चोबेहयात के नाम से मशहूर यह पेड़ भारत में बनारस, हाथरस, पहाड़ी क्षेत्रों और गोरखपुर में पाया जाता है. इसके फूल को ध्यान से देख लीजिये। ये जमैका देश के राष्ट्रीय फूल हैं। यह सभी चित्र गूगल से प्राप्त हुए हैं,आभारी हूँ।
इस पेड़ की ख़ास पहचान है कि इसकी लकड़ी पानी में डूब जाती है। इसकी लकड़ी में तेल भी होने की वजह से यह आसानी से नहीं कूट-पीस पाती। लेकिन इस लकड़ी को जलाओ तो बड़ी अच्छी खुशबू आती है।
इसे संस्कृत में जीवदास ,वृद्धमित्र , मराठी में लौह-लक्कड़ ,हिन्दी और उर्दू में चोबेहयात कहते हैं।इसका वैज्ञानिक नाम है- Guaiacom officinale. यह अपने संस्कृत वाले नाम को चरितार्थ करता है। यह वाकई बूढों का दोस्त है।
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कोढियों के लिए तो वरदान है ये। ४ ग्राम चोबेहयात की लकड़ी का चूर्ण एक ग्राम काली मिर्च के चूर्ण में मिलाकर शरबत बनाकर सिर्फ २ महीने ही पीने से कोढ़ ख़त्म हो जाता है ,लेकिन इस शरबत को पीने के बाद बीस ग्राम मक्खन या देशी घी किसी अनाज में मिलकर खाना जरुरी है।
पचास वर्ष के हो चुके लोगो को इसका २ ग्राम चूर्ण तो रोज ही खा लेना चाहिए, इस उम्र की तमाम बीमारियाँ -सियाटिका, गठिया, गले की नली का सुखना, मल के साथ खून आना, जोड़ों में दर्द आदि बीमारियाँ उन्हें नहीं परेशान करेंगी।
यह एक रसायन है जो जीवनदायी प्रक्रिया को तेज कर देता है ,इसीलिए इसका एक नाम जीवदास भी है. जिससे चेहरे पर तेज चमकने लगता है।सांप और बिच्छू जैसे जहरीले जानवर के जहर को इसकी लकड़ी का लेप खींच लेता है।जिससे प्राणी को नया जीवन मिल जाता है।
हैजे में इसका २ ग्राम पाउडर शहद के साथ चाटने से उलटी, दस्त बंद हो जाते हैं।
बुजुर्गों को इसकी लकड़ी का चूर्ण सप्ताह में एक बार जबान पर रख के चूसना चाहिए जिससे उनके गले से आंत तक की सभी परेशानियाँ दूर हो जाएँ।
इसकी लकड़ी में बड़े गुण हैं, औषधीय रूप से ही नही सामान्य तौर पर भी. लेकिन इसकी नाव नहीं बनायीं जा सकती वरना वो तो पानी में डूब जायेगी।
आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने
का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
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