीना चाहिए.
**गले के अन्दर सूजन हो गयी हो तो निर्गुंडी के पत्ते, छोटी पीपर और चन्दन का काढा पीजिये, ११ दिनों में सूजन ख़त्म हो जायेगी.
**सूतिका ज्वर में निर्गुंडी का काढा  देने से गर्भाशय का संकोचन होता है और भीतर की सारी गंदगी बाहर निकल जाती है. गर्भाशय के अंदरूनी भाग की सूजन ख़त्म हो जाती है और वह पूर्व स्थिति में आ जाता है ,जिससे प्रसूता को बुखार से मुक्ति मिल जाती है और दर्द ख़त्म हो जाता है. बच्चा जानने के बाद निर्गुंडी के पत्तो का काढा हर महिला को दिया जाना चाहिए और एबार्शन के बाद भी यह कादा जरूर पिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ में अगर कोई भी मांस का टुकड़ा छूट जाएगा तो वह बाद में यूट्रस कैंसर का कारण बनेगा.
पेट में गैस बन रही है तो निर्गुंडी के पत्तो के साथ काली मिर्च और अजवाइन का चूर्ण खाना चाहिए ताकि गैस बननी बंद हो और पेट का दर्द ख़त्म हो और पाचन क्रिया सही हो जाए.
 
**भंगरैया तुलसी और निर्गुंडी के पत्तो का रस अजवाईन का चूर्ण मिलाकर पीने से गठिया की सूजन और  दर्द में बहुत लाभ होता है.
**कामशक्ति बढाने के लिए निर्गुन्डी और सोंठ का चूर्ण दूध के साथ लेना चाहिए.
**निर्गुंडी सर्दी जनित रोगों में बहुत फायदा करती है .
** निर्गुंडी के काढ़े से रोगी के शरीर को धोने पर सभी तरह की बदबू, दुर्गन्ध  ख़त्म हो जाती है.
**भैषज्य रत्नावली के अनुसार निर्गुंडी  रसायन शरीर का कायाकल्प करने में सक्षम है यह लम्बे समय तक मनुष्य को जवान बनाए रखता है , इसे बनने में पूरे एक माह लगते हैं,इसे किसी अनुभवी वैद्य से ही बनवाना चाहिए.
** निर्गुंडी के तेल से बालो का सफ़ेद होना ,बालो का गिरना , नाडी के घाव और खुजली जैसी बीमारियों में बहुत लाभ पहुंचता है किन्तु इसे भी किसी जानकार वैद्य से ही बनवाना उचित रहता है.
** अगर डिलीवरी पेन शुरू हो गया है और आप सरलता पूर्वक प्रसव कराना चाहते हैं तो निर्गुंडी के पत्तो की चटनी को महिला की नाभि के आस-पास लेप कर दीजिये.
** मुंह के छाले ख़त्म करने के लिए निर्गुंडी के पत्तो के रस में शहद मिलाकर उस मिश्रण को ३-४ मिनट मुंह में रखें फिर कुल्ला कर दीजिये.दो ही दिन में छाले ख़त्म हो जायेंगे.
** निर्गुंडी और शिलाजीत का मिश्रण   शरीर के लिए अमृत का काम करता है.
** निर्गुंडी और पुनर्नवा का काढा शरीर के सारे दर्द ख़त्म करता है.
** कमर को सही आकार में रखने के लिए निर्गुंडी के पत्तो के काढ़े में २ ग्राम पीपली का चूर्ण मिला कर एक महीने पीजिये.
** स्मरण शक्ति बढाने के लिए निर्गुंडी की जड़ का ३ ग्राम चूर्ण इतने ही देशी घी के साथ मिलाकर रोज चाटिये .
** साइटिका में निर्गुंडी के पत्तो क़ि चटनी को गरम करके सुबह शाम बांधना चाहिए या फिर इसका काढा पीना चाहिए.
** स्वास रोग में पत्तो का रस शहद मिलाकर दिन में चार बार एक  -एक चम्मच पीना चाहिए.
** निर्गुंडी के बीजों का चूर्ण दर्द निवारक औषधि है लेकिन हर दर्द में इसकी मात्रा अलग-अलग होती है.


