आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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रविवार, 4 जनवरी 2015

शहद : ज्ञान कम,भ्रम ज्यादा

शहद : ज्ञान कम,भ्रम ज्यादा

मधु वाता ऋतायते, मधु क्षरन्ति सिन्धवः 
                                              ------ऋग्वेद 
पौत्तिकं भ्रामरं क्षौद्रं माक्षिकं छात्रमेव च .आर्घ्य मौद्दालिकम दालमित्यष्टौ मधु जातयः .
                                                                              ------ सुश्रुत संहिता 
आयुर्वेद के दो महान ग्रंथों की ये दो पंक्तियाँ ही शहद को परिभाषित करने और उसके भेद बताने के लिए पर्याप्त हैं .मैं अगर व्यक्तिगत रूप से बात करू तो मुझे आज तक शहद का विकल्प नहीं मिला है और चिकित्सक के रूप में मैं तब बहुत दुविधा में पड़ जाती हूँ जब कोई मरीज यह कहता है कि वह जैन है और शहद का सेवन नहीं कर सकता . (मैं  अपने प्रबुद्ध पाठक बंधुओं से यह अपेक्षा रखती हूँ कि वे मुझको जैन धर्म की किसी   सम्मानित पुस्तक का वह अंश जरूर मेल कर दें जिसमें शहद खाने की मनाही की गयी हो ).
शहद एक उत्तम पौष्टिक है .अगर दुर्भाग्यवश आपको कोई रोग हो गया हो और आप किसी भी पद्धति से इलाज करवा रहे हों तो आप अन्य दवाओं के साथ ही एक -एक चम्मच शहद का सेवन भी शुरू कर दीजिये .आप और आपका डाक्टर खुद देखेगा कि आपने बिमारी पर दुगुनी तेजी से काबू पा लिया है .
शहद अनेक प्रकार की शर्कराओं का मिश्रण है .गन्ने की शर्करा, अंगूर की शर्करा, पुष्पों की शर्करा का ऐसा मिश्रण कृत्रिम रूप से नहीं तैयार हो सकता .इसी लिए शहद को नवजात शिशु को माता के दूध के स्थान पर दिया जाता है. पुंकेसरों से उसका महत्वपूर्ण अंश चूस लेने की क्षमता प्रकृति ने सिर्फ मधुमक्खियों को ही प्रदान की है .इसके बावजूद पुष्प को कोई नुक्सान नहीं पहुंचता वह उसी तरह खिला रहता है .जब मनुष्य पुष्पों से तत्व निकालने की कोशिश करेगा तो ,उसका शर्करा तत्व भले निकले या न निकले, पुष्प जरूर ख़त्म हो जाएगा .
शहद को आठ प्रकार का माना गया है .भावप्रकाश   में भी शहद के आठ भेद माने गए हैं जबकि चरक संहिता  में सिर्फ चार प्रकार के शहद का वर्णन है .पौत्तिक शहद विषैली मक्खियों से सम्बंधित होने के कारण विषैला होता है .यह शरीर में रूखापन, वात ,पित्त को बढ़ाता है ,शरीर में जलन उत्पन्न करता है और नशा पैदा करता है .भ्रामर शहद में लसीलापन और अधिक मिठास होती है इसलिए वह अधिक भारी होता है. क्षौद्र मधु विशेषतः शीतल, लघु और लेखनीय माना गया है .अर्थात ये शरीर का सबसे अच्छा दोस्त है, आराम से पच जाता है और लेखनीय गुण  होने से यह मोटापे को भी कम करता है. माक्षिक शहद  सबसे श्रेष्ठ माना गया है .यह विशेषतः श्वास प्रक्रिया में बहुत उपयोगी होता है ,इसको खाने से स्वर भी मधुर होता है .छात्र शहद हिमाचल प्रदेश के वनों की मधुमक्खियों द्वारा निर्मित किया जाता है .इनके छत्ते छाते के आकार  के होते हैं इसलिए ये छात्र शहद कहलाता है इसमें सफ़ेद दाग, प्रमेह और कृमियों को नष्ट करने की विशेष क्षमता होती है . इसे भी गुणों में श्रेष्ठ माना गया है .आर्घ्य शहद अर्घा नामक मधुमक्खियों द्वारा तैयार किया जाता है ,यह आँखों के लिए बहुत फायदेमंद है ,कफ और पित्त को नष्ट करता है ,ताकत देता है , तेज होता है.इसमें थोड़ा कड़वापन भी होता है .औद्दालक शहद स्वादिष्ट, स्वर को मधुर करने वाला ,जहर नष्ट करने वाला और कोढ़ को भी नष्ट करने वाला होता है.दाल शहद की ये विशेषता है की वह किसी भी प्रकार के प्रमेह को ख़त्म कर देगा (मधुमेह भी 20 प्रकार के प्रमेहों में से एक है )यह कुछ खटास लिए होता है इसलिए पित्त भी बढ़ाता है ,गरम होता है रूखापन होता है 
अगर शहद ताजा है तो ताकत देता है ,पेट साफ़ करता है इसे अल्पश्लेष्महर भी माना  गया है .एक साल पुराना शहद बाहर निकले हुए पेट को कम करता है और मोटापे को दूर करता है ,शरीर में पूर्णतया अब्जॉर्ब हो जाता है और अनावश्यक मांस को ख़त्म करता है. छत्ते में अधिक समय तक रहने वाला शहद पक्व शहद माना जाता है ,यह शरीर में तीनो दोषों को नष्ट करके शरीर को स्वस्थ और स्वच्छ बना देता है .इन सबके विपरीत कच्चा शहद एसिडिटी पैदा करता है और तीनो दोषों (वात कफ और पित्त )को बढ़ा देता है .
एक सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि शहद को कभी गरम पेय पदार्थों ,गरम प्रकृति की वस्तुओं ,गरमी से पीड़ित व्यक्तियों, गरम देशों और गरमी के मौसम में प्रयोग नहीं करना चाहिए .ऎसी स्थिति में इसका प्रयोग जहर की तरह घातक हो जाता है .शहद की प्रकृति ठंडी और कोमल मानी गयी है .अनेक प्रकार की औषधियों के पुष्पों के रस से उत्पन्न होने के कारण शहद उष्णता के विरुद्ध होता है .आयुर्वेद वमन कराने के लिए (vomating) शहद का प्रयोग गरम जल के साथ करने की सलाह देता है क्योंकि तब शरीर में यह अब्जॉर्ब नहीं होता न  ही शरीर में टिकता है .सावधानीवश इसे गरम जल के साथ न ही लिया जाए तो बेहतर है क्योंकि अगर वोमेट नहीं हुई और यह शरीर के अंदर ही रह गया तो यह विष के समान प्राणनाशक सिद्ध होगा और अधिक कष्ट देगा .सभी प्राणियों पर ये नियम लागू होगा .
शहद के लिए योगवाहि शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह अनेक प्रकार के द्रव्यों से मिल कर बनता है और भिन्न भिन्न प्रकार की औषधियों के साथ मिल कर भिन्न भिन्न प्रकार की बीमारियों का नाश करता है.
अब शहद के सामान्य गुणों पर भी निगाह डाली जाए ---

