आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

ये कहावते भी खूब हैं -

ये कहावते भी खूब हैं -

बहुत प्राचीन काल में जब लिखने और उसे सुरक्षित रखने की विधियों का अभाव था तो सारा ज्ञान मुंह जबानी एक पीढी से दूसरी पीढी में स्थानांतरित होता था या गुरु जन किसी योग्य शिष्य को ही सारा ज्ञान देते थे। इस चक्कर में आज हम बहुत सारे ज्ञान से वंचित हैं। खैर वह ज्ञान जल्दी आत्मसात या कंठस्थ हो जाए इसलिए गेय शैली में होता था या गीतों के रूप में होता था। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण लीलावती, गीता, महाभारत,राम चरित मानस जैसे ग्रन्थों के रूप में आप देख सकते हैं। ऐसे ही कई ज्ञान कोशों में से निकल कर कुछ पद्य कहावतों के रूप में प्रचलित हो गये जो आज भी यहाँ वहां सुनने को मिल जाते हैं। मैने डॉ ॐ प्रकाश सक्सेना की किताब में भी कुछ ऎसी ही कहावतें पढी थीं। इन कहावतों में हमें जीने के तरीके बताये जाते हैं। जैसे घाघ की कहावतों पर अमल करके हम बहुत सारी परेशानियों से बच सकते हैं। उसी तरह आप इन कहावतों पर अमल  करके देखिये बहुत सारी बीमारियों से बच जायेंगे,  

दूध दही और साग फल ,दरिया खिचडी खीर 
गाजर, हलुआ, शहद, घृत ,राखे शांत शरीर। 
दिवस अन्न निशि खाय फल,शयन समय पय पान 
कबहूँ रोग न होय ,शक्ति होय खूब बलवान। 

जो ताजा भोजन करे ,पीवे पानी छान 
स्वच्छ वायु सेवन करे, हो जाए शरीर बलवान। 
सोवत नियमित समय जो, निश्चित समय आहार 
प्रातः काल स्नान से शक्ति बढे अपार।

जो अधिक बातें न करे, अधिक अन्न नहीं खाए 
बिन निद्रा सोवे नहीं ,अवश्य आयु बढ़ी जाए। 

जो भोजन के ग्रास को चाबे चालीस बार 
मध्यपिमध्य जल न पिए, बढे शक्ति अपार। 

भोजन ,यात्रा, शयन के मैथुन और व्यायाम 
घंटा बाद नहाइये ,पहुँचावेगा आराम। 

गरमी शीतल वारि सों ,वर्षा ताजा  होय
सदा नहावे शीत में गर्म गर्म जल होय। 

स्वच्छ वस्त्र या तौलिया लीजे धोय निचोर 
ऐसे भीगे वस्त्र सों तन रगड़े चहुँ ओर 
एही प्रकार नित रगड़ के जो नर सदा नहाए 
कान्ति  बढे खुजली मिटे त्वचा रोग मिट जाए। 
साबुन ,शोरा , गर्म जल सर में कबहूँ न डाल 
वृद्धावस्था  से प्रथम ही श्वेत होय सब बाल। 

मल आलस्य विनाश कर ,करे पसीना बंद 
निश्चित समय नहाइये ,सदा रहे आनंद। 
बरस भर कबहूँ न कीजिए साबुन को व्यवहार 
सभी चिकनाई बदन की क्षण में देत  निकार। 

सूर्योदय के प्रथम ही जो नर सदा नहाय 
रक्त शुद्ध ,दीर्घायु हो, ओज शक्ति बढ़ जाए। 

कफ नजला अतिसार शिशु वृद्ध जुकाम बुखार 
शीत प्रकृति नर को करे ,शीत व वायु विकार। 
अधिक सर्द और गर्म जल ,कबहु न भूल के नहाय 
जोड़ों को ढीला करे ,देवे वात बढ़ाय। 

लघु शंका और शौच में ,कबहूँ न मुख सो बोल
शौच समय सर बांधिए ,भोजन में सर खोल। 
(आजकल तो लोग मोबाइल कान में लगाए लगाए पेशाब, मल सब कर लेते हैं)

भोजन के प्रति ग्रास में, मिश्रित होवे लार 
चुन चुन कर कीटाणु सब करते रस तैयार 
पुनः उसी रस से बने ,रक्त ,धातु और कान्ति 
सदा निरोगी तन रहे, होय कब्जियत शांत। 

भोजनांत लघु शंका जावे,मूत्र रोग सो मुक्ति पावे 
दो घंटे में तक्र  जो पाय,अन्न पचे कब्जियत न आय।       

2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जो भोजन के ग्रास को चाबे चालीस बार
मध्यपिमध्य जल न पिए, बढे शक्ति अपार..

लोकोक्तियों ओर कहावतों में सरल जीवन का सार कह गए हैं बड़े बुजुर्ग .... बहुत अच्छा लगा ...

बेनामी ने कहा…

हर बार की तरह यह post भी ज्ञानवर्धक है.बचपन से ही अपने परिवार के बड़ों से ऐसा ही सुना-सीखा है.