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

जटामांसी


  • मैं बहुत दिनों से जटामांसी के बारे में लिखना चाह रही थी लेकिन कुछ तो संयोग नहीं बन पा रहा था और कुछ मेरी जानकारियों से मैं खुद संतुष्ट  नहीं थी, जबकि ये अकेली जड़ी है जिसका मैंने ७५%मरीजों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया है. फिर मरीजों की क्या बात करूँ ,मैं जो  आज आपके सामने सही-सलामत मौजूद हूँ वह इसी जटामांसी का कमाल है. इसलिए आज इस जड़ी का आभार व्यक्त करते हुए आपको इससे परिचित कराती हूँ.

  • आइये  पहले इसके नामो के बारे में जानते हैं-
  • हिंदी- जटामांसी, बालछड , गुजराती में भी ये ही दोनों नाम,तेल्गू में जटामांही ,पहाडी लोग भूतकेश कहते हैं और संस्कृत में तो कई सारे नाम मिलते हैं- जठी, पेशी, लोमशा, जातीला, मांसी, तपस्विनी, मिसी, मृगभक्षा, मिसिका, चक्रवर्तिनी, भूतजटा.यूनानी में इसे सुबुल हिन्दी कहते हैं.
  • ये पहाड़ों पर ही बर्फ में पैदा होती है. इसके रोयेंदार तने तथा जड़ ही दवा के रूप में उपयोग में आती है. जड़ों में बड़ी तीखी तेज महक होती है.ये दिखने में काले रंग की किसी साधू की जटाओं की तरह होती है. 
  • इसमें पाए जाने वाले रासायनिक तत्वों के बारे में भी जान लेना ज्यादा अच्छा रहेगा---- इसके जड़ और भौमिक काण्ड में जटामेंसान , जटामासिक एसिड ,एक्टीनीदीन, टरपेन, एल्कोहाल , ल्यूपियाल, जटामेनसोंन और कुछ उत्पत्त तेल पाए जाते हैं.
  • अब इस के उपयोग के बारे में जानते हैं :-
  • मस्तिष्क और नाड़ियों के रोगों के लिए ये राम बाण औषधि है, ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है.
  • पागलपन , हिस्टीरिया, मिर्गी, नाडी का धीमी गति से चलना,,मन बेचैन होना, याददाश्त कम होना.,इन सारे रोगों की यही अचूक दवा है.
  • ये त्रिदोष को भी शांत करती है और सन्निपात के लक्षण ख़त्म करती है.
  • इसके सेवन से बाल काले और लम्बे होते हैं.
  • इसके काढ़े को रोजाना पीने से आँखों की रोशनी बढ़ती है.
  • चर्म रोग , सोरायसिस में भी इसका लेप फायदा पहुंचाता है.
  • दांतों में दर्द हो तो जटामांसी के महीन पावडर से मंजन कीजिए.
  • नारियों के मोनोपाज के समय तो ये सच्ची साथी की तरह काम करती है.
  • इसका शरबत दिल को मजबूत बनाता है, और शरीर में कहीं भी जमे हुए कफ  को बाहर निकालता है.
  • मासिक धर्म के समय होने वाले कष्ट को जटामांसी का काढा ख़त्म करता है.
  • इसे पानी में पीस कर जहां लेप कर देंगे  वहाँ का दर्द ख़त्म हो जाएगा ,विशेषतः सर का और हृदय का.
  • इसको खाने या पीने से मूत्रनली के रोग, पाचननली के रोग, श्वासनली के रोग, गले के रोग, आँख के रोग,दिमाग के रोग, हैजा, शरीर में मौजूद विष नष्ट होते हैं.
  • अगर पेट फूला हो तो जटामांसी को सिरके में पीस कर नमक मिलाकर लेप करो तो पेट की सूजन कम होकर पेट सपाट हो जाता है.