इसके अंदर संधान unity का गुण होता है अर्थात ये हमारी कोशिकाओं को इतनी सख्ती के साथ बांधे रखता है की उनमें किसी प्रकार के विष के प्रवेश की संभावना ही ख़त्म हो जाती है .कैंसर के मरीजों को शहद दिया जाए तो कैंसरस सेल फैलने की प्रक्रिया 90%तक कंट्रोल हो जायेगी .त्वचा भी दृढ़ बनी रहने से झुर्रियों की सम्भावना ख़त्म ,हड्डियों में दृढ़ता रहते से सर्वाइकल, स्लीपडिस्क, गठिया की संभावना ख़त्म .इसका यह संधान वाला गुण सबसे करामाती गुण है .
यह हृदय  के लिए लाभकारी है.
 यह सौंदर्य वर्धक  है .
यह शरीर के बहुत सूक्ष्म कोषों तक भी बहुत तेजी से पहुँच जाता है 
यह वीर्य वर्धक है 
यह आँखों के लिए बहुत लाभदायक है .
यह शरीर में निर्माण की प्रक्रिया तेज करता है 
यह शरीर का शोधन करता है.

वास्तव में शहद अमृत है .


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इतना कुछ शहद के बारे में आज ही जानने को मिला ... नव वर्ष मंगलमय हो ...

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया

dr.mahendrag ने कहा…

सुन्दर जानकारी ,शहद वास्तव में कफ जैसी बीमारी के लिए तो बहुत उपयोगी है सवाथ व्यक्ति की स्वस्थता को नियमित बनाये रखने में इसकी अच्छी उपयोगिता है ,जानकारी हेतु आभार

Sensitive Jiven ने कहा…

De hai jankari ka Bahut Shukriya ,Allen ye batae ki meharbani Karen ki jo shehad jam jaye Kiya Wo bhi Sahi hoti hay?
Pls bataen

Unknown ने कहा…

क्या आप जानते है शहद कैसे निकाला जाता है और शहद किसके लिए होता है?