आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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शनिवार, 18 जुलाई 2009

" शक्ति - अमृत "



''आयुर्वेद का अर्थ औषधि-विज्ञानं नहीं वरन आयु अर्थात जीवन-विज्ञान है ''



अथर्ववेद के तीसरे अध्याय का श्लोक है ----
" शतहस्त समाहर सहस्रहस्त सं किर "
'' कृतस्य
कार्यस्य चेह स्फातीं समावह ''
इसका अर्थ है --------
'' सौ
हाथों से संग्रह करो ,हजार हाथों से दान करो .अपने कार्यक्षेत्र तथा कर्तव्य क्षेत्र की अभिवृद्धि करो ।
''
व्यवहारिक भवार्थ यह है की सैकड़ों सूत्रों से अर्थात लोगों [[ यही आप का कार्य क्षेत्र है ]] से प्राप्त ज्ञान को हजारों के मध्य इस भावना के साथ बाँट दो कि उनमें से प्रत्येक इसी नियम का पालन करेगा [[ यही आप का कर्तव्य क्षेत्र है ]]
ज्ञान बड़े से कठिन परिश्रम से अर्जित होता है अतः इसे तपस्याओं से प्राप्त हुआ भी हा जाता है परन्तु आज उपरोक्तश्लोक में दिए गये इसी आदेश का पालन करते हुए बड़ी तपस्याओं से प्राप्त हुआ ज्ञान , आपको बांटने जा रही हूँ| पुरानीपीढी के बारे में यह आक्षेप बार-बार लगाया जाता रहा है कि पुरानी पीढी ज्ञान बांटने में संकोच करती रही थी , फलतः हम निरे अज्ञानी रह गए हैं , जब कि वास्तविकता इसके विपरीत है । वेद - ज्ञान का लुप्त हो जाना उचित ही था क्यों कि उन वेद ज्ञान में ही सृष्टि रचना का रहस्य छिपा थाअर्थात जो उस वैदिक ज्ञान को पा जाता उसे प्राकृति एवं सृष्टि सञ्चालन का सूत्र एवं शक्ति प्राप्त हो जाती और यहीकारण है कि वैदिक एवं पुराण कथाओं में दैत्यों ,दानवों एवं असुरों तथा राक्षसों द्वारा वेदों के चुराए जाने एवं ईश्वर केविभिन्न ' अवतारों ' द्वारा उन्हें पुनः - पुनः प्राप्त कर सुरक्षित कराने कि कथा आती हैं | हाँ भौतिक जीवन से जुड़े बहुत से , पारंपरिक ज्ञान भी लुप्त हो गए | प्रारम्भ में तो इन्हे विदेशी आक्रान्ताओं से सुरक्षित रखने हेतु छिपाया गया यह वहीअवशेष भाग था जो आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट कराने से पूर्व ही विद्वानों द्वारा अपने शिष्यों के मध्यम से छुपाया जा चुका था , उदहारण तक्षशिला विश्वविद्यालय ही है जो महीनो विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा लगायी आग में जलता रहा | बाद में विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का इतना अवमूल्यन कर दिया गया कि हम आज बस क्लर्क बुद्धि मात्र रह गये , अतः हम ही इस योग्य नही रह गए कि उनका महत्त्व समझ उसकी आकर्षित होते | काश अब से हमारे ज्ञानी -विज्ञानी चेत जाते। खैर हमही पहल कर रहे हैं , शायद हमारी आने वाली पीढियों का कुछ तो भला होगा :----------
असली बात ----
आप अपने आस -पास किसी पंसारी की दूकान से निम्न तीन चीजें हासिल करें --
१-- अश्वगंधा की जड़
२-- तुलसी की सूखी पत्तियाँ
३ -- गिलोय [तना भाग]
इन्हें महीन पीस कर चूर्ण बना लीजिये। चूर्ण की मात्रा क्रमशः ५० ग्राम ,२० ग्राम और १५ ग्राम होनी चाहिए इस चूर्ण को मिला कर ''अमृत पावडर ''बना लीजिये इस चूर्ण को सवेरे खाली पेट एक चम्मच [[चार ग्राम ]] पानी से निगल जाइये नियम पूर्वक इसका सेवन करने से आप अद्भुत शक्ति प्राप्त कर लेंगे थकान गायब ,सर दर्द ,बदन दर्द से मुक्ति , आदि-आदि !


[[मूल आलेख '' Alka Sarwat '' ]]
[[ सज्जा सहयोग ''अन्योनास्ति '' ]]