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 8 अगस्त 2011

अमलतास



"अमलतास के फूल मनोहर "
ये किताब की  किसी कविता की पंक्तियाँ थीं ,आज भी याद हैं आप खुद देखिये-


ये अमलतास अक्सर हमारा मन मोह लेता है और इसके २ फीट लम्बे काले काले सांप जैसे फल .....रात में अचानक कोई देखे तो डर जाए कि सांप लटक रहे हैं .इतने सुन्दर फूल और ऐसे डरावने फल ...क्या कुदरत का करिश्मा है .आपको पता है ये कितना उपयोगी होता है? आइये आज इसी बारे में बात करते हैं-
इसके फल ही खासे उपयोगी होते हैं .इनमें अनगिनत तत्व मिलते हैं जिनमें महत्वपूर्ण हैं-
ग्लाइकोसीड्स, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, पोटेशियम,  आयरन,  मैग्नीशियम, टैनिन्स, रेजीन, गोंद, उड़नशील तेल, ल्यूकोपेलारगोनिदीन, कोंतानाल, फ्लेवोनीड्स, सिटोस्तीराल, एंट्राय .


देश के विभिन्न हिस्सों में में इसे भिन्न- भिन्न नामों से पुकारा जाता है --
हिंदी  में  धन्बहेडा, कन्नड़ में कक्केमर, बंगाली में सोनालू, मारवाड़ी में कर्माडी, गुजराती में गर्माड़ो,  तेलगू में रेलचत्तू,  मराठी  में वाहवोह, संस्कृत में हेमपुष्प, आरग्वध, दीर्घफल, व्याधिघातः आदि 

वैसे तो अमलतास की जड़, छाल, फल,फूल और पत्ते सभी बेहद काम के होते हैं पर इसमें जो डेढ़- दो फीट लम्बी काले रंग की फलियाँ लगती हैं, ये शीतकाल में पकती हैं,  इनके भीतर बने हुए छोटे-छोटे खाने में काले रंग का गोंद के समान  एक लसदार सा पदार्थ भरा मिलेगा जिसे गिरी कहते हैं
यही गिरी अनेक रोगों में काम आती है. बच्चों के पेट में दर्द हो रहा हो तो इसी गिरी नाभि के चारों  तरफ लेप कर देने से पेट  दर्द ठीक हो जाता है.अगर किसी कीश्वास फूल रही है या श्वास लेने में रुकावट महसूस हो रही है तो इसी गिरी का काढा पिला दीजिये. २ बार पिलाना काफी होगा. इसी गिरी से आप हाइड्रोसील को भी ठीक क र सकते हैं- २० ग्राम गिरी को २०० ग्राम पानी में धीमी आंच पर पकाएं जब पानी एक चौथाई बचे तो उसमें ३५ ग्राम गाय का घी मिलाएं और रोगी को खड़े-खड़े पिला दीजिये. रोगी स्वस्थ हो जाएगा.  गर्भवती स्त्री को आराम से प्रसव कराने के लिए दर्द शुरू होते ही इस गिरी की पतली चटनी पीस कर योनि के चारों ओर लेपकर दीजिये, दर्द-रहित  नार्मल प्रसव होगा. यूरीन डिस्चार्ज करने में अगर जलन, दर्द, पीड़ा, या कोई और कष्ट हो रहा हो तो इसी गिरी को नाभि पर लेप कीजिए और लेप सूख जाये तो हटा दीजिये.

अमलतास के पत्तो को पीस कर दाद,या किसी प्रकार के कोढ़ पर लेप करने
से आराम मिलेगा. पत्तों को गरम करके गठिया के दर्द वाली जगह पर बाँधने से भी दर्द से राहत मिलती है








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गुरुवार, 2 सितंबर 2010

अडूसा (वासा), एक चमत्कारी पौधा

Yellow Barleria Prionitis, Bombay, India
This travel blog photo's source is TravelPod page: Yellow Barleria Prionitis, Bombay, India
मैंने दो दिन पहले फेसबुक पर लिख दिया था कि अगर टी.बी. हो तो वासा के बीस पत्तों का रस सुबह-शाम सेवन करें, अब इसके बारे में पूरी जानकारी के लिए इतने सारे फोन और मेल आए कि मुझे इसका ज्ञात विवरण आपको बताना पड़ रहा है, चलिए इसी बहाने मेरा ज्ञान भी नवीन हो गया, मैं आप सभी जिज्ञासुओं की आभारी हूँ. चूंकि मेरे लैपटाप का कैमरा आजकल रेनीडे मना रहा है इसलिए ये चित्र मैंने गूगल की सहायता से ही आपके लिए खोजे हैं.

