आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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सोमवार, 3 सितंबर 2012

पहलवान बच्चा पैदा करना है तो पलाश की शरण में जाइए।

वन अंगारा हुआ खिले हैं जब से फूल पलाश के ।

यह गीत तो आप सभी ने पढ़ा ही होगा ,लेकिन जब पलाश के गुणों के बारे में जान जायेंगे तो सच में आपका मन अंगारा हो जाएगा . 
इसका अंग्रेजी में नाम है- Flame of the forest.  और वैज्ञानिक नाम है-  Butea monosperma
यह 15 मीटर ऊंचा 3 पत्तो वाला पेड़ होता है .
इसे हिन्दी में ढाक ,टेसू ,केसू ,खाकरा ; संस्कृत में- पलाश,किंशुक, सुपर्णी, ब्रह्मवृक्ष, उर्दू में- पलास पापड़ा ; तेलगू में- मोदूगा पलाश, मातुका टट्टू , तेल मोदुग; बंगाली में- पलाश गाछ ; गुजराती में-खाकरा; तमिल में- पुगु, कतुमुसक, किन्जुल आदि नामों से पुकारते है।



आइये ज़रा इसके औषधीय गुण देख लें----

नारी को गर्भ धारण करते ही अगर गाय के दूध में पलाश के कोमल पत्ते पीस कर पिलाते रहिये तो शक्तिशाली और पहलवान बालक पैदा होगा।यही नहीं इसी पलाश के बीजों को मात्र लेप करने से नारियां अनचाहे गर्भ से बच सकती हैं।

बवासीर के मरीजों को पलाश के पत्तों का साग ताजे दही के साथ खाना चाहिए लेकिन साग में घी ज्यादा चाहिए।

फील्पाँव या हाथीपाँव में पलाश की जड़ के रस में सरसों का तेल मिला कर रख लीजिये बराबर मात्रा में।फिर सुबह शाम 2-2 चम्मच पीजिये।

नेत्रों की ज्योति बढानी है तो पलाश के फूलों का रस निकाल कर उसमें शहद मिला लीजिये और आँखों में काजल की तरह लगाकर सोया कीजिए। अगर रात में दिखाई न देता हो तो पलाश की जड़ का अर्क आँखों में लगाइए।

जो घाव भर ही न रहा हो उस पर पलाश की गोंद  का बारीक चूर्ण छिड़क लीजिये फिर देखिये।



बुखार में शरीर बहुत तेज दाहक रहा हो तो पलाश के  पत्तों का रस लगा लीजिये शरीर पर 15 मिनट में सारी जलन ख़त्म .

पेशाब में जलन हो रही हो या पेशाब रुक रुक कर हो रहा हो तो पलाश के फूलों का एक चम्मच रस निचोड़ कर दिन में 3 बार पी लीजिये .

अंडकोष बढ़ गया हो तो पलाश की छाल का 6  ग्राम चूर्ण पानी के साथ निगल लीजिये।

शरीर में अन्दर कहीं गांठ उभर आयी हो तो इसके पत्तों को  गर्म करके बांधिए या उनकी चटनी पीस कर गरम करके उस स्थान पर लेप कीजिए।

इसी पलाश से एक ऐसा रसायन भी बनाया जाता है जिसके अगर खाया जाए तो बुढापा और रोग आस-पास नहीं आ सकते।

नपुंसकता की चिकित्सा के लिए भी इसके बीज काम आते हैं। इसके बीजों को नीबू के रस में पीस कर लगाने से दाद खाज खुजली में आराम मिलता है।

पलाश में- मिरस्तीक, पामिटिक, स्तीयरिक, एवं एरेकिदिक एसिड, तेल, प्रोटीन, राल, ब्यूटीन, ग्लूकोसाइड, ब्यूटेन, सल्फ्यूरीन, पालास्ट्रीन, आइसो, मोनो स्पर्मोसाइड , कारियोप्सीन , थायमीन, रिबोफ्लेवीन, सेल्यूलोज आदि रासायनिक तत्व पाए जाते हैं।

इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

ये हमारा लीवर और भूमि आमला


आजकल देश में लीवर बढ़ने की समस्या बड़ी तेजी से फैलती जा रही है . ये रोग लीवर सोरायसिस ,लीवर फेल्ड ,लीवर पेशेंट, आदि कई रूपों में दिखाई दे रहा है। एसिडिटी, हाजमा खराब होना इसके प्राथमिक लक्षण हैं . उलटी दस्त, पानी तक हज़म न होना सीरियस कंडीशन की तरफ इशारा करते हैं . हालांकि इससे बचने के तो कई सारे उपाय हैं लेकिन सबसे सरल उपाय मैं आपको आज बताती हूँ।
एक पौधा होता है भुई आंवला . ये इसी मौसम की पैदावार है -



इसकी पत्तियाँ  पहचान लीजिये .इसकी लम्बाई मुश्किल से एक या डेढ़ फीट होती है . आपको पेट की कोई भी बीमारी हो या न हो ,अगर ये पौधा दिख जाए तो पूरा उखाड़ लीजिये और धोकर चबा जाइए।इसका वैज्ञानिक नाम है- Phyllanthus niruri 
इसमें फ़ाइलैन्थीन ,हाइपोफ़ाइलैन्थीन ,विटामिन-सी, क्वेरसैट्रीन ,लिनोलिक एसिड, लिनोलेनिक एसिड, सैक्लोफ्लेवान, रिसीनालिक एसिड, एस्त्रोगैलिन क़्वेरसैट्रीन ,लिगनान आदि रासायनिक तत्व पाए जाते हैं।



अब इसके अन्य सदुपयोग  सुनिए----
मलेरिया-----
अगर मलेरिया हो जाय तो पूरा पौधा उखाड़ कर उसका काढा बनाकर पी लीजिये। दिन में दो बार,दो- दो- पौधे का काढा .
सुगर----
आपको डायबीटीज ज्यादा परेशान कर रही हो तो 20 ग्राम इस पौधे का चूर्ण  और 20 दाने काली मिर्च का चूर्ण दिन में एक बार पानी से निगल लीजिये ,एक माह लगातार ,फिर देखिये फायदा।
खुजली----
पूरे पौधे की चटनी पीस लीजिये उसमे सेंधा नमक मिलाइए और खुजली वाली जगह पर लेप कर लीजिये ।
प्रदर ----
किसी भी तरीके का प्रमेह या प्रदर हो तो या तो भूमि आमला के जड़ का काढा पीजिये या इसके बीजों का चूर्ण 2 चुटकी, चावल के पानी में मिला कर पीजिये।
दस्त ----
किसी को दस्त की बहुत पुरानी बीमारी हो तो पूरे पौधे के काढ़े में आधा चम्मच मेथी का चूर्ण मिलाकर पी लीजिये।
खांसी---
इस पौधे का काढा पुरानी खांसी और सांस की बीमारियों में भी बहुत तेज फायदा पहुंचाता है।दिन में दो बार पीना  चाहिये।

हम फिर से लीवर पर आते हैं - लीवर के मरीजों को मकोय के पत्तो का रस 2 चम्मच और नीम के पत्तों का रस दो चम्मच सुबह, दोपहर शाम लेना चाहिए ,क्रांतिकारी परिवर्तन दिखाई देगा।
** इन्हें 250 ग्राम गुड एक दिन में खा लेना चाहिये, भले खाना खाने के लिए पेट में जगह न बचे।
** और  पानी तो  खैर हर आधे  घंटे पर 150 ग्राम पी ही लेना चाहिए, भले ही प्यास न लगे।
चित्र गूगल से साभार  


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

बुधवार, 15 अगस्त 2012

मखाना ; बड़ी मुश्किलों से पैदा होता है

वरिष्ठ ब्लॉगर आशा जोगलेकर जी ने मखाने के बारे में जानना चाहा है. मखाना कमल का बीज नहीं होता है ,इसकी एक अलग प्रजाति है ,यह भी तालाबों में ही पैदा होता है लेकिन इसके पौधे बहुत कांटेदार होते हैं ,इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं घुसता,जिसमे मखाने के पौधे होते हैं। इसकी खेती सिर्फ बिहार के मिथिलांचल में होती है . एक एकड़ के जलाशय में इसकी खेती करके 40,000 रुपये कमाए जा सकते हैं .
इसका वैज्ञानिक नाम है - Euryale ferox


यह मखाने का फूल है ,दिखने में कमल की तरह ही लगता है , फलों के अन्दर ही मखाने के बीज पाए जाते हैं ,जिन्हें भून कर मखाना का लावा तैयार किया जाता है 

                                                           
इसके बीजों में- प्रोटीन 10%, कर्बोहाईड्रेट 75% के अलावा, आयरन, फास्पोरस और केरोटीन भी  पाए जाते हैं . चूँकि मखाने में वसा की मात्रा बहुत कम होती है इसलिए यह हाई ब्लड प्रेशर और सुगर के मरीजों के लिए अमृत माना जाता है। मखाना यज्ञ का भी महत्वपूर्ण भाग है .मख का मतलब ही यज्ञ होता है। मखाने की खीर, मखाने के आटे  का हलवा आदि भी बनाया जाता है।मखाने के भुने हुए बीज प्रसूताओं को ताकत के लिए खिलाये जाते हैं  यह बीज लड्डू, खीर आदि किसी भी चीज में मिला कर खिलाये जा सकते हैं . जोड़ों के दर्द और एक्जीमा वाली खुजली में मखाने के पत्तो को पीस कर लगाने से काफी फायदा मिलता है.

अधिकांशतः ताकत के लिए दवाये मखाने से बनायी जाती हैं।केवल मखाना दवा के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता .इसलिए इसे सहयोगी आयुर्वेदिक औषधि भी कहते हैं।

  

इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

हमारा राष्ट्रीय फूल -कितना काम का




यह कमल का फूल है ,देवी लक्ष्मी को बहुत प्रिय है ,पूजन सामग्री में इसका होना बहुत शुभ माना जाता है।इसका वैज्ञानिक नाम होता है- Nelumbium speciosum , इसे अम्बुज, पंकज, पद्म,पुण्डरीक, कलंग, सामरा, अम्बल,नीलोफर, बर्दानीलोफर, लोटस, आदि नामों से दुनिया भर में जाना-पहचाना जाता है। 
                                                                             
इसका बहुत ज्यादा आयुर्वेदिक महत्व भी है। तांत्रिक महत्व भी है और मान्त्रिक महत्व भी। फेंगशुई में भी इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और आध्यात्मिक महत्व तो खैर है ही।आइये हम आज इसके आयुर्वेदिक महत्व के बारे में बात करते हैं।
कमल के फूल, पत्ते, बीज, तना, जड़ सभी उपयोगी हैं।
अगर आपका गुदाद्वार अर्थात मल त्यागने वाली नलिका बाहर निकल गयी हो तो कमल के मुलायम पत्तों को चीनी या गुड के साथ मिलाकर लड्डू जैसा बनाइये और खाली पेट 3-4 पत्तों का लड्डू खा लीजिये


जिन नारियों का गर्भ हमेशा पूर्ण होने से पहले ही गिर जाता हो उन्हें कमल के बीजों का 3-4 चुटकी पावडर खाना शुरू कर देना चाहिए .इसे खाने का समय होगा गर्भ गिरने वाले महीने से 2 महीना पहले से .
अगर दूसरे महीने में गर्भ स्राव हो जाता हो तो कमल की नाल और नागकेसर दोनों को पीसे. 1-1 ग्राम ही लेना है और पिसी  हुई चटनी दूध में मिलाकर पी लेनी है।


कमल की केसर मिल जाए तो सुखा कर रख लेनी चाहिए . अक्सर लोगों को खूनी बवासीर हो जाती है ,ऐसे समय ये केसर बड़ी काम आती है. चार चुटकी कमल केसर का चूर्ण मक्खन और चीनी मिला कर चाट लीजिये ,एक सप्ताह चाटना होगा रोज सुबह .बहुत आराम मिलेगा।

                                            
अगर नारियों के स्तन ढीले हो गये हों तो कमल के बीजों को 4-5 की संख्या में लीजिये ,उन्हें पीस कर मीठे दूध के साथ पी लीजिये।2 महीने तक लगातार।


चेचक  की बीमारी में कमल के फूलों का शरबत पिलाना बहुत लाभदायक सिद्ध होगा।


उलटी हो रही हो तो कमल के बीजों को छील कर अन्दर का सफ़ेद वाला भाग निकालें उसे पीस कर शहद मिला कर चाटिये   .कमल का बीज पहले भून लीजिएगा आग पर।


किसी भी स्किन डीजीज में कमल की जड़ को पानी में घिस कर लेप कीजिए।


अगर यदा-कदा  न चाहते हुए भी वीर्यपात हो जाता हो तो कमल की जड़ का चूरन -4 ग्राम पानी से निगल लीजिये।


अगर सर के बाल काले करने हों तो कमल के फूलों को दूध में मिला कर एक महीने के लिए जमीन में दबा दीजिये .एक महीने बाद तेलकी तरह प्रयोग कीजिए।


कमल का फूल हार्ट अटैक में तो अमृत की तरह काम करता है ,सफ़ेद चन्दन ,मुलेठी नागरमोथा आदि के मिश्रण से इसकी जो दवा बनती है वह ह्रदय  को बेहद मजबूत कर देती है दुबारा हार्ट अटैक का खतरा ख़त्म।


कमल के फूल में ग्लूकोज ,टैनिन, सेल्यूलोज ,मेतार्बिं, जिंक, राल, फाइट, नमकीन निलाम्बिं ,आदि कई सारे तत्व इसे इतना उपयोगी बना देते हैं।




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

बकरी का दूध

बकरी का दूध हमारे आपके लिए कोई अनोखी चीज नहीं है ,लेकिन हम इसका प्रयोग बिलकुल नहीं करते।आखिर क्यों? हमारे राष्ट्रपिता बापू जी तो रोज बकरी का दूध पीते थे . अगर हम उनकी एक यही बात मान लें तो पूरा देश अनगिनत बीमारियों से रहित हो जाएगा। कैंसर, एड्स ,गांठें, थायराइड, प्रतिरोधक क्षमता की कमी, खून की कमी, पेट की तमाम बीमारियाँ और नपुंसकता जैसे  रोग तो कभी हमें छूकर भी नहीं गुजरेंगे अगर हम हर सप्ताह  केवल 250 ग्राम बकरी का दूध पी लिया करें तो।


लेकिन बेचारा बकरी का दूध अमृत होते हुए भी कभी हमारी निगाहों में इज्ज़त नहीं पा सका।इसके अनगिनत कारण हो सकते हैं .लेकिन मैं आप सभी से सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि वाकई  बकरी का दूध बड़ी करामाती चीज है।अगर संभव हो तो जरूर पियें लेकिन सावधान -बकरी का दूध बार बार गर्म न कीजिए ,एक बार गर्म करके फ्रीज कर लीजिये फिर वही रोज आधा कप पीते रहिये ,मिल जाए तो एक कप पीजिये। 










इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 19 जून 2012

ये बरसात की बीमारियाँ

पिछले वर्ष मैंने बरसात में कीड़ों के काट लेने से होने वाली परेशानियों और व्याधियों के उपचार के बारे में लिखा था .इस साल की बरसात में आप  ये जानें कि तमाम  बरसाती बीमारियों से अपने शरीर की रक्षा कैसे करनी है.

गर्मियां अब जाने के कगार पर हैं . ये गर्मियां कीटाणुओं की दुश्मन भी होती हैं। जो कीटाणु अपनी जान बचा कर बिलों में नहीं घुसते वे तो ख़त्म ही हो जाते हैं. किन्तु बिलों में घुसे हुए कीटाणु इस जाती हुई गरमी में हमारे शरीर के लिए घातक सिद्ध होते हैं और हमें तमाम बीमारियों से परेशान होना पड़ता है.

अब जैसे घमौरियों को ही ले लीजिये ,सबसे पहले कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले शरीर पर घमौरियों का ही आक्रमण होता है और बच्चा क्या जवान और बुजुर्ग भी इससे परेशान हो जाते हैं। ऐसे समय हमें कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए और कुछ चीजों का भोजन में प्रयोग बढ़ा देना चाहिए  जैसे आपको जीरा ज्यादा से ज्यादा खाना चाहिए , जीरे से शरीर को ठंडक पहुंचती है और ये पाचन क्रिया पर अटैक करने वाले कीटाणुओं  को पेट में ही ख़त्म कर देता है। जीरे का पानी उबाल कर रख लीजिये ,इस पानी का 50 ग्राम आप सुबह नहाने के पानी में मिला दीजिये ,घमौरियों और फोड़े-फुंसी से राहत मिलेगी। नहाने के पानी में रोजाना फिटकरी का एक टुकड़ा घोल दीजिये ,घमौरियां और फुंसियां जल्दी ख़त्म होंगी। पुदीना पीस कर उसे साबुन की तरह बदन पर रगड़ डालिए फिर नहाइए। कच्चे आम को भी  पीस कर आप उबटन की तरह या साबुन की तरह  पूरे  बदन पर रगड़ लीजिये तब नहाइए। साथ ही पानी ज्यादा से ज्यादा पीजिये ताकि पेट में गरमी ही न रहे जो घमौरियों और फोड़े- फुंसी के रूप में शरीर से बाहर निकलती है। अगर आपको मिल जाए तो गिलोय का चूर्ण 5 ग्राम रोजाना सुबह सवेरे पानी से निगल लीजिये। ये उमस के इस मौसम में रामबाण की तरह काम करती है।
कुछ और भी सरल उपाय हैं जिन्हें आप प्रयोग कर सकते हैं।
जैसे अजवाइन आप 5 ग्राम सप्ताह में दो बार पानी से निगल लीजिये ,यह भी शरीर को बारिश के  रोगों से बचाती है . 
इसी तरह रोज  ५ पत्तियाँ नीम की भी चबायी जा सकती हैं .
साथ ही बच्चों को २ ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण और ५ ग्राम बड़े लोगों को खिलाया जा सकता है ,पानी से भी निगल सकते हैं और शहद मिला कर भी चाट सकते हैं.
बेहद छोटे दूध पीते बच्चों को केवल शहद काली मिर्च के चूर्ण के साथ चटाया जा सकता है .आधा चम्मच शहद में ५ दाने काली अर्थात गोल मिर्च का चूर्ण .
इन सबके बावजूद फिटकरी के पानी से नहाना सर्वाधिक फायदेमंद साबित होगा.    


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 8 मई 2012

ये आम "ख़ास" है "आम" नहीं

 बंधुओ ये आम का मौसम है .आम तो आम सी ही चीज है पर कभी कभी ये जीवन दायी भी साबित हो जाता है .कुछ रोग ऐसे हैं जिनमे कोई दवा ही काम नहीं करती ,वहाँ ये आम रोगी के लिए ख़ास का दर्जा रखता है आम का नहीं .इस आम का वैज्ञानिक नाम है- Magnifera indica

इस आम के सारे अंग ही प्रयोग में लिए जा सकते हैं आम की मौर,  पत्ते ,छाल, फूल, बीज, गुठली, गोंद , जड़, पका फल, कच्चा फल, सभी का आयुर्वेदिक प्रयोग है . देखा आपने ये आम  है कितने काम की चीज 
इस आम में मंजीफैरिंन , प्रोटीन, आयरन, कार्बोंहाइड्रेट , फैट, अमीनोएसिड , कैल्शियम, फास्पोरस, केरोटीन, ग्लूकोज, सुक्रोज, फ्रक्टोज, गैलोटेनिन, गेलिक एसिड, इथाइल गैलेट, आइसोकवेरसेटिन, बीटा-सिटोस्तीराल , विटामिन सी और ए , रिबोफ्लेविन, डीटरपेन, जिरानियाल, लिमोनिना,नेराल, टैनिंन, मेंजीफेरान,मेंजीफेराल
आदि तत्व पाए जाते हैं।
 

 ये आम के फूल या बौर है ये भी दवा के काम आती है।अगर आपको गले में कोई तकलीफ हो गयी हो ,या आवाज में मधुरता लानी है या कफ जनित कोई बीमारी है तो आम के ये सूखे हुए फूल बड़ा काम करते हैं .इन्हें मिश्री ,मुलेठी और आवले के साथ पीस कर काले अंगूर में मिक्स करके गोलियां बना लीजिये ,ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारी भी ये दवा ख़त्म कर देगी।आवाज तो सुरीली होगी ही. 
 अगर मकडी ने काट लिया है तो अमचूर को पानी में मिला कर लेप कीजिए। 
आँतों में अन्दर ही अन्दर खून निकल रहा हो तो आम के पेड़ की छाल  का काढा बनाइये और 2 चम्मच  काढा आधा कप पानी में मिला कर 2-2 घंटे पर पीते रहिये।चार ही दिन में घाव ठीक होते देखा गया है।
खूनी बवासीर का तुरंत ईलाज करना हो तो आम के कोमल या नये पत्ते पानी में पीस कर चीनी मिला कर एक गिलास
 पानी में घोल कर पी जाएँ .कम से कम 21 दिन पीने से ये बीमारी जड़ से ही ख़त्म हो जायेगी 
ल्यूकोरिया में आप आम की छाल का काढा सुबह शाम 20-20 ग्राम एक कप पानी में मिला कर पीजिये ,एक महीने तक लगातार .
हिचकी बार बार आ रही हो तो आम के पत्तो का धुँआ  सुन्घिये।
कितनी ही तेज लू लग जाए और बुखार उलटी दस्त होने लगे हो तो सिर्फ आम ही आपको जिन्दगी वापस दे सकता है 
कच्चा आम छिलके समेत पानी में उबालिए फिर उसी पानी में हाथ से उस आम को मसल दीजिये और स्वाद के अनुसार नमक या चीनी मिला  
 कर पिला दीजिये ,सुबह दोपहर शाम एक एक गिलास बस। सारी बीमारी ख़त्म। 
कितना ही तकलीफदेह  दस्त आ रहा हो ,आप आम की गुठली के अन्दर   जो गिरी होती है उसकी चटनी पीस कर रोगी को बस आधा चम्मच    खिला दीजिये उसमें नमक या चीनी मिला सकते हैं  एक ही बार खिलाना काफी रहेगा वैसे सुबह शाम भी खिला सकते हैं. 
किसी को दाद खाज खुजली हो तो उस प्रभावित स्थान पर आम का चोप लगा दीजिये।इस काम को रोज एक बार कीजिए 21 दिनों तक। 
पके आम का रस पीने से शरीर सुन्दर और तेजस्वी बनता है .
पके आम का शरबत गले से डिप्थीरिया जैसी बीमारी को ख़त्म करता है। 
अगर गले में खराश हो गयी हो तो आम के पत्तो का काढा सुबह खाली पेट एक गिलास पी लीजिये ,एक गिलास काढ़े के लिए 10 पत्ते काफी हैं। 
नकसीर हो गयी है अर्थात नाक से खून निकल रहा है तो आम की गुठली तोड़ कर गिरी निकालिए और उसे पीस कर सुन्घिये।

देखा आपने कि  ये आम कितना ख़ास है।
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

कई सारे रोगों की दवा भी है पोदीना



  ये पोदीना है .इसे तो देखते ही ठंडक दिल में उतर जाती है .इसका वैज्ञानिक नाम है Mentha spicata .इसे मिंट भी कहते हैं.पोदीने की चटनी खानी हो या पुदीने का शरबत पीना हो बस जी मचल जाता है . इस पोदीने पर एक बड़ी प्रसिद्द कहावत भी है कि "अरे वो तो बावन बीघा पोदीना बोते हैं ". पहले शहरों में और अब तो सिर्फ गाँव में नल के पास ही जहां पानी एकत्र होता रहता था वहाँ पोदीने की एक डाल जमीन में गाड़ दी जाती थी और फिर उसे भूल जाते थे . वही एक डाल साल भर पूरे घर को ही नहीं मोहल्ले वालों को भी पोदीने की चटनी खिलाती थी .ये पौधा पानी या कीचड़ में ही फलता फूलता है.अब शहरों में तो आँगन होते ही नहीं और नल , वो  तो  आजकल की पीढी के बच्चे चलाना भी नहीं जानते होंगे. तो पोदीना बस बाज़ार में ही मिलता है. लेकिन ये पोदीना है बड़े काम की चीज ,कई सारे रोग आप इससे दूर भी कर सकते हैं.आइये आज अपनी जानकारियाँ मैं आपसे भी बाँट लूं-----
--सर दर्द  में आप पोदीना पीस कर माथे पर लेप कर लीजिये.
--जुकाम में पोदीने की पत्ती को हथेली में मसलिये और उसे बार बार सूंघिए.
--हिस्टीरिया का चक्कर आ रहा हो तो चार चम्मच पोदीने के रस को हल्का सा गरम करके ७ दिन तक पीते रहिये ,दिन में एक बार.
--किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया हो तो २५ ग्राम पोदीने की चटनी में मिश्री मिला कर खिला दीजिये और काटे हुए स्थान पर पोदीना  पीस कर लेप कर दीजिये
--अगर मोटापा कम करना चाहते हैं तो जितनी बार भी चाय पीनी हो उसमे १० पत्तियां पोदीने की जरूर डाल लीजिये.आपको दो महीने में ही अंतर दिखाई देगा. अगर महिलाओं को मासिक धर्म में अनियमितता की शिकायत है तो इस चाय से वह भी दूर हो जायेगी. 
--चेहरे में या पैर के तलुओं में जलन हो रही है तो पोदीना पीस कर लेप कीजिए .चेहरे की जलन भी मिटेगी और सौन्दर्य भी बढेगा .
--गरमी में अगर जुकाम खांसी बुखार एक साथ हो जाए अर्थात लू लग जाए तो यही पोदीना नवजीवन देता है. २०-२५ पत्ते पोदीना के और ५-७ दाने काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर एक गिलास पानी में उबालिए ,जब आधा पानी बचे तो छान लीजिये और थोड़ा ठंडा करके पी जाएँ , दिन में दो बार यह काम कीजिए .दो ही दिन में आप बिलकुल स्वस्थ महसूस करेंगे खुद को. 
 --दाद ,खाज ,खुजली या एक्जीमा हो तो २ चम्मच पोदीने की चटनी में आधा चम्मच नीबू का रस मिला कर रख लीजिये और प्रभावित स्थान पर रोज लगा कर सो जाएँ
--अगर पेट में कीड़े हो गये हैं तो २५ ग्राम पोदीना और १५ दाने काली मिर्च एक साथ पीसिए और एक गिलास पानी में इसे मिलाकर बिना चीनी नमक डाले पी जाइए ,५ दिन खाली पेट इसे पिए.
--अगर किसी को कैंसर हो गया है तो उसे रोज ५० ग्राम दही में २० ग्राम पोदीने की चटनी मिला कर खिलाइए .
--आँखों के नीचे काले घेरे हो गये हैं तो पोदीना पीस कर वहां लेप कर दीजिये ,आधे घंटे तक लगा रहने दीजिये फिर धो लीजिये.२१ दिनों तक इसे करके देखिये.
--आपका खूबसूरत चेहरा मुंहासों से खराब हो गया है तो पोदीने की शरण में जाए ,कुछ उसी तरह कि त्वमेव माता च पिता त्वमेव ,और पोदीने की चटनी पीसिये उसमे आधा नीबू काट कर निचोड़िए और अपने चेहरे पर लेप कर लीजिये ,२०-२१ दिनों में ही मुहांसे गायब .
-- आपको भूख न लग रही हो तो कच्चे आम और पोदीने की चटनी से रोटियाँ खाएं ,नमक जरूर मिलाएं .कुछ ही दिनों में भूख खुल के लगने लगेगी.
-- अगर मुंह से बदबू आ रही है तो पोदीने के काढ़े से गरारे कीजिए .
-- गला बैठ गया है या खराश हो गयी है या गला दर्द कर रहा है तो पोदीना का काढ़ा नमक मिलाकर बनाए और उससे गरारे कीजिए .१२ घंटे में ही आराम महसूस होगा.
--दांतों में दर्द हो तो पोदीने की पत्ती चबाये और मुंह में दर्द वाले दांत के पास रोके रखे  १५ मिनट में दर्द गायब
 यह पोदीने का फूल है ,इसी से पिपरमिंट बनता है, दुखने वाले दांत में आप पिपरमिंट भी लगा सकते हैं .
--गुदा द्वार में खुजली हो रही हो तो नारियल के तेल में पिपरमिंट मिलाकर लगा दीजिये ,यह रोग छोटे बच्चों को बहुत परेशान करता है और अक्सर बच्चे रोते भी रहते हैं.
-- नाक से खून गिर रहा हो तो दोनों नाक में पोदीने के रस की २-३ बूंदे डाल लीजिये.यह रोग गरमी में बहुत होता है जिसका कारण लू लगना भी होता है.
-- उलटी दस्त में तो पुदीन हरा राम बाण की तरह काम करता है .पुदीनहरा न हो तो पोदीना पीस कर भी पिलाया जा सकता है ,मीठा शरबत ज्यादा फायदा करेगा.
पोदीने में कैलोरी ,प्रोटीन, पोटेशियम, थायमिन, कैल्शियम, नियोसीन, रिबोफ्लेविन, आयरन, विटामिन-ए,बी ,सी डी और इ, मेन्थाल, टैनिन आदि रासायनिक घटक पाए जाते हैं.
अब बोयेंगे न आप भी बावन बीघा पोदीना............. 
 
 
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 13 मार्च 2012

कचनार




कचनार का फूल कितना खूबसूरत होता है ,देखते ही बस जी मचल जाता है .अरे ये है भी बहुत उपयोगी .अगर पूरा देश जान जाए की ये किस रोग की दवा है तो बस ये समझ लीजिये की बेचारा दुर्लभ फूल की श्रेणी में आ जाएगा . हो सकता है की तब सरकार को इसे प्रतिबंधित फूल घोषित करना पड़े.
कचनार का पेड़ ८ फीट तक उंचा हो जाता है.कही कहीं १५ से २० फीट की भी ऊँचाई देखी गयी है .थाईरायड और कुबड़ेपन का इलाज इस कचनार से किया जा सकता है.
इसके तने की छाल भी दवा के काम आती है ,इसमें शर्करा और टैनिन्स की बहुत मात्रा पायी जाती है.साथ ही मिर्सीताल और ग्लाइकोसाइड भी मौजूद है. इसकी छाल के काढ़े में बावची के तेल की २०-२५ बूंदे मिलाकर रोज पीने से बहुत पुराना कोढ़ भी ख़त्म हो जाता है. अगर कुबडापन हो तो बच्चे को इसकी छाल के काढ़े में प्रवाल भस्म मिला कर पिलानी चाहिए.पीले कचनार के पेड़  की छाल का काढा आंतो के कीड़े को मार देता है.मुंह के छाले किसी दवा से ठीक न हो रहे हों तो कचनार की छाल के काढ़े से गरारे और कुल्ला कीजिए ,फिर देखिये चमत्कार. 
कचनार के फूल थाईरायड की सबसे अच्छी दवा हैं. इसके फूल में हेन्त्रीआक्टें, बीटा- सितोस्टीराल, ओक्ताकोसनाल, स्तिग्मास्तीराल ,फ्लेवोनाइड आदि पाए जाते हैं.
आपको हाइपो हो या हाइपर थाईराइड कचनार के तीन फूलों की सब्जी या पकौड़ी बनाकर सुबह शाम खाएं.२ माह बाद टेस्ट कराएँ.
गले  में  गांठे  हो  गयी  हों  तो  कचनार  की  छाल को चावल के धोवन में पीसिये उसमे आधा चम्मच सौंफ का पावडर मिलाकर खा लीजिये ,एक महीने तक खाएं. 
खूनी बवासीर में कचनार की कलियों के पावडर को मक्खन और शक्कर मिलकर खाएं ,११ दिन लगातार.
आँतों में कीड़े होंतो कचनार की छाल का काढा पियें.१०-११  दिनों तक.
खूनी आंव हो रहे हों तो कचनार का एक एक फूल सुबह दोपहर शाम चबाएं,३ दिनों तक
आपका पेट निकल रहा हो तो आधा चम्मच अजवाइन को कचनार की जड़ के काढ़े से निगल लीजिये.१०-११ दिनों तक.
लीवर में कोई तकलीफ हो तो कचनार की जड़ का काढ़ा पीयें
गले की कोई भी ग्रंथि  बढ़ जाने पर कचनार के फूल या छाल का चूर्ण चावलों के धोवन में पीस कर उसमे सोंठ मिलकर लेप भी किया जा सकता है और पिया भी जा सकता है.
कचनार की टहनियों की राख से मंजन करेंगे तो दांतों में दर्द कभी नहीं होगा ,अगर हो रहा होगा तो ख़त्म हो जायेगा.
खून शुद्ध करने के लिए कचनार की कलियों का काढा पी सकते हैं.
रक्त प्रदर में इसकी कलियों के काढ़े में शहद मिलाकर पीजिये.
वैसे अगर आपके घर में कचनार का पेड़ हो तो आप इसकी कलियों का गुलकंद बनाकर रख लीजियेगा. बड़ा काम आता है ,बिना रोग के खाने में भी बहुत मजेदार होता है.








इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

ये भी सुन लीजिये


http://www.youtube.com/watch?v=j4R2LS7dXAs

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गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

अद्भुत ताकत का खजाना

एक कहावत तो सदियों से मशहूर है कि-


हरण  ,बहेड़ा,आंवला घी शक्कर संग खाय
हाथी दाबे कांख में चार कोस ले जाय


आज कल इस ताकत की  तो कल्पना भी नहीं की जा सकती ,५ किलो सामान हाथ में लेकर आधा किलो मीटर पैदल चलना पड़े तो दांतों तले पसीना आ जाता है.
चलिए इस कहावत का ही आँख बंद करके अनुसरण किया जाए. कारण कि सर्दियां जाने वाली हैं ,गर्मियों में च्यवनप्राश खाया जाता नहीं. आइये अब हम इसी का च्यवनप्राश बना डालें ताकि कुछ ताकत तो आये. अगर हाथी दाबे वाली ताकत आ गयी तो बल्ले बल्ले .
वैसे तो हरण, बहेड़ा और आवला बाज़ार में त्रिफला के नाम से उपलब्ध है ,लेकिन हम खुद ही बना लें तो....
चलिये१०० ग्राम हरण ,२०० ग्राम बहेड़ा  और ३०० ग्राम आंवला  . अब इसमें ६०० ग्राम ताड़ मिश्री और १००० ग्राम देशी घी मिलाकर पेस्ट बनाकर कांच के मर्तबान में रख कर बंद कर दीजिये और ३ दिन उस मर्तबान को धूप में रख दीजिये .फिर ये खाने के लिए तैयार है ,प्रतिदिन कम से कम १० ग्राम तो खाना ही है वह भी खाली पेट.
खा करके मुझे बताइयेगा कि हाथी दाबे वाली ताकत आई कि नहीं. 


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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

वीर्यवान भव :

वीर्यवान भव : यही आशीर्वाद प्राचीन काल में बच्चों को दिया जाता था. यह सर्वश्रेष्ठ आशीर्वाद माना जाता था. इसके बाद नंबर आता था- पुत्रवान भव , तेजस्वी भव, विद्वान भव, बुद्धिमान भव का. आज कल तो नमस्ते ,सलाम, गुड मार्निंग का दौर है. अब कहाँ मिलते हैं आशीर्वाद.
आइये आज इस एक आशीर्वाद वीर्यवान भव के आयुर्वेदिक महत्व को खंगालते हैं.
वीर्य ही शक्ति का भण्डार है . शरीर में जहाँ वीर्य का निर्माण होता है ,आध्यात्मिक क्षेत्र के जानकार ठीक वहीं  कुंडलिनी शक्ति का सोयी हुई हालत में रहना बताते हैं. कुंडलिनी को जगाना ही सबसे दुष्कर कार्य है ,बड़ी बड़ी कठोर तपस्याए भी इस काम को नहीं कर पाती . आचार्य रजनीश ने उस क्षेत्र को जागृत रखने के लिए सम्भोग से समाधि की ओर का नारा दिया, लेकिन तथाकथित विद्वानों ने इसकी बड़ी आलोचना की .
आयुर्वेद कहता है कि  जब शरीर में वीर्य का निर्माण होगा ही नहीं तो शरीर के बाक़ी विकास कार्य भी अवरुद्ध हो जायेंगे. न भुजाओं में ताकत होगी , न खून बनेगा ,न ही बुद्धि काम करेगी ,न ही पाचन क्रिया सही होगी. अर्थात वीर्य नहीं तो शरीर मुर्दे के सामान है. अतः वीर्य का निर्माण सतत जारी रहना चाहिए .
हालांकि आयुर्वेद की ८०% जड़ी बूटियाँ जो भिन्न भिन्न रोगों की दवाओं का निर्माण करती है ,रोग को दूर करने के साथ ही साथ वीर्य का भी निर्माण करती हैं. इसलिए किसी भी रोग का इलाज आयुर्वेदिक पद्दति से करने का मतलब है -- आम के आम ,गुठलियों के भी दाम.     
वीर्य  को आप आधुनिक भाषा में क्रोमोसोम कह सकते हैं .वैज्ञानिको ने ये बता दिया है कि इन्हीं क्रोमोसोम पर रंग रूप,लम्बाई ,मोटाई ,दिमाग ,आँख ,नाक ,बीमारिया आदि को कंट्रोल करने वाले जीन मौजूद रहते हैं.ये क्रोमोसोम अर्थात गुणसूत्र ही जीवन का आधार माने गये हैं.अतः इनकी प्रचुरता शरीर में बहुत जरूरी है.आज आपको एक ख़ास चीज़ के बारे में बताती हूँ जो ये काम सुगमतापूर्वक करती है. हालांकि हम सभी उस चीज़ को जानते हैं.------
          ये है बबूल का गोंद अर्थात खाने वाला गोंद .अक्सर इसका प्रयोग प्रसूताओं के लिए होता है ,लेकिन ये गोंद नारी और पुरुष दोनों के ही प्रजनन अंगों को शक्ति पदान करने और उन्हें वीर्य से समृद्ध बनाने का काम करता है.



इस गोंद को अगर आप पानी में भिगो कर रख दीजिये और लगभग १ घंटे बाद उस पानी को छान कर पी लीजिये तो ये आपके शरीर में शक्ति और स्फूर्ति दोनों ही प्रदान करेगा. १२ घंटे में गोंद पूरी तरह पानी में नहीं घुलता ,जितना घुल गया है उतना छान कर पी लीजिये फिर उस बरतन में और पानी डाल दीजिये .गोंद का पानी अक्टूबर से लेकर मार्च तक पिया  जा सकता है .इसे १० वर्ष के ऊपर किसी भी लड़के लड़की को दिया जा सकता है.ये नुस्खा आपको ठंड से भी बचाएगा और शरीर के विकास में भी सहायक होगा .दिन में एक बार पीना काफी रहता है. 
अगर कोई मरीज अस्पताल से तुरंत डिस्चार्ज होकर लौटा है तो ये नुस्खा उसकी शक्ति लौटाने में बहुत कामयाब है.
गोंद को घी में भूनते हैं तो ये फूल कर बड़ा हो जाता है फिर उसका चूरा  करके मेवों के साथ मिला कर लड्डू बनाए जाते हैं . यह भी इसे खाने का एक तरीका है ,यह अक्सर प्रसूताओं के लिए बनाया जाता है ,किन्तु इसे कोई भी खा सकता है .
बबूल के गोंद में- गैलेक्टोज, एरेबिक एसिड, कैल्शियम तथा   मैग्नीशियम   के लवण उपस्थित होते हैं.
आयुर्वेद कहता है कि मुंख के छालों में, गले के सूखने में, मूत्र के अवरोध में, अतिसार और मधुमेह में इसका प्रयोग फायदा देता है.   






इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा