आयुर्वेद का अर्थ औषधि - विज्ञान नही है वरन आयुर्विज्ञान अर्थात '' जीवन-का-विज्ञान'' है

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सोमवार, 23 जनवरी 2012

बेहद कमजोरी आ जाये तो


बहुत सारी बीमारियाँ ऎसी होती हैं कि  वो जब छोडती हैं तो जैसे लगता है कि शरीर में जान ही नहीं बची, और ऊपर से सितम ये कि कुछ खाने-पीने की इच्छा भी नहीं होती. फिर कोई हमदर्दी में  ताकत के लिए दवा -सिरप का नाम लेता है तो उससे बड़ा दुश्मन कोई लगता ही नहीं. खाने की भी हिम्मत नहीं होती या यू कहिये कि खाने-पीने की चीजें स्वादविहीन   लगने लगती हैं. ऎसी दशा में सबसे अच्छी चीज है शहद . 

**अगर मरीज बहुत कमजोर हो तो हर दो घंटे पर एक बड़ा चम्मच शहद पिला दीजिये .
**किसी को कैंसर या श्वास की बिमारी हुई हो तो सुबह दोपहर शाम एक-एक चम्मच शहद पी लिया करें.       
**जिस मरीज को ग्लूकोज चढ़ाना बहुत ज़रूरी हो लेकिन किन्ही कारणों से ग्लूकोज चढ़ाना उचित न हो तो फ़ौरन शहद का सहारा लीजिये 
** जिन नवजात शिशुओं की माता को दूध न उतर रहा हो उन बच्चों को शहद चटाना शुरू कीजिए ,शहद सम्पूर्ण आहार है.
** हिमोग्लोविन कम हो गया हो तो हर ३ घंटे पर एक चम्मच शहद दे दीजिये ,५ दिन में ही खून बढ़ जाएगा.
** बुजुर्गों के लिए तो शहद का सेवन रोज ही जरुरी है.पर दिन में बस दो बार.




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

सर्दी की तकलीफ और हरसिंगार

 


कितने खूबसूरत होते हैं हरसिंगार के फूल और कितने काम की इसकी पत्तियाँ
कभी आपने १५-२० वर्ष पहले पराक्सीन नाम की अंग्रेजी दवा खायी थी ? इसके पावडर का स्वाद और हरसिंगार की पत्तियों का स्वाद एक ही जैसा होता है. जब बुखार बहुत पुराना हो जाता था और किसी दवा से ख़त्म नहीं होता था तो उस समय पराक्सीन दिया जाता था.हरसिंगार का पेड़ आप सभी का जाना पहचाना पेड़ है,कितने लोग तो हरसिंगार की खुशबू के दीवाने होते हैं. आइये आज उसी हरसिगार का हम पोस्टमार्टम कर डालें. 


इसे अंग्रेजी में Night Jasmine कहते हैं ,संस्कृत में- शेफालिका या पारिजातक भी कहते हैं.
इसके पत्तों, बीज   और तने में- निक्तैथिक एसिड, बीटा, इरिडोइड, लिग्नोसेत्रिक , मियरिस्तिक एसिड, ओलिक एसिक,  पामिटिक एसिड, स्तीयरिक एसिड, लिनोसेत्रिक, सितोस्तीराल, ग्लाइकोसाइद्स आर बोर ट्रिस्तोसाइड्स A, B, C, D ,E ग्लूकोमनान , एअस्त्रोग्लैनिन ,निक्तोफलोरीन, एस्कोर्बिक एसिड, कैरीतीन, टैनिन, फ्रक्टोज , ग्लूकोज, मैनीटाल, निक्तैन्थोसाइड, आरबोर साइड्स जैसे तत्व पाए जाते हैं.
इस पौधे के तने की छाल ,पत्ते, फूल और   बीजों का दवाओं के रूप में प्रयोग होता है. 
    


यह मूत्रल भी है, पसीना भी पैदा करता है, लीवर को भी उत्तेजित करता है, पेट साफ़ करता है, उत्तेजना पैदा करता है, बुखार ख़त्म करता है ,दर्द का तो दुश्मन है हरसिंगार.
अगर आपको कोई रोग न हो तब भी ठंड के दिनों में सप्ताह में एक बार हरसिंगार के पत्तों का काढा बना कर पी लीजिये. यह काढा शरीर में पनप रहे किसी भी रोग के कीटाणुओं को ख़त्म कर देता है.
सर में रूसी हो गयी हो तो हरसिंगार के बीज पीस कर पानी में मिलाइए और इसी पानी से बाल धो लीजिये .हफ्ते में तीन बार ही काफी रहेगा ,रूसी जड़ से ख़त्म.
सियाटिका के मरीजों को तो सप्ताह में तीन बार हरसिंगार की पत्तियाँ खूब अच्छी तरह उबाल कर अर्थात काढा बनाकर जरूर पीना चाहिए क्योंकि जाड़े में यह सियाटिका बहुत परेशान करता है.
हरसिंगार के बीज सर पर बाल भी पैदा कर देते हैं ,आप इन्हें  पानी के साथ पीस कर चटनी बनाएं और सर में गंजेपन वाले स्थान पर लगा लीजिये.लगातार २१ दिन प्रयोग कीजिए.
पेट में केचुए या कीड़े हो तो पत्ते पीस कर उसका रस निचोड़िए और एक चम्मच रस में आधा चम्मच शहद मिला कर चाट लीजिये ,सुबह दोपहर शाम , दिन में तीन बार.तीन दिनों में ही सारे कीड़े मर जायेंगे.
खांसी न रुक रही हो और दमे में परिवर्तित हो गयी हो तो हरसिंगार के तने की छाल का पावडर लगभग चार चुटकी भर लीजिये और पान के पत्ते में रखकर मरीज को दिन में चार  बार चूसने को दीजिये.
शरीर में कहीं दर्द हो रहा हो तो या तो इसके पत्तों का काढा पीजिये या फिर पत्तो को पीस कर रस निकालिए और बराबर मात्रा में अदरक का रस उसमे मिलाइए और पी लीजिये. दोनों का रस २-२ चम्मच हो तो अच्छा है.
मलेरिया का बुखार हो तो २ चम्मच हरसिंगार के पत्ते का रस , दो चम्मच अदरक का रस और दो चम्मच शहद मिला कर दिन में २ बार पिला दीजिये.
घुटनों के दर्द से परेशान रहने वालो और सियाटिका के मरीजो के लिए तो ठंड के मौसम में हरसिंगार वरदान है.
  
इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

कलौंजी के फायदे




कलौंजी का पौधा सौंफ के पौधे की तरह होता है इसके फूल हलके नीले रंग के होते हैं.कलौंजी के दाने तिकोने और काले रंग के होते हैं.ये बहुत सुगन्धित भी होते हैं.ये बहुत ताकतवर होते हैं.
कलौंजी के बीजों में मैलेंथीन,मैलेंथेजैनिंन ,एल्ब्यूमीन, शर्करा, गोंद, टैनिन, ग्लूकोसाइड, राल, स्थिर तेल, उड़नशील तेल जैसे तत्व विराजमान हैं.



इसे हिन्दी में मंगरैल ,फारसी में स्याह्दाना, अरबी में- हब्बतुस्सोदा, बंगाली में काली जीर, गुजराती मराठी आदि अनेक भाषाओं में कलौंजी ,संस्कृत में स्थूल्जीरक, बहुगंधा, अंग्रेजी में- Black curmin तथा  वैज्ञानिक  भाषा  में Nigella sativa कहते  हैं.


** अपच या पेट दर्द में आप कलौंजी का काढा बनाइये फिर उसमे काला नमक मिलाकर सुबह शाम पीजिये.दो दिन में ही आराम देखिये.
** मसाने और गुर्दे में पथरी हो तो कलौंजी को पीस कर पानी में मिलाइए फिर उसमे शहद मिलाकर पीजिये ,१०-११ दिन प्रयोग करके टेस्ट करा लीजिये.कम न हुई हो तो फिर १०-११ दिन पीजिये.
** कलौंजी की राख को तेल में मिलाकर गंजे अपने सर पर मालिश करें कुछ दिनों में नए बाल पैदा होने लगेंगे.इस प्रयोग में धैर्य महत्वपूर्ण है.
** अगर गर्भवती के पेट में बच्चा मर गया है तो उसे कलौंजी उबाल कर पिला दीजिये ,बच्चा निकल जायेगा.और गर्भाशय भी साफ़ हो जाएगा.
** किसी को बार-बार हिचकी आ रही हो तो कलौंजी के चुटकी भर पावडर को ज़रा से शहद में मिलकर चटा दीजिये.  
** अगर किसी को पागल कुत्ते ने काट लिया हो तो आधा चम्मच से थोडा  कम बल्कि तीन  ग्राम कलौंजी को पानी में पीस कर पिला दीजिये.बस ३-४ बार एक दिन में एक ही बार
** जुकाम परेशान कर रहा हो तो इसके बीजों को गरम कीजिए ,मलमल के कपडे में बांधिए और सूघते रहिये. दो दिन में ही जुकाम और सर दर्द दोनों गायब .
** कलौंजी की राख को पानी से निगलने से बवासीर में बहुत लाभ होता है.
** कलौंजी का उपयोग चरम रोग की दवा बनाने में भी होता है.
** कलौंजी को पीस कर सिरके में मिलकर पेस्ट बनाए और मस्सों पर लगा लीजिये.मस्से कट जायेंगे.
** मुंहासे दूर करने के लिए कलौंजी और सिरके का पेस्ट रात में मुंह पर लगा कर सो जाएँ.
** कलौंजी का पावडर शहद में मिला कर काटे हुए स्थान पर  लगाने से बंदर का जहर ख़त्म हो जाएगा 
** जब सर्दी के मौसम में सर दर्द सताए तो कलौंजी और जीरे की चटनी पीसिये और मस्तक पर लेप कर लीजिये.
** घर में कुछ ज्यादा ही कीड़े-मकोड़े निकल रहे हों तो कलौंजी के बीजों का धुँआ कर दीजिये.




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

जायफल के गुण


ये जायफल का पेड़ है
इसके पत्ते हरे -पीले रंग के अंडाकार और चिकने होते हैं.फूल सफ़ेद रंग के घंटियों के आकार के होते हैं. जायफल का पेड़ सुन्दर और विशाल होता है. जायफल का रासायनिक संग्थ्हन बहुत टिपिकल है- इसके फल में जिरानियाल, यूजीनोल, सैफ्रोल, आइसोयूजिनोल, फैटिक एसिड, लोरिक एसिड, आलिक एसिड, लिनोलिल एसिड, स्टीयारिक एसिड, मियारीस्टिक एसिड,मिरीस्टिक एसिड, पामिटिक एसिड, उड़नशील तेल,स्थिर तेल आदि तत्व पाए जाते हैं.इसी कारण जायफल का एक ग्राम चूर्ण बड़ी तेज काम करता है.
यह एक जायफल अनेक बीमारियों की दवा है-
** सर में बहुत तेज दर्द हो रहा हो तो बस जायफल को पानी में घिस कर लगाएं.
** सर्दी के मौसम के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जायफल को थोड़ा सा खुरचिये, चुटकी भर कतरन हो जाए तो उसे मुंह में रखकर चूसते रहिये.यह काम आप पूरे जाड़े भर एक या दो दिन के अंतराल पर करते रहिये.

** आपको किन्हीं कारणों से भूख न लग रही हो तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसिये इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी और भूख बढ़ेगी ,भोजन भी अच्छे तरीके से पचेगा.
** दस्त आ रहे हों या पेट दर्द कर रहा हो तो जायफल को भून लीजिये और उसके चार हिस्से कर लीजिये एक हिस्सा मरीज को चूस कर खाने को कह दीजिये .सुबह शाम एक-एक हिस्सा खिलाएं.
** फालिज का प्रकोप जिन अंगों पर हो उन अंगों पर जायफल को पानी में घिस कर रोज लेप करना चाहिए ,दो माह तक ऐसा करने से अंगों में जान आ जाने की ८० % संभावना देखी गयी है.
** प्रसव के बाद अगर कमर दर्द नहीं ख़त्म हो रहा है तो जायफल पानी में घिस कर कमर पे सुबह शाम लगाएं ,एक सप्ताह में ही दर्द गायब हो जाएगा.
** पैरों में जाड़े में बिवाई खूब फटती है, ऐसे समय ये जायफल बड़ा काम आता है ,इसे  महीन पीस कर बीवाइयों में भर दीजिये.१२-१५ दिन में ही पैर भर जायेंगे.
** जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से ह्रदय मज़बूत होता है. पेट भी ठीक रहता है.
** अगर कान के पीछे कुछ ऎसी गांठ बन गयी हो जो छूने पर दर्द करती हो तो जायफल को पीस कर वहां लेप कीजिए जब तक गाठ ख़त्म न हो जाए, करते रहिये.
** अगर हैजे के रोगी को बार-बार प्यास लग रही है तो जायफल को पानी में घिस कर उसे पिला दीजिये.
** जी मिचलाने की बीमारी भी जायफल   को थोड़ा सा घिस कर पानी में मिला कर पीने से नष्ट हो जाती है.
** इसे थोडा सा घिस कर काजल की तरह आँख में लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है.और आँख की खुजली और धुंधलापन ख़त्म हो जाता है.
** यह शरीर की स्वाभाविक गरमी की रक्षा करता है ,इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए.
** यह कामेन्द्रिय की शक्ति भी बढाता है.
** जायफल आवाज में सम्मोहन भी पैदा करता है.
** जायफल और काली मिर्च और लाल चन्दन को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है,मुहांसे ख़त्म होते हैं.
** किसी को अगर बार-बार पेशाब जाना पड़ता है तो उसे जायफल और सफ़ेद मूसली २-२ ग्राम की मात्र में मिलाकर पानी से निगलवा दीजिये ,दिन में एक बार ,खाली पेट, १० दिन लगातार.
** बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लीजिये फिर ३ चुटकी इस मिश्रण को गाय के घी में मिलाकर बच्चे को कहता दीजिये. सुबह शाम चटायें. 


जायफल के नाम 
इसे भिन्न -भिन्न भाषाओं में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है.- बंगाली और गुजराती में जायफल , कन्नड़ और तेलगू में-जजिकाया,जादिफल, तमिल में- आदि परभम, कोसम, सालुगमे, सीलों में-सादिकई ,कन्नर में जाजी, फारसी में- जोजबोय, अरबी में- जोजउल्तिब, जवावा, संस्कृत में- जातिफल, जातिशा, सगा,कोशा, मधुशोंदा, माल्तीफला, राज्बोग्या, शालुका और वैज्ञानिक भाषा में-Myristica fragrans 




    इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

रविवार, 13 नवंबर 2011

निर्गुन्डी: स्लिप डिस्क और सर्वाइकल बीमारियों की दुश्मन






निर्गुन्डी (Vitex negundo)शेफाली,सम्मालू, सिंदुवार आदि नाम से भी जानी -पहचानी जाती है. इसके पेड़ १० फीट तक ऊंचे पाए जाते हैं. इसे संस्कृत में इन्द्राणी, नीलपुष्पा, श्वेत सुरसा,सुबाहा कहते हैं.बंगाली में निशिन्दा, सेमालू, मराठी में- कटारी, लिगुर, शिवारी पंजाबी में- बनकाहू, मरवा, बिन्ना, मावा, मोरों, खारा, सनक फारसी में- बजानगश्त, सिस्बन, गुजराती में-नगोड़, नागोरम, निर्गारा,तेलगू में- नल्लाहा बिली,मिन्दुवरम तमिल में-निकुंडी, नोची कहा जाता है.


निर्गुंडी में उड़नशील तेल,विटामिन-सी, केरोटीन, फलेवोन, टैनिक एसिड, निर्गुन्दीन, हाइड्रोकोटिलोन, हाइड्रोक्सीबेन्जोईक एसिड, मैलिक एसिड और राल पाए जाते हैं.
  



**निर्गुंडी अनेक बीमारियों में काम आती है. सबसे बड़ी बात क़ि स्लीप डिस्क की ये एकलौती दवा है. सर्वाइकल, मस्कुलर पेन में इसके पत्तो का काढा रामबाण की तरह काम करता है.
** अस्थमा मे इसकी जड़ और अश्वगंधा की  जड़ का काढा ३ माह तक पीना चाहिए.
**गले के अन्दर सूजन हो गयी हो तो निर्गुंडी के पत्ते, छोटी पीपर और चन्दन का काढा पीजिये, ११ दिनों में सूजन ख़त्म हो जायेगी.
**सूतिका ज्वर में निर्गुंडी का काढा  देने से गर्भाशय का संकोचन होता है और भीतर की सारी गंदगी बाहर निकल जाती है. गर्भाशय के अंदरूनी भाग की सूजन ख़त्म हो जाती है और वह पूर्व स्थिति में आ जाता है ,जिससे प्रसूता को बुखार से मुक्ति मिल जाती है और दर्द ख़त्म हो जाता है. बच्चा जानने के बाद निर्गुंडी के पत्तो का काढा हर महिला को दिया जाना चाहिए और एबार्शन के बाद भी यह कादा जरूर पिलाना चाहिए क्योंकि गर्भ में अगर कोई भी मांस का टुकड़ा छूट जाएगा तो वह बाद में यूट्रस कैंसर का कारण बनेगा.
पेट में गैस बन रही है तो निर्गुंडी के पत्तो के साथ काली मिर्च और अजवाइन का चूर्ण खाना चाहिए ताकि गैस बननी बंद हो और पेट का दर्द ख़त्म हो और पाचन क्रिया सही हो जाए.
 
**भंगरैया तुलसी और निर्गुंडी के पत्तो का रस अजवाईन का चूर्ण मिलाकर पीने से गठिया की सूजन और  दर्द में बहुत लाभ होता है.
**कामशक्ति बढाने के लिए निर्गुन्डी और सोंठ का चूर्ण दूध के साथ लेना चाहिए.
**निर्गुंडी सर्दी जनित रोगों में बहुत फायदा करती है .
** निर्गुंडी के काढ़े से रोगी के शरीर को धोने पर सभी तरह की बदबू, दुर्गन्ध  ख़त्म हो जाती है.
**भैषज्य रत्नावली के अनुसार निर्गुंडी  रसायन शरीर का कायाकल्प करने में सक्षम है यह लम्बे समय तक मनुष्य को जवान बनाए रखता है , इसे बनने में पूरे एक माह लगते हैं,इसे किसी अनुभवी वैद्य से ही बनवाना चाहिए.
** निर्गुंडी के तेल से बालो का सफ़ेद होना ,बालो का गिरना , नाडी के घाव और खुजली जैसी बीमारियों में बहुत लाभ पहुंचता है किन्तु इसे भी किसी जानकार वैद्य से ही बनवाना उचित रहता है.
** अगर डिलीवरी पेन शुरू हो गया है और आप सरलता पूर्वक प्रसव कराना चाहते हैं तो निर्गुंडी के पत्तो की चटनी को महिला की नाभि के आस-पास लेप कर दीजिये.
** मुंह के छाले ख़त्म करने के लिए निर्गुंडी के पत्तो के रस में शहद मिलाकर उस मिश्रण को ३-४ मिनट मुंह में रखें फिर कुल्ला कर दीजिये.दो ही दिन में छाले ख़त्म हो जायेंगे.
** निर्गुंडी और शिलाजीत का मिश्रण   शरीर के लिए अमृत का काम करता है.
** निर्गुंडी और पुनर्नवा का काढा शरीर के सारे दर्द ख़त्म करता है.
** कमर को सही आकार में रखने के लिए निर्गुंडी के पत्तो के काढ़े में २ ग्राम पीपली का चूर्ण मिला कर एक महीने पीजिये.
** स्मरण शक्ति बढाने के लिए निर्गुंडी की जड़ का ३ ग्राम चूर्ण इतने ही देशी घी के साथ मिलाकर रोज चाटिये .
** साइटिका में निर्गुंडी के पत्तो क़ि चटनी को गरम करके सुबह शाम बांधना चाहिए या फिर इसका काढा पीना चाहिए.
** स्वास रोग में पत्तो का रस शहद मिलाकर दिन में चार बार एक  -एक चम्मच पीना चाहिए.
** निर्गुंडी के बीजों का चूर्ण दर्द निवारक औषधि है लेकिन हर दर्द में इसकी मात्रा अलग-अलग होती है.


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

सिघाड़ा ; गर्भवती महिलाओं के लिए अति उत्तम औषधि










कार्तिक का महीना है ,नए- नए सिघाड़े बाज़ार में आ गये हैं. खूब खाइए. शरीर को मैगनीज तत्व की भी जरूरत होती है. आप चाहे जितने टानिक पी लीजिये, ताकत की दवाएं खा लीजिये लेकिन जब तक शरीर में इन तत्वों को पूर्ण रूप से पचाने की क्षमता नहीं होगी ,दवाए कोई असर नहीं दिखाएंगी. अकेला सिघाड़ा एक ऐसा फल है जो शरीर में मैगनीज एब्जार्ब करने की क्षमता बढ़ा देता है. और बुढापे में होने वाली अधिकाश बीमारियाँ सिर्फ मैगनीज की कमी के कारण होती हैं.
जिन महिलाओं का गर्भकाल कभी पूरा न होता हो या गर्भ के दौरान गर्भ गिरने का डर लगा रहता हो उन्हें खूब ज्यादा सिघाड़े खाने चाहिए. ये भ्रूण  को तो मजबूती देता ही है ,गर्भवती महिला की भी रक्षा करता है. ये पुरुषों के लिए शुक्रवर्धक औषधि का काम करता है.
सिघाड़े में टैनिन, सिट्रिक एसिड, एमिलोज, एमिलोपैक्तीं, कर्बोहाईड्रेट, बीटा-एमिलेज, प्रोटीन, फैट, निकोटेनिक एसिड, फास्फोराइलेज, रीबोफ्लेविन, थायमाइन, विटामिन्स-ए, सी तथा मैगनीज आदि तत्व मौजूद हैं.
यह जल में पैदा होने वाला फल है, तिकोने पत्ते और सफ़ेद फूलों वाले इस पौधे में फल भी तिकोने ही लगते हैं. छोटे छोटे ताल-तलैयों में आपको इस मौसम में भी इसके पत्ते पानी में फैले हुए मिल जायेंगे.


__ सिघाड़े के तने का रस निकाल कर एक-एक बूंद आँख में डालने से किसी भी प्रकार की आँखों की बीमारी दूर हो जाती है.
__ जिस व्यक्ति को ज़रा सी खरोंच लग जाए और खून बहुत ज्यादा निकलता हो उसे तो खूब सिघाड़े खाने चाहिए  ताकि उसकी ये बीमारी दूर हो जाए. सिघाड़े  में रक्त स्तंभक का गुण भी पाया जाता है.
 __ गर्भवती महिलाओं को दूध के साथ सिघाड़ा खाना चाहिए, गर्भ के सातवें महीने में तो अनिवार्य रूप से इसका प्रयोग करना चाहिए.
__ पेशाब में रुकावट महसूस हो रही है तो सिघाड़े का काढा बनाकर दिन में दो बार ले लीजिये.
__ सिघाड़ा ल्यूकोरिया, दस्त, खून में खराबी जैसी बीमारियों को भी ठीक करता है.


हरा सिघाड़ा सूखे सिघाड़े की अपेक्षा ज्यादा फायदा करता है ,इसलिए इस मौसम में खूब सिघाड़ा खाएं या सब्जी बनाकर या उबाल कर या कच्चे ही. अमृत तो ये है ही.


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

मिर्च ; बड़े काम की चीज है



मिर्च , नाम  आते  ही  कुछ  लोग सी-सी करने लगते हैं तो कुछ लोग चटखारे लेने लगते हैं. हमारे देश में यही तो समस्या है की एक स्वाद के बारे में दो लोगों की राय कभी एक नहीं हो सकती. पर इसमें बेचारी मिर्च का क्या दोष . वह फायदा तो सभी को एक ही जैसा पहुँचाती है. मिर्च सिर्फ तीती या कडवी ही नहीं होती, बहुत सारे रोगों में तो ये किसी बहुत अच्छी मिठाई से भी ज्यादा मीठी होती है. आइये आज इसी को चख कर देख लेते हैं---

आपको पता है,    इसमें कितने सारे तत्व पाए जाते हैं-
अमीनो एसिड, एस्कार्बिक एसिड, फोलिक एसिड, सिट्रीक एसिड, ग्लीसरिक एसिड, मैलिक एसिड, मैलोनिक एसिड, सक्सीनिक एसिड, शिकिमिक एसिड, आक्जेलिक एसिड, क्युनिक एसिड, कैरोटीन्स , क्रिप्तोकैप्सीन, बाई-फ्लेवोनाईड्स, कैप्सेंथीन, कैप्सोरूबीन डाईएस्टर, आल्फा-एमिरिन, कोलेस्टराल, फ़ाय्तोईन, फायटोफ़्लू, कैप्सीडीना, कैप्सी-कोसीन, आल्फा-एमीरीन आदि.
इसमें जो फोलिक एसिड है वह ऐसा तत्व है जिसके कारण सफेदमूसली का महत्व बढ़ जाता है और यही तत्व गर्भवती महिलाओं को सिर्फ इसलिए दिया जाता है ताकि  बच्चे का खासकर बच्चे के प्रजनन अंगों का ठीक से विकास हो सके.

अगर आपको किसी कुत्ते ने काट लिया है तो अस्पताल भागने से पहले घर में अगर लालमिर्च हो तो उसकी चटनी पीस कर काटने वाले स्थान पर लगा लीजिये.यह इंजेक्शन का विकल्प है, यह चटनी लगाने के बाद फिर इंजेक्शन की जरूरत नहीं पड़ती. ये ऐसे लोगों के लिए लाभदायक है जिनके घर से अस्पताल का रास्ता एक घंटे से ज्यादा समय का हो.
खून में हीमोग्लोविन कम हो जाए तो प्रतिदिन कम से कम ६ हरी मिर्च खाएं, कच्ची ही .५-६ दिनों में हिमोग्लोविन सामान्य हो जाएगा. जिनके ब्लड में प्लेटलेट्स घट जाती हैं, उन्हें भी ये कच्ची हरी मिर्च बहुत फायदा पहुँचाती है.
बदन में दाद-खाज खुजली या किसी प्रकार का चर्म रोग हो जाए तो आप सरसों के तेल में लालमिर्च का पावडर खौलाइये, फिर इस तेल को ठंडा करके छान लीजिये और पूरे बदन पर या खुजली वाले स्थान पर रो लगा कर सो जाए .२१-२२ दिनों में सफ़ेद हो गयी त्वचा भी सामान्य रंग में आना शुरू कर देती है.
कालरा में एक चम्मच  मिर्च का पावडर एक चम्म्ह नमक के साथ पानी में उबालिए ,फिर उस पानी को चाय समझ के पी जाए. दिन में दो बार कीजिए ,जबरदस्त लाभ होता है.
पेट दर्द कर रहा हो तो हरी मिर्च या   लाल मिर्च के दो ग्राम बीज गुनगुने पानी से निगल लीजिये.

किसी ने ज्यादा शराब पी ली है और हैंगओवर हो गया है तो मिर्च का २ चुटकी पावडर गुनगुने पानी में मिला कर दिन में दो तीन बार पिला दीजिये.

सन्निपात के रोगी को अगर एक मिर्च पीस कर किसी तरह पिला दी जाए तो मूर्छा फ़ौरन ख़त्म हो जाती है.

जब जलवायु परिवर्तित होने लगे तो हरी मिर्च का सेवन ज्यादा कर देना चाहिए.

लेकिन लाल मिर्च के सेवन से हमेशा बचना चाहिए ,यह कई सारे रोग उत्पन्न कर देती है ,रोज लाल मिर्च खाने से लीवर कमजोर हो जाता है, अंडकोष, किडनी, आँखे भी कमजोर हो जाते हैं.पेट की पाचन शक्ति कम हो जाती है और कैंसर होने के रास्ते खुक्ल जाते हैं, इसलिए लालमिर्च का सिर्फ बाहरी उपयोग ही करना चाहिए ,इसे खाने से परहेज करना चाहिए. आयुर्वेद के अनुसार लालमिर्च का ज्यादा उपयोग या नियमित उपयोग संखिया के जहर का काम करने लगता है. ब्लड   भी अशुद्ध हो जाता है.

जबकि हरी मिर्च खाने से मुंह की लार अधिक उत्पन्न होती है जो भोजन को अच्छी तरह पचती तो है ही ,गैस नहीं बनने देती है और हृदय   को तथा प्रजनन शक्ति को ताकत प्रदान करती है. मल- मूत्र विसर्जन के रास्ते में आने वाली सारी बाधाएं दूर करती है.
  
   


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

जिमीकंद (सूरन)

   




अगर दीपावली के त्यौहार पर जिमीकंद (सूरन) को अनिवार्यतः खाने की परम्परा न होती तो अनेको लोग इसकी तरफ देखते भी नहीं. उन अनेकों में आप मुझे भी गिन सकते हैं. क्योंकि जिमीकंद (सूरन) खाने से गले के अन्दर खुजली होने लगती है ,जिसे "गर काटना" भी कहते हैं. इसी खुजली से बचने के लिए लोग जिमीकंद खाते ही नहीं.लेकिन ये कई बीमारियों में बहुत काम आता है और ये ऐसे समय पैदा होता है जब कीट-पतंगों की बहुतायत हो जाती है .ये कीड़े रात में बल्ब,मोमबत्ती, दीपक को इस तरह घेर लेते हैं कि खाना बनाना-खाना मुश्किल, लिखना-पढ़ना मुश्किल, छोटे बच्चों की स्किन तो इतनी नाजुक होती है कि एक कीड़ा भी अगर शरीर के संपर्क में आये तो फफोले पड़ जाते हैं. फिर कितनी जलन सी होती है ,ये बस बच्चा ही बताएगा रो-रोकर. ऐसे समय यह जिमीकंद बहुत काम आता है.

जिमीकंद में विटामिन-ए, विटामिन-बी, आयरन, फास्पोरस, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाईड्रेट, क्षार, कैल्शियम आक्ज्लेट आदि तत्व पाए जाते हैं.
इसे देश के अधिकाशतः राज्यों में सूरन, ओल, जिमीकंद के नाम से ही जानते हैं.मराठी में गोडासूरण, खाजेरासूरण कहा जाता है.इसका वैज्ञानिक नाम है- Amorphophallus companulatus और अंग्रेजी में Wild corm कहते हैं.

## पेट में किसी भी तरह की परेशानी महसूस हो तो आप इसकी सब्जी बनाकर खाएं ,इसके खुजली वाले गुण से डरें नहीं. न ही इसके कसैलेपन की परवाह करें . ये पेट की सभी बीमारियों में दवा का काम करता है ,इसका खुजली वाला अवगुण दूर करने के लिए ज़रा ज्यादा तेल -घी-चिकनाई का प्रयोग इसकी सब्जी, चोखा या अचार में कीजिए.
   
## जिमीकंद  को  छाये  में  सुखाकर  उसका चूर्ण  बनाकर रख लीजिये. आपको बवासीर हो गयी हो तो रोज सुबह खाली पेट ५-६ ग्राम चूर्ण पानी से निगल लीजिये, कम से कम एक महीना तो खा ही लीजिये. यही चूर्ण यकृत क्रिया को भी ठीक करता है और अगर प्लीहा बढ़ गया है तो जिमीकंद का चूर्ण बहुत तेज काम करता है.

## जब किसी को आंव या खूनी आंव हो जाए तो जिमीकंद के चूर्ण को जरा से घी में भूनिए और जितना चूर्ण उतनी ही चीनी मिलाकर खा लीजिये.कम से कम ११दिन और दिन में सिर्फ एक बार .

## आँख में कोई परेशानी हो तो जिमीकंद की जड़ को ज़रा सा पानी में घिस कर बंद आँखों के ऊपर लेप कर लीजिये और सो जाएँ .जागने पर सादे पानी से धो लीजिये.


## अगर गठिया हो गया हो तो सूरन का गूदा और सूरन के बीज पीस कर लेप कर लीजिये .रोज रात में लेप कीजिए २१ दिनों तक.


## कोई जहरीला कीड़ा काट ले तो जिमीकंद की चटनी पीस कर उस स्थान पर लेप कीजिए. यह चटनी सारा ज़हर सोख लेगी.




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

बुधवार, 28 सितंबर 2011

इन्सेफेलाइटिस

२६ सितम्बर, २०११ के राष्ट्रीय हिंदी दैनिक 'जन सन्देश टाइम्स' में प्रकाशित 
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मस्तिष्क ज्वर, दिमागी बुखार और जापानी इन्सेफेलाइटिस के नाम से पहचानी जाने वाली इस जानलेवा बीमारी  का शिकार अधिकांशतः बच्चे ही होते हैं. अगस्त ,सितम्बर अक्टूबर के महीने तो जैसे अनेको घरो के चिराग को गुल करने का ही संकल्प लेकर आते हैं. ये बीमारी हर साल इन्ही महीनो में ज्यादा फैलती है और आम नागरिक जानबूझ कर इसे अनदेखा किये रहता है .इस बीमारी का मुख्य वाहक सुअर हैं . सुअर के ही शरीर में इस बीमारी के वायरस पनपते और फलते फूलते हैं और उनसे मच्छर इस वायरस को मानव शरीर में पहुँचाने का काम करते हैं.इस बीमारी का केंद्र कई वर्षों से गोरखपुर बना हुआ है और अब तो पूर्वांचल के ग्रामीण क्षेत्रों में ये दिमागी बुखार बड़ी तेजी से अपने पैर पसारने लगा है. बड़े पैमाने पर सुअर पालन और पानी का एकत्र होना और उस गंदे पानी में मच्छरों का पैदा होना ही इस बीमारी का कारण बन रहा है.क्युलेक्स प्रजाति का मच्छर दिमागी बुखार के वायरस सूअरों के जिस्म से मानव शरीर में पहुंचता है और ये इसी मौसम में पनपता है .अगर हमें खुद को और अपने इष्टजनों को इस बीमारी से बचाना है तो बस थोड़ी सी सावधानी और थोड़ी सी जानकारी रखनी होगी.
   सबसे पहली बात कि हमें सावधान रहना होगा कि हमारे घरों के आस-पास गन्दा पानी न जम होने पाए .अपने बच्चों को उस पानी के संपर्क में आने से बचाना तो होगा ही मच्छरों से भी बचाव करना होगा. आइये कुछ साधारण दवाओं और घरेलू उपायों पर नजर डालते हैं ताकि इस बीमारी से मुकाबला किया जा सके.-------
१- कही किसी गड्ढे में पानी एकत्र देखें तो उसमे तुरंत १०-२० ग्राम मिट्टी का तेल या पेट्रोल डाल दीजिये. इससे मच्छरों के लार्वा मर जायेंगे.
२- सरसों के तेल में ज्यादा मात्रा (१० ग्राम) अजवाइन डालकर जला दीजिये और उसी जले हुए तेल में मोटे गत्ते के चार टुकडे डुबाकर  अपने कमरे के चारों कोनो पर लटका दीजिये. आपके कमरे में अगर एक भी क्युलेक्स प्रजाति का मच्छर होगा तो जीवित नहीं बचेगा. इन गत्ते के टुकड़ों को ५ दिन बाद बदल दीजिये.  ये नुस्खा सभी मच्छरों  से आपको बचा लेगा.
३- घर के प्रत्येक सदस्य को सप्ताह में ३ दिन ४-५ ग्राम अजवाइन पानी से निगलवा दीजिये. शरीर में प्रतिरोधक क्षमता इतनी तेज हो जायेगी कि दिमागी बुखार के वायरस से आप बच सकें .
४- अगर सिर में दर्द जैसी शिकायत हो रही है तो तुरंत सुबह-शाम नीम के २० पत्ते चबाएं और अजवाइन का काढा दिन में ३ बार पीलिजिये.
५-  अगर बेहोशी जैसी स्थिति बन रही हो तो तुरंत रोगी को २० -२० ग्राम शहद १-१ घंटे के अंतराल पर पिलाए.
६- बल्कि घर के हर सदस्य को एक चमच शहद सुबह और एक चम्मच शहद शाम को पी लेना चाहिए ,बिना कुछ मिलाये.
७- वायरस इन्फेक्शन में गिलोय का पावडर बहुत तेज काम करता है . सभी लोगो को ४ ग्राम पावडर पानी से निगल लेना चाहिए.
८- बेहोश रोगी को गिलोय के पावडर का काढ़ा बना कर पिलाये, साथ ही १०-१५ दाने लौंग को ५०० ग्राम पानी में उबाल कर काढ़ा बना लीजिये और इस काढ़े को एक-एक चम्मच हर घंटे रोगी को पिलाते रहे.
९- साथ में जटामांसी का काढ़ा भी हर घंटे २-२ चम्मच पिलाया जा सकता है ,यह मस्तिष्क में भर गए अनावश्यक पानी को भी सुखाने की  ताकत रखता है. जिससे बेहोशी जल्दी दूर हो जाती है.
 १०- अजवाइन, गिलोय, लौंग और जटामांसी  इन चारों के काढ़े से मष्तिष्क ज्वर को रोगी को अप्रत्याशित लाभ पहुंचता है. काढा सिर्फ बेहोश रोगी को ही नहीं लाभ पहुंचाता वरन आपको इस बीमारी से दूर रखने में भी मदद करता है.
११- ज्यों ही हल्का सा भी सिर-दर्द महसूस हो तो तुरंत धनिया के दाने पानी में पिसवा कर माथे पर लेप कर लीजिये और हर दो घंटे पर एक चम्मच शहद लेना शुरू कर दीजिये.
 ये सारे उपाय  आपको मष्तिष्क ज्वर जैसी नामुराद बीमारी से बचा सकते हैं ,यही नहीं अगर आप इन उपायों को हर महीने  में दस दिन आजमाते रहें तो आपका दिल- दिमाग ही नहीं शरीर का प्रतिरोधी तंत्र भी बेहद मजबूत हो जाएगा.






इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शनिवार, 24 सितंबर 2011


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

जटामांसी


  • मैं बहुत दिनों से जटामांसी के बारे में लिखना चाह रही थी लेकिन कुछ तो संयोग नहीं बन पा रहा था और कुछ मेरी जानकारियों से मैं खुद संतुष्ट  नहीं थी, जबकि ये अकेली जड़ी है जिसका मैंने ७५%मरीजों पर सफलतापूर्वक प्रयोग किया है. फिर मरीजों की क्या बात करूँ ,मैं जो  आज आपके सामने सही-सलामत मौजूद हूँ वह इसी जटामांसी का कमाल है. इसलिए आज इस जड़ी का आभार व्यक्त करते हुए आपको इससे परिचित कराती हूँ.

  • आइये  पहले इसके नामो के बारे में जानते हैं-
  • हिंदी- जटामांसी, बालछड , गुजराती में भी ये ही दोनों नाम,तेल्गू में जटामांही ,पहाडी लोग भूतकेश कहते हैं और संस्कृत में तो कई सारे नाम मिलते हैं- जठी, पेशी, लोमशा, जातीला, मांसी, तपस्विनी, मिसी, मृगभक्षा, मिसिका, चक्रवर्तिनी, भूतजटा.यूनानी में इसे सुबुल हिन्दी कहते हैं.
  • ये पहाड़ों पर ही बर्फ में पैदा होती है. इसके रोयेंदार तने तथा जड़ ही दवा के रूप में उपयोग में आती है. जड़ों में बड़ी तीखी तेज महक होती है.ये दिखने में काले रंग की किसी साधू की जटाओं की तरह होती है. 
  • इसमें पाए जाने वाले रासायनिक तत्वों के बारे में भी जान लेना ज्यादा अच्छा रहेगा---- इसके जड़ और भौमिक काण्ड में जटामेंसान , जटामासिक एसिड ,एक्टीनीदीन, टरपेन, एल्कोहाल , ल्यूपियाल, जटामेनसोंन और कुछ उत्पत्त तेल पाए जाते हैं.
  • अब इस के उपयोग के बारे में जानते हैं :-
  • मस्तिष्क और नाड़ियों के रोगों के लिए ये राम बाण औषधि है, ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है.
  • पागलपन , हिस्टीरिया, मिर्गी, नाडी का धीमी गति से चलना,,मन बेचैन होना, याददाश्त कम होना.,इन सारे रोगों की यही अचूक दवा है.
  • ये त्रिदोष को भी शांत करती है और सन्निपात के लक्षण ख़त्म करती है.
  • इसके सेवन से बाल काले और लम्बे होते हैं.
  • इसके काढ़े को रोजाना पीने से आँखों की रोशनी बढ़ती है.
  • चर्म रोग , सोरायसिस में भी इसका लेप फायदा पहुंचाता है.
  • दांतों में दर्द हो तो जटामांसी के महीन पावडर से मंजन कीजिए.
  • नारियों के मोनोपाज के समय तो ये सच्ची साथी की तरह काम करती है.
  • इसका शरबत दिल को मजबूत बनाता है, और शरीर में कहीं भी जमे हुए कफ  को बाहर निकालता है.
  • मासिक धर्म के समय होने वाले कष्ट को जटामांसी का काढा ख़त्म करता है.
  • इसे पानी में पीस कर जहां लेप कर देंगे  वहाँ का दर्द ख़त्म हो जाएगा ,विशेषतः सर का और हृदय का.
  • इसको खाने या पीने से मूत्रनली के रोग, पाचननली के रोग, श्वासनली के रोग, गले के रोग, आँख के रोग,दिमाग के रोग, हैजा, शरीर में मौजूद विष नष्ट होते हैं.
  • अगर पेट फूला हो तो जटामांसी को सिरके में पीस कर नमक मिलाकर लेप करो तो पेट की सूजन कम होकर पेट सपाट हो जाता है.




इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

केला : फल भी औषधि भी सब्जी भी




आज तक हमने केले का उपयोग फल के रूप में ही किया है. हम इसे सस्ता और ताकत देने वाला फल मानते रहे हैं , लेकिन इसके इतने सारे औषधीय गुण हैं कि ये आपको एक बेहतर डाक्टर के रूप में दिखाई देने लगेगा. चलिए आज हम इसी केले पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं.
इस केले को हिन्दुस्तान में अधिकाँश राज्यों में केला, तमिल में वालें, अरम्बई और तेलगू में अनन्ति और कदली ,संस्कृत में भानुफल, कदली, राजेष्टा, रम्भा, सुफल और वनलक्ष्मी ,अंग्रेजी में बनाना और वैज्ञानिक भाषा में- Musa sapientum कहते हैं.


अब इसके तत्वों के बारे में जानते हैं-
इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, मैगनीज, कापर, आयरन, फास्पोरस,सल्फर, आयोडीन, अलुमिनियम, जिंक, कोबाल्ट, सिट्रिक एसिड, मैलिक एसिड ,आक्जेलिक एसिड तथा केले के फूल में डोपामाइन, कैफिक एसिड, गेलिक एसिड, प्रोतोकेतेच्विक एसिड, कम्पेस्तेराल, फेरुलिक एसिड, स्तीग्मास्तीराल, डोपानोराद्रेनालिन , सेलेनाल ,ग्लायकोसाइड्स ,सिनामिक एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं.

** केला अगर एक निश्चित मात्रा में रोज खाया जाए तो ये किडनी को मजबूत बनाता है.
** केले का रस पीने से खुल कर पेशाब आता है और मूत्राशय (यूरीन ब्लैडर) साफ़ हो जाता है.जिससे देह में संचित रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. परिणामतः रोग भी नष्ट हो जाते हैं.
** अगर खून की उलटी हो रही हो तो तुरंत एक या दो कच्चा केला खिला दीजिये.
** बहुत ज्यादा यूरीन हो रहा हो तो भी आप एक या दो कच्चा केला खा सकते हैं.
** किसी ने संखिया खा लिया हो तो केले की जड़ का रस निकाल कर पिला दीजिये.
** नकसीर में केले के पेड़ का रस सुंघा दीजिये रोगी को.
** केले के रस में टी.बी.को भी जड़ से ख़त्म करने की ताकत है.
** आग से  बदन का कोई हिस्सा जल गया हो तो वहाँ केले को मसल कर रख दीजिये और ऊपर से कपडे से बाँध दीजिये.जलन भी कम होगी और घाव भी ठीक होगा.
** सुजाक की बीमारी में केले की जड़ के रस में थोड़ी चीनी और घी मिलाकर पिलायें ,५ दिनों में आराम मिल जाएगा.

** अगर फेफड़े से खून निकल रहा हो या जननांगों से रक्तस्राव हो रहा हो तो केले की जड़ का रस बिना कुछ मिलाये पिला दीजिये.
** किसी ने ज्यादा मात्रा में अफीम खा ली हो और उसकी जान पे संकट आ गया हो तो केले के छिलके और केले के पत्तों का रस पिला दीजिये.
** अगर किसी को सांप काट ले तो तुरंत केले के पेड़ से १०० ग्राम की मात्र में ताजा रस निकाल कर पिला दीजिये,सांप का जहर तुरंत उतर जाएगा.
** अगर किसी को काली खांसी हो गयी है तो केले के तने को सुखाकर फिर जला कर जो राख बचती है वह दो-तीन चुटकी लीजिये और शहद मिला कर चटा दीजिये . काली खांसी जड़ से ख़त्म हो जाएगी.
** केले के तने की भस्म को पानी में घोल कर पीने से मूत्राशय की पथरी गल के निकल जाती है .
** जिनकी पाचन शक्ति कमजोर हो उन्हें केले के आटे की रोटी खानी चाहिए. केले को सुखा के पिस लेंगे तो केले का आटा बन जायेगा.
** केला सुखाकर पीसकर उसका पावडर बना कर रख लीजिये. इस पावडर को छोटे बच्चों को ५ ग्राम की मात्र में रोज खिला दीजिये.६ महीने तक खिला देंगे तो आपका कमजोर बच्चा पहलवान जैसा मजबूत हो जाएगा. चहरे पर चमक भी आ जाएगी.
** कच्चे केले की सब्जी बहुत ताकतवर और पौष्टिक होती है मगर कच्चा केला आप ऐसे ही कभी न खाएं उसे सब्जी के रूप में ही खाएं.
** स्कर्वी के रोगी को तो रोज ही पके केले खाने चाहिए ताकि उसका रोग भी दूर हो और वह ताकतवर भी बने.
** जब केले पर कालिमा आ जाए तो आप उसे सदा जानकार फेकियें मत ,उस समय केला और पौष्टिक हो जाता है.केला कभी सड़ता नहीं है.
** केले को अगर दूध में मिक्स करके खाया जाये तो यह पूरे भोजन की ताकत दे देता है. फिर आप दिन भर भोजन न भी करें तो कमजोरी नहीं फील होगी.
** किसी को संग्रहणी की शिकायत हो तो वह पके केले के साथ इमली और नमक खाए , यह मिश्रण संग्रहणी दूर कर देता है.
** जंगली केले के बीजों में स्माल पाक्स दूर करने की ताकत है . इन बीजो का पावडर बस २ चुटकी काफी होता है. साल भर में एक बार खिला दीजिये तो चेचक कभी नहीं निकलेगी और अगर निकल गयी है तो २-३ बार खिलने से ख़त्म हो जाएगी.
** सांस से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो एक केला लीजिये ,उसमे बीच में चीरा लगाकर काली मिर्च का ३-४ ग्राम पावडर भर के रात भर रख दीजिये, सवेरे इस केले को तवे पर ज़रा सा देशी घी डाल कर सेंक लीजिये.फिर खा लीजिये .३ दिन लगातार यही काम करे. सांस की बीमारी ख़त्म.
** अगर महिलाओं को माहवारी के समय बहुत ज्यादा रक्तस्राव होता हो तो केले के फूलों का रस निकाल कर उसे दही मिला कर पी लें. इस दवा से पतले दस्त में भी बहुत फायदा होता है.
** हैजे से ग्रसित रोगी को सुबह शाम एक एक पका केला जरूर खिला देना चाहिए.
** केले के फूलों का सत मिल जाए तो इसे ब्लड सुगर को कंट्रोल  करने के लिए रोजाना एक चुटकी खा लीजिये. बहुत अचूक दवा है.


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

अजवाईन



यह लेख कादम्बिनी में प्रकाशित हो चुका है.  


ये हमारी बदकिस्मती है कि हम अपने मसालों के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखते. हमारे बुजुर्गों ने मसालों का उपयोग प्रतिदिन केवल खाना स्वादिष्ट बनाने के लिए नहीं जरूरी बताया था वरन खुद को स्वस्थ रखने के लिए रोज खाने की एक दवा बता दी थी. पर अब हम थोड़े आलसी और थोड़े एडवांस हो गए हैं .मसाला पीसते या पिसवाते नहीं बल्कि पैकेट वाले रेडीमेड मसाले प्रयोग करते हैं. जिन्हें ज़रा तेज मसाला खाना हो वे घर में प्याज, लहसुन, मिर्च,धनिया पीस कर ऊपर से रेडीमेड मसाला डाल लेते हैं, पता नहीं खाने वालों को धोखा देते हैं या खुद को.


खैर आइये एक जानी पहचानी चीज अजवाईन के बारे में बातें करते हैं, यह क्या है क्यों खायी जाती है और शरीर के लिए कैसे उपयोगी है?
अजवाइन कुल तीन तरह की होती है - सामान्य अजवाईन , वन अजवाईन और खुरासानी अजवाईन. अजवाइन के बारे में आयुर्वेद कहता है कि ये अकेली ऎसी चीज है जिसमें सरसों और मिर्च का तीतापन, हींग के पाचक और विष शामक गुण और चिरैता का कडवापन तीनों एक साथ पाए जाते हैं. ये तीनों चीजें अपने आप में एक सम्पूर्ण  दवा की हैसियत रखती हैं. तो सोचिये अजवाईन कितनी गुणकारी हुई.
               

                             यह वन (जंगली)अजवाइन का पौधा है


आइये इनके औषधीय गुण देखें-


***शराबियों की आदत छुडाने के लिए-  उन्हें दिन भर एक चुटकी अजवाइन चबाने को देते रहिये हर दो घंटे पर.


***अजवाइन के ठंडे काढ़े से आँखें धुलिये तो आँखों की रोशनी तेज होगी और आँखों की सारी बीमारियाँ दूर हो जायेंगी.


***कुछ अच्छा नहीं लग रहा है ,किसी काम में मन नहीं लग रहा है, थकान, बुखार, सर्दी, खांसी, जुकाम, शरीर में कहीं दर्द, खाने की इच्छा कम हो गयी है तो बस एक बड़ा चम्मच अजवाइन लगभग ५-६ ग्राम मुंह में रखिये और बिना चबाये पानी से निगल जाइए. दो घंटे में ही चेहरे पर मुस्कान लौट आयेगी.
                         
                        यह  सामान्य अजवाइन का पौधा है  
***पुरानी खांसी- अजवाइन का चार ग्राम पावडर दिन में दो बार तीन दिनों  तक पानी से निगल लीजिये.


***श्वास रोग ,दमा-  अजवाइन का चार ग्राम  पावडर गुनगुने पानी से दिन में दो बार  ७ दिनों तक . हर महीने में ७ दिन.


***अगर आप प्रत्येक सप्ताह तीन दिनों तक खाली पेट ५ ग्राम अजवाईन पानी से निगलते रहेंगे तो आपको कभी डाक्टरों या अस्पताल का मुंह नहीं देखना पडेगा क्योंकि ये यकृत लीवर समेत शरीर के सभी भीतरी अंगों की कठोरता को कम करती है जिससे सभी अंग लचीले और एक्टिव हो जाते हैं और अपना काम सुचारू रूप से करते रहते हैं.


***सूखी खांसी में- अजवाइन की २ ग्राम मात्रा को पान में रखिये और उस पान को धीरे धीरे चबाते हुए सारा रस गले से नीचे उतार 
लीजिये.


*** फालिज में- रोजाना मरीज को ५ ग्राम अजवाइन पीस कर चीनी के शरबत में अच्छी तरह मिला कर पिला दीजिये


*** मासिक धर्म में रुकावट हो तो महिलाए अजवाइन का २ ग्राम पावडर दिन में दो बार गरम दूध से निगल लें ,केवल तीन दिन तक, पहले ही दिन रुकावट ख़त्म हो तो बंद कर दीजियेगा.


***दाद, खाज, खुजली या आग से जल गए हैं तो अजवाइन की  चटनी पानी के साथ पीसिये और प्रभावित स्थान पर लेप कर दीजिये .४-५ घंटे छोड़ दीजिये. यही चटनी ज़रा और पतला करके अगर घुटनों पर रगड़ेंगे तो घुटनों का दर्द ख़त्म हो जाएगा.


*** अगर किसी को नींद न आ रही हो तो खुरासानी अजवाइन ३ ग्राम की मात्रा में पानी से निगलवा दीजिये.इससे मन भी शांत होता है ,नींद भी गहरी आती है और पेट भी साफ़ हो जाता है. शुरुआत में २ ही ग्राम दीजिएगा.


*** अगर पेट में गैस परेशान करती है तो थोड़े से गुड में १-२ ग्राम खुरासानी अजवाइन मिलाकर गोली बनाएं और खा जाएँ.


*** पेट में कीड़े हों तो सुबह सवेरे थोड़ा सा गुड खाइए फिर २ ग्राम खुरासी अजवाइन पानी से निगल जाइए. बस ३ दिन काफी है.


*** गठिया, जोड़ों में दर्द या सूजन में खुरासानी अजवाइन को पानी के साथ पीस कर लेप करके सो जाएँ. प्रत्येक रात में . जल्दी ही दर्द ख़त्म हो जाएगा.


*** अगर आपको पथरी की आशंका हो तो प्रत्येक महीने ५ दिनों तक जंगली अजवाइन या अजमोद या वन अजवाइन ५ ग्राम पानी के साथ निगल लिया कीजिए, कभी पथरी नहीं बन सकती. जंगली अजवाइन का प्रयोग जानवरों के भी उपचार में बहुत किया जाता है.अगर आपके पालतू जानवरों को पेट से सम्बंधित कोई भी शिकायत हो तो वन अजवाइन चारे में मिला कर खिला दीजिये. कुत्तों के लिए २० ग्राम बकरी को भी २० ग्राम, गाय भैसों को ५० ग्राम काफी रहेगा.


*** दांतों के लिए- तीनों में से कोई भी अजवाइन भून कर पावडर बनाएं और उससे सप्ताह में तीन दिन दांत साफ़ कीजिए ,मसूढ़े स्वस्थ, दांत चमकदार और पायरिया गायब.


देखा आपने अजवाईन की ताकत. बस अब तीनों तरह की अजवाइन परमानेंट घर में रखिये.




इसका वैज्ञानिक नाम है - Carum copticum.  इसे संस्कृत में यवानी और बंगाली में यमानी कहते हैं. फारसी में तुख्मेवंग तथा अरबी में तेराल्वंज, मराठी में किरमानी आदि कहते हैं.

अजवाइन में मुख्यतः साईमोन, टरपेन, उड़नशील तेल, स्टीअरोप्तिन पाए जाते हैं .
चित्र गूगल इमेज से लिए गये हैं, आभार सहित 


इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

सोमवार, 8 अगस्त 2011

अमलतास



"अमलतास के फूल मनोहर "
ये किताब की  किसी कविता की पंक्तियाँ थीं ,आज भी याद हैं आप खुद देखिये-


ये अमलतास अक्सर हमारा मन मोह लेता है और इसके २ फीट लम्बे काले काले सांप जैसे फल .....रात में अचानक कोई देखे तो डर जाए कि सांप लटक रहे हैं .इतने सुन्दर फूल और ऐसे डरावने फल ...क्या कुदरत का करिश्मा है .आपको पता है ये कितना उपयोगी होता है? आइये आज इसी बारे में बात करते हैं-
इसके फल ही खासे उपयोगी होते हैं .इनमें अनगिनत तत्व मिलते हैं जिनमें महत्वपूर्ण हैं-
ग्लाइकोसीड्स, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, पोटेशियम,  आयरन,  मैग्नीशियम, टैनिन्स, रेजीन, गोंद, उड़नशील तेल, ल्यूकोपेलारगोनिदीन, कोंतानाल, फ्लेवोनीड्स, सिटोस्तीराल, एंट्राय .


देश के विभिन्न हिस्सों में में इसे भिन्न- भिन्न नामों से पुकारा जाता है --
हिंदी  में  धन्बहेडा, कन्नड़ में कक्केमर, बंगाली में सोनालू, मारवाड़ी में कर्माडी, गुजराती में गर्माड़ो,  तेलगू में रेलचत्तू,  मराठी  में वाहवोह, संस्कृत में हेमपुष्प, आरग्वध, दीर्घफल, व्याधिघातः आदि 

वैसे तो अमलतास की जड़, छाल, फल,फूल और पत्ते सभी बेहद काम के होते हैं पर इसमें जो डेढ़- दो फीट लम्बी काले रंग की फलियाँ लगती हैं, ये शीतकाल में पकती हैं,  इनके भीतर बने हुए छोटे-छोटे खाने में काले रंग का गोंद के समान  एक लसदार सा पदार्थ भरा मिलेगा जिसे गिरी कहते हैं
यही गिरी अनेक रोगों में काम आती है. बच्चों के पेट में दर्द हो रहा हो तो इसी गिरी नाभि के चारों  तरफ लेप कर देने से पेट  दर्द ठीक हो जाता है.अगर किसी कीश्वास फूल रही है या श्वास लेने में रुकावट महसूस हो रही है तो इसी गिरी का काढा पिला दीजिये. २ बार पिलाना काफी होगा. इसी गिरी से आप हाइड्रोसील को भी ठीक क र सकते हैं- २० ग्राम गिरी को २०० ग्राम पानी में धीमी आंच पर पकाएं जब पानी एक चौथाई बचे तो उसमें ३५ ग्राम गाय का घी मिलाएं और रोगी को खड़े-खड़े पिला दीजिये. रोगी स्वस्थ हो जाएगा.  गर्भवती स्त्री को आराम से प्रसव कराने के लिए दर्द शुरू होते ही इस गिरी की पतली चटनी पीस कर योनि के चारों ओर लेपकर दीजिये, दर्द-रहित  नार्मल प्रसव होगा. यूरीन डिस्चार्ज करने में अगर जलन, दर्द, पीड़ा, या कोई और कष्ट हो रहा हो तो इसी गिरी को नाभि पर लेप कीजिए और लेप सूख जाये तो हटा दीजिये.

अमलतास के पत्तो को पीस कर दाद,या किसी प्रकार के कोढ़ पर लेप करने
से आराम मिलेगा. पत्तों को गरम करके गठिया के दर्द वाली जगह पर बाँधने से भी दर्द से राहत मिलती है








इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा

गुरुवार, 19 मई 2011

फुटकर दवाएं


ये कुछ रोगों की फुटकर दवाएं हैं. ये नुस्खे पूर्णिमा वर्मन जी की पत्रिका अभिव्यक्ति में भी प्रकाशित हैं ,पाठक बन्धु इनसे लाभ उठा सकते हैं कहीं पर कोई शंका हो तो फोन पर भी पूछ सकते हैं
१-

स्तनों की वृद्धि के लिए और उनको सुडौल आकार प्रदान करने लिए आप घर में ही ये दवा बना सकते हैं.
इनका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा .न ही स्किन प्राब्लम 

अश्वगंधा  5 ग्राम 
गजपीपल  5 ग्राम 
बच    5 ग्राम  
तीनो पिस  कर  पावडर  बना  लीजिये  . इस  पावडर  को  घी  में  मिक्स  करके  दोनों  ब्रेस्ट  पर  लेप  दीजिये  .कम  से  कम  4 घंटे  के  लिए 

ये  काम  35 दिनों  तक  कीजिये 

२-
आप चाहें तो अपनी किडनी को चुस्त दुरुस्त रख सकते हैं . क्योंकि ये किडनी ही है जो बीमार तो खुद होती है और डैमेज और अंगों को करती है. और नहीं तो ये बड़े चुपके से खराब होती है .बाक़ी बीमारियाँ और अंग तो बाकायदा एनाउंस करके अपने बीमार या खराब होने की घोषणा करते हैं पर किडनी बहुत धोखेबाज है .तो बेहतर है की हम हर महीने इसकी खोज खबर ले लें.
इसके लिए आपको बहुत छोटा सा काम करना है -
अमलतास के गूदे को अंजीर के रस में पका कर हलुआ बना लीजिये और सुबह शाम इसे चाट कर खा लीजिये . ५० ग्राम अमलतास का गूदा काफी रहेगा.हर माह में ४-५ दिन ये काम कर लिया करें ताकि कभी किडनी आपको धोखा न देने पाए 

3-
नई धनिया आ गयी है ,अब आप लोग मसाले पिसवा कर साल भर के प्रयोग के लिए संग्रह करेंगे, बस थोडा ध्यान दें तो ये मसाला दवा के रूप में बदल सकता है -
आयुर्वेद के अनुसार इस मसाले में खुरासानी अजवाईन , भांग के बीज , दालचीनी , लौंग , तेजपात, जायफल, जावित्री, अश्वगंधा, मंगरैल, सेंधा नमक, काली मिर्च ,सोंठ, इलायची, अजवाईन,जीरा,कालाजीरा, सौंफ ,मेथी, कालातिल, सरसों, पडी हुई हो तो आप पथरी, सांस की बीमारी ,घुटनों के दर्द और मौसमी बुखारों से बचे रह सकते हैं.

4- 
अमलतास बहुत उपयोगी और जाना पहचाना पौधा है ,जिसे लोग अक्सर अपने घरों में लगाते हैं.

इसके कुछ उपयोग मैं आपको बताती हूँ जिन्हें आप घरों में छोटी छोटी बीमारियों के लिए अपना सकते हैं-
१- अगर पेट में गैस बन गयी हो या गैस के कारण आपका शरीर फूल गया हो तो अमलतास के ताजे पत्तों का रस निकाल कर रोज ४-५ चम्मच पी लीजिये.
पेट की गैस तो तुरंत ख़त्म हो जायेगी और अनावश्यक फूल गये शरीर को ये सही कर देगा.
२- अगर नाक और मुंह से बलगम के साथ खून के कतरे भी गिर रहे हो तो अमलतास की फलियों का गूदा शहद मिला कर दे दीजिये .
३-छोटे बच्चों को अपच के कारण पेट दर्द कर रहा हो तो अमलतास की फलियों के गूदे को गर्म पानी में मिला कर पेट पर लेप कर दीजिये.
४-अमलतास के ताजे पत्तों का रस निकाल कर शरीर पर लेप कर देंगे तो स्किन डीजीज से निजात हासिल हो जायेगी.
 ५- अमलतास के पत्तों की सब्जी बनाकर खा लेंगे तो कमर का अनावश्यक फैलाव भी ख़त्म हो जाएगा और कमर स्लिम हो जायेगी.


५-
अगर यूरिक एसिड बढ़ा हो तो-
हरड का पावडर - १०० ग्राम,
बड़ी हरड का पावडर - १०० ग्राम,
आवंला का पावडर - १००ग्राम,
जीरा का पावडर -१०० ग्राम,
गिलोय का पावडर - २०० ग्राम
इन सभी को आपस में मिला दीजिये . प्रतिदिन ५ ग्राम सुबह और ५ ग्राम शाम को पानी से निगल लीजिये . यूरिक एसिड नार्मल होते देर नहीं लगेगी.
लेकिन सावधान आपको लाल मिर्च  का पावडर और किसी  भी  अन्य खटाई ,अचार का सेवन बिल्कुल नहीं  
करना है.

6-
ल्यूकोरिया नामक रोग पुरुषों और स्त्रियों दोनों को बहुत परेशान करता है . कमजोरी, चिडचिडापन, लगातार अजीब सी दुर्गन्ध की फीलिंग आदि चीजें मनुष्य के चेहरे की चमक उड़ा ले जाती हैं.इससे बचने का एक आसान सा उपाय-
एक- एक पका केला सुबह और शाम को पुरे एक चम्मच देशी घी के साथ खा जाइए 
११-१२ दिनों में आराम दिखाई देगा . इस प्रयोग को २१ दिनों तक जारी रखना चाहिए. 



7-
आपको श्वास से सम्बंधित कोई बीमारी है तो दो चुटकी बच की जड़ का पावडर शहद में मिला कर चाटें.
यह नुस्खा बच्चे से लेकर बूढ़े लोगों के लिए भी बहुत कारगर सिद्ध होता है.
8-
**सतौना के पेड़ की छाल बड़े काम की चीज है. ये वह पौधा है जिसे आप बड़ी आसानी से पहचान सकते हैं .एक ही वृंत पर सात पत्ते लगे रहते हैं ,इसका पेड़ आठ फिट ऊंचाई का भी मिलता है. जुकाम या बुखार में इसकी छाल उबाल कर पी लीजिये लगभग आधा  कप  कहीं  कोई घाव  न  भर  रहा  हो  तो इसकी छाल को  दूध  में महीन  पीस  कर उस  घाव  में लेप  कर दीजिये  बहुत जल्दी  वह घाव  भर  जाएगा . बेड सोर   में भी ये नुस्खा  काम देता  है.

9-
**अगर  किडनी  में पथरी  हो  गयी   है तो गुल्खारो  के बीज  का पावडर रोजाना  चार  ग्राम  पानी  से निगल  लीजिये. 

10-
** चौलाई का साग तो आप जानते ही होंगे. अगर शरीर में दाद ,खाज ,खुजली जैसे चर्मरोग सिर उठा रहे हैं तो चौलाई के पत्तों को महीन पीस कर सारे शरीर में लेप कर दीजीये और सो जाएँ , सुबह सादे पानी से नहा लीजिये. ५ दिन ये काम कर लीजिये.

 . 11-
अगर आपको अपने स्तनों को बढ़ाना है तो चौलाई के साग को अरहर की डाल के साथ पकाकर खाइए १५ दिनों तक. -- 

     





इन आलेखों में पूर्व विद्वानों द्वारा बताये गये ज्ञान को समेट कर आपके समक्ष सरल भाषा में प्रस्तुत करने का छोटा सा प्रयत्न मात्र है .औषध प्रयोग से पूर्व किसी मान्यताप्राप्त हकीम या वैद्य से सलाह लेना आपके हित में उचित होगा