                        अब थोड़ा काम की बातें करें ----  अडूसा अर्थात वासा दो तरह का होता है, इनमें हम फूलों से भेद करते हैं- एक पीले फूल वाले और एक सफ़ेद फूलों वाले.
          सफ़ेद फूलों वाले अडूसा को मालाबार नट भी कहते हैं. ये पांच  से लेकर आठ फिट की ऊंचाई वाले अनेक शाखाओं वाले झाडीदार पेड़ होते हैं. जिसके पत्ते दोनों तरफ से नोंकदार होते हैं. ये हमेशा हरे रहने वाले पेड़ हैं. इनके पत्ते, फूल ,जड़, तना सभी औषधीय दृष्टि से बेहद उपयोगी हैं . ये नीचे अडूसा या वासा के चित्र हैं.  
                     इसके पत्ते कफ विकारों में बहुत काम आते हैं. टी.बी. का तो ये बेहद असरकारी इलाज है. हमारे देश में चालीस प्रतिशत रोगी टी.बी.से ग्रसित होते हैं, और इसी रोग के साथ जिन्दगी बिता देते हैं. हालांकि सरकार की तरफ से काफी प्रयास किये जा रहे हैं. लेकिन छः महीने का एलोपैथ का कोर्स सचमुच हमारे देश की जनता के लिए कठिन है. उसमें भी अगर गैप हो जाए तो फिर से शुरू कीजिये. जबकि किसी आयुर्वेदिक औषधि के साथ ऐसा नहीं है. आयुर्वेदिक औषधियों को लेने का एक ही नियम है कि वे खाली पेट सुबह ही ले ली जाएं. १० दिन लेने के बाद दो चार दिन का गैप भी हो जाए तो कोई परेशानी नहीं है. लेकिन आयुर्वेदिक दवा कम से कम २१ या ज्यादा दिनों का रोग हो तो ४१ दिन लेने का नियम शास्त्र सम्मत है.

 ***अडूसा या वासा के पत्तो को आप सुखा कर रख भी सकते हैं किन्तु फिर उसकी मियाद तीन महीने तक ही होती है.  इन पत्तो का चूर्ण मलेरिया में बहुत तेज काम करता है. १० ग्राम सुबह और १० ग्राम शाम को दीजिये.
***अगर खून में पित्त की मात्रा ज्यादा हो गयी है अर्थात पीलापन शरीर में बढ़ गया है या आपको पित्त की अधिकता का एहसास हो रहा है तो पत्तो का एक कप(६० ग्राम) रस निकालिए और उसमें तीन चम्मच शहद मिलाकर दिन में तीन बार पिलाइए. हर बार एक कप रस ताजा निकालिए,ज्यादा फ़ायदा करेगा. ये प्रक्रिया पांच दिन तक कीजिये.
*** अगर श्वांस से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो वासा के पत्तों के रस में अदरक का रस तथा शहद मिला कर कम से कम ५ दिन तक पिलाइए. जितना पत्तों का रस हो उसका आधा अदरक का रस और अदरक के रस का आधा शहद. दिन में एक बार खाली पेट.
*** शरीर में कही खाज-खुजली की शिकायत हो तो पत्तों के रस में हल्दी मिलाकर लेप कर लीजिये. तीन- चार दिन में कीड़े ही ख़त्म हो जायेंगे.
*** पेट में कीड़े पड़ गये हो तो पत्तो के रस में शहद मिलाकर दिन में एक बार लीजिये
***मूत्रत्याग में कोई परेशानी हो या मूत्राशय से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो गन्ने के रस में २५ ग्राम वासा के पत्तो का रस मिलाकर पी कर देखिये.
*** हैजा हो गया हो तो इसके फूलों का रस शहद मिलाकर दीजिये.
*** जुकाम में २५ ग्राम पत्तो के रस में १३ ग्राम तुलसी के पत्तो का रस और १० ग्राम शहद मिला कर दिन में दो बार पीजिये. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लेंगे तो जादू जैसा असर दिखाई देगा.
***वीर्यपतन में इसके पत्तो के रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर १० दिन तक पीयें
वासा के पत्तों में वेसिनिन, आधाटोदिक अम्ल, वसा, राल, शर्करा, गोंद, उड़नशील तेल, पीत्रन्जक तत्व, एल्केलायड, एनाएसोलिन, वेसिसीनोन आदि तत्वों की भरमार होती है.

  दूसरा पीले फूलों वाला पौधा या झाडी होती है, इसकी ऊँचाई चार फिट के अन्दर ही देखी गई है. इसका एक नाम कटसरैया भी है. कहीं-कहीं पियावासा भी बोलते हैं. ये झाड़ियाँ कंटीली होती हैं. इसके पत्ते भी ऊपर वाले वासा से मिलते जुलते होते हैं. किन्तु इस पौधे के पत्ते और जड़ ही औषधीय उपयोग में लिए जाते हैं. इसके चित्र सबसे ऊपर दिए गए हैं, आप ठीक से पहचान लीजिये.
इसमें पोटेशियम की अधिकता होती है इसी कारण यह औषधि दाँत के रोगियों के लिए और गर्भवती नारियों के लिए अमृत मानी गयी है.
****गर्भवती नारियों को इसके जड़ के रस में दालचीनी, पिप्पली, लौंग का २-२ ग्राम चूर्ण और एक चौथाई ग्राम केसर मिलाकर खिलाने से अनेक रोगों और कष्टों से मुक्ति मिलती है, तन स्वस्थ और मन प्रसन्न  रहता है, पैर सूजना, जी मिचलाना,  मन खराब रहना, लीवर खराब हो जाना, खून की कमी, ब्लड प्रेशर, आदि तमामतर कष्ट दूर ही रहते हैं. बस सप्ताह में दो बार पी लिया करें.

****कुष्ठ रोग में इसके पत्तो का चटनी जैसा लेप बनाकर लगा लीजिये. 
****मुंह में छले पड़े हों या दाँत में दर्द होता हो या दाँत में से खून आ रहा हो या मसूढ़े में सूजन /दर्द हो तो बस इसके पत्ते चबा लीजिये,उसका रस कुछ देर तक मुंह में रहने दीजिये फिर चाहें तो निगल लें, चाहें तो बाहर उगल दें. कटसरैया की दातुन भी कर सकते हैं.
****मुंहासों में इसके पत्तों के रस को नारियल के तेल में खूब अच्छे तरीके से मिला लिजिये, दोनों की मात्रा बराबर हो, बस रात में चेहरे पर रगड़ कर लगा कर सो जाएं, चार दिनों में ही असर दिखाई देगा. मुंहासे वाली फुंसियां भी इससे नष्ट होती हैं.
**** शरीर में कहीं सूजन हो तो पूरे पौधे को मसल कर रस निकाल लीजिये और उसी रस का प्रयोग सूजन वाले स्थान पर बार-बार कीजिये.
****पत्तो का रस पीने से बुखार नष्ट होता है, पेट का दर्द भी ठीक हो जाता है. रस २५ ग्राम  लीजियेगा .
**** घाव पर पत्ते पीस कर लेप कीजिये. पत्तो की राख को देशी घी में मिलाकर जख्मों में भर देने से जख्म जल्दी भर जाते हैं,कीड़े भी नहीं पड़ते और दर्द भी नही होता.

               इस पौधे में बीटा-सिटोस्तीराल, एसीबार्लेरिन,  एरीडोइड्स बार्लेरिन, स्कूतेलारिन रहामनोसिल ग्लूकोसैड्स जैसे तत्वों की उपस्थिति है.  इसका वैज्ञानिक नाम है- बार्लेरिया प्रिओनितिस .


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा