आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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गुरुवार, 19 सितंबर 2013

आइये चाय पीते हैं गेहूँ की

आइये चाय पीते हैं गेहूँ की



यह गेहूँ का चित्र है इसलिए आपको बता रही हूँ कि आप पहचान लीजिये. क्योंकि  आज कल पैकेट वाले आटे  का चलन बढ़ गया है जो इसी गेहूँ में जाने क्या क्या मिला कर बनाया जाता है फिर उस आटे की रोटियाँ आपके घर में बनती हैं।  बचपन में तो हमें गेहूँ पिसवाने चक्की तक जाना पड़ता था और मम्मी की धमकी भी चक्की वाले को बतानी पड़ती थी कि मम्मी ने कहा है की महीन पीसना नहीं तो दोहरा के पीसना पड़ेगा और पैसा भी नहीं देंगे। बदले में चक्की वाला गेहूँ की कमियाँ हमें बताता था. मतलब इधर का सन्देश उधर और उधर का इधर सुनाने में गेहूं का तो भगवान् मालिक लेकिन हम बच्चे जरूर पिस जाते थे. और आज कल तो वो घटनाएं सोच सोच के बड़ा मजा आता है. लेकिन ये तय है कि  कल हमारे नाती पोते पूछेंगे कि ये गेहूँ क्या होता है?
       



चलिए अब मुद्दे पर आते हैंकि हम इस गेहूँ को कितना जानते हैं ?जबकि इसको हम दिन में ३-४ बार खाते हैं

गेहूँ  में ७०% कार्बोहाइड्रेट, २४%तक प्रोटीन, २%तक वसा,और २%तक ही राख होती है. जबकि गेहूँ के चोकर में आयरन, कैल्शियम,पोटेशियम, मैग्नीशियम,फास्पोरस, कापर आदि अनेक तत्व पाए जाते हैं.अब ये आप सोचिये कि आपको चोकर सहित आटे  की रोटी बनानी है या चोकर विहीन आटे  की.
गेहूँ की चाय बनाने के दो तरीके हैं- पहला तो ये कि २० ग्राम दलिया  को २०० ग्राम पानी में धीमी आंच पर चढ़ा दीजिये जब पानी ५० ग्राम बचे तब उसे उतार कर छान लीजिये और उसमे १ चम्मच शहद और १ ही चम्मच दूध मिला कर पीजिये ,बड़ी टेस्टी और पौष्टिक चाय बनती है।  दूसरा ये की गेहूं को तवे पर धीमी आंच पर भूनिए फिर इन्हें दरदरा पीस लीजिये ,अब चायपत्ती  के स्थान पर इसी को प्रयोग करके चाय बना लीजिये. यह चाय पीने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है. सूखी और बलगमी खांसी में तो बहुत तेज आराम मिलता है. दिमाग मजबूत होता है.

ये गेहूँ के ज्वारे हैं इनकी एक कहानी मुझे ३ साल पहले आकाशवाणी देल्ही की डाइरेक्टर श्रीमती अलका पाठक ने बताई थी. -कि एक बेरोजगार बहुत परेशान था, रोजी रोटी का कोई आसरा नहीं था, किसी के सुझाने पर उसने ज्वारे का रस बेचना शुरू किया और २ वर्ष के भीतर ही ३-४ गाड़ियों का मालिक बन गया,उसके ठेले पर १०० किमी दूर तक से लोग रस पीने आते थे,आप भी देखिये कि  इस ज्वारे के रस में क्या कितना पाया जाता  है-----


चलिए आपको ज्वारे  का रस प्राप्त करने का तरीका बताएं--
आप दस गमले खरीद लीजिये उनमे मिटटी खाद आदि भर दीजिये फिर उन पर १ से १० तक की नम्बरिंग  कर दीजिये। अब पहले गमले में पहले दिन एक मुट्ठी गेहूँ बो दीजिये,दूसरे गमले में दुसरे दिन और तीसरे में तीसरे दिन इस तरह १० दिन आप दसों गमलों में बो दीजिये।दसवें दिन जब आप आखिरी गमला बो रहे होंगे तो पहले गमले के पौधे १०-१२ सेमी के हो चुके होङ्गे.उन्हे आप उखाड़ लेंगे, जडें  काट कर फेंक देंगे।शेष बचे हिस्से को आधा गिलास पानी मिला कर ब्लेण्ड कर लीजिये या सिल पर पीस लीजिये, यही है ज्वारे का रस.
इसे अगर आप तीन महीने लगातार घूंट घूँट करके चाय की तरह पी लीजिये तो आपको शरीर में एक नयी ताकत महसूस होंगी ,छोटी मोटी बीमारियाँ तो कोसों दूर भाग जायेंगी और नयी बीमारियों को शरीर पर अटैक करने से पहले पचास बार सोचना पड़ेगा।अरे हाँ जब किसी गमले के पौधे निकाल लीजियेगा तो पुनः उसमे पहले गेहूं बो दीजियेगा तब रस बनाइयेगा. रोजाना आपको नये ज्वारे मिलते जायेंगे रस बनाने के लिये।
ये ज्वारे कैंसर के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद हैं. ये आपकी याददाश्त बढाने में भी मददगार हैं. पुराना बुखार भी उतार देते हैं। गठिया की तो बहुत उत्तम दवा है ये। पर गठिया में ज्वारे का रस दोनों समय पीना पड़ेगा।  
पैरो के तलुओं में जलन हो रही हो तो गेहूं का आटा ज़रा पतला गूँथ कर पैरो में लेप करके सो जाइए, यह लेप शरीर में कहीं भी जलन, दाह, खुजली, टीस,आग से जले या तेल से जले पर काम करता है.

वृक्क,गुर्दे और मूत्राशय में पथरी हो तो १००-१०० ग्राम चना और गेहूँ लीजिये, ५०० ग्राम पानी में आधा घंटा उबालिए,फिर छान कर बचा हुआ पानी पी लीजिये और उबले चने गेहूँ को पीस कर उसी की रोटियाँ खाइए ,एक महीने तक दोनों समय यह काम करने से पथरी गल कर निकल जाएगी। 
नारू को जलाने के लिए गेहूं और सन  के बीजो को पीसकर घी में भून कर गुड मिलाकर लड्डू बनाइये और सुबह शाम एक -एक लड्डू खाएं।

नाक से खून बहने लगता हो अर्थात नकसीर छूटती हो तो गेहूँ का आटा दूध में फेंट कर उसमे चीनी मिलकर पी   जाएँ। 

अगर गला खराब हो गया है तो ३०० ग्राम  पानी में एक मुट्ठी गेहूँ का चोकर मिलाकर उबालिए फिर छान कर दूध और चीनी मिला कर पीजिये चाय की तरह, गला बिलकुल सुरीला हो  जाएगा। 

चित्र के लिए हम गूगल के आभारी हैं।  
   
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

10 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह ये तो बहुत ही उपयोगी जानकारी है ... हमारे दुबई में भी इसका रस मिलता है पर बहुत ही खारा होता है ... मुश्किल से पीया जाता है ...

ज्योति सिंह ने कहा…

yahan aana sukhad laga ,sabse alag aur sundar blog saath hi laabhkaari upyogi ,humare yahan aaj bhi chakki wali parampara kayam hai .gujre kal ki kai baate hamare bhitar jeene ka hausala badhati rahti hai .

ज्योति सिंह ने कहा…

yahan aana sukhad laga ,sabse alag aur sundar blog saath hi laabhkaari upyogi ,humare yahan aaj bhi chakki wali parampara kayam hai .gujre kal ki kai baate hamare bhitar jeene ka hausala badhati rahti hai .

ज्योति सिंह ने कहा…

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राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने. आयुर्वेद के नुस्खे बहुत काम के हैं .आभार .

Suman ने कहा…

बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आभार !

राजीव कुमार झा ने कहा…

आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 26/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने
शब्दों की मुस्कुराहट पर
...संग्रहनीय लेखन बड़ी शख्सियत -- प्रवीण पाण्डेय जी

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सारी जानकारी देने के लिए धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

समाज में आस्था के प्रतीक रूप-जवारों का वैज्ञानिक महत्व उजागर करने के लिए धन्यवाद.