आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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बुधवार, 31 मई 2017

नई खोज

जन्म का समय
यह एक ऐसी खोज है जो सिर्फ चिकित्सा विज्ञान ही नहीं जीवन के सभी कार्यों ,सभी क्षेत्रों में सामान्य से 70 गुना बेहतर परिणाम देगी।व्यक्ति की पैदाइश का जो समय होता है उस समय पर उसके शरीर की चैतन्यता अपनी पूरी high potency पर रहती है ।यदि कोई व्यक्ति बहुत दिनों से बेहोश है और किसी तरह बेहोशी नही टूट रही तो उस खास समय पर उसे दवा देकर या किसी और तरीके से होश में लाने की कोशिश की जाय तो 100% चांस है कि उसे होश आ जाय।
हर बच्चे की पैदाइश का समय उसके शरीर पर गुदवा देना चाहिए,ताकि भविष्य की किसी इमरजेंसी में काम आ जाये।अगर आपको किसी मुसीबत से निकलने का रास्ता नही मिल रहा है तो पैदाइश वाले वक्त अपने दिमाग को एकाग्र कीजिये,हर हाल में रास्ता मिल जाएगा।
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शिवलिंग की सही स्थापना होनी चाहिए--

हमारे धर्म में शंकर जी की कल्पना उनके मस्तक पर विराजमान गंगा नदी एवं चंद्रमा के साथ की गई है।इसके पीछे अनगिनत विद्वानों ने अनगिनत मत बताएं हैं किंतु इन मतों में एक बात सर्वमान्य है कि शिव निरंतर साधना में लीन रहते हैं तथा प्रचंड क्रोध शक्ति वाले देव हैं।संहारकर्ता के रूप में जाने जाते हैं अर्थात उनके अंदर ऊर्जा का अकथनीय अवर्णनीय भंडार है जो असीमित है।वे बर्फ की गुफाओं में हिमालय पर्वत पर निवास करते है, इसलिए कि उनकी ऊर्जा आक्रामक न होने पाए।
हम शिवमंदिर के निर्माण के वक्त यह बात भूल जाते हैं।विशाल शिवलिंग स्थापित कर देते है किंतु उनके शीश पर विराजमान गंगा जी की उपेक्षा कर देते हैं।निर्माण की प्रक्रिया में मंदिरों में यह व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई जलधारा निरंतर शिवलिंग पर गिरती रहे और वह पानी अंदर पृथ्वी की गहराइयों में समाहित होता रहे।यही वास्तविक शिव मंदिर होगा।वर्ष में एक बार हजारों घड़े जल से अभिषेक करने से शिवलिंग से निरंतर निकलने वाली ऊर्जा को आप कंट्रोल नहीं कर सकते।पर्यावरण संतुलित करने के लिए यह आवश्यक है कि निरंतर जल उस पर गिरता रहे।शिवलिंग ऊर्जा का अथाह भंडार है।यह ऊर्जा लाखो करोड़ो शिवमंदिरों से निकल रही है और पृथ्वी के वातावरण को निरंतर गर्म कर रही है।शिवलिंग पर निरंतर गिरती जलधारा उस ऊर्जा को शांत करेगी और पृथ्वी में समाता हुआ जल पृथ्वी के सामान्य जलस्तर को बनाये रखेगा।जिससे हरियाली बढ़ेगी।मानसून आकर्षित भी होगा।पर्यावरण संतुलन वापस स्थापित होगा।
वक्त है कि हम अपनी गलती सुधार लें और धर्म की सही व्याख्या समझें।अन्यथा वैज्ञानिकों ने तो पृथ्वी की शेष आयु 100 से 500 वर्ष घोषित कर ही दी है।

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