जो पाठक गण मुझे निजी तौर पर जानते हैं वे मुझको माफ करें क्योंकि मैं आज आलू खिलाने जा रही हूँ आप लोगों को।
आलू मुझे बेहद पसंद है ,मेरा काम रोटी चावल के बिना चल सकता है मगर आलू के बिना नहीं. बहुतेरी नसीहतें मिली मुझको कि इतना आलू मत खाओ मोटी हो जाओगी .मोटा होना कौन कहे, आज भी वैसी ही दुबली हूँ जैसी २० साल पहले थी.इसलिए अब आप भी मेरी बात मानिए और आज ही से आलू ज्यादा खाना शुरू कर दीजिए.यकीन मानिए बहुत ताकत देता है और आपकी रक्त नलिकाओ को हमेशा लचीला बनाए रखता है जिससे ब्लड प्रेशर नार्मल बना रहेगा और हार्ट अटैक का कोई ख़तरा नहीं होगा .
अगर आप एसिडिटी से त्रस्त हैं तो खूब आलू खाइए ये क्षारीय होता है और गले की जलन में बहुत फायदा पहुंचाता है .डकारें भी कम कर देता है।
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अगर यूरीन में किरीटनीन बढ़ गया है तो आलू का रस निकाल कर पीजिए.आलू का रस नकसीर में और शरीर में कहीं भी रक्तस्राव हो रहा हो तो भी फायदा करता है.कच्चे आलू का रस २-२ चम्मच दिन में चार बार पीजिए.मासपेशियां भी मजबूत होंगी, नाडियाँ भी मजबूत होंगी स्नायूतंत्र की विकृतियाँ दूर होंगी.घमौरी, फुंसी, खुजली जैसे त्वचा रोग भी दूर हो जायेंगे.हृदय की जलन भी कम होती है ,जिनके शरीर में विटामिन बी-१२ नहीं बनता ,उनके लिए तो यह अमृत है. आलू कद्दूकस करके १० मिनट बाद निचोड़ लीजिए, जो पानी निकले वही आलू का रस है ,जो लुगदी बचे उसकी नमकीन भी तल सकते हैं या पराठे में भर सकते हैं.
आलू गुर्दे की पथरी को तोड़ कर गुर्दे की रिपेयरिंग भी करता है। आलू में पोटेशियम होता है,जो पथरी को तोड़ देता है और फिर पथरी बनने नहीं देता ,अतिरिक्त सोडियम की मात्रा को शरीर से बाहर निकाल देता है। आलू ताकत भी देता है और जल्दी पच भी जाता है। आलू में प्रोटीन की बहुत मात्रा पायी जाती है.जो मासपेशियों को भरती है। आलू में पाया जाने वाला ग्लूकोज शरीर को अद्भुत गति प्रदान करता है। और कार्बोहाइड्रेट तो शरीर की टूटी फूटी कोशिकाओं का निर्माण करता ही है।
आलू सौन्दर्यवर्धक भी है। आखों के नीचे काले घेरे हो गए हैं तो रात में आलू का पेस्ट आखों के चारो ओर लगा कर सोयें। आलू आखों के लिए बहुत अच्छा काजल का काम करता है अतः १-२ बूँद रस आँखों में चला जाए तो भी कोई हर्ज नहीं ,आँखों की सफाई होगी, रोशनी बढ़ेगी, मोतियाबिंद का जाला कट जाएगा ,फूला होगा तो वह भी कट जाएगा. एक माह तक पेस्ट लगाने से कितने ही ज्यादा काले घेरे होंगे तो खत्म हो जायेंगे.इस पेस्ट को झाइयों ,झुर्रियों ,दाग ,धब्बे पर भी लगा सकते हैं। पूरे चेहरे पर ही लगाए तो साँवला चेहरा भी गोरा हो जाएगा। धूप से अगर झुलस गया होगा तो वह भी ठीक हो जाएगा।
गठिया या हड्डी के किसी भी तरह के दर्द में भुना हुआ आलू फायदा करता है ,हड्डी बढ़ गयी हो तो आलू भून कर फिर छिलिये और सेंधा नमक तथा काली मिर्च छिड़क के खाते रहिये। ३-४ माह में रोग जड़ से खत्म हो जाएगा ,६ माह भी लग सकते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों को आलू उबालकर खाना चाहिए जिससे उनकी रक्त नलिकाए पर्याप्त लचीली हो जाए तथा बी पी सामान्य बना रहे.
मोटा होने के लिए आलू के रस में शहद मिला कर पीजिए.बच्चों को पिलाइए.
महिलायें आलू खाती रहें तो कमर दर्द से बची रहेंगी।
कुल मिला कर - आलू जिंदाबाद
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
जीरा तो हर घर में पाया जाता है ,अधिकाँश गृहिणियों को इसके लाभ की भी जानकारी है, वे सभी इसकी सहायता से बड़े बड़े रोगों पर काबू पा लेती हैं जीरा दो प्रकार का होता है- सफ़ेद जीरा (Cuminum cyminum) जो हम मसाले और छौंकने में प्रयोग करते हैं ,दुसरा काला जीरा (Carum carvi) जो प्रायः औषधीय कार्यों में ही प्रयोग होता है। सफ़ेद जीरा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब में बोया जाता है। सर्दी के अंत में इस पौधे पर फूल और फल आते हैं। जीरे में कार्बोहाइड्रेट ,प्रोटीन, फाइबर ,मिनरल,पेन्टोसोन , कैल्शियम ,फास्पोरस आयरन, विटामिन-ए और सी ,क्यूमिक एल्डीहाइड आदि तत्व पाये जाते हैं।
काला जीरा पर्वतीय फसल है। यह कश्मीर ,कुमायूं ,गढ़वाल ,उत्तरी हिमालय तथा अफगानिस्तान और ईरान में बोया जाता है। इसमें एक तेल होने के कारण इसकी गंध बहुत तीखी होती है।
जीरा सौंदर्य बढता है। जीरा उबाल कर उस पानी से रोजाना मुख धुलिये। चेहरा खिल उठेगा।
जीरा दूध बढ़ाता है। खीर में मेवे की जगह १ चम्म्च जीरा डालिये। ये खीर खाने से दूध बढ़ जाएगा।
जीरा गहरी नींद लाता है। सोते समय भून कर पिसे हुए जीरे के चूर्ण को गरम दूध से फांक लीजिये ,लगभग ४ ग्राम ,देखिये कितनी अच्छी नींद आती है।
आपको ब्लड -प्रेशर भी है, एसिडिटी भी है, भूख भी नहीं लगती तो जीरे की शरण में जाइये। १०० ग्राम जीरा २५ ग्राम काली मिर्च और १२५ ग्राम मिश्री या बूरा मिला कर पीस लीजिये ,१-१ चम्म्च पानी से निगल लीजिये सुबह शाम दोनों समय। कम से कम १ माह तक लगातार।
जीरा कैंसर से बचाता है ,हर हाल में दोनों समय जीरा भोजन में प्रयोग कीजिये।
जीरा हीमोग्लोबिन भी बढ़ाता है और प्रतिरोधक क्षमता भी।
जीरा हमारी त्वचा का सबसे अच्छा दोस्त है। जीरे का पतला पेस्ट तैयार कीजिये ,इस पेस्ट को साबुन की तरह पुरे बदन पर खूब मलिए। फिर सादे पानी से बिना साबुन के नहा लीजिये। सप्ताह में कम से कम एक बार इस क्रिया को करते रहने से स्किन डिजीज आपसे कोसों दूर रहेगी।
जीरा मुंह की बदबू भी दूर करता है। भुने हुए जीरे को चबा-चबाकर चूसिये।
खट्टी डकारें आ रही हो तो भुने हुए जीरे के चूर्ण में सेंधा नमक मिलाकर गर्म पानी से निगलिये ,एक-एक घंटे के अंतराल पर ३ बार लेना काफी होगा। पेट हल्का हो जाएगा।
जीरा उल्टियां भी रोकता है। २ ग्राम जीरे के चूर्ण को एक गिलास पानी में डालिये ,स्वाद केअनुसार सेंधा नमक और नीबू मिलाइये और पी लीजिये ,तुरंत उलटी रुक जायेगी।
पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा हो तो २-३ ग्राम जीरे का चूर्ण शहद मिलाकर चाट लीजिये ,१० मिनट में ही दर्द गायब हो जाएगा।
जीरा पेट के कीड़े भी मारता है। २ ग्राम भुने हुए जीरे का चूर्ण शहद में मिलाकर सुबह खाली पेट चटाइए। कीड़े मल के साथ बाहर निकल जायेंगे।
जीरे से एक पाचक चूर्ण आप घर में बनाकर रखिये-जीरा सौंफ धनिया ५०-५० ग्राम लीजिये और भून लीजिये फिर इसमें ५० ग्राम अनारदाना ,२५ ग्राम काला नमक, १० ग्राम सेंधा नमक मिलाइये और सबके वजन के बराबर चीनी मिलाइये। एक साथ महीन पीस लीजिये अब इस मिश्रण में ३ नीबू का रस मिला दीजिये। तैयार हो गया पाचक चूर्ण। सुबह शाम १-१ चम्म्च खाइये या आवश्यकतानुसार खाइये।
जीरे से मंजन भी बनता है जो मसूड़ा सूज जाए तो बहुत काम आता है। २० ग्राम जीरा भून लीजिये उसमे २० ग्राम सेंधा नमक मिलाइये और महीन पीस लीजिये ,अब इससे मंजन करिये दांत मजबूत होंगे ,मसूड़ों की सूजन ख़त्म होगी। १०० तरह के पेस्ट पर यह अकेला मंजन भारी है।
जीरा गर्भवती नारी के लिए वरदान है। गर्भ के दौरान कब्ज होती है ,जिसकी वजह से बवासीर हो जाना आम बात है। कभी कभी खूनी बवासीर भी हो जाती है। ऎसी दशा में १-१ चम्म्च जीरा ,सौंफ और धनिया लीजिये रात में भीगा दीजिये एक गिलास पानी में। सवेरे इस पानी को उबालिये और आधा पानी जल जाय तो एक चम्म्च देशी घी मिलाकर पी लीजिये। यह काम सुबह शाम ५ दिनों तक कीजिये। बस रोग ख़त्म।
कालाजीरा हार्ट अटैक के खतरे को ख़त्म कर देता है। २-२ ग्राम काले जीरे का पाउडर शहद में मिलाकर सुबह शाम चाटिये।
काले जीरे को पानी में उबालकर उस पानी में बैठ जाइये तो खूनी बवासीर, और गर्भाशय और योनि की खुजली तीनो में फायदा मिलेगा।
नवजात शिशु के मर जाने पर माता के स्तनों का दूध सुखाने के लिए काले जीरे को पानी में पीस कर लेप कर देना चाहिए ,अन्यथा या तो दूध बहता रहेगा या स्तनो में ही एकत्र होकर गांठ का रूप ले लेगा।
जहरीले बिच्छू आदि के काटने पर जीरे के चूर्ण और नमक को बराबर मात्रा में मिला कर फिर उसमे घी मिलाकर मलहम बनाइये और काटे हुए स्थल पर लेप कर दीजिये। जहर उतर जायेगा।
बहुत पुराना बुखार हो या मलेरिया हो ,काले जीरे का २-३ ग्राम पाउडर गुड मिला कर खा लीजिये। सुबह दोपहर शाम तीन बार ,बुखार गायब।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
ये मटर है ,आजकल इसका मौसम भी है। वैसे तो फ्रोजन मटर और सूखी मटर साल भर मिलती है लेकिन अगर आप किसी खाद्यान्न के समस्त गुणों का उपयोग करना चाहें तो उस खाद्यान्न को उसके मौसम में भरपूर खाइये। बेमौसम की चीजें बीमारियां पैदा कर देती हैं क्योंकि हमारे शरीर में बेमौसम की चीजों को पचाने के लिए उचित रस का स्राव नहीं होता।
आजकल तो पूर्वोत्तर भारत में कोई दिन बिना मटर खाये नहीं जाता होगा ,किसी भी परिवार का। अमीर हो या गरीब। मटर तो पुलाव का बहुत महत्वपूर्ण अंग है। फिर मटर पनीर के क्या कहने। चाट की कल्पना बिना मटर के तो हो ही नहीं सकती ,आजकल तो समोसे में भी मटर पाई जाती है। मटर की दाल सस्ती होने के कारण पूर्वी उत्तर प्रदेश के ९०% घरों में मटर की ही दाल खायी जाती है।
इस मटर का वैज्ञानिक नाम है Pisum sativum. मटर की लताएँ होती हैं। मटर में ५४%कार्बो हाइड्रेट और २४%प्रोटीन पाया जाता है। इसमें आयरन, फास्पोरस, फ़ैट, फाइबर, भस्म, ट्राइगोनेल्लीन आदि तत्व पाये जाते हैं।
मटर खाने से दो बहुत बड़े नुक्सान होते हैं। आप अगर इन नुकसानों से खुद को बचा सकें तो भरपूर मटर खाइये अन्यथा संभल जाइये। पहला नुक्सान है- पौरुष हारमोन का निष्क्रिय होना। इसके तेल में लैंगिक हारमोन विरोधी गुण पाया जाता है जो पुरुष को बाँझ बना देता है। जो नारियां मटर ज्यादा खाएंगी वो लड़की ज्यादा पैदा करेंगी ,उन्हें लड़का मुश्किल से ही पैदा होगा। कारण कि मटर भ्रूण बनते समय पौरुष हारमोन को निष्क्रिय कर देती है। दूसरा नुक्सान है -गैस बनना अर्थात शरीर में वायु दोष उत्पन्न हो जाना, अनावश्यक डकार आना ,कब्जियत रहना ,पेट फूलना आदि।
अगर आपका शरीर इन दो नुक्सान को बर्दाश्त कर सकता है तो बिंदास मटर खाइये।
लेकिन इस मटर में गुण भी होते हैं -यह कफ और पित्त के दोषों को शांत भी करती है। कच्ची मटर खाने से कब्ज नहीं होती।
मटर का प्रयोग सौंदर्य निखारने के लिए कीजिये। मटर उबाल कर पीस कर शरीर पर उबटन लगाएं ,रंग निखार जाएगा ,उसमे एक चुटकी हल्दी पाउडर मिला लीजिये तो स्किन हेल्दी भी हो जायेगी।
मटर खाने से मोटापा बढ़ता है ,यह खून और मज्जा दोनों बढ़ाती है ,इसलिए मोटे व्यक्ति मटर से परहेज करें।
मटर स्त्रियो के लिए कभी कभी अमृत बन जाती है। अगर नवजात के लिए दूध न उतर रहा हो तो खूब हरी मटर खाएं ,बच्चा छक कर दूध पियेगा। अगर नारी को पीरियड में रुकावट आ रही है तो मटर खाएं रुकावट दूर हो जायेगी।
पैर के तलुओं में या पेट में या माथे में अर्थात शरीर में कहीं भी जलन हो रही हो तो हरी मटर पीस कर लेप कर दीजिये।
मैंने अक्सर ठंड के मौसम में कुछ लोगो की अंगुलियाँ सूजते हुए देखी हैं।
ऎसी दशा में हरी मटर उबाल कर उसके पानी में एक चम्म्च तिल का तेल मिला दीजिये और सूजे हुए हाथ या पैर की अंगुलियां इसी पानी में डलवाइए। सूजन उतर जायेगी और दर्द भी ख़त्म।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
यह अजीब सी बात है कि दिन भर खटने के बाद जब महिलाए रात
में बिस्तर पर पहुंचती हैं तो आधे घंटे तक दर्द से कराहती रहती हैं
,इसके कई कारण हैं --
१- युवावस्था में दो फुल्के खाकर काम चला लेना
२- जंक फ़ूड ज्यादा खाना
३- पानी कम पीना
४- अपनी छोटी छोटी बीमारियों को नज़रअंदाज करना.
५- अनुचित मात्रा में कास्मेटिक्स प्रयोग करना.
चलिए दर्द खत्म करने का एक सामान्य तरीका बताती हूँ-
एक किलो मेथी दाने घी में भून लीजिए फिर पीस लीजिए ,अब
इसमें २५० ग्राम बबूल का गोंद घी में भून कर और पीस कर मिला
दीजिए .अब सुबह शाम १-१ चम्मच यानी ५-५ ग्राम पानी से निगल
लीजिए जब तक यह पूरी दवा खत्म होगी आप अपने आपको
अधिक सुन्दर ,ताकतवर महसूस करेंगी.और दर्द का कहीं
नामोनिशान नहीं रहेगा.
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
गोबर के नाम से हमेशा नफ़रत मत कीजिये। वीरान से ग्रामीण क्षेत्रों में जब प्राथमिक उपचार का कोई साधन नहीं होता ,यही गोबर आपको तुरंत मिल जाता है और कई बीमारियों में आपके प्राण भी बचा सकता है।
जब प्रसव वेदना अपने चरम पर होती है मगर किन्हीं कारणो से बच्चा बाहर नहीं आ पा रहा है और महिला बुरी तरह छटपटा रही है तो २५ ग्राम गोबर का रस २५० ग्राम दूध में मिलाकर महिला को पिला दीजिये तो तुरंत बच्चा बाहर आ जाएगा। जब बच्चा गर्भ में ही मर गया हो तो उसको बाहर निकालने के लिए भी यह अचूक दवा है। इन दोनों ही परिस्थितियों में अगर उच्च कोटि के अस्पताल का सहारा न मिला तो गर्भवती की जान चली जाती है। तब ये गोबर भगवान का रूप बन जाता है।
अगर आपको किसी भी तरह की स्किन डिजीज है तो गाय के ताजे गोबर को पूरे शरीर पर साबुन की तरह लगाइये फिर आधा घंटा छोड़ दीजिये फिर साफ़ पानी से नहाकर पूरे शरीर में नारियल का तेल लगा लीजिये। एक महीने में ही क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाई देगा ,इससे पित्ती उछलना जैसे रोगों में भी आराम मिलता है।
बच्चे को सूखा रोग हो जाए तो ताजा गोबर उसकी रीढ़ की हड्डी पर लगाकर छोड़ दीजिये, १०- १५ मिनट बाद गरम पानी की धार रीढ़ की हड्डी पर गिराएं।काले धागे जैसे कीड़े निकलते दिखाई देंगे। फिर गोबर लगा कर छोड़ दीजिये और फिर १० मिनट बाद गरम पानी से धो डालिये। एक दिन बाद फिर ऐसे ही कीजिये जब कीड़े निकलना बंद हो जाएँ तो बच्चा स्वस्थ हो जाएगा।वर्ना यही सूखा रोग कितने बच्चों की मौत का कारण बनता है।
गरम तेल से जल गये हों या आग से जल गये हो तो तुरंत गोबर लगा लीजिये घाव भी जल्दी भर जाएगा और जलन भी महसूस नहीं होगी।
छोटे बच्चो की गुदा में कीड़े हो गये हैं या लगातार बच्चा खुजला रहा है तो गोबर का रस निकाल कर उसको गरम कीजिये और उससे बच्चे की गुदा धो दीजिये। ८-१० दिन में सारे कीड़े ख़त्म हो जायेंगे।
गोबर का ताजा रस पीने से हृदय शक्तिशाली बनता है ,केवल २५ ग्राम रोज पीना है।
अब आप गोबर का रस कैसे निकलता है वह विधि भी जान लीजिये-
ताजे गोबर को किसी सूती कपडे में बाँध कर लटका दीजिये जो पानी कपडे से छान कर नीचे बर्तन में एकत्र होगा वही गोबर का रस है ,आप निचोड़ भी सकते हैं।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
कुछ जड़ी बूटियों को घड़े में हल्दी के साथ बंद करके मैंने एक दवा तैयार की है जो बुढ़ापे के असर को अस्सी प्रतिशत तक कम कर देगी ,नये बाल उग जायेंगे ,टूटे दांत भी निकल सकते हैं हड्डियों और जोड़ों के सारे दर्द गायब हो जायेंगे। अगर आपको चाहिए तो फोन कीजिये मुझको।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा
मैं लगभग ९९% रोगियों को इमली खाने से रोक देती हूँ क्योंकि इमली की खटाई शरीर को खोखला करती है जिससे रोग बढता रहता है। लेकिन इमली इतनी नुकसानदेह भी नहीं हैं अनेक रोगों का तो इलाज ही इमली से होता है। वैसे इमली का नाम लेते ही मुंह में पानी भर आता है नारियों की जीभ तो तुरंत चटखारे लेने लगती है। यही नहीं हमारे देश में अधिकाँश लोगो की पसंदीदा डिश पानी -बताशे /पानी पूरी/गोलगप्पा ही होती है। जिसका पानी इमली से ही बनता है। मेले में सबसे ज्यादा भीड़ गोलगप्पे के ही ठेले पर होती है।
चलिए आज इस बिचारी के लाभ भी जान लेते हैं। लेकिन उससे पहले मैं एक कहानी जरुर आपको बताउंगी जो प्रत्येक आयुर्वेद के छात्र को सबसे पहले बतायी जाती है। हमारे देश में एक बहुत प्रसिद्द वैद्य जी रहते थे ,उनकी दोस्ती अरब में रहने वाले हकीम लुकमान से थी। एक बार वैद्य जी ने अपने एक शिष्य को एक पत्र देकर हकीम लुकमान के पास भेजा और निर्देश दिया कि रात में इमली के ही पेड़ के नीचे सोना और उसी की टहनियों से चूल्हा जलाकर भोजन पकाना। शिष्य घोड़े पर सवार होकर चला कई महीने का सफर था। इमली के पेड़ के नीचे सोते -सोते वह जब हकीम साहब के पास पहुंचा तो उसको पुरे शरीर में सफ़ेद दाग से भी खराब कोढ़ हो गया था। हट्टा -कट्टा शिष्य जैसे वर्षों का बीमार और कमजोर हो गया था। हकीम लुकमान ने उसको देखा ,उसका हाल चाल पूछा तो उसने बताया कि वैद्य जी के निर्देश के अनुसार वह इमली की दातुन करते हुए ,इमली के नीचे ही रात बिताते हुए यहाँ तक आया है। हकीम जी वैद्य जी की मंशा जान गये। उन्होंने उसे दो-चार दिन रोक कर खूब आवभगत की लेकिन कोई दवा नहीं दी। फिर उसको उपहार आदि देकर पत्र के साथ विदा किया और ताकीद की कि तुम केवल नीम के पेड़ के नीचे रात बिताओगे ,उसी की लकड़ी से खाना पकाना और उसी की लकड़ी से दातुन करना। शिष्य बेचारा मन ही मन हकीम जी को कोसते हुए चला कि बड़े हकीम बनते हैं दवा तक नहीं दी। खैर वो जब तक वैद्य जी के पास पहुंचा तो फिर से उसकी देह सुन्दर कांतिमान और निरोग हो गयी थी ,फिर उसको इमली के नुक्सान और नीम के फायदे की शिक्षा मिल गयी। आपको मिली कि नहीं ?
खैर मैंने तो इमली के अत्यधिक सेवन से कई पुरुषों और महिलाओं को बाँझ होते देखा है। इसलिए हम इसे खाने को मना करते हैं।
इमली को Tamarindus indica, संस्कृत में आम्लिका ,यमदूतिका ,गुरुपत्रा ,चरित्रा ;फ़ारसी में तमरेहिन्दी ;गुजराती में आम्बली ;तेलगू में चिंटचेतु ;तमिल में पुली ;मराठी में चिच कहते हैं।
कच्ची इमली कफ और पित्त को पैदा करती है और खून को खराब करती है जबकि पकी इमली गरमी ,कफ और वात को ख़त्म करती है।
इमली की छाल की चटनी बनाकर उसका लेप अगर फालिज मार गये अंगों पर किया जाए तो वे अंग सही हो जाते हैं लेकिन यह लेप ६ महीने से कम नहीं होना चाहिए।
इमली के बीजों के अंदर की गिरी का गुड के साथ सेवन करने से वीर्य की वृद्धि होती है।
इमली में साइट्रिक एसिड ,टार्टरिक एसिड, पोटैशियम बाई टारटरेट ,फास्फोटिडिक एसिड, इथाइनोलामीन , सेरिन, इनोसिटोल, अल्केलायड, टेमेरिन , केटेचिन, बाल सेमिन, पालीसैकेराइड्स, नॉस्टार्शियम आदि तत्व पाये जाते हैं.यही कारण है कि इमली अधिक खा लेने से तेज़ाब का काम करती है और हमारी त्वचा और गुणसूत्रों को सीधे प्रभावित करती है।
पकी इमली को हाथ पैर के तलवों पर मसलने से लू का असर ख़त्म किया जा सकता है।
ह्रदय की सूजन ख़त्म करनी हो तो पकी हुई इमली के रस में मिश्री मिला कर पीजिये। रस की मात्र १० ग्राम और मिश्री भी १० ग्राम।
कहा गया है कि २० वर्ष पुरानी इमली का शरबत पीने से पेट के रोग ख़त्म होते हैं और पुरुषार्थ में वृद्धि होती है लेकिन यह शरबत बनाना ही मुश्किल है - ३० ग्राम पकी इमली को आधा किलो पानी में मसल दीजिये फिर पानी छान लीजिये। इसमें ५० ग्राम मिश्री ,३ ग्राम दालचीनी,३ ग्राम लौंग और ३ ही ग्राम इलायची का चूर्ण मिला लीजिये। यह शरबत कमजोरी भी मिटाता है ,भूख भी बढ़ाता है, वात -विकार ख़त्म करता है।
अगर किसी को चेचक हो गयी हो तो इमली के पत्ते और हल्दी को पानी में पीस कर शरबत बनाएं और रोगी को चीनी या नमक मिला कर पिला देने से बहुत आराम मिलता है।
किसी हड्डी में मोच आ गयी हो तो पकी इमली का गूदा सूजन और मोच वाली जगह पर लेप कर दीजिये। चार- चार घंटे के अंतर पर चार बार लेप करने से मोच ठीक हो जायेगी।
कान दर्द कर रहा हो तो इमली के गूदे का दो चम्म्च रस ४ चम्म्च तिल के तेल में मिला कर पका कर रख लीजिये। अब इस तेल को कान में डालिये।
बदन में कहीं खुजली हो रही हो तो इमली केपत्तों का रस लगा सकते हैं।
सांप या किसी जहरीले जीव ने काट लिटा है तो १६० ग्राम इमली के पत्तों का रस २५ ग्राम सेंधा नमक मिलकर पी लेने से जहर निष्प्रभावी हो जाएगा।
हड्डी टूट गयी हो तो इमली के गुदे को तिल के तेल के साथ मिला कर पेस्ट बताएं और लेप कर दें ,हर चार घंटे पर लेप बदल दीजिये। ५ दिन यह लेप लगा रहेगा तो हड्डी जुड़ जायेगी